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Role of Rights in our life and society in hindi(मनवाधिकार)

(There are many human rights issues at the international level, भारत मे भी अधिकारों से संबंधित समस्याएं चर्चा में रहती हैं जैसे- निजता का अधिकार, इंटरनेट बैन, तलाक भत्ता के लिए समान कानून, रोजगार के अधिकार से संबंधित, Street Vendors के अधिकार का मुद्दा आदि  )

मानवाधिकार प्रकृतिक अधिकार है ये सभी के लिए समान है, सभी मानव है एवं सबका तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन है तो सब इंसान ही ( हा यदि कोई गलत है तो उसके लिए Law द्वारा सजा का प्रावधान है) फिर नफरत की बात नहीं होनी चाहिए, ना किसी  को किसी पर प्रधानता(Primacy), ना ही भेदभाव लेकिन इन वैश्विक चिन्ताओं का विस्तार बहुत बड़ा है

हमें दूसरों के अधिकारों को Value देनी चाहिए ताकि मानवता का अस्तिव बना रहे। 

Role of Rights in our life and society

आज हम अधिकार के Concept को समझते है

 अधिकार क्या है ?  अधिकार राज्य(राष्ट्र) में आदमी को मिलने वाला एक ऐसा अवसर है जिनसे उसे खुद के विकास में सहायता मिल सके, लेकिन सभी दावों को हम अधिकार नहीं कह सकते, क्योकि जब तक उस दावे को समाज की Approval   नहीं मिल जाये, लेकिन समाज का अर्थ क्या है यह Clear  होना चाहिए। 

अधिकार का सिद्वांतः- अधिकार उदारवादी (Liberalist)  विचारधारा से निकला है, क्योंकि उदारवादी के केन्द्र (Core) में व्यक्तिवाद(Individualism) है। अधिकार व्यक्ति के जन्म होते है। वैसे तो अलग - अलग विचारधाराओं के अधिकार के संबंध में अलग-अलग मत है जैसे मार्क्सवाद(Marxism) अनुसार आदमी सामजिक प्राणी(Social animal) है,  जिसमें अधिकार की संकल्पना(Concept) नहीं है एवं समाज ही आदमी के बारे में सोच सकता है, मार्क्सवाद(Marxism) कहता है अधिकार पूंजीवाद(Capitalism) की देन है। 

नकारात्मक और सकारात्मक अधिकार(Positive and Negative rights):- 

नकारात्मक अधिकार- इसमें राज्य(राष्ट्र) द्वारा आदमी पर प्रतिबंध नहीं होता जैसे- Right to freedom of thought & expression 

सकारात्मक अधिकार- इसमें राज्य(राष्ट्र) द्वारा आदमी को खुद के विकास में सहायता देने की व्यवस्था की जाती है जैसे चिकित्सा का अधिकार(Right to medical care) राजगार का अधिकार(Right to work)

 पूंजीवाद देश (जैसे अमेरिका)में नकारात्मक अधिकार पर बल दिया जाता है जबकि समाजवाद देश(रूस, चीन) में सकारात्मक अधिकार पर बल दिया जाता है। 

 अधिकारों के प्रकार- 

  1.  प्राकृतिक अधिकार(Natural rights):- वैसे तो प्राकृतिक अधिकार को लेकर कई विद्वानों के अलग-अलग मत है, लेकिन सामाजिक विद्वानों के अनुसार प्राकृतिक अधिकार राज्य(राष्ट्र) की उत्पत्ति से पहले आये एवं राज्य(राष्ट्र)का जन्म इन अधिकारों की रक्षा के लिए हुआ जैसे जॉन लॉक के अनुसार जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति का अधिकार यह प्राकृतिक अधिकार हैं।

  1. नैतिक अधिकार(Moral rights):- यह अधिकार हमारी अंतरात्मा(conscience) की आवाज को बताता है यदि कोई  नैतिक अधिकार का उल्लंघन करता है तो इसके लिए हमारे कानून में सजा का कोई प्रावधान नहीं है जैसे किसी को मद्द(Help) की आवश्यकता है उसकी मद्द के लिए नैतिक अधिकार हमें बाध्य(bind) करता है।

  1. कानूनी अधिकार(Legal rights):- यह राज्य द्वारा लागू किये जाते है इसके उल्लंघन पर सजा का प्रावधान होता है, यह सभी नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध है। 

 कानूनी अधिकार के प्रकार

  •  नागरिक अधिकार(Civil rights):- जैसे जीवन का अधिकार, समानता, स्वतंत्रता का अधिकार 

  • राजनीतिक अधिकारPolitical rights):- जैसे मतदान का अधिकार, निर्वाचन का अधिकार 

  • आर्थिक अधिकार (economic rights):- व्यक्ति की बुनियादी जरूरतें भोजन, कपड़ा, मकान,चिकित्सा  आदि इससे जुड़ी है जैसे काम करने का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार (बुढ़ापे में।)

मनवाधिकार(Human rights):- यह हर आदमी का प्रकृतिक अधिकार है मुख्यतः यह द्वितीय विश्व युद्व के बाद उत्पन्न हुआ इसमें लोग कानून की आलोचना करने के लिए मानवाधिकार की अपील कर सकता है इसमें आदमी को आदमी के नजरिये से देखा जाता है चाहे कानूनी व्यवस्था की गई हो या नहीं। समाज में जितनी जागरूकता होगी इसका विस्तार भी उतना ही तेजी से बढ़ेगा।

मौलिक अधिकार देश के संविधान में Mentioned है ये अधिकार देश के नागरिकों को और किन्हीं परिस्थितियों में देश में निवास कर रहे सभी लोगों को प्राप्त होते है एवं मौलिक अधिकारों के कुछ तत्व मानवाधिकार के अन्तर्गत भी आते है।


 कर्तव्य(Duties):- नागरिकों के अधिकार की रक्षा के लिए हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।