मौलिक कर्तव्य(Fundamental Duties) भारत ने मौलिक कर्तव्यों को USSR(रूस) से लिया है जब संविधान बना उस वक्त मौलिक कर्तव्य संविधान का हिस्सा नहीं थे, लेकिन 42 वां संविधान संशोधन, 1976 को स्वर्ण सिह समिति की सिफारिश(Recommendations) पर मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश(Recommendations) पर वर्ष 1976 में 42 वां संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नये भाग IVक को जोड़ा गया, इस नये भाग में अनुच्छेद 51क जोड़ा गया। उस वक्त इसमें 10 मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया था, लेकिन वर्ष 2002 में 86 वें संविधान संशोधन द्वारा एक मौलिक कर्तव्य को भी शामिल किया गया अब इसकी संख्या 11 हो गयी है।
Article(अनुच्छेद)-51क के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए कर्तव्य-
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्व हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छू ले।
- 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बीच अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना।
वर्मा समिति द्वारा 1999 में कुछ मूल कर्तव्यों की पहचान व उनको लागू करने के लिए कानूनी प्रावधानों की व्यवस्थाएं की। ये गैर-न्यायोचित्त(Non- Justiciable) हैं यानीं इसको ना मानने पर न्यायालय द्वारा नागरिकों को दण्डनीय(Punishable) नहीं किया जा सकता। संसद चाहे तो इसमें संशोधन कर सकती है, दण्डनीय बना सकती है।
मौलिक कर्तव्य नैतिक अधिकार(Moral Rights) के रूप में माने जाते हैं, जो गैर-न्यायोचित्त है, लेकिन मौलिक कर्तव्यों के साथ भारत का कोई ना कोई कानून जुड़ जाता है एवं इस कानून के तहत सजा दी जा सकती है। जिस तरह से नीति निदेशक तत्वों के अप्रर्वतनीय होने की बात साफ तौर पर बताई गयी है, इस तरह से 51 क में कोई जिक्र नहीं किया गया है।
42 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 :- इसे सबसे महत्वपूर्ण संशोधन माना गया है, इसे लघु संविधान(Short constitution) भी कहते है। इससे स्वर्ण समिति की सिफारिशों को प्रभावी बनाया गया।
इसके तहत किये गये महत्वपूर्ण संशोधन(Amendment)-
- इसके तहत संविधान में तीन नये शब्द - समाजवादी(Socialist), धर्मनिरपेक्ष(Secular) एवं अखंडता(Integrity) जोड़े गये।
- इसमें नया भाग IVक(मौलिक कर्तव्य) को जोड़ा गया।
- इसमें राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्यता का उपबंध जोड़ा गया।
- 5 विषयों (शिक्षा, वन, वन्य जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप- तौल और न्याय प्रशासन एवं उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों का गठन और संगठन) को राज्य सूची से समवर्ती सूची(Concurrent) में स्थानांतरित(Transferred) किया गया।
- न्यायिक समीक्षा एवं रिट न्यायक्षेत्र में उच्च्तम एवं उच्च न्यायालयों की शक्ति में कटौती की गयी।
भारत के संविधान में जिस तरह किसी व्यक्ति को मूल अधिकार के रूप में गरिमापूर्ण जीवन(Dignified life) का अधिकार प्राप्त है उसी तरह उसका कर्तव्य बनता है कि वह दूसरे व्यक्तियों के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का ख्याल रखे, राष्ट्रीय हित को आगे रखे।
मौलिक कर्तव्य कुछ नैतिक कर्तव्य(Moral duties) हैं तो कुछ नागरिक कर्तव्य(Civic Duties) हैं जैसे स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों(high Ideals) का सम्मान नैतिक दायित्व है तथा राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना नागरिक कर्तव्य है।
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