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अनुच्छेद-21 :- जीवन का अधिकार (Article - 21-in Hindi )

अनुच्छेद-21:- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता(life and personal liberty) (इंसान को उसकी मूलभूत आवश्यकता मिलनी चाहिए, उसके साथ व्यवहार इंसान जैसा होना चाहिए ना कि जानवरों या दिखावे वाला)

किसी व्यक्ति को उसकी Life या शारीरिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया(Procedure established by law) से ही वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं। जैसे किसी व्यक्ति को उचित प्रक्रिया द्वारा ही फांसी या गिरफ्तार किया जा सकता है। 

इसका मकसद है कि कार्यापालिका की मनमानी गतिविधियों के विरूद्व एवं विधायिका के मनमाने कानून के विरूद्व व्यक्ति को संरक्षण प्रदान करना है। ताकि तानाशाही रवैये को रोका जा सके और कानून का शासन अपनाया जा सके।

अनुच्छेद-21 में व्यक्ति के जीवन जीने का अधिकार का मतलब है कि पशुओं की तरह जीवन जीने से नहीं बल्कि मानवीय गरिमा एवं प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने से है।(बालाजी राघवन बनाम भारत संघ 1996 के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी)

अनुच्छेद-21 की सुप्रीम कोर्ट ने इतनी उदारता से व्याख्या की है कि इसमें इतने मूल अधिकारों को शामिल किया गया है, जितने की शायद भाग-3 में भी नहीं होंगे।

विधि द्वारा स्थापित- विधायिका(Legislature) द्वारा बनाये गये कानून। उसे न्यायालय द्वारा लागू करना।

विधि की सम्यक प्रक्रिया- विधायिका द्वारा जो कानून बना है उसे न्यायालय द्वारा सही या गलत को Check कर लागू करेगा।

यह अधिकार नागरिक व गैर-नागरिक दोनों को प्राप्त होता है इसलिये किसी गैर-नागरिक को भी फांसी दिये जाने पर कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

जीवन जीने के अधिकार जो कि कोई नहीं छीन सकता है। जीवन जीने में स्वच्छ पर्यावरण, शोर प्रदूषण आत्महत्या पर रोक, स्वास्थ्य आदि शामिल किया गया है। 

Article - 21 in Hindi

 मेनका मामले में अनुच्छेद-21 निम्न अधिकारों की बात की गई हैं-

दैहिक स्वतंत्रता, 
एकांतता अधिकार, 
विदेश यात्रा करने का अधिकार, 
निजता का अधिकार, 
स्वच्छ पर्यावरण, 
जीवन रक्षा का अधिकार, 
स्वास्थ्य का अधिकार, 
14 वर्ष की उम्र तक निःशुल्क शिक्षा का अधिकार, 
अकेले कारावास में बंद होने के विरूद्व अधिकार, 
त्वरित सुनवाई का अधिकार, 
हथकड़ी लगाने के विरूद्व अधिकार, 
बंधुआ मजदूरी करने का अधिकार, 
राज्य के बाहर न जाने का अधिकार, 
निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, 
सार्वजनिक फांसी के विरूद्व अधिकार, 
सूचना का अधिकार, 
सामाजिक सुरक्षा तथा परिवार के संरक्षण का अधिकार, 
बिजली का अधिकार, 
शोर प्रदूषण से मुक्ति का अधिकार, 
adultery में IPC की धारा 497 को समाप्त कर दिया गया है।
मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार।

न्यायालय द्वारा कहा गया है कि निजता के अधिकार(Right to privacy) में- व्यक्तिगत रूझान(trend) और पसंद को सम्मान देना, पारिवारिक जीवन की, शादी करने का फैसला, बच्चे पैदा करने का निर्णय, अकेले रहने का अधिकार जैसी बातें निजता की श्रेणी में शामिल हैं।

अनुच्छेद 21 संविधान के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है, जिसमे यह कहा गया है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के आलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सर्वोच्छ न्यायालय जाने का अधिकार है

अनुच्छेद-21 - शिक्षा का अधिकार

86 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के अन्तर्गत राज्य 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करायेगा। यह व्यवस्था केवल आवश्यक शिक्षा के लिए है ना कि उच्च या व्यावसायिक शिक्षा के लिए। यह संशोधन देश में सर्वशिक्षा के लक्ष्य में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। 

86 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 से पहले भी संविधान में भाग 4 के अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था थी लेकिन अनुच्छेद 45 राज्य के नीति निदेशक तत्वों में शालिम था इसलिये न्यायालय द्वारा कोई जरूरी कदम नहीं उठाये गये।

इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 45 को बदला गया है अब इसे पढ़ा जाता है- ‘राज्य सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा, इसमें एक मूल कर्तव्य अनुच्छेद 51क जोड़ा गया- कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह 6 से 14 वर्ष तक के अपने बच्चे को शिक्षा प्रदान करायेगा।

1993 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 21 को स्वयं जीवन के अधिकार में प्राथमिक शिक्षा को मूल अधिकार में जोड़ा गया है। अनुच्छेद 21क को ध्यान में रखते हुए संसद ने बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार(RTE) अधिनियम, 2009 अधिनियमित करके इस अधिनियम के अन्तर्गत यह व्यवस्था है कि 14 वर्ष की आयु तक के प्रत्येक बच्चे को संतोषजनक एवं समुचित गुणवत्ता वाली प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य मानकों का पालन करने वाले प्रत्येक विद्यालय से प्राप्त करने का अधिकार है।

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