दक्षिण अफ्रीका ने इजराइल पर लगाये कई कृत्य करने के आरोप, जैसे गाजा पर इजराइल गलत तरीकों से कार्यवाही कर रहा है
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय क्या है :
हाल ही में रूस के विरूद्व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय(International Court of Justice-ICJ) में यूक्रेन में हो रहे नरसंहार(Massacre) के आधार पर आवेदन किया गया। इस आवेदन में रूस की कार्रवाही को अमानवीय बताया गया है। के कार्य
यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है, लेकिन इसके द्वारा दिये गये निर्णय बाध्यकारी नहीं हैं।
संरचना :-
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय स्थापना कब हुई - अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने 3 अप्रैल, 1946 से काम करना शुरू किया(इसकी स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा की गई।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय कहाँ है - अंतरराष्ट्रीय कोर्ट संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है और इसका मुख्यालय हेग(नीदरलैंड) में, "पीस पैलेस" में है, इसने 1946 से काम करना शुरू किया, यह ‘अन्तर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय‘ उत्तराधिकारी है, जिसे लीग ऑफ नेशन के द्वारा बनाया गया था, संयुक्त राष्ट्र के 6 मुख्य अंगों में एक ऐसा मुख्यालय है जो न्यूयार्क शहर में स्थित नहीं है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की भाषा क्या है - फ्रेंच तथा अंग्रेजी
- यह संयुक्त राष्ट्र(UN) का प्रमुख न्यायिक अंग है जो हेग(नीदरलैंड) में स्थित है जबकि संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख संस्थान न्यूयॉर्क में स्थित हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में कितने न्यायाधीश होते है : संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश चुने जाते हैं।
- एक ही राष्ट्र के 2 न्यायाधीश नहीं हो सकते।
- मुख्य न्यायाधीश सहित सभी न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 वर्ष का होता है।
- इसमें 193 देश शामिल हैं, लेकिन जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ(UNO) का सदस्य नहीं है वह भी न्याय पाने के लिये अपील कर सकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के वर्तमान अध्यक्ष कौन है :- Joan E. DONOGHUE
- अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा 9 साल के लिये चुने जाते हैं इनकी गणपूर्ति संख्या(कोरम) 9 है।
- न्यायाधीश बनने के लिये महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों में ही बहुमत पाना होता है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारतीय न्यायाधीश कौन कौन है :-
- सर बेनेगल राव-1952-1953
- नागेन्द्र सिंह- 1973-1988
- रघुनंदन स्वरूप पाठक- 1989-1991
- दलवीर भंडारी - अप्रैल, 2012 से ............।
किसी एक न्यायाधीश को हटाने के लिये बाकी के न्यायाधीशों का सर्वसम्मत निर्णय जरूरी है।
मामलों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत के आधार पर होता है अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पुनः अपील नहीं की जा सकती है, लेकिन कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।
यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र के 6 मुख्य अगों में से एक मात्र ऐसा अंग है जो कि न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय कैसे काम करता है:-
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को अपने विवेक से नियम बनाने की शक्ति प्रदान है,
न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय न्यायालय नियमावली, 1978 के अनुसार चलती है जिसे 29 सितंबर, 2005 को संशोधित किया गया था|
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में किसी देश का कोई स्थाई प्रतिनिधि नहीं होता है, देश सामान्यता अपने विदेश मंत्री के माध्यम से या नीदरलैंड में अपने राजदूत के माध्यम से रजिस्ट्रार से संपर्क करते हैं जो कि उन्हें कोर्ट में एक एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
आवेदक(Applicant) को केस दर्ज करवाने से पहले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और दावे के आधार पर एक लिखित आवेदन देना पड़ता है |
प्रतिवादी(Respondent - दूसरा पक्ष) न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करता है और मामले की योग्यता के आधार पर अपना लिखित उत्तर दर्ज करवाता है|
इस न्यायालय में मामले की सुनवाई सार्वजनिक रूप से तब तक होती है, जब तक न्यायालय का आदेश अन्यथा ना हो या यदि न्यायालय चाहे तो किसी मामले की सुनवाई अदालत में भी कर सकता है |
सभी प्रश्नों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है,
सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है,
न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है, उसकी अपील नहीं हो सकती किंतु कुछ मामला में पुनर्विचार हो सकता है ।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश की नियुक्ति कैसे होती है :- इसका अधिवेशन छुट्टियों को छोड़कर हमेशा चालू रहता है, इस न्यायालय के प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र उठाता है,
दलवीर भंडारी की नियुक्ति कब हुई :-
जस्टिस दलवीर भंडारी को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नवंबर, 2017 में दोबारा चुन लिया गया है,
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपने पूर्ण निर्वाचन के लिए भंडारी और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच कांटे की टक्कर थी,
लेकिन ब्रिटेन ने अपना प्रत्याशी वापस ले लिया और भंडारी जी की जीत पक्की हो गई थी,
भंडारी जी का कार्यकाल 9 साल का होगा, संयुक्त राष्ट्र महासभा में जस्टिस भंडारी को 193 में से 183 वोट मिले जबकि सुरक्षा परिषद के सभी 15 मत भारत के पक्ष में गए|
इस चुनाव के लिए न्यूयॉर्क स्थित संगठन के मुख्यालय में अलग से मतदान करवाया गया था।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के कार्य :-
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का काम कानूनी विवादों का निपटारा करना और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा उठाए कानूनी प्रश्नों पर राय देना है
यानी अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के दो प्रमुख कार्य है :-
- अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार यह कानूनी विवादों पर निर्णय लेता है|
- दो पक्षों के बीच विवाद पर फैसले सुनाता है और संयुक्त राष्ट्र की इकाइयों के अनुरोध पर राय देता है|
UN चार्टर के अनुच्छेद - 93 के तहत बताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य इस न्यायालय से न्याय पाने का हक रखते हैं,
लेकिन जो देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं है वे भी इस न्यायालय में न्याय पाने के लिए अपील कर सकते हैं।
अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की तरह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय(ICJ) में सरकार के प्रतिनिधि नहीं होते हैं। न्यायालय के सदस्य स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं इन्हें पद ग्रहण करने से पहले शपथ लेनी होती है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय(ICJ) के न्याधीशोंया की स्वतंत्रता बनाये रखने के लिये किसी एक न्यायाधीश को तब तक बर्खास्त नहीं किया जायेगा तब तक कि अन्य न्यायाधीश एक मत ना हों।
अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की ओर से दायर कुलभूषण यादव के मामले की सुनवाई हुई थी,
जिसमें अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान सरकार को आदेश दिया कि कुलभषण यादव को तब तक फांसी ना दिया जाए जब तक सभी विकल्पों पर विचार ना कर लिया जाए।
इसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन से जुड़े मामलों में स्वचालित निर्णय लिया जाता है व इसके द्वारा केवल उन मामलों पर निर्णय लिया जाता है जिन पक्षकारों पर नरसंहार हुआ हो, उनके द्वारा ही मामले को प्रस्तुत करना।
नरसंहार कन्वेंशन-
यह एक अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधि है जिसे दिसम्बर, 1948 को अपनाया गया था, और इसे लागू जनवरी, 1951 में की गयी।
इसके अनुसार नरसंहार की परिभाषा-
- एक समूह के सदस्यों की हत्या
- गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति पहुंचाना।
- समूह पर ऐसी जीवन स्थितियों को थोपना जो शारीरिक विनाश के लिये हो,
- समूह के भीतर इस तरह से उपाये किये जाये की जन्म ही नहीं हो पाये।
- किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को आंशिक या पूर्णतः नष्ट - समूह के बच्चों को ट्रांसफर करना।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का इतिहास :
- संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 33 में कानून बनाने की सूची है जिसमें राष्ट्रों के बीच विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से समाधान करने के लिये बातचीत, पूछताछ, मध्यस्थता आदि की कानून बनाने की सूची है। इसमें से कुछ कानूनों में तीसरा पक्ष भी शामिल है।
- मध्यस्थता के संबंध में साल 1899 के Convention ने स्थायी संस्था बनाने पर बल दिया जिसे स्थायी मध्यस्थता न्यायालय(Permanent Court of Arbitration) के रूप में जाना गया।
- जिसकी स्थापना 1900 में हुई और इसने 1902 में काम करना शुरू किया। इसी Convention ने एक स्थायी कार्यालय(Permanent Office) भी बनाया जिसमें सचिवालय के अनुरूप काम होता हे।
- वर्ष 1911 से 1919 के बीच राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय निकायों/न्यायिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये अनेकों प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया, जिसमें प्रथम विश्व युद्व के बाद अन्तर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय(Permanent Court Of International Justice- PCIJ) की स्थापना भी शामिल है।
- वर्ष 1943 में अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखने के लिये सोवियत संघ अमेरिका, ब्रिटेन और चीन ने एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया। जिसमें एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की आवश्यकता हो बताया जो कि बड़े और छोटे सभी के लिये खुला होगा।
- उसके बाद 1945 में G.H. हैकवर्थ समिति(अमेरिका) को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना के लिये कानून बनाने के लिये मसौदा(Draft) बनाने का काम दिया गया।
- सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में G.H. हैकवर्थ समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए नये न्यायालय बनाने के निर्णय पर बात बनी जो कि संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंग(महासभा, सुरक्षा परिषद..............) की तरह ही प्रमुख अंग होगा।
- वर्ष 1945 में PCIJ की अंतिम बैठक हुई जिसमें PCIJ के अभिलेखागार और प्रभावों को नये अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में Transferred करने का निर्णय लिया गया।
- अप्रैल, 1946 को (Permanent Court Of International Justice- PCIJ) को औपचारिक रूप से खत्म कर दिया गया और अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की पहली बैठक हुई एवं इसी बैठक में PCIJ के अंतिम अध्यक्ष जोख गुस्तावो गुरेरो(एल सल्वाडोर) को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय(International Court of Justice-ICJ) का अध्यक्ष चुना गया।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का क्षेत्राधिकार :-
15 न्यायाधीशों के क्षेत्र-
- अफ्रीका से -3 न्यायाधीश होंगे।
- लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से - 2 न्यायाधीश होंगे।
- एशिया से- 3 न्यायाधीश होंगे।
- पश्चिम यूरोप व अन्य राज्यों से -5 न्यायाधीश होंगे।
- पूर्वी यूरोप से - 2 न्यायाधीश होंगे।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय(ICJ) की प्रासंगिकता पर सवाल-
- हाल ही में यूक्रेन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में (कई शहरों में हुए भारी नुकसान) तत्काल युद्व रोकने की अपील की, लेकिन रूस ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय(ICJ) के फैसले को दरकिनार किया है।
- इसके फैसले बाध्यकारी नहीं हैं।
- निर्णयों पर अपील का प्रावधानी नहीं है, स्वतः संज्ञान लेकर मामला नहीं चला सकता।
- कई देशों द्वारा इसके फैसलों को मानने से इंकार करना, पर्यावरण, आतंकवाद और मानव तस्करी आदि पर इसका अधिकार क्षेत्र नहीं है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत की भूमिका-
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में के फैसले में अपील का प्रावधान नहीं है, जिससे होता यह है कि जो देश कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है, वे अपना पक्ष अपील के जरिये नहीं रख पाते हैं, इसलिये इसमें अपील के प्रावधान को शामिल किया जाना चाहिए,
इसमें सुधार के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहल शुरू करनी चाहिए। जिस तरह से मामले लंबित हैं उसको देखते हुए इसमें जजों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि लंबित पड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटाया जा सके।
साथ ही इसको पर्यावरण संरक्षण, आतंकवाद, युद्व की जांच जैसे मामलों के लिये ओर ज्यादा शक्ति दी जाने की जरूरत होती है।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में जानकारी(FAQs):-
मामलों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत के आधार पर होता है अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पुनः अपील नहीं की जा सकती है, लेकिन कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।
लेकिन जो देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं है वे भी इस न्यायालय में न्याय पाने के लिए अपील कर सकते हैं।
A. जाधव मामले में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभुषण जाधव के अधिकारों को सूचित करना और साथ ही भारतीय राजनयिकों को जाधव से मिलने का आदेश दिया।
रोहिंग्या मामलें पर भी इसका फैसला देखने को मिला, इस फैसले में म्यामांर को इस समुदाय को भविष्य में नरसंहार से बचाने के लिये जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया गया।
चागोस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन को इसे मॉरिशस को देने का आदेश दिया।
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