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दल-बदल कानून क्या है (Anti-Defection Law in hindi) dal badal kanoon

दल बदल कानून की पृष्ठभूमि- कोई भी पार्टी या दल एक ऐसा लोगों का संगठन होता है जो एक जैसी विचारधारा का समूह होता है यानी ये सब लोग एक जैसा दृष्टिकोण रखते हैं। इसी के आधार पर ये पार्टियां अपने उम्मीदवार उतारते हैं एवं जनता उनके दृष्टिकोण के हिसाब से ही जीताती है, जिसके कारण इन दलों की भागीदारी बहुत अहम हो जाती है, उसी तरह जीता हुआ उम्मीदवार उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

लेकिन आजादी के बाद से ही ये उम्मीदवार अपने लालच के चक्कर में दल परिवर्तन करने लगे, जिसके बाद सरकारें जोड़ तोड के साथ बनने लगी और कुछ मामले तो ऐसे भी देखे गये है कि नेताओं द्वारा एक दिन में दो दो बार दल बदले गये, जैसे साल 1967 में हरियाणा के हसनपुर विधानसंभा के विधायक दयालाल संयुक्त मोर्चा  से कांग्रेस में शामिल हुए और फिर उसी दिन कांग्रेस से संयुक्त मोर्चा में शामिल हो गये, इसी के बाद से आया राम गया राम वाक्य प्रचलित हो गया।

इसके बाद भी बड़े स्तर पर दल बदल का खेल चलता रहा, जिसके कारण कई सरकारे गिरी तो कई सरकारे बनती रही, फिर इसी तरह की प्रवृत्ति को रोकने के लिये साल 1985 में दलबदल कानून(52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985) लाया गया, इस कानून के द्वारा दल बदल के आधार पर अयोग्यता के संबंध में प्रावधान किये गये। इसमें संविधान की 10वीं अनुसूची जोड़ी गयी।

कानून में संशोधन होने के बाद यदि कोई पदाधिकारी ऐसा करता है तो 5 साल किसी दूसरी पार्टी के चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ सकेगा लेकिन निर्दलीय चुनाव लड़ने की छूट रहेगी। 

दल-बदल क्या है in hindi :- भारत के संविधान के निर्माण के वक्त दल-बदल कानून नहीं था, लेकिन जब हमें लगा की कई नेता अवसर की तलाश करने लगे हैं और इसी कारण एक पार्टी का नेता दूसरी पार्टी में शामिल होना, एक पार्टी की सरकार गिरा देना, किसी की सरकार बना देना यह सिलसिला बहुत तेजी के साथ चलने लगा जिसका असर यह हुआ कि भारतीय लोकतंत्र अस्थाई होने लगा।

हरियाणा में एक MLA ने एक दिन में 5 पार्टियां बदल दी थी जिसका नाम था गयाराम- इसलिये दल-बदल को आयाराम-गयाराम भी कहने लगे।

दल-बदल कानून निर्वाचित सांसदों/विधायकों पर लागू होता है ना कि गैर-निर्वाचित सदस्यों पर। यानी यह सदन के सदस्यों पर लागू होता है एवं सदन में 3 प्रकार के सदस्या होते हैं:-

1. दल के सदस्य(Party Member) :- इसमें सदस्यों को पार्टी के निर्देश मानना होता है लेकिन यह सदन के अन्दर लागू होता है जैसा कि राजस्थान के मामले में हुआ।

यदि कोई सदस्य स्वैच्छा से दल की सदस्यता को छोड़ता है तो उसे भी अयोग्य माना जायेगा।

2. निर्दलीय सदस्य(Independent Member) :-  यदि कोई निर्दलीय सदस्य किसी दल की सदस्यता ले लेता है तो अयोग्य हो जायेगा।

3. मनोनीत सदस्य(Nominated Member) :- यदि कोई मनोनीत सदस्य 6 माह के भीतर किसी दल की सदस्यता ले लेता है तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन 6 माह के बाद सदस्यता लेता है तो अयोग्य घोषित हो जायेगा।

जब एक सरकार बदलती है तो नीतियां भी Change होती हैं, विकास में भी बाधा पहूंचती है जिसके बाद लगा कि कोई ऐसा कानून होना चाहिए जो इस दल-बदल को रोक सके।

इसलिये 1985 में सांसदों तथा विधायकों द्वारा  एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में जाने पर दल-परिवर्तन के आधार पर अयोग्य करने का प्रावधान 52वें संविधान संशोधन में किया गया और नई 10वीं अनुसूची जोड़ी गयी। इस अधिनियम को दल-बदल कानून कहते हैं। 

दल-बदल कानून(Anti-Defection Law) कब लागू हुआ :-

  • 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 में संशोधन किया, दल-बदल कानून।
  • एक नई 10वीं अनुसूची जोड़ी।

दल-बदल कानून का उद्देश्य क्या हैं :- राजनीतिक लाभ और पद के लालच(कुर्सी, मंत्री पद.......आदि) में दल-बदल करने वाले जन प्रतिनिधियों(सांसदों, विधायकों...) को अयोग्य करार देना, ताकि संसद में स्थिरता बनी रहे।(यानी संसद में जो सरकार चुनी गयी थी वह सही ढंग से काम करती रहे।)


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दल-बदल विरोधी कानून की जरूरत क्यों :- 

  1. सामूहिक जनादेश की अनदेखी- सांसद या विधायक जो चुनकर आते हैं वह जनता द्वारा चुने जाते हैं यदि वे दल-बदल करते हैं तो वे जनता के लिये खरे नहीं उतरते हैं वे जनता की अनदेखी करते हैं।
  2. जल्दी-जल्दी दल-बदल की प्रकृति से बचने- जिस पार्टी की संभावना जीतने की ज्यादा रहती है वे उसमें शामिल हो जाते हैं दूसरे की हुई तो दूसरे में शामिल हो जाते हैं। इसी तरह वे आयाराम-गयाराम की प्रकृति में रहते हैं।
  3. लेन-देन और सौदेबाजी- जब किसी को किसी पद (जैसे मंत्री......) के लिये लालच देना, धन का लालच देकर सौदेबाजी करना।
  4. यदि कोई जन-प्रतिनिधि इस तरह की हरकत करता है तो उसे अयोग्य ठहराना।

अयोग्य घोषित(Disqualified) किये जाने के आधार-

  • यदि कोई निर्वाचित(Elected) Member अपनी इच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है(जिस पार्टी के टिकट से वह जीता था उस पार्टी की सदस्यता छोड़ना)
  • यदि कोई निर्दलीय(Independent) जो निर्वाचित हुआ है वह किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाये(क्योंकि स्वतंत्र निर्वाचित सदस्य भी लेन-देन, सोदेबाजी कर सकते हैं)
  • यदि किसी सदस्य द्वारा सदन में अपनी पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट दिया जाता है(यानी अपनी पार्टी के खिलाफ वोट देना)
  • यदि कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है(जब वोटिंग का समय आये तो सदन में उपस्थित ना होना)
  • 6 माह की समाप्ति के बाद यदि कोई मनोनीत सदस्य(Nominated Member) किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाये(किसी मनोनीत सदस्य को 6 माह के अन्दर किसी पार्टी में शामिल होना होता है।)

अयोग्य घोषित(Disqualified) तय करने की शक्ति-

दल-बदल से आये अयोग्यता संबंधित प्रश्नों का निर्णय सदन के अध्यक्ष द्वारा लिये जाते हैं यानी सदस्यों की अयोग्यता तय करने की शक्ति सदन के अध्यक्ष के पास है।

शुरूआत में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता था लेकिन किहोता-होलोहन मामले(1993) में असंवैधानिक घोषित किया गया 

(सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया कि अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं हो सकता एवं किसी सदन का अध्यक्ष किसी पार्टी से जुड़ा होता है, अध्यक्ष किसी पार्टी की सदस्यता छोड़े बिना अध्यक्ष बना रह सकता है)

किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू(Kihoto Hollohan Vs Zachillhu)

इस मामलें(1993) में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि विधान सभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं होगा, अध्यक्ष का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है।

दल-बदल कानून के लिये अपवाद(Exception)-

  • यदि कोई व्यक्ति अध्यक्ष या स्पीकर के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है। जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामलों में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जायेगा।
  • यदि किसी पार्टी के एक-तिहाई विधायकों ने किसी दूसरी पार्टी में विलय के Favour में मतदान किया है तो इस संबंध में उस पार्टी का विलय किया जा सकता है, लेकिन भारतीय संविधान का 91वें संशोधन(2003) के द्वारा 10वीं अनुसूची की धारा 3 को खत्म कर दिया गया, जिसमें प्रावधान था कि एक-तिहाई सदस्य एक साथ बदल सकते थे।


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दल-बदल कानून के लाभ-

  • जनादेश(Mandate) का सम्मान
  • दल-बदल की प्रकृति पर रोक।
  • राजनीतिक संस्था में उच्च स्थिरता।
  • राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करना।
  • संसदीय प्रणाली में अनुशासन और सुशासन सुनिश्चित करना।

dal-badal kanoon के दोष-

  • दो-तिहाई सदस्य किसी पार्टी में विलय होते हैं या अलग पार्टी बना लेते हैं तो दल-बदल कानून लागू  नहीं होता है।
  • यदि दल किसी को निष्कासित करता है तो यह कानून लागू नहीं होता है।
  • संविधान के अनुच्छ्रद 105(सांसदों), अनुच्छेद 194(विधायकों) के तहत सांसदों व विधायकों को जो विशेषाधिकार दे रहा है तो वहीं दल-बदल कानून इन विशेषाधिकार को छीन रहा है, क्योंकि इन्हें दल के निर्देशों को मानना पड़ता है।
  • दल-बदल कानून स्पीकर/डिप्टी पर लागू नहीं होता।
  • व्यक्तिगत मत की अनदेखी(जब पार्टी किसी गलत राह पर जाये तो सबको गलत राह पर जाना पड़ता है। इसमें व्यक्तिगत राय की कोई Value नहीं होती है।)
  • पार्टी राज को बढ़ावा देना- इसमें पार्टी का राज ज्यादा चलता है।
  • बड़े स्तर पर दल परिवर्तन को मान्यता देना यानी एक साथ दो-तिहाई सदस्य किसी पार्टी में विलय हो सकते हैं।
  • निर्दलीय और मनोनीत सदस्यों में भेदभाव(मनोनीत किसी भी पार्टी में शामिल हो सकता है जबकि निर्दलीय नहीं।)
  • अध्यक्ष पर निर्णय करने की निर्भरता की आलोचना क्योंकि अध्यक्ष तो किसी ना किसी पार्टी से जुड़ा होता है।

विभिन्न समितियों के विचार :-

दिनेश गोस्वामी समिति- इस समिति का गठन(1990 में) चुनाव सुधारों के संबंध में किया गया। दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा था कि दल-बदल के अनुसार प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने का decision चुनाव आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा लिया जाना चाहिए।(जो शक्ति अध्यक्ष को है वह शक्ति राष्ट्रपति या राज्यपाल को दी जानी चाहिए।)

विधि आयोग(Law Commission) की 170वीं रिपोर्ट- विधि आयोग ने 1999 में अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव से पहले 2 या 2 से अधिक पार्टियां यदि गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ती है तो दल-बदल विरोधी में उस गठबंधन को एक ही पार्टी के तौर पर माना जायेगा(यदि पार्टियां गठबंधन कर चुनाव लड़ रही हैं तो उन्हें एक ही पार्टी माना जाये।

राजनीतिक पार्टियों को व्हिप(Whip) केवल तभी जारी करना चाहिए जब सरकार खतरे में हो। 

दल-बदल कानून के बारे में जानकारी (FASQs) :

Q. दल-बदल कानून कब पारित किया गया था ?

A. 1985 में सांसदों तथा विधायकों द्वारा  एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में जाने पर दल-परिवर्तन के आधार पर अयोग्य करने का प्रावधान 52वें संविधान संशोधन में किया गया और नई 10वीं अनुसूची जोड़ी गयी। इस अधिनियम को दल-बदल कानून कहते हैं। 

Q. दल बदल कानून किस पर लागू होता है

A. दल-बदल कानून निर्वाचित सांसदों/विधायकों पर लागू होता है ना कि गैर-निर्वाचित सदस्यों पर। यानी यह सदन के सदस्यों पर लागू होता है

Q. दल-बदल विरोधी कानून किस संविधान संशोधन से संबंधित है | 

A. दल-परिवर्तन के आधार पर अयोग्य करने का प्रावधान 52वें संविधान संशोधन में किया गया और नई 10वीं अनुसूची जोड़ी गयी।

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