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दबाव समूह क्या हैं : दबाव समूह के कार्य, प्रकार, विशेषताएं : Pressure Groups in hindi

हम अक्सर न्यूज, टी.वी. आदि में सूनते-देखते है कि उस दबाव समूह ने उसका साथ दिया, उस दबाव समूह ने सरकार को विरोध किया, दबाव समूह ने रखी सरकार के सामने बात आदि 

हम दबाव समूह के बारे में सुनते हैं तो आज हम जानेंगे कि दबाव समूह क्या होते है, इनके कार्य व प्रकार -

दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ? :- किसी भी देश की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। ये ना केवल सरकार के फैसले को प्रभावित करते हैं, बल्कि  ये राजनीतिक व्यवस्था को गतिशील भी बनाये रखते हैं।  

भारतीय राजनीति में भी दबाव समूह की महत्ता और प्रासंगिकता है। भारत में ना केवल इन समूहों की मांगें व आकांक्षाएं पूरा करने की कोशिश करती हैं, 

बल्कि विशेष राजनीतिक दल, किसी समूह विशेष को अपना वोट बैंक बनाकर उससे लाभ लेने की कोशिश करता है। 

क्योंकि भारत में चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों द्वारा दबाव समूहों के लिये समर्थन देते हुए देखा जाता है। 

अक्सर देखा जाता है कि दबाव समूह अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन या हड़ताल करत हैं और सरकार को बात करने के लिये मजबूर करते हैं। 

अक्सर यह मांग कुछ तत्वों के लिये ही होती है लेकिन कभी कभी ये मांगे सभी के लिये व दीर्घकालीन होती हैं। 

इसलिये हम कह सकते हैं कि दबाव समूह सरकार द्वारा दिये गये फैसलों को नकारात्मक और सकारात्मक दोनों रूप से प्रभावित करते हैं।

दबाव समूह क्या है(dabav samuh) :- 

दरअसल दबाव समूह ऐसे होते हैं जो अक्सर सक्रिय होकर नीति निर्माण व नीति  निर्धारण को अपने हितों की पूर्ति के लिये प्रभावित करते हैं, ये ना  केवल अपने हितों को बढ़ावा देते हैं बल्कि साथ ही अपनी प्रतिरक्षा के लिये सरकार से सौदेबाजी भी करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि दबाव समूह की उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई फिर इसका प्रयोग यूरोप में भी किये जाने लगा। ये समूह राजनीतिक दलों से अलग होते हैं और ना ही ये राजनीतिक शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

बल्कि ये किसी विशेष कार्यक्रम और मुददों से संबंधित होते हैं और इसके लिये सरकार पर दबाव बनाते हैं।

मैकाइवर के अनुसार दबाव समूह- ‘दबाव समूह ऐसे संगठित या असंगठित व्यक्तियों का संकलन है जो दबाव के दांव-पेचों का प्रयोग करता है‘ 

एक और परिभाषा के अनुसार दबाव समूह वे निजी समूदाय हैं जो सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करके अपने हितों को बनाये रखना चाहते हैं। 

अक्सर कई हित समूहों को भी दबाव समूह मान लिया जाता है। जबकि दबाव समूह और हित समूह में अन्तर पाये जाते हैं। 

जैसे हित समूह को राजनीति से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता है जबकि दबाव समूह राजनीतिक गतिविधियों से प्रत्यक्ष संबंध रखते हैं। 

यहीं कारण है दबाव समूह राजनीति फैसलों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं जबकि हित समूहों का संबंध  सामाजिक संरचना व प्रक्रिया से होता है यानी सामाजिक प्रगतिशील ही इनका मकसद होता है।  


अमेरिका से दबाव समूह(Pressure Group) शब्द की उत्पत्ति हुई, क्योंकि वहां समाज में लोगों के हित(Interest) के लिये अलग-अलग समूह बनने लगे जैसे-व्यापारियों के हित, छात्रों के हित, मजदूरों के हित, किसानों के हित आदि।

दबाव समूह का मुख्य कार्य क्या है ?- समाज में शक्ति का पृथक्करण(separation of Power) बहुत जरूरी है इसलिये दबाव समूह समाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, क्योंकि समाज में balance बनाने के लिये किसी एक समूह को powerful ना बनाकर अलग-अलग समूह में शक्ति को बांटना।

जब किसी के मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो एक आदमी से इतना प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना कि समूह के दबाव से पड़ेगा। 

इसलिये लोगों को एक समूह में जोड़कर अपने हितों को बढ़ावा देते है, जिन्हें दबाव समूह(Pressure Groups) कहते हैं। यह सरकार और समूह के सदस्यों के बीच सम्पर्क का काम करते है, दबाव समूहों को हितैषी समूह(Friendly Group) की कहा जाता है।

यह राजनीतिक दलों से अलग भूमिका में होते हैं क्योंकि ना तो ये चुनाव में भाग लेते हैं और न ही राजनीतिक शक्तियों के लालच में होते हैं, बल्कि दबाव समूह सरकार पर तर्कसंगत तरीके से प्रभाव डालते हैं।       

इन समूहों को कई समूहों के नामों से जाना जाता है-

हित समूह(Interest Group) - इसमें समाज के हर समूह के अपने हित होते है जिसका कार्य होता है सरकार पर दबाव बनाना ना सरकार बनाना। यह तटस्थ(Neutral) होते हैं।

दबाव समूह(Pressure Group) - ये समूह नकारात्मकता को दर्शाते हैं(दबाव का मतलब जैसे मुझे बाइक नहीं दी तो में स्कूल नहीं जाऊंगा। इसलिये ये समूह सरकार पर दबाव की बात करते हैं इसलिये ये समूह ज्यादा प्रभावशाली होते हैं जैसे- व्यापारी समूह, छात्र समूह आदि।

लॉबिंग(Lobbying)-अमेरिका में इसी प्रणाली को लॉबिंग कहा गया, क्योंकि अमेरिका के सीनेट में प्रभाव डालने के लिये प्रयोग होता था।

Almond -Powell ने दबाव समूह को 4 Category में बांटा है-

1.साहचर्यात्मक(Associative) -  जैसे किसान, व्यापारी, छात्र

2. गैर-साहचर्यात्मक(Non-Associative) -जन्म, जाति, भाषा, धर्म के आधार पर।

3. संस्थात्मक(Institutional)- सिविल सेवक, सैनिक ये सरकार के ही भाग होते हैं।

4. प्रदर्शनकारी(Demonstrators) - आकास्मिक या अनौपचारिक होते हैं।

भारत में दबाव समूह(Pressure Group) - भारत में दबाव समूहों की संख्या तो बड़ी मात्रा में है, लेकिन ये समूह उस तरह से विकसित नहीं हुए हैं, जिस तरह अमेरिका व पश्चिम देशों में दबाव समूह विकसित हैं।

दबाव समूह के प्रकार:-

व्यवसाय समूह- ये दबावकारी समूह भारत में सबसे बड़े होते हैं इनका मकसद होता है व्यावसायिक समूहों के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हितों की रक्षा करना जैसे फिक्की, ऐमो, एसोचेम आदि।

खेतिहर समूह(Cultivator Group)-  इनका मकसद होता है किसानों, कृषि, मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करना।

पेशेवर समितियां(Professional Committees):- इन समितियों में ऐसे लोग शामिल होते हैं जो वकील, डॉक्टर, पत्रकार और अध्यापकों से संबंधित मांगों को उठाते हैं इनका मकसद होता है। 

विभिन्न तरीकों से अपनी सेवा-शर्तों में सुधार के संबंध में दबाव बनाना। जैसे 

इंडिया मेडिकल एसोसिएशन(IMA), 

बार कौंसिल ऑफ इंडिया(BCI), 

AIFUCT आदि।

श्रमिक समूह/व्यापार संघ- इनका मकसद होता है औद्योगिक श्रमिकों की मांगों के संबंध में आवाज उठाना, लेकिन ये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंद्व रखते हैं- जैसे :- 

हिन्दु मजदूर सभा(HMS) - ये समाजवादियों से संबंद्व,

भारतीय मजदूर संघ(BMS) - भाजपा से संबंद्व,

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस(AITUC)-CPI से संबंद्व,

इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस(INTUC)-कांग्रेस(आई) से संबंद्व आदि।

धार्मिक संगठन- धर्म के आधार पर बने संगठनों का भी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है जैसे :- 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(RSS), 

विश्व हिन्दु परिषद(VHP), 

जमात-ए-इस्लामी, 

पारसी सेंट्रल एसोसिएशन।



जातीय समूह(Ethnic Group) - भारत की राजनीति धर्म की तरह जाति का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ये समूह अपने निजी हितों को पूरा करना चाहते हैं जैसे 

मारवाड़ी एसोसिएशन, 

हरिजन सेवक संघ, 

बनिया कुल क्षत्रिय संगम।

छात्र संगठन- छात्र समूह के प्रतिनिधित्व के लिये काफी संघ बनाये गये हैं, लेकिन जिस तरह श्रमिक संघ विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंद्व होते हैं उसी तरह छात्र संगठन भी विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंद्व होते हैं- जैसे:-  

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(ABVV)- भाजपा से संबंद्व,

ऑल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन(AISF)-CPI से संबंद्व।

दबाव समूह की विशेषताएं ;- 

दबाव समूह औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों का समूह होता है इसलिये व्यक्तियों का कोई समूह दबाव समूह नहीं कहा जा सकता है, 

क्योंकि औपचारिक संगठन के अभाव में इनका प्रभाव बहुत कम होता है ये अपना कार्य व्यवस्थित रूप से नहीं कर सकते हैं। 

दबाव समूहों के बनाने के लिये किसी विशेष हित व निश्चित उद्देश्य को होना बहुत जरूरी है  क्योंकि दबाव समूहों के एकता व संगठन का आधार इसके सदस्यों के समान हित व उद्देश्यों को होना है 

जिसके कारण ये संगठित होकर दबाव समूह का रूप ले लेते हैं। इसलिये इन्हें स्वहित साधक संगठन भी कह देते हैं।


दबाव समूह सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में पाये जाते हैं चाहें इनका रूप स्वेच्छिक हो या लोकतांत्रिक। , 

लेकिन लोकतंत्र में दबाव समूह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

दबाव समूह अपने हितों के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये गठित किये जाते हैं। जिन व्यक्तियों को इससे अपने हित पाने की संभावना होती है वे इसकी सदस्यता ले सकते हैं। 

किसी भी व्यक्ति को इसकी सदस्यता लेने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है। 

दबाव समूहों का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि वह अपने हितों के अनुसार काम करने के लिये सरकार को प्रभावित करता है। और यह राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते हैं। 

दबाव समूहों को कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता है। ये किसी विशेष हित के लिये अस्तित्व में आते हैं और ये अपने हित की पूर्ति होने के बाद लुप्त भी हो जाते हैं, 

लेकिन अनेकों दबाव समूह स्थाई रूप से स्थापित हो जाते हैं जैसे ट्रेड यूनियन, लेबर यूनियन आदि।

दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?

दबाव समूह अपने सदस्यों व समाज की भलाई के लिये राजनीतिक सत्ता पर दबाव बनाते है, ताकि इसके सदस्यों के हितों की पूर्ति की जा सके, जबकि राजनीतिक दल सामान्यता किसी साझा विचारधारा में विश्वास रखते है यानी समान नजरिया बनाये रखते हैं।

दबाव समूह राजनीतिक व्यवस्था में एक अलग तरह की जगह रखता है, जबकि राजनीतिक दल लोगो का एक संगठित समूह है जो कि राजनीतिक करता है और अपने उम्मीदवारों को चुनावों में उतारता है।

राजनीतिक दल सत्ता को पाने के लिये काम करते है, इसलिये राजनीतिक दल कई उद्देश्यों से प्रेरित होता है, जबकि दबाव समूहों का राजनीतिक सत्ता पाने का कोई लालच नहीं होता है, इसलिये इनका राजनीतिक में आने का कोई उद्देश्य नहीं होता है।

आगे की राह- 

  • राजनीति व प्रशासन को जवाबदेह बनाने के लिये दबाव समूहों की लगातार महत्वपूर्ण योगदान की आवश्यकता है।
  • दबाव समूहों द्वारा की गयी हिंसात्मक गतिविधियां भारतीय राजनीति में इनकी प्रासंगिकता(Relevance) पर सवाल करती हैं, इसलिये इनकी हिंसक गतिविधियों पर लगाम लगाने की जरूरत है।
  • दबाव समूहों ने सरकार और नागरिकों के बीच बातचीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इनकी सार्थकता(Significance) तभी कायम रह सकती है जब इनके गलत मकसद के इस्तेमाल पर लगाम लग सके।
FAQs 

Q. दबाव समूह के कार्य क्या है?

दबाव समूह का मूख्य कार्य होता है जनता और सरकार के बीच में वार्तालाप का कार्य करना और सरकार पर कल्याण के हितों को पूरा करने का दबाव बनाना।

Q. दबाव समूह क्यों बनते हैं?

दबाव समूह इसलिये बनते हैं जब समान रूचि रखने वाले, समान हितो वाले, समान विचारों वाले जब एक साथ अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिये आते हैं जब दबाव समूह बनते हैं।

Q. दबाव समूह का दूसरा नाम क्या है?

दबाव समूह को दूसरे नाम - हित समूह व निहित समूह के नाम से भी जाना जाता है।

Q. दबाव समूह का मूख्य उद्देश्य क्या है?

दबाव समूह का मूख्य उद्देश्य होता है, कि सरकार और कानून उसके हितों के अनुसार रहें।

Q. दबाव समूह के दोष क्या हैं?

वैसे तो दबाव समूह के कई सारे दोष होते है जिनमें से कुछ निम्न है-

राजनीतिक दलों के लिये खतरा, 

कुछ विशेष हितों को ही संरक्षण प्रदान करना, 

राजनीति में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना आदि | 

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