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भारत की परमाणु नीति क्या है ?

भारत ने परम्परागत विदेश नीति के सैद्वांतिक आधारों पर निष्पक्ष और पूर्ण निशस्त्रीकरण का विकल्प वैश्विक स्तर पर रखा जिसका सबूत है संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1954 में सभी प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध संबंधी दस्तावेज का पूर्णतः समर्थन किया गया था।

1963 में CTBT को भी भारत ने समर्थन दिया था लेकिन जिस प्रकार यह 5 स्थाई सदस्य देश को  परमाणु देशों में परिवर्तित करते हैं और परमाणु निशास्त्रीकरण का एक ऐसा स्वरूप् सामने रखते हैं जिसमें कुछ देश अपने परमाणु हथियारों में तो लगातार वृद्वि कर रहे हैं,

लेकिन बाकी देशों की सुरक्षा आवश्यकताओं के बावजूद उन्हें हर हाल में नाभिकीय संपन्न देश होने से रोकना चाहते थे लेकिन भारत को मजबूरी में  विशेषकर 1962 में चीनी आक्रमण के बाद परिस्थितियों के दृष्टिगत परमाणु बनाने का विकल्प चुनना पड़ा।

भारत प्रारम्भ से ही परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण उपभोग का सभी देशों को अधिकार देने का समर्थन करता रहा है।

भारत की परमाणु नीति के मुख्य सिद्धांत क्या हैं ?

भारत की 1998 की परमाणु डॉक्ट्रिंग- इस नीति के तीन प्रमुख आधार :-

1. विश्वसनीयता - ये नीति भारत को परमाणु दृष्टि से एक विश्वसनीय देश के रूप् में स्थापित करने का प्रयत्न है  भारत प्रथम उपयोग नहीं करने और गैर-नाभिकीय देशों पर कभी भी परमाणु हमला ना करने और नागरिक क्षेत्रों में भी कभी भी परमाणु ना करने का संकल्प रखकर अपनी विश्वसनीयता में और वृद्वि करता है 

इसी का प्रभाव है कि NPT और CTBT पर हस्ताक्षर ना करने के बावजूद अमेरिका सहित विश्व की सभी परमाणु ताकतें भारत से परमाणु समझौते कर रहे हैं।

2. प्रभावशीलता- इसके अन्तर्गत भारत नाभिकीय Command प्राधिकरण की रचना करता है जिसका प्रमुख उद्देश्य त्वरित और तार्किक निर्णय प्रणाली को इस विषय की संवेदनशीलता के अनुरूप संभव बनाना है यह प्राधिकरण के दो स्तर हैं 

पहला- राजनैतिक परिषद - जो PM की अध्यक्षता में परमाणु हथियारों के उपयोग में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार रखती हैं।

दूसरा- कार्यकारी परिषद- ये सैना के तीनों अंगों के सैनाध्यक्षों संबंधित नौकरशाहों परमाणु वैज्ञानिकों से संबंध है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाह कार नेतुत्व प्रदान करता है।

ये राजनैतिक परिषद को विषेशज्ञता पूर्ण सलाह देने की भूमिका निभाते हैं।

3. उत्तरजीविता(Survival):- प्रथम हमला ना करने के बावजूद अपनी उत्तरजीविता को बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है जिसे triad(तीन का समूह) द्वारा पूरा किया जाना है।

इसका तात्पर्य सैना के तीनों अंगों को नाभिकीय हमला करने और नाभिकीय हमलों को निरस्त करने में सक्षम बनाना है भारत अपनी नौसेना को triad का सबसे महत्वपूर्ण चरण मानता है।

भारत ने अपनी सीमा से सुदूरवर्ती क्षेत्रों में नाभिकीय हथियार रखने और वहा से प्रभावी नाभिकीय हमला संचालित करने का विकल्प संभव बनाया है।

CTBT- Comprehensive Nuclear-test-ban-treaty (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) :- CTBT जिसमें भुमिगत परमाणु परीक्षणों सहित सभी प्रकार के परीक्षणों को प्रतिबंधित करने की बात की गयी है भारत CTBT का प्रारंभ से विरोध करता रहा है क्योंकि इसे NPT के कार्यक्षेत्र के भीतर ही स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जब तक NPT का निष्पक्ष और तार्किक स्वरूप ना दिया जाये तब तक CTBT में शस्त्रीकरण का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकती।

भारत पूर्ण निशस़्त्रीकरण के अभाव में प्रयोगशाला आधरित परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध को भी दोषपूर्ण मानता है।

CTBT में सूची 2 के देश महत्वपूर्ण हैं ये वो 44 देश हैं जिनकी संसद द्वारा जब तक CTBT को अनुमोदित नहीं किया जाता है तब तक ये वैश्विक बाध्यकारी संधि नहीं बन सकती। ये 44 देश 1944 से 1946 के बीच सम्पन्न CTBT वार्ताओं में शामिल देश थे यही देश उस वक्त परमाणु रियक्टरों का सफल संचालन कर रहे थे अतः इन्हें CTBT वार्ताओं में शामिल किया गया।

भारत की परमाणु नीति  क्या है

एनपीटी पर भारत की क्या राय है ? 

NPT-Non Proliferation treaty(परमाणु अप्रसार संधि) :- NPT 1968 में प्रस्तावित निशस्त्रीकरण का एक प्रमुख प्रयास बनकर उभरी जिसे 1970 में विभिन्न देशों के लिये खोला गया इसके स्वरूप पर विवाद है जिसके कारण इसे 25 वर्षां तक विस्तारित कर दिया गया । इसके बाद आयोजित 1995 में बैठक में विवादों के हल न होने पर प्रत्येक 5 साल में शिखर वार्ताओं के आयोजन की बात की गयी।

जिनमें भारत, पाकिस्तान, इजराइल, उत्तर कोरिया के NPT पर विरोध को समाप्त करने की कोशिश की जायेगी ।

 भारत ने परमाणु शक्ति देश बनने का निर्णय क्यों लिया ?

NPT को Three Pilar treaty कहा जाता है क्योंकि ये निम्नलिखित तीन बिन्दुओं पर केन्द्रित है।

1. निशस्त्रीकरण- Nuclear Power देशों के बड़ी मात्रा में परमाणु देशों पर यह संधि बहुत लचर भाषा का प्रयोग करती है और इन देशों से अपेक्षा करती है कि वो विश्व शांति और स्थिरता के लिये अपनी सामरिक जरूरतों के मध्यनजर यथासंभव अपने परमाणु हथियारों में कमी लायें।

स्पष्ट है कि उनपर किसी भी तरह का मात्रात्मक और समय सीमा का प्रतिबंध प्रस्तावित नहीं करती।
इसी बिन्दु पर भारत NPT को एक विभेदपरक और पूर्ण निशस्त्रीकरण की दिशा में एक खोखला प्रस्ताव मानते हुए इसका विरोध करता है।

2.परमाणु अप्रसार क्या है - NPT पूरी दुनिया को 5 भागों में बांटता हैं-

  1. नुक्लिअर वेपन स्टेट (Nuclear Weapon State)
  2. नॉन -नुक्लिअर वेपन स्टेट (Non-Nuclear Weapon State)
इस संधि के अनुसार नुक्लिअर वेपन स्टेट देश किसी भी स्थिति में नॉन -नुक्लिअर वेपन स्टेट State देशों को ऐसी परमाणु तकनीकी उत्पाद या उपकरण नहीं देंगे। जिससे Non-Nuclear Weapon State परमाणु हथियार बना सके।

3. शांति पूर्ण कार्यां के लिये- NPT विभिन्न देशों को शांतिपूर्ण कार्यां के लिये नाभिकीय उर्जा का प्रयोग करने के  लिये अधिकार तो देती है लेकिन इस संबंध में परिवेक्षण और निगरानी के उददेश्य से IAEA-International Atonomic Energy Agency(अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी) IAEA को व्यापक अधिकार देने की बात करती है। IAEA ईरान जैसे हालिया विवादों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से पश्चिमी देशों के पक्ष में झूकी हुई संस्था के रूप में उभरा है और ये भी NPT के विरोध का भारत का प्रमुख आधार माना जा सकता है।

MTCR-Missile technology Control Regime(मिसाइल प्रौधोगिकी नियंत्रण व्यवस्था) :-

स्थापना- 1987 भारत इसका सदस्य 2017 में बना।

उददेश्य- जैविक, रासायनिक परमाणु हथियारों को नियंत्रण करना।

परमाणु जैविक, रासायनिक हमला करने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल मानवरहित विमानों को रोकना है ये नियम इनके सदस्य देशों पर लागू नहीं होते हैं वे स्वैच्छा से इसके नियमों का पालन करते है। इसके तहत सदस्य देशों को तकनीकी हस्तातंरण आसान होता है।

मल्टीलेटरल निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएं :- 


मल्टीलेटरल निर्यात नियंत्रण व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय समझौते हैं। जो संवेदनशील सामग्री और प्रौद्योगिकियों के जिम्मेदार निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। जो सैन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकते हैं।


इनमें शामिल है :


  • न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप : परमाणु संबंधित प्रौद्योगिकी


  • ऑस्ट्रेलिया समूह (AG) : रासायनिक और जैविक     प्रौद्योगिकी


  • मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR): हवाइ यांन / मिसाइल जो विनाशकारी

  • हथियारों को ले जा सकते हैं।


  • वासानेर व्यवस्था : सामान्य हथियार ऑडियो उपयोग वस्त्र और प्रौद्य।

भारत के 'No - First Use' (NFU) नीति की समीक्षा?

भारत के 'No - First Use' (NFU) नीति की समीक्षा करने की क्या जरूरत है, यह एक जटिल मुद्दा है। जिसमें दोनों पक्षों के तर्क हैं। NFU नीति की समीक्षा की जरूरत है। यह तर्क दिया जाता है कि दक्षिण एशिया में सुरक्षा माहौल ने जब से यह नीति पहली बार अपनाई थी, उससे काफी परिवर्तन हुए हैं।


आजकल भारत को राज्य और गैर राज्य अभिनेताओं के द्वारा बढ़ाते हुए हम लोग का सामना करना पड़ रहा है। जो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं। रणनीति का अर्थ है, योजना का तरीका जिसका उपयोग किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

FAQs:


Q1. NFU पॉलिसी के क्या-क्या फायदे हैं?


Ans: यह नीति हेयर ट्रिगर अलर्ट पर शास्त्रों की तैनाती से परमाणु उपयोग के संभावना को काम करती है, और साथ ही साथ हथियारों की दौड़ को नियंत्रित रखती है।

इस नीति से अनावश्यक हलचल के भी चांसेस कम होते हैं। क्योंकि परमाणु उपयोग को बढ़ाने का फैसला दुश्मन के ऊपर होता है इस पर हमारा कोई भी वश नहीं होता।


Q2. NFU पॉलिसी क्या होता है?


Ans: NFU प्रतिज्ञा या नीति को दर्शाता है जिसके अनुसार एक परमाणु शक्ति को प्रयोग नहीं करने के प्रतिज्ञा की हुई है। जब तक उससे पहले हमले न किया जाए एक ऐसे प्रतिद्वंदी द्वारा जो परमाणु हथियार का उपयोग करके हमला करेगा

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