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संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर क्या है : संविधान का मूल ढांचा क्या है

संविधान के basic structure की संकल्पना संसद की संविधान संशोधन करने की शक्ति से जुड़ी हुई है संविधान संशोधन की शक्ति अनुच्छेद 368 के तहत संसद को दी गई है यानी संविधान में किस हद तक परिवर्तन किया जा सकता है।

जब संविधान लागू हुआ और पहला संविधान संशोधन हुआ तभी से यह सवाल खड़ा हुआ कि संविधान को किस हद तक बदला जा सकता है। इस संबंध में कई मामलों में उच्चतम न्यायालय में संसद द्वारा संविधान संशोधन की शक्ति को चुनौती दी गई। 

यह विवाद मूलत: इस बात को लेकर था कि संसद मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है या नहीं व इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी कोई permanent और तार्किक व्यवस्था नहीं दे पाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद कुछ मामलों में मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है जबकि कुछ मामलों में संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती।

जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में बार-बार परिवर्तन हुए उससे संदेह की भी स्थिति उत्पन्न हुई व सुप्रीम कोर्ट और संसद में तनाव और गतिरोध की भी उत्पन्न हुआ। 

जैसे- जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है तो ऐसे में संसद ने कानून बनाकर खुद को इतनी शक्तियां दे दी, 

जिससे संसद जैसा चाहे और जब चाहे मूल अधिकारों व संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है (गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार 1967 का फैसला)

वहीं दूसरी ओर जब सुप्रीम कोर्ट ने संसद को मूल अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति दी तो संसद ने मनमाने तरीके से संविधान में संशोधन किया (शंकरी प्रसाद 1951 मामला),

जिसके कारण पुनः संसद के कानूनों को चुनौती दी जाने लगी तथा संसद सुप्रीम कोर्ट से भी सर्वोच्च होने का प्रयास करने लगी। जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट और संसद में तनाव बढ़ने लगा और यह व्यवस्था 1973 तक ऐसे ही चलती रहे 

आधारभूत संरचना का सिद्धांत किस वाद से संबंधित है ? :- फिर ऐतिहासिक मामला 1973 में केशवानंद भारती का आया इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के "मूल ढांचे की अवधारणा" को प्रतिपादन किया। 

इस मामले में 13 जजों की bench बैठी, जिसमें 7 जज "संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा" के पक्ष में गए जबकि 6 जज विपक्ष में गए,

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने "संविधान की मूल ढांचा ढांचे की अवधारणा" को Explain नहीं किया।

क्या हम संविधान के मूल ढांचे में संशोधन कर सकते हैं? :  सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा कि संसद मूल अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है लेकिन संसद द्वारा किए गए संशोधन से संविधान की मूल भावना नष्ट नहीं होनी चाहिए यानी संसद "संविधान के मूल ढांचे" में संशोधन नहीं कर सकती।

यदि संसद इस तरह का संविधान संशोधन करती है जिससे संविधान की मूल भावना नष्ट होती हो(मूल ढांचे का उल्लंघन होता हो) तो इस तरह का संशोधन अवैध होगा और न्यायालय को इस तरह के संशोधन को निरस्त करने का अधिकार है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि मूल ढांचा क्या होगा अतः सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायालय समय-समय पर अपने सामने आने वाले मामलों की प्रकृति के आधार पर मूल ढांचे को निर्धारित करेगा।


संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर क्या है :  संविधान का मूल ढांचा क्या है : (basic structure of Indian constitution in hindi)


मूल ढांचा क्या है :- 

  • संविधान की सर्वोच्चता, 
  • पंथनिरपेक्षता, 
  • संविधान का संघीय स्वरूप, 
  • न्यायिक समीक्षा, 
  • संसदीय प्रणाली, 
  • विधि का शासन, 
  • राष्ट्र की एकता और अखंडता, 
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संविधान संशोधन करने की संसद की सीमित शक्ति, 
  • व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता, 
  • भारत का लोकतांत्रिक गणराज्य होना।

संविधान की सर्वोच्चता: - संविधान से बढ़कर ना संसद हैं, ना सुप्रीम कोर्ट है, ना राष्ट्रपति हैं, ना प्रधानमंत्री है यानी सभी अंग संविधान की प्रक्रिया द्वारा ही काम करेंगे।

पंथनिरपेक्षता:-  इसका मतलब हुआ कि राज्य का कोई विशिष्ट धर्म नहीं है, लोग किसी भी धर्म को मान सकते हैं उसको follow कर सकते हैं।

संविधान का संघीय स्वरूप :-  संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्य दोनों सरकार आती हैं इसका उल्लंघन नहीं हो सकता यानी एकल स्वरूप नहीं होगा।

न्यायिक समीक्षा :-  जब संसद कोई अधिनियम पारित करती है तो सुप्रीम कोर्ट उसको देखती है कि यह संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप है या नहीं, कहीं इसका उल्लंघन तो नहीं हो रहा,

इसलिए संसद कोई ऐसा कानून नहीं बनाएगी जो न्याय समीक्षा को खत्म करता हो।

भारत की संसदीय प्रणाली :- इसमें लोक सभा, राज्यसभा, राष्ट्रपति होते हैं जिसमें राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख व प्रधानमंत्री कार्यकारी प्रमुख होते हैं व प्रधानमंत्री के प्रमुख वाली मंत्रिपरषद होती है जो लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है इसी तरह से की प्रक्रिया राज्यों में अपना ही जाती है ।

विधि का शासन:-  कानून के द्वारा शासन होना।

राष्ट्र की एकता और अखंडता :-  भारत के सभी भाषाई लोग एक हैं और हमारे देश का कोई भी हिस्सा अलग नहीं किया जा सकता।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता: -  संसद कोई भी ऐसा कानून नहीं लाएगी जिससे न्यायपालिका पर संसद का हस्तक्षेप बढ़े।

संविधान संशोधन करने की संसद की सीमित शक्ति : - संसद संविधान को असीमित रूप से संशोधन नहीं कर सकती।

व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता: -  अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति की गरिमा का अधिकार।

भारत लोकतांत्रिक-गणराज्य होना: - भारत लोकतांत्रिक गणराज्य होगा।

सुप्रीम कोर्ट के "मूल ढांचे" से संबंधित फैसले कौन से हैं :

  • शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार 1951: -  संसद को शक्ति दी गई थी संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। 
  • सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार 1965:  संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन नहीं कर सकती। 
  • गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार, 1967 : संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है। 
  • केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार 1973 : संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है लेकिन "संविधान के मूल ढांचे" में संशोधन नहीं कर सकती। 
  • इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण नारायण 1975 : सुप्रीम कोर्ट ने मूल ढांचे को बताया। 
  • मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार 1980 : मूल ढांचे में "न्यायिक समीक्षा" और "मौलिक अधिकार", "नीति निदेशक तत्व" जोड़ें ।
  • कीहोतो होलोहन अन बनाम जाचील्लहु 1992 : मूल ढांचे में "कानून का शासन" को जोड़ा।
  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत सरकार 1994 : "संघीय ढांचा" "भारत की एकता और अखंडता" "धर्मनिरपेक्षता" "समाजवाद" "सामाजिक न्याय" और "न्यायिक समीक्षा" को मूल विशेषताओं के रूप में दोहराया गया।

बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन अवधारणा को पहली बार जर्मन संविधान में लाया गया तथा अमेरिका में बेसिक स्ट्रक्चर को बेसिक spirit ऑफ कॉन्स्टिट्यूशन कहा जाता है।

आगे की राह : - मूल ढांचे का सिद्धांत सर्वोच्चता को बनाए रखने में सहायक है, लोकतंत्र के सिद्धांतों को बचाने में सहायक है, इसने लोकतंत्र के ढांचे को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

सोचने वाली बात है कि यदि संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति रखती है तो भारत एक अधिनायकवादिता वाला देश बन सकता है।

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