पहला संविधान संशोधन कब हुआ: - 1951 पहला संविधान संशोधन होता है शंकरी प्रसाद मामले में, तो इसमें संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई,
जिसमें "संपत्ति के अधिकार" को मूल अधिकार से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि संसद अनुच्छेद 368 के तहत मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है।
क्योंकि उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर कई बड़े नेता संसद में बैठे थे जिन्होंने आजादी में अहम भूमिका निभाई जिनका प्रभाव ज्यादा था और इसका प्रभाव सुप्रीम कोर्ट में भी पड़ा।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहां गया कि संसद अनुच्छेद 368 के तहत मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है।
उसके बाद 1967 में गोलकनाथ मामला आया जिसमें 17वें संविधान संशोधन अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, यह मामला भूमि सुधारों से ही जुड़ा हुआ था जिसमें सरकार निजी संपत्ति को अपने हाथों में ले रही थी,
लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती इसी बीच सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई।
फिर संसद में गोरखनाथ मामले के बाद 24वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया,
इस अधिनियम में बताया गया की संसद द्वारा मूल अधिकारों में किसी भी प्रकार का संशोधन किया जा सकता है तथा 25वां संविधान संशोधन द्वारा सरकार को यह शक्ति प्राप्त हुई कि सरकार भूमि अपने कब्जे में करेगी और उसकी कीमत भी सरकार तय करेगी।
इसी बीच केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 आता है।
केशवानंद भारती कौन थे? :- इनका पूरा नाम "श्रीमत जगद्गुरु श्री श्री शंकराचार्य तोतकाचार्य श्री केशवानंद भारती श्री यदंगलावरु"
केशवानंद केरल के एडनीर में स्थित शैव मठ के मठाधीश थे।यह मठ 19वीं सदी के महान संत शंकराचार्य से जुड़ा हुआ है शंकराचार्य से जुड़ा होने के कारण इस मठ के प्रमुख को केरल के शंकराचार्य का दर्जा दिया जाता है यानी केशवानंद भारती केरल के शंकराचार्य हैं।
केशवानंद भारती जी ने 19 साल की उम्र में ही संन्यास ले लिया था।
केशवानंद भारती विवाद कब हुआ ? : 1971 के समय केरल में वामपंथी सरकार बनी तथा वामपंथी सरकार ने जितनी भी धार्मिक संस्थाओं की जमीन थी उसको धार्मिक सुधार के तहत सरकार ने उसको ग्रहण कर ली ।
इसी में एडमीर में स्थित शैव मठ की भी जमीन सरकार ने अपने कब्जे में ले ली।
1970 के दशक में एडनीर मठ के पास हजारों एकड़ जमीन थी इसी बीच तत्कालीन सरकार भूमि सुधारों की दिशा में प्रयास कर रही थी
यानी किसी भी व्यक्ति या संस्था के पास बहुत अधिक जमीन थी तो सरकार द्वारा उस जमीन को भूमिहीनों (जिन पर भूमि ना हो) को बांटी जा रही थी।
इसी Process में एडनीर मठ भूमि को सरकार द्वारा भूमिहीनों में बांटने का निर्णय लिया गया। जिससे मठ कि कई एकड़ भूमि पर राज्य सरकार का अधिकार हो गया
तथा राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ एडनीर मठ के प्रमुख स्वामी केशवानंद भारती द्वारा केरल सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तभी से केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य की शुरुआत हुई।
इस याचिका में कहा गया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 26 जो "अपनी धार्मिक संपत्ति के रख-रखाव व प्रबंधन का अधिकार देता है" जो कि सरकार द्वारा इसका हनन किया जा रहा है,
साथ ही केरल सरकार के भूमि सुधार कानूनों को दी चुनौती दी गई लेकिन केरल हाईकोर्ट में केशवानंद भारती हार जाते हैं जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया ।
Q. केशवानंद भारती मामले का अनुपात कितना है? :
Q. केशवानंद भारती केस का निर्णय कब आया? :
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस मामले से कई संविधानिक प्रश्न जुड़े हैं जिसमें सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या देश की संसद के पास संविधान संशोधन के जरिए मौलिक अधिकारों सहित किसी भी अन्य हिस्से में असीमित संशोधन का अधिकार है।
फिर 1972 के अंत में इस मामले की लगातार 68 दिनों तक सुनवाई चली तथा अंत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7:6 के अंतर से (यानी कुल 13 जजों की बेंच थी) स्वामी केशवानंद भारती के विरोध में फैसला दिया यानी केसवानंद भारती हार गए।
भारतीय संविधान का मूल ढांचा क्या है? :-
- संविधान की सर्वोच्चता,
- पंथनिरपेक्षता,
- संविधान का संघीय स्वरूप,
- न्यायिक समीक्षा,
- संसदीय प्रणाली,
- विधि का शासन,
- राष्ट्र की एकता और अखंडता,
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संविधान संशोधन करने की संसद की सीमित शक्ति,
- व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता,
- भारत का लोकतांत्रिक गणराज्य होना।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला :
संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है, लेकिन संसद संविधान के "मूल ढांचे" में संशोधन नहीं कर सकती जिससे यह संदेश गया कि संविधान सर्वोच्च है इस फैसले के 7 जज पक्ष में थे और 6 जज विपक्ष में थे।
सरकार द्वारा इस फैसले को बदलने का दबाव डाला गया लेकिन यह हो नहीं पाया तथा इसमें नानी पालकीवाला जी का योगदान महत्वपूर्ण रहा।
एडनीर मठ के शंकराचार्य वैसे तो यह मामला हार गए लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया वह आज भी लागू होता है यानी आज भी संसद संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं कर सकती ।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा को बताया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 24 वां संविधान संशोधन अधिनियम को मान्यता दी गई जिसमें संसद द्वारा यह कानून बनाया गया कि संसद मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है।
यदि संसद इस तरह का कानून बनाती है जिससे संविधान की मूल भावना (मूल ढांचे का उल्लंघन) समाप्त होती है तो इस प्रकार का संशोधन अवैध होगा और न्यायालय के पास उसे निरस्त करने का अधिकार है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि संविधान का मूल ढांचा क्या होगा बल्कि बताया कि न्यायालय समय-समय पर अपने सामने आने वाले मामलों की प्राकृति के आधार पर मूल ढांचे को निर्धारित करेगा।
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