फ़िनलैंड बना नाटो का नया सदस्य, जिससे अब नाटो के सदस्य देशों की संख्या 31 हो गयी है | नाटो में 29 सदस्य यूरोपियन है और 2 सदस्य उत्तरी अमेरिका से हैं |
यह माना जा रहा है कि स्वीडन नाटो का 32 बन सकता है|
NATO की फुल फॉर्म क्या है :- North Atlantic treaty organization(उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन)
नाटो क्या है ?: - द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरा विश्व इस बात को लेकर चिंता में था कि आगे युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न ना हो,
इसी को ध्यान में रखकर कई देशों ने मिलकर UNO की स्थापना की इसको शक्ति देने के लिए एक सैन्य संगठन की आवश्यकता भी महसूस की गई जिससे यदि कोई देश नियमों के विपरीत काम करेगा,
तो उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो सके इसके लिए कई देशों ने अपनी सेना को साझा करने का निर्णय लिया।
1945 के बाद जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया उसके बाद विश्व में दो महाशक्तियां(अमेरिका और सोवियत संघ) उभरकर सामने आई |
यूरोप में संभावित खतरे को देखते हुए ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने एक संधि पर साइन किए जिसका नाम था ब्रुसेल्स की संधि,
इसमें यह तय किया गया कि किसी भी देश पर हमला होने पर यह देश एक दूसरे को सैनिक, सामूहिक सहायता व सामाजिक, आर्थिक मदद देंगे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेना हटाने के से मना कर दिया और अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी कर दी,
सोवियत संघ के इस कदम से अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों को लगा कि सोवियत संघ यहां पर साम्यवादी शासन स्थापित करना चाहता है,
इसलिए अमेरिका और पश्चिम यूरोप के देशों ने एक ऐसे संगठन बनाने की पहल की जिससे सोवियत संघ के आक्रमण से पश्चिमी यूरोप के देशों की रक्षा की जाए।
अमेरिका बर्लिन में सोवियत संघ की घेराबंदी और सोवियत संघ के प्रभाव को समाप्त करने के लिए सैनिक गुटबंदी करने के लिए आगे आया और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद - 15 के तहत उत्तर अटलांटिक संधि का प्रस्ताव पेश किया,
नाटो के संस्थापक कौन है?: जिसमें वर्ष 1949 को फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, डेनमार्क, आईसलैंड, इटली, नॉर्वे कनाडा, पुर्तगाल और अमेरिका सहित 12 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए।
शीत युद्ध से पहले यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन ने इसकी सदस्यता ली व शीत युद्ध समाप्त होने के बाद हंगरी, पोलैंड, चेक गणराज्य इसमें शामिल हो गए,
इसके बाद धीरे-धीरे इसमें सदस्य जुड़ते गए इसी प्रकार कई देशों की सेनाओं ने मिलकर इसका निर्माण किया जिससे हम नाटो के नाम से जानते हैं।
आसान भाषा में नाटो क्या है : नाटो 31 देशों की सेनाओं का संगठन है जिसमें सैनिक सहायता दी जाती है,
इसमें एक देश की सेना दूसरे देश में भेजी जाती है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय ट्रेनिंग दी जाती है इसके हर एक प्रतिनिधि को निर्देश दिया जाता है कि वह इसका पालन करें।
द्वितीय विश्व युद्व के बाद 1949 में नाटो अस्तित्व में आया, शुरूआत में नाटो का उदे्दश्य था, यूरोप में सोविय संघ के विस्तार को रोकना, इसका प्रमुख सिद्वांत यह था कि नाटो के किसी भी सदस्य पर हमला होता है तो वह नाटो के सभी सदस्य देशों पर माना जायेगा और बाकी देश उस देश की मदद के लिये आगे आयेंगे,
शरूआत में नाटो में अमेरिका सहित 12 देश शामिल थे, लेकिन बाद में इसमें नये सदस्य जुड़ते गये और फिनलैंड नाटो का सबसे बाद का या सबसे नया सदस्य है, नाटो के महासचिव इसके प्रमुख होते हैं।
एक समय ऐसा भी आया था, जब लग रहा था कि रूस भी नाटो में शामिल हो सकता है, लेकिन 2000 में रूस ने नाटो में शामिल होने के रास्ते से अलग हो गया, जब रूस ने क्रीमिया को अपने मे मिला लिया तो रूस के संबंध नाटो के साथ खराब हो गये।
नाटो प्लस क्या है-
यह नाटो का ही विस्तार रूप है, इसमें वर्तमान मे नाटो के सदस्य देश और आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इजरायल, जापान और दक्षिण कोरिया देश शामिल हैं। नाटो प्लस देशों को अमेरिका से रक्षा सहायता और तकनीक मिलती है, नाटो प्लस में वे सभी देश शामिल है, जिनके साथ अमेरिका की द्विपक्षीय रक्षा व सुरक्षा संधिया हो रखी हैं,
लेकिन भारत के साथ अमेरिका की कोई रक्षा संधि नहीं है, इसके बावजूद भी अमेरिका ने भारत को नाटो प्लस का सदस्य होने की सिफारिश की है, लेकिन अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार का विशिष्ट दर्जा दिया है।
नाटो की स्थापना कब हुई ? :- नाटो की स्थापना वाशिंगटन(अमेरिका) में 4 अप्रैल, 1949 को हुई इसे "वाशिंगटन संधि" के नाम से भी जाना जाता है तथा फ्रांस में इसे OTAN कहा जाता है।
नाटो का मुख्यालय कहां है? :- नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स(बेल्जियम) की राजधानी में है।
नाटो का इतिहासः-
अक्सर यह माना जाता है कि सोवियत संघ से उत्पन्न संकट से निपटने के लिये नाटो की स्थापना की गई थी,
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह इसकी स्थापना का आंशिक सच है, बल्कि अमेरिका और कई यूरोपीय देशों द्वारा इसके उददेश्यों को साधने का प्रयास किया जा रहा था। जैसै-
- सोवियत विस्तारवाद को राकना,
- अमेरिका के माध्यम से यूरोप में अति राष्ट्रवादी सैन्यवाद को रोकना,
- यूरोपीय राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहन करना(क्योंकि पूर्वी यूरोप सोवियत संघ की विचारधारा को लेकर चल रहा था, जबकि पश्चिम यूरोप अमेरिका की विचारधारा को लेकर चल रहा था।)
साथ ही कम्यूनिस्ट सरकारें पूरे यूरोप में निर्वाचित सरकारें उखाड़ फेंकना चाहते थे उदाहरण के लिये - 1948 में चेकोस्लोवाकिया की कम्यूनिस्ट पार्टी ने सोवियत संघ के गुप्त समर्थन से उस देश में लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार को उखाड़ फेंका।
बर्लिन में दिवार बना दी गयी।
इस समय तक अमेरिका भी अपनी अलगाववाद की कुटनीति को त्याग चुका है। यानी अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्व में अपने आप को अलग करके मतबूत किया और
उसने वित्त पोषित मार्शल प्लान व अन्य माध्यमों की सहायता प्रदान की गई, क्योंकि यूरोपीय देशों में अभी भी सुरक्षा एक बड़ी चिंता थी।
सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए कई पश्चिमी यूरोपीय लोकतांत्रिक देशों ने सैन्य सहयोग बढ़ाना शुरू किया जैसे 1948 में वेस्टर्न यूनियन का निर्माण किया गया।
अतः यह निर्धारित किया गया कि सोवियत संघ के विस्तार और उत्पन्न संकट को रोकने के लिये ट्रांस अटलांटिक सुरक्षा समझौता हुआ।
जिसके कारण विस्त्त चर्चा और बहस के बाद 4, अप्रैल, 1949 को उत्तरी अटलांटिक संधि(नाटो) पर हस्ताक्षर किये गये।
फिर साल 1955 में सोवियत संघ और उसके पूर्वी यूरोपीय सहयोगी देशों ने वारसां संधि का गठन किया।
नाटो में कौन-कौन से देश कब शामिल हुए :- 4 अप्रैल, 1949 को इसमें 12 सदस्य
बेल्जियम,
फ्रांस,
डेनमार्क,
कनाडा,
आइसलैंड,
नीदरलैंड,
इटली,
लक्जमबर्ग,
नॉर्वे,
ब्रिटेन,
पुर्तगाल
और अमेरिका शामिल हुए|
18 फरवरी, 1952 को ग्रीस, टर्की इसमें शामिल हुए,
9 मई, 1955 को जर्मनी,
30 मई, 1982 स्पेन,
12 मार्च, 1990 को चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड शामिल हुए,
29 मार्च, 2004 को
बुल्गारिया,
एस्टोनिया,
लाटविया,
लिथुवनिया,
रोमानिया,
स्लोवाकिया
और स्लोवानिया शामिल हुए
1 अप्रैल 2009 को अल्बानिया और क्रोएशिया शामिल हुए
5 जून 2017 को मोंटेनेग्रो,
वर्ष 2020 में मेसोडोनिया शामिल हुआ।
5 अप्रैल, 2023 को फ़िनलैंड नाटो में शामिल हुआ |
नाटो में कितने देश आते हैं?: नाटो में कुल 31 देश शामिल हैं जो निम्न हैं :
- बेल्जियम,
- फ्रांस,
- डेनमार्क,
- कनाडा,
- आइसलैंड,
- नीदरलैंड,
- इटली,
- लक्जमबर्ग,
- नॉर्वे,
- ब्रिटेन,
- पुर्तगाल,
- अमेरिका
- ग्रीस,
- टर्की,
- जर्मनी,
- स्पेन,
- चेक गणराज्य,
- हंगरी,
- पोलैंड,
- बुल्गारिया,
- एस्टोनिया,
- लाटविया,
- लिथुवनिया,
- रोमानिया,
- स्लोवाकिया,
- स्लोवानिया,
- अल्बानिया,
- क्रोएशिया,
- मोंटेनेग्रो,
- मेसोडोनिया,
- फ़िनलैंड |
नाटो की स्थापना क्यों हुई ? : -
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप की स्थिति सही नहीं थी और आर्थिक सामाजिक स्थिति खराब थी।
अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी गई, लोगों का दैनिक जीवन बहुत नीचे चला गया था।
इसी का फायदा उठाने के लिए सोवियत संघ ग्रीस और टर्की पर अपना प्रभाव जमाना चाहता था और वहां पर साम्यवाद को स्थापित कर विश्व के व्यापार पर अपना कंट्रोल चाहता था ।
यदि उस वक्त सोवियत संघ टर्की को जीत लेता तो इसका काला सागर पर कंट्रोल हो जाता,
जिससे इसके लिए आसपास के देशों पर प्रभाव जमाना आसान हो जाता ।
इसी तरह सोवियत संघ भूमध्य सागर पर पकड़ बनाने के लिए ग्रीस को जीतना चाहता था,
Truman सिद्धांत क्या है :- सोवियत संघ की इसी विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए अमेरिका ने शीत युद्ध के समय सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए एक सिद्धांत का प्रस्ताव रखा, जिसका नाम truman सिद्धांत है।
इस प्रस्ताव का मकसद सोवियत संघ की विस्तार वादी नीति को रोकना व यूरोप के देशों की रक्षा करना था इसी वक्त मार्शल योजना भी लागू हुई और नाटो की स्थापना की गई।
अमेरिका ने इस सिद्धांत के द्वारा उन देशों की रक्षा करने का निर्णय लिया,
जिन्हें साम्यवाद से खतरा था और इसमें यह फैसला किया गया कि सदस्य देशों में से किसी एक पर भी हमला होता है तो यह हमला सभी पर माना जाएगा और सब मिलकर इस का मुकाबला करेंगे
शीत युद्ध के दौरान जब पूरा विश्व दो विचारधाराओं में बंटा हुआ था पूंजीवादी और साम्यवादी
पूंजीवादी विचारधारा का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और साम्यवादी का सोवियत संघ।
वर्तमान में नाटो की भूमिका : 1991 के बाद जब सोवियत संघ का विघटन हो गया तो यह सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या नाटो की वर्तमान में प्रासंगिकता है? क्योंकि इसका मकसद ही था सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना
- 1991 के बाद नाटो ने अपना रणनीतिक प्लान बनाया है कि
- जो नाटो के सदस्य हैं उन पर किसी प्रकार का हमला ना हो,
- वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाया जाए,
- साइबर क्राइम को रोका जाए,
- और वर्तमान में विश्व में जो नई नई चुनौतियां हैं उनका सामना करने में नाटो अहम भूमिका निभा रहा है यानी बदलते दौर के साथ इसने खुद को बदला है।
नाटो एक अंतर सरकारी संगठन है
नाटो की अधिकारिक भाषा कौन सी है? : फ्रेंच और अंग्रेजी है
नाटो की संरचना:
- प्रत्येक सदस्य देश अपने एक प्रतिनिधित्व को भेजेंगे ब्रुसेल्स में।
- प्रत्येक सदस्य देश के प्रतिनिधि से मिलकर एक उत्तरी अटलांटिक परिषद(एनएसी) का निर्माण होता है।
- परिषद की प्रत्येक सप्ताह में बैठक की जाती है इसकी अध्यक्षता महासचिव द्वारा की जाती है और महासचिव संगठन का सर्वाच्च अधिकारी होता है।
- यह परामर्श एवं निर्णय की प्रक्रिया को संचालित करती है।
- परमाणु संबंधी मामलों पर निर्णय लेने के लिये -परमाणु योजना समूह बनाया गया है।
- नाटो का एक सैन्य संगठन भी है जिसमें देशों के रक्षा प्रमुख होते है।
- विवाद या तनाव की स्थिति में भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
- स्थायी सेना बहुत कम होती है, लेकिन जैसे ही आपरेशन शुरू किया जाता है तो इसमें सदस्य देश अपनी सेनाओं को भेजते हैं।
परिषद - मंत्रीगण,
उपपरिषद - कूटनीति प्रतिनिधि,
प्रतिरक्षा समिति - प्रतिरक्षा मंत्री,
सैनिक समिति - सदस्य देशों की सेना अध्यक्ष।
नाटो के उद्देश्य : -
नाटो एक राजनीतिक और सैनिक समझौता है जो अपने सदस्यों को राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देता है,
लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना,
विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करना,
उत्तरी अटलांटिक संधि के अनुच्छेद 5 जिसमें कहा गया है कि सदस्य राज्यों को सशस्त्र हमले के अधीन किसी भी सदस्य राज्य की सहायता के लिए आने की आवश्यकता होती है,
सामूहिक सुरक्षा :- यदि नाटो के किसी एक सदस्य पर भी हमला हुआ तो यह नाटो की सभी सदस्य देशों पर माना जाएगा और सभी सदस्य देश सुरक्षा के लिए एक साथ आएंगे।
Trance Atlantic link : - अटलांटिक महासागर के एक तरफ अमेरिका कनाडा जैसे देश हैं तो दूसरी तरफ पश्चिमी यूरोप के देश हैं इन दोनों तरफ के देशों के बीच Link स्थापित करना।
Strategic concept :- जिस तरह से नई नई चुनौतियां आ रही है जैसे वैश्विक आतंकवाद, साइबर क्राइम का सामना करना व इससे निपटने में अहम भूमिका निभाना,
सोवियत संघ का पश्चिमी यूरोप में विस्तार को रोकना पश्चिमी यूरोप देशों को एकजुट करना।
नाटो कैसे काम करता है? :- नाटो में सभी 30 सदस्यों का एक समान मत है यानी नाटो में कोई भी निर्णय सभी 30 सदस्यों के सामूहिक निर्णय से होता है ।
नाटो की सैन्य समिति सभी सदस्यों के सैनिक प्रमुखों से मिलकर बनी है जब किसी समस्या का समाधान राजनीतिक तरीके से नहीं निकलता है तो उसके लिए मिलिट्री ऑपरेशन का रास्ता अपनाया जाता है।
क्या नाटो के पास सेना है ? : नाटो के पास अपनी खुद की सेना बहुत कम होती है इसलिए जब किसी देश में मिलिट्री ऑपरेशन की बात आती है तो सदस्य देश स्वेच्छा से अपनी सेना भेजते हैं और जब मिशन समाप्त हो जाता है तो सेना अपने देश लौट जाती है।
नाटो अपने सदस्य देशों के लिए राजनीतिक तरीका तो अपना आता ही है लेकिन जरूरत पड़ने पर मिलिट्री सहयोग भी प्रदान करता है।
नाटो को धन उसके सदस्यों देशों द्वारा दिया जाता है नाटो के बजट में अमेरिका का योगदान तीन -चौथाई है।
क्या भारत नाटो में शामिल हो सकता है ? :- भारत नाटो का सदस्य बनना तो मुश्किल है लेकिन अमेरिका द्वारा भारत को स्ट्रैटेजिक पार्टनर का दर्जा दिया जा सकता है।
यदि भारत नाटो का स्ट्रैटेजिक पार्टनर बनता है तो भविष्य में भारत नाटो का Major Non NATO Alliance बन सकता है।
नाटो 3 गठबंधनों में भाग लेता है ? :
- यूरो अटलांटिक पार्टनरशिप काउंसिल(EAPC)
- भूमध्यसागरीय संवाद
- इस्तांबुल सहयोग पहल(ICI )
यूरो अटलांटिक partnership काउंसिल(EAPC) : - यह 50 राष्ट्रों का बहूपक्षी मंच है जो सहयोगी देशों और साझेदार देशों के बीच राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर बातचीत और परामर्श करता है।
यह यूरो अटलांटिक क्षेत्र में भागीदार देशों के साथ नाटो के सहयोग एवं शांति के लिए साझीदारी कार्यक्रम के तहत नाटो और व्यक्तिगत भागीदार देशों के बीच विकसित द्विपक्षीय संबंध के लिए समग्र राजनीतिक ढांचा प्रदान करता है।1991 में स्थापित ठीक से युद्ध के बाद उत्तरी अटलांटिक सहयोग परिषद(NACC) को वर्ष 1997 में स्थापित EAPC ने सफल बनाया।
भूमध्यसागरीय संवाद :- यह एक साझेदारी मंच है जो नाटो के भूमध्य और उत्तरी अफ्रीकी पड़ोस में सुरक्षा और स्थिरता में योगदान करता है।
गैर नाटो देश जो वार्ता में भाग लेते हैं :- अल्जीरिया, मिस्र, इसराइल, जॉर्डन, मॉरिटानिया, मोरक्को और ट्यूनीशिया।
इस्तांबुल सहयोग पहल(ICI) :- इसका मकसद है मध्य पूर्व क्षेत्र में गैर नाटो देशों को नाटो के साथ सहयोग करने का अवसर प्रदान कर दीर्घकालिक वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान करना।
बहरीन, कतर, कुबेत और संयुक्त अरब अमीरात वर्तमान में इस में भाग ले रहे हैं।
बाल्कन राज्य कौन से हैं? :- नाटो के 29 वाँ मोंटेनेग्रो 30 वां मेसीडोनिया सदस्य बने हैं। यह बाल्कन क्षेत्र से ही संबंधित है।
बाल्कन एक प्रायद्वीपीय क्षेत्र है इसमें सबसे महत्वपूर्ण देश युगोस्लाविया था,
युगोस्लाविया का 1991 में विघटन हुआ और इस से अलग होकर 3 नए देश बने स्लोवेनिया, क्रोएशिया, मेसिडोनिया ।
फिर 1995 में इससे अलग होकर एक देश और बना बोस्निया-हरजागोबिना।
अतः युगोस्लाविया में केवल दो देश ही रह गए - सर्बिया और मोंटेनेग्रो व 1992 में युगोस्लाविया का नाम ही हटा दिया गया और 2006 में से मोंटेनेग्रो भी अलग होकर स्वतंत्र देश बन गया इन सब देशों को बाल्कन राज्य कहा जाता है।
नाटो में कौन देश शामिल हो सकता है ?:-
वर्तमान समय में नाटो सदस्यता इस संधि के सिद्वांतों और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा में योगदान करने की दृष्टि से अन्य यूरोपीय देशों के लिये भी खुली हुई है।
जब नाटो बना तो उसमें अधिकांश देश यूरोप के देश है और नाटो द्वारा कहा गया कि यदि सोवियत संघ इसके सदस्य देशों पर हमला करता है तो यह पूरे नाटो पर हमला माना जायेगा जिससे हम आपको सुरक्षा प्रदान करेंगे।
नाटो की फंडिंग कैसे होती है-
सदस्य देश अपनी जीडीपी का कम से कम 2 प्रतिशत रक्षा क्षेत्र पर खर्च करते हैं। यानी हर देश अपनी सेना को मजबूत करें यह इसका विचार है।
वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार सर्वाधिक व्यय अमेकिरा किया जाता है।
अन्य देशों द्वारा कम खर्च के कारण कई बार विवाद बना रहता है- फ्रांस 1.8प्रतिशत, जर्मनी 1.2 प्रतिशत ।
अब इस पर सहमति बन गयी है कि साल 2030 तक रक्षा व्यय पर जीडीपी का 2 प्रतिशत खर्च किया जायेगा।
क्या भारत को नाटो में शामिल होना चाहिए :-
अमेरिका की एक समिति द्वारा भारत को नाटो प्लस में शामिल होने की सिफारिश की गयी थी, लेकिन भारत ने नाटो प्लस में शामिल होने से इंकार कर दिया है, भारत की ओर यह साफ कर दिया गया है कि भारत का नाटो में शामिल होने का कोई ईरादा नहीं है, क्योंकि यह संगठन भारत के लिये उपयुक्त नहीं है। नाटो प्लस नाटो का ही एक विस्तार रूप है, जिसमें आस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, इजरायल और दक्षिण कोरिया शामिल हैं।
वैसे नाटो प्लस देशों को नाटो सदस्यों से खुफिया मदद, तकनीकी सहायता आदि मिलती है, क्योंकि नाटो का ईरादा था कि वह भारत को चीन के खिलाफ उतार सकता है, लेकिन भारत इससे अलग हो गया, क्योंकि भारत की शुरूआत से ही ऐसी नीति रही है कि वह ऐसे किसी संगठन में शामिल नहीं होगा, जिससे सैन्य ताकत द्वारा समाधान किया जाता हो, रही बात चीन की तो भारत चीन से निपटने के लिये अकेला ही काफी है।
क्योंकि भारत के नाटो में शामिल होने से भारत को कुछ फायदा भी होता तो कुछ नुकसान भी होता है, जैसे -
यदि भारत नाटो का सदस्य बनता तो सबसे पहले भारत का पुराना मित्र रूस इससे खफा हो जाता और दोनों देशों में संबंध बिगड़ने की पूरी संभावना थी, और यदि भारत नाटो का सदस्य बनता है तो नाटो की पॉलिसी के अनुसार यदि कहीं भी नाटो सदस्यों की लड़ाई हो रही है तो ऐसे में भारत को भी इसमें शामिल होना पड़ेगा,
जबकि भारत के बहुत से देशों से बहुत अच्छे संबंध है, जबकि नाटो की उनके साथ नहीं बनती है, इसलिये भारत को काफी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
नाटो में शामिल होने के फायदे - यदि भारत नाटो का सदस्य बन जाता है, तो अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश से रक्षा के क्षेत्र में जोड़ा जा सकता है, जिससे अमेरिका और भारत के संबंध भी बहुत अच्छे हो जायेंगे, साथ ही भारत का तकनीक व सैनिक सहायता भी मिलेगी, जिससे भारत चीन जैसे देश से मुकाबला करने में बहुत ज्यादा सक्षम हो जायेगा।
नाटो के प्रमुख बिन्दु-
इसमें कुल 14 आर्टिकल है, जिनमें आर्टिकल 5 सबसे महत्वपूर्ण है, आर्टिकल 5 के अनुसार यदि नाटो देशों में से किसी पर भी हमला होता है तो यह हमला नाटो के सभी देशों पर माना जायेगा, जिसमें सभी देशों को हिस्सा लेना होता है।
दरअसल नाटो की स्थापना ही रूस के विस्तार को राकना ही था, क्योंकि रूस बहुत तेजी के साथ साम्यवाद का प्रसार बढ़ाता जा रहा था, इसलिये रूस को दक्षिण एशिया से रोकने के लिये SEATO को बनाया गया,
नाटो के प्रमुख अभियान और मिशन :-
साल 2003 में अफगानिस्तान ने अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल का नेतृत्व किया, 2014 से संकल्प सहायता मिशन की शुरूआत की।
फरवरी, 2020 को तालिबानियों से समझौता किया गया, अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से सैन्य वापसी की घोषणा हुई।
1999 में कोसोको में शांति और स्थिरता हेतु शांति सहायता अभियान चलाया गया।
इसी तरह ऑपरेशन ओशन शील्ड के माध्यम से समुद्री डकैती और समुद्री सुरक्षा के अभियान चलाया जा रहा है।
नाटो स्काई पुलिस का गठन किया गया।
नाटो और भारत :-
भारत नाटो का सदस्य नहीं है, क्योंकि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने तीसरे देशों के साथ मिलकर गुटनिरपेक्षता का सिद्वांत को अपनाया था।
हाल ही में अमेरिका सीनेट ने इजराइल और दक्षिण कोरिया के समान भारत को नाटो का सहयोगी देश का दर्जा देने हेतु विधेयक पारित किया है।
नाटो के आपसी मतभेदः-
- यूरोप द्वारा रूस से तेल और गैस की खरीद,
- चीन की आक्रमकता और उस पर प्रतिबंध,
- तुर्की द्वारा ग्रीस और फ्रांस से तनाव बढ़ना,
- तुर्की द्वारा रूस का अनेक मुददों पर समर्थन,
- फ्रांस द्वारा नाटो को ब्रेनडेड कहना,
- खर्च के मुददे पर सहमति न होना,
- अमेरिकी वर्चस्व में कमी,
- ईरान एवं खाड़ी मुददे पर सहमति का अभाव,
- अफगानिस्तान का मुददा।
नाटो की प्रासंगिकता :-
वर्तमान में रूस यूक्रेन संकट के बीच नाटो की धीमी कार्यवाही ने उसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाया है।
जिस तरह से रूस द्वारा यूक्रेन का क्रीमिया वाला क्षेत्र ले लेना, जिस पर नाटो द्वारा कोई कठोर कार्यवाही नहीं की गयी।
चीन की आर्थिक नीति और रूस का आक्रामकता के सामने नाटो का कमजोर होना।
ब्राजील, मैक्सिको जैसे देश नाटो सदस्य देशों से ज्यादा चीन से आर्थिक संबंध पर मजबूती दे रहे हैं।
चीन का नया सिल्क मार्ग लगभग 5 महाद्वीपों में फैल चुका है, जो कि एक बुनियादी परियोजनाओं का एक महत्वकांक्षी नेटवर्क है।
जिसकी सहायता से चीन अमेरिका और नाटो सदस्य देशों के साथ आर्थिंक संबंधों को बढ़ाने में लगा हुआ है।
चीन मध्य पूर्व के अनेकों यूरोपीय देशों के साथ चीन आर्थिक संबंधों को मजबूत कर रहा है, साथ ही चीन का बाल्कन देश में बढ़ता प्रभाव अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिये चिंता बना हुआ है। जो यह बताता है कि नाटो की असफलता बढ़ती जा रही है।
अफगानिस्तान में तालिबान का सत्ता में लौटना और नाटो सेनाओं द्वारा उसे अस्थिर छोड़कर वापसी का निर्णय भी इसकी प्रासंगिकता को कम करता है।
नाटो से संबंधित जानकारी(FAQ):
Q.क्या भारत नाटो का सदस्य है?
A.भारत नाटो का सदस्य नहीं है व बनना भी मुश्किल है लेकिन अमेरिका द्वारा भारत को स्ट्रैटेजिक पार्टनर का दर्जा दिया जा सकता है।
यदि भारत नाटो का स्ट्रैटेजिक पार्टनर बनता है तो भविष्य में भारत नाटो का Major Non NATO Alliance बन सकता है।
Q.क्या चीन नाटो का सदस्य है?
A. चीन नाटो का सदस्य नहीं है।
Q.क्या पाकिस्तान नाटो का सदस्य है?
A. पाकिस्तान नाटो का सदस्य नहीं है।
Q.क्या यूक्रेन नाटो का सदस्य है?
A. यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है।
Q.नाटो का क्या कार्य है?
A. नाटो एक राजनीतिक और सैनिक समझौता है जो अपने सदस्यों को राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देता है, लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना, विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करना,
उत्तरी अटलांटिक संधि के अनुच्छेद 5 जिसमें कहा गया है कि सदस्य राज्यों को सशस्त्र हमले के अधीन किसी भी सदस्य राज्य की सहायता के लिए आने की आवश्यकता होती है
नाटो में सभी 31 सदस्यों का एक समान मत है यानी नाटो में कोई भी निर्णय सभी 30 सदस्यों के सामूहिक निर्णय से होता है ।
नाटो की सैन्य समिति सभी सदस्यों के सैनिक प्रमुखों से मिलकर बनी है जब किसी समस्या का समाधान राजनीतिक तरीके से नहीं निकलता है तो उसके लिए मिलिट्री ऑपरेशन का रास्ता अपनाया जाता है।
Q.नाटो में कुल कितने देश हैं ?
A. नाटो में कुल 31 देश हैं |
Q.नाटो में 31 देश कौन कौन से हैं ?
A. बेल्जियम, फ्रांस, डेनमार्क, कनाडा, आइसलैंड, नीदरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, ब्रिटेन, पुर्तगाल, अमेरिका ग्रीस, टर्की, जर्मनी, स्पेन, चेक गणराज्य, हंगरी,पोलैंड,बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुवनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया,
स्लोवानिया, अल्बानिया, क्रोएशिया, मोंटेनेग्रो, मेसोडोनिया, फ़िनलैंड ।
Q.नाटो का अध्यक्ष कौन है ?
A. नाटो के महासचिव General Jens Stoltenberg. हैं |
Q. नाटो का नया सदस्य कौन है ?
A. नाटो का नया सदस्य फ़िनलैंड बना है |
Q.क्या रूस नाटो का सदस्य है?
A. रूस नाटो का सदस्य नहीं है बल्कि रूस नाटो को दुश्मन मानता है, क्योंकि रूस और यूक्रेन में जो रूद्व चल रहा है, उसमें कहीं ना कहीं नाटो की भूमिका महत्वपूर्ण रही। रूस नाटो से अलग ही विचारधारा रखता है, जिससे नाटो और रूस के बीच अक्सर तनाव वाली स्थिति बनी रहती है।
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