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सहकारी समिति कैसे बनाये, सहकारी समितियां क्या होती है, इसके प्रकार व लाभ

सहकारी समिति क्या है : - सहकारी समिति का अर्थ होता है, साथ मिलकर काम करना, इस समिति को बनाने का उद्देश्य यह होता है कि इसमें जो व्यक्ति शामिल होते हैं वह किसी साझे मकसद के लिए सहकारी समिति की स्थापना करते हैं।   

सहकारी समिति हम मान सकते हैं कि यह एक बैंक की तरह होती है, जिसमें जो सामूहिक बचत होती है उसको रख दिया जाता है तथा उनको कम रियायत दर पर लोन मिल जाता है | 

इस समितियों को बनाने वाले जो लोग होते हैं मैं अपने हित के लिए नहीं बल्कि वे सामूहिक हित के लिए बचत करते हैं| 

इसमें एक जैसे लोग इकट्ठा होकर अपने व्यापार को बढ़ाने, लाभ कमाने की दृष्टिकोण से इसका निर्माण करते हैं।

इसका मुख्य उद्देश्य होता है:  जनकल्याण करना For Example मान लेते हैं कि जैविक खेती करने वाले लोगों ने मिलकर एक समिति बना ली और यह decide किया कि करने वाले लोग जितना भी Production करेंगे वे सभी समिति के पास लाएंगे और यह समिति आपके सामान को बेचने में मदद करेगी, 

समिति इन सामानों को समिति के सदस्यों के द्वारा ही बेचने लगे तो इससे होगा यह कि बिचौलियों का जो काम था वह खत्म हो जाएगा, 

जिससे उनको कीमत अच्छी मिलने लगेगी और किसी समस्याओं को सुलझाने में आसानी हो जाएगी जैसे समिति के किसी सदस्य को परेशानी में न्यूनतम ब्याज पर ऋण दे दिया जाता है।


सहकारी समिति कैसे बनाये, सहकारी समितियां क्या होती है, इसके प्रकार व लाभ : संवैधानिक प्रावधान(How to register a cooperative society)


सहकारी समितियों का इतिहास :- पहली आधुनिक कॉ- आपरेटिव(सहकारी समिति) इंग्लैंड में 1844 में बनाई गई थी|  

भारत में सहकारी समितियों को लेकर पहला गंभीर प्रयास मद्रास के गवर्नर वेंडलॉक के द्वारा किया गया और वेंडलॉक ने 1892 में निकोलसन को मद्रास में सहकारी समिति की संभावनाओं पर रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सौंपा और उन्होंने अपनी रिपोर्ट 1895 में सौंपी| 

इस रिपोर्ट के अनुसार भारत को अपने यहां एक सहकारिता को बढ़ावा देने वाले सिद्धांत की जरूरत है, फिर निकोलसन एडवर्ड लॉ कमेटी के सदस्य के रूप में शामिल हुए | 

इस समिति की सिफारिश पर ही भारत में पहला कॉ- आपरेटिव कानून कॉ- आपरेटिव Credit  Act,  1904 लागू हुआ, फिर इसके बाद कॉ- आपरेटिव सोसाइटीज एक्ट 1912 लागू किया गया | 

1919 के कानून में कॉ- आपरेटिव कानून प्रांतों को ट्रांसफर कर दिए गए, फिर आजादी के बाद सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए कुछ राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों की स्थापना की गई, जैसे : 1963 में National Co operative Development Cooperation, 1965 में National dairy Development Board की स्थापना की गई|

वर्तमान में Multi State Co operative Act, 2002 लागू है इस एक्ट को 1984 के अधिनियम में संशोधन किया गया।

सहकारी समिति के प्रकार :- वैसे तो सहकारी समितियां बहुत सारी होती हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण समितियां जो निम्न है :-

  • उपभोक्ता सहकारी समितियां,
  • सहकारी गृह निर्माण समितियां, 
  • सहकारी ऋण समितियां, 
  • किसान सहकारी समितियां, 
  • बहुउद्देशीय सहकारी समितियां

 

उपभोक्ता सहकारी समितियां:-  जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है, यह उपभोक्ताओं की रक्षा करती है, उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता व उचित मूल्य पर वस्तुएं उपलब्ध कराती है, 

यह समितियां उत्पादक या थोक विक्रेता से वस्तुओं को सीधे बड़ी मात्रा में खरीदती हैं और अपने सदस्यों को उपलब्ध कराती है इन समितियों का उद्देश्य होता है बिचौलियों को समाप्त करना जैसे- सुपरमार्केट।

सहकारी गृह निर्माण समितियां :- इन समितियों की स्थापना मध्यम आय वर्ग के लोगों को उचित मूल्य पर जमीन या मकान उपलब्ध कराने के मकसद से की जाती है जैसे : समिति किसी को जमीन या मकान देती है और फिर वह उस पैसे को किस्त वगैरह में देता है।

सहकारी ऋण समितियां: -  यह अपने सदस्यों को आवश्यकता पड़ने पर न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराती हैं|  

किसान सहकारी समितियां :- यह अपने किसान सदस्यों को फसल उगाने के लिए उचित मूल्य व अच्छी गुणवत्ता वाले बीज, खाद एवं मशीनरी आदि उपलब्ध कराती हैं|  

बहुउद्देशीय सहकारी समितियां :- इसका उद्देश्य एक से अधिक उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है यह समितियां ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक उपयोगी होती हैं।

सहकारी समितियों की विशेषताएं :-

यह एक स्वैच्छिक संगठन है - सदस्य अपनी इच्छा के अनुसार समिति के सदस्य रह सकते हैं व अपनी इच्छा के अनुसार समिति की सदस्यता छोड़ सकता है|  

सहकारी समिति की सदस्यता सभी व्यक्तियों के लिए समान हितों व उद्देश्यों के लिए खुली है|  

समिति के सदस्यों का ध्यान रखने के लिए समिति के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया जाता है, 

रजिस्ट्रेशन के दौरान समिति द्वारा किए जा रहे काम व सदस्यों के बारे में जानकारी देनी होती है तथा समिति को Register भी maintain करना होता है जिसे सरकारी Auditor द्वारा Audit किया जाता है|

समिति में लोकतांत्रिक प्रबंधन को रखा जाता है |

सहकारी समितियों का मकसद लाभ कमाना नहीं होता बल्कि अपने सदस्यों को सेवा देनी होती है|

यह समितियां आपसी सहयोग के सिद्धांत पर काम करती हैं।

सहकारी समिति के संवैधानिक प्रावधान - सहकारी समितियां को संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची में शामिल किया गया है।

2011 का 97 वां संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक स्थिति और संरक्षण प्रदान करता है, 

इस अधिनियम के द्वारा संविधान में तीन प्रमुख बदलाव हुए- 

  1. सहकारी समितियां बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया, 
  2. संविधान के नीति निदेशक तत्व को में 43 b जोड़ा गया, 
  3. संविधान में 9(B) जोड़ा गया (243ZH - 243ZT) |

लेकिन जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने भाग 9(B) के एक हिस्से को रद्द कर दिया था | 

कोर्ट के फैसले के मुताबिक भाग 9(B) उन्हीं मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज पर लागू होगा जो 1 से अधिक राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में काम करती है|

कोर्ट ने माना है कि एक ही राज्य में काम करने वाली सहकारी समितियों पर भाग 9(B) के नियम लागू नहीं होंगे, क्योंकि राज्य सूची में शामिल किया गया है इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखा है।

सहकारी समिति का रजिस्ट्रेशन कैसे करे:-

सहकारी समिति के ऊपर कॉपरेटिव सोसायटी एक्ट, 1912 लागू होता है, हमें इसी एक्ट के अनुसार ही रजिस्ट्रेशन कराना होता है, 

लेकिन पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु मैं यह कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट, 1912 लागू नहीं होता है क्योंकि इन राज्यों में खुद का अपना सहकारी समिति एक्ट है।

सहकारी समिति का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए सबसे पहले हमें रजिस्ट्रार के पास जाना होगा और फॉर्म में जो जानकारी मांगी गई है,

उसे भरकर फॉर्म जमा करना होता है और दी गई जानकारी से रजिस्ट्रार संतुष्ट हो जाता है तो हमें सहकारी समिति के रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट मिल जाता है।

हर राज्य में एक रजिस्ट्रार होता है जिसके पास सहकारी समिति की रजिस्ट्री होती है।

सहकारी समिति के रजिस्ट्रेशन में क्या डॉक्यूमेंट लगते हैं :-

सहकारी समिति के लिए निम्न चीजों की जरूरत होती है:,

  • सहकारी समिति का नाम, 
  • समिति का उद्देश्य क्या होगा, 
  • शेयर कैपिटल की details देनी होगी, 
  • समिति के सदस्यों के अधिकार, कर्तव्य, जिम्मेदारी बतानी होगी होती है, 
  • समिति के सदस्य बनने का method क्या होगा यह बताना होगा,
  • जो व्यक्ति इसके सदस्य बनने के लिए तैयार हुए हैं उनमें से कम से कम 10 सदस्य के नाम और address लिखने होंगे, 
  • जो समिति हम बनाने जा रहे हो उसका रूल क्या है। 

इसके बाद यदि रजिस्ट्रार इस जानकारी से संतुष्ट होता है तो फिर सहकारी समिति का सर्टिफिकेट मिल जाता है।


सहकारी समिति कैसे बनाये, सहकारी समितियां क्या होती है, इसके प्रकार व लाभ : संवैधानिक प्रावधान(How to register a cooperative society)

सहकारी समितियों का महत्व :-

वित्तीय समावेशन :- देश के उन जगहों पर वित्त पहुंचाना जहां सरकार भी कामयाब नहीं हो सकी|

सामाजिक असंतुलन को कम करना, क्योंकि यह विभिन्न वर्गों के बीच भेद करने में सक्षम है| संविधान के भाग 9(B) के तहत sc/st व महिलाओं के लिए समिति की सदस्यता में आरक्षण की व्यवस्था की गई है| 

लालफीताशाही सोच से निजात दिलाने में बड़ी भूमिका निवाई है |

इन समितियों द्वारा गांव के स्तर पर सड़कें, शीत भंडार गृह,  बिजली, परिवहन जैसी सुविधाओं का विकास हुआ है|  

यह किसानों की आय दोगुनी करने में मददगार साबित हो सकती है तथा इन समितियों के जरिए किसानों को Inputs समय पर उपलब्ध हो सकेंगे |

सहकारी समितियों के जरिए बिचौलियों के प्रभाव कम करने में मदद मिली है।

सहकारी समितियों के लाभ :- सहकारी समिति की स्थापना कंपनी की तुलना में बहुत आसानी से हो सकती है, कोई भी 10 व्यक्ति 18 वर्ष से ज्यादा मिलकर समिति का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, 

इसमें सीमित जिम्मेदारी होती है जैसे यदि यह समितियां कभी दिवालिया भी हो जाती है तो इसके सदस्यों की जिम्मेदारी उनके द्वारा क्रय किए गए अंश तक ही होती है।

सहकारी समिति का अस्तित्व स्थाई होता है जैसे समिति के सदस्य की मृत्यु, पागलपन, दिवालियापन से भी समिति के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

समिति द्वारा वस्तुओं को खरीदा - बेचा जाता है वह नकद में होता है, इसलिए इसमें हानि होने की संभावना नहीं रहती |

कर लाभ - आयकर अधिनियम में भी सहकारी समितियों को कर से छूट प्रदान की जाती है।

समिति कितने लोगों से मिलकर बनती है :- सहकारी समिति में जो चुनाव होता है उसमें ज्यादातर नो निदेशक(Directors) होते हैं व इन 9 सदस्यों में से पांच सदस्य जिसके पक्ष में होते हैं उसे समिति का अध्यक्ष बना दिया जाता है, 

निवेशक गांव की जनसंख्या के अनुपात में चुने जाते हैं, इन्हें ही  सदस्य प्रतिनिधि भी बोलते हैं यदि कोई निदेशक बनना चाहता है तो उसे सहकारी समिति में संपर्क करना होता है फिर वहां से परिसीमन लेना होता है।

चुनौतियां :- इसकी सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि यह लोगों के बीच से निकला हुआ Movement नहीं है बल्कि सरकार द्वारा लाई गई नीतियों का नतीजा है इसलिए यहां पर यूरोप की सहकारिता की तरह सहजता नहीं दिखती है।

इसकी भूमिका सहकारिता संस्थानों के मार्गदर्शक के तौर पर होनी थी लेकिन हाल के दिनों में तानाशाही के रूप में देखी जाती है।

शहरी सहकारी बैंकों के विनियमन के लिए आरबीआई और ग्रामीण बैंकों के लिए नाबार्ड एक सही विकल्प नहीं है, क्योंकि जानकारों के मुताबिक नाबार्ड अपने मूल मकसद पर काम ही नहीं कर पाता।

भारत में कोऑपरेटिव बैंकों में एमपी की समस्या भी लगातार बढ़ी है।

आगे की राह:- सबसे पहले सदस्यों का प्रतिनिधित्व प्रबंधन के स्तर पर सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है,

साथ ही लोगों की भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

ऐसे नियम जो गैरजरूरी प्रतिबंधों को बढ़ावा देते हैं उन्हें खत्म किए जाने की जरूरत है।

सहकारी समितियों में ऐसे नेतृत्व विकसित करने की जरूरत है जो सहकारी नीतियों में सहकारिता के हितों को सुनिश्चित कर सकें।

सहकारिता मंत्रालय की स्थापना एक इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम होगा।


सहकारी समिति के  बारे में जानकारी(FAQ) :-

Q. भारत में सबसे बड़ी सहकारी समिति कौन सी है?

A. भारत में सबसे बड़ी सहकारी समिति IFFCO -Indian Farmers Fertiliser Cooperative है | 

Q. सहकारी समिति की न्यूनतम सदस्यता कितनी होती है?

A. सहकारी समिति में जो चुनाव होता है उसमें ज्यादातर नो निदेशक(Directors) होते हैं व इन 9 सदस्यों में से पांच सदस्य जिसके पक्ष में होते हैं उसे समिति का अध्यक्ष बना दिया जाता है, 

 Q. सहकारी का इंग्लिश क्या है?

A. सहकारी का इंग्लिश Cooperative  है | 

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