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साम्यवाद(Communism) क्या है : साम्यवाद की सफलता व असफलता

कम्युनिज्म "एक ऐसा समाज जहां हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करता है लेकिन मिलता उसको उसकी जरूरत के अनुसार" यानी किसी व्यक्ति में ज्यादा योग्यता है और किसी में कम योग्यता है तो सबको समाज में अपनी क्षमता के अनुसार योगदान करना चाहिए व समाज में हर व्यक्ति को अपनी जरूरत के अनुसार मिले।

यह बिना राज्य के समाज है, यह Classless समाज है जहां पर कोई ऊंच-नीच में फर्क नहीं है, यह एक ऐसा समाज है जहां Means of Production है यानी जमीन, उद्योग, फैक्ट्री, खेत यह सब मजदूरों / जनता के द्वारा चलाए जाते हैं इनके मालिक भी यही होते हैं| 

साम्यवाद का जन्म कब हुआ :-  हम जब साम्यवाद शब्द को सुनते हैं तो सबसे पहले हमारे दिमाग में कार्ल मार्क्स, रूस, चीन आता है जबकि हम इसकी आधारभूत जानकारी पर जाएंगे तो हम हम पाएंगे कि इसका Example हजारों साल पहले भी मिलते हैं, 

जैसे - पहले लोग जंगलों में रहते थे, शिकार करते थे तथा तब पैसा राज्य का कांसेप्ट नहीं होता था कोई व्यक्तिगत Ownership नहीं था, 

लेकिन साम्यवाद की वर्तमान परिभाषा पर आएं तो जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स को साम्यवाद का पिता कहा जाता है इन्होंने वर्ष  1848 में कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो लिखा था।

रूस में साम्यवाद की शुरुआत कब हुई :- जब कार्ल मार्क्स रह रहे थे उस वक्त औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी और फैक्ट्री जो चलती थी उनमें जो वर्कर्स काम करते थे वह बड़ी बुरी हालत में रहते थे और इन फैक्ट्री के मालिक अक्सर अमीर लोग हुआ करते थे, 

जो अपने मजदूरों का शोषण करते थे यह अपने वर्कर से ज्यादा से ज्यादा घंटे काम कर आते थे और कम पैसा देते थे तथा ज्यादा मुनाफा इन फैक्ट्री के मालिक ले जाते थे।

कार्ल मार्क्स के हिसाब से यहां 2 वर्ग होते थे एक वे वर्ग जो फैक्ट्री के मालिक होते थे दूसरे वर्ग जो  फैक्ट्री में काम करते थे, इनका शोषण होता था |

इसी को ध्यान में रखते हुए कार्ल मार्क्स ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां अमीर गरीब का फर्क नहीं होगा जिसे (UTOPIA)यूटोपिया कहा जाता है इसी यूटोपिया को इन्होंने Communism नाम दिया।

साम्यवाद का मुख्य उद्देश्य क्या है :- इन्होंने अपने कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में पूरी details के साथ बताया कि यह कंपनी किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है जैसे - ये वर्कर्स मिलकर राजतंत्र को किस तरह खत्म कर सकेंगे और एक ऐसा समाज बनेगा जहां फैक्ट्री, जमीन, उद्योग इनके मालिक/मजदूर आम जनता होगी और कोई कास्ट, क्लास, भेदभाव नहीं होगा, 

फ्री शिक्षा, फ्री स्वास्थ्य दिया जाएगा, कोई प्राइवेट Ownership  का Concept ही नहीं होगा हर कोई सारी जमीन, फैक्ट्री का मालिक होगा यानी Distribution of Wealth होगी सब में समानता होगी और हर कोई सबका मालिक रहेगा।

साम्यवाद का पहला प्रयोग कहां हुआ :-  यह सब Theoretical Implementation ही था क्योंकि कार्ल मार्क्स एक दार्शनिक थे, लेकिन Practical Implementation सही मायनों में रूस की क्रांति 1917 के बाद में देखा गया व इस क्रांति में वर्कर्स अपने जार को हटा देते हैं और इनके लीडर लेनिन ने पहली बार कम्युनिस्ट Idea को बड़े स्तर पर लागू किया और लेनिन ने कुछ क्रांतिकारी कदम भी उठाए, 


साम्यवाद(Communism) क्या है : साम्यवाद की सफलता व असफलता : साम्यवाद का इतिहास, कार्ल मार्क्स कौन है

जैसे - काम करने के घंटों को कम किया, हफ्ते में 5 दिन काम करना, पहले फैक्ट्री में 12, 13, 14 घंटे काम करने को कहा जाता था, 

महिलाओं को काम करने के लिए Introduced किया गया जमीन को अमीर मालिक से छीन कर गरीब जनता में बांटा गया जो फैक्ट्री थी उन का राष्ट्रीयकरण किया गया।

लेनिन विचारधारा वाली साम्यवाद : लेनिन सोवियत संघ में दूसरी पार्टी को बैन कर एक पार्टी राज्य बना दिया, लेनिन को आलोचना पसंद नहीं थी, पुलिस जनता की जासूसी करती थी यदि कोई साम्यवाद की आलोचना करता था, उसको उठाकर जेल में डाल दिया जाता था, 

लेकिन हर साम्यवादी व्यक्ति लेनिन वाली साम्यवाद से सहमत नहीं था जैसे - फेमस साम्यवादी Rosa Luxembourg लेनीन साम्यवाद के सख्त खिलाफ थे, उदारवाद साम्यवाद का समर्थन करते थे यानी ऐसा Marxism जहां पर लोगों को अपनी आजादी मिले।

लेनिन की साम्यवादी विचारधारा कार्ल मार्क्स से और भी अलग होती गए, क्योंकि लेनिन ने फैक्ट्री के आउटपुट को बढ़ाने के लिए मजदूरों से और भी काम लिया और मजदूर फिर उन्हीं बेकार Condition में चले गए जिसके बारे में कार्ल मार्क्स ने लिखा था लेकिन यहां फैक्ट्री के मालिक अमीर लोग ना होकर खुद सरकार थी, 

जिसस मजदूरों की हालत इतनी खराब हो गई कि लाखों लोग मारे गए भुखमरी जैसी समस्याओं से।
कुछ लोग स्टालिन की विचारधारा को State Capitalism कहने लगे तथा इस विचारधारा का साम्यवाद से कोई ज्यादा संबंध नहीं है | 

चीन में साम्यवाद की शुरुआत कब हुई : - इसके बाद आते हैं माओ, इनकी कम्युनिस्ट विचारधारा और भी ज्यादा हिंसक थी इनकी विचारधारा को Maoism कहा जाता है Maoists शब्द की उत्पत्ति यहीं से होती है जो Naxal Maoists होते हैं वे इन्हीं की विचारधारा को फॉलो करते हैं जो ज्यादा हिंसक होते हैं।

सोवियत संघ से प्रभावित होकर दुनियाभर के बहुत से देशों ने कम्युनिस्ट विचारधारा अपनाने की कोशिश की और इन देशों ने अपने हिसाब से साम्यवद विचारधारा अपनाई, लेकिन इन देशों में एक चीज Common देखने को मिली, वह थी इनमें Dictatorship थी। 

दुनिया भर में साम्यवाद की वजह से बहुत सारी मौतें हुई एक तरफ से स्टालिन और माओ जो लोगों को मार डालते थे,

 इस वजह से कि उनको लगता था कि ये Communism के खिलाफ है व दूसरी तरफ ये जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी, स्पेन में Fransco ये लोगों को इस वजह से मार डालते थे कि कहीं यह Communist तो नहीं है।

साम्यवाद(Communism) की सफलता : 

वर्ग हीन समाज :- एक ऐसा समाज जहां कोई वर्ग में बंटा ना हो यानी यहां कोई भेदभाव नहीं होता कि ऊंची जाति, नीची जाति में, गरीब और अमीर के बीच में कोई भेदभाव नहीं है, 

जहां आज हर कोई मानता है कि Racism, Casteism, Sexism एक बुरी चीज है, लोगों के बीच भेदभाव करना एक बुरी चीज है, हर व्यक्ति को समान अवसर देना एक अच्छी चीज है| 

इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों के बीच अंतर ना हो जैसे - सभी के पास एक जैसा घर, एक जैसी कार, एक जैसा जीवन जीने का तरीका, सबको एक जैसे धर्म को अपनाया जाना आदि ना होना | 

हम सब भाई-भतीजावाद, वंशवाद, राजनीति के खिलाफ आवाज उठाते हैं लेकिन यह विचार कार्ल मार्क्स द्वारा दिया गया जैसे - कई यूरोपीय देशों में Inheritance टैक्स लगाया जाता है, 

यदि आप बहुत अमीर है और आप अपनी संपत्ति/अमीरी अपने बच्चों को देना चाहते हैं तो आपको Inheritance के रूप में टैक्स देना होता है, 

कामगारों के अधिकार(Workers Rights) जिस तरह कार्ल मार्क्स ने वर्कर के अधिकारों की बात कही, उन पर हुए शोषण को बताया वह आज भी हमें कई जगह देखने को मिलती है, 

इसलिए ज्यादा लोकतांत्रिक देशों में मजदूर संघ देखने को मिलते हैं जैसे भारत में हुए किसानों को Protest में कई संगठनों ने भाग लिया।

जिस तरह कार्ल मार्क्स ने कहा था कि ज्यादातर कंपनियों के मालिक मजदूरों का ज्यादा शोषण करते हैं और पैसे कम देते हैं ज्यादा काम करवाते  हैं,

इसी कांसेप्ट से बचने के लिए आज भी ज्यादातर देशों में Minimum Wage का Concept लागू होता है यानी इससे कम Salary किसी को नहीं दी जाएगी।

इसी तरह कम्युनिस्ट विचारधारा से निकले हुए फ्री एजुकेशन, फ्री स्वास्थ्य जैसे Concept आज बहुत सारे देशों में अपनाए जाते हैं|

साम्यवाद(Communism)  की असफलता : 

  • इसकी परिभाषा में बताया गया है कि "हर व्यक्ति अपनी क्षमता के साथ काम करेगा, लेकिन उसे चीजें उसकी जरूरत के हिसाब से मिलेंगी" यह सोचने वाली बात है कि कोई आदमी हेल्थी है और वह अपनी क्षमता के अनुसार बहुत ज्यादा काम करता है, 
  • लेकिन उसे मिलता वही है जो सबको मिलता है तो फिर ऐसे में वह आदमी ज्यादा काम क्यों करेगा जब उसे कुछ फायदा ही नहीं मिल पा रहा तो।
  • यदि समाज में सब यही करने लगे तो समाज में कोई Competition ही नहीं बचेगा और कोई विकास, नवाचार ही नहीं होगा।
  • यदि हम किसी समाज को वर्ग हीन बनाने की कोशिश करेंगे तो यहां हर कोई हर चीज का मालिक रहेगा तो ऐसी स्थिति में पावर वैक्यूम Create हो जाएगा यानी Top पर कोई नहीं होगा, जिससे कोई Lead करने वाला नहीं होगा, 
  • जिसका नतीजा यह होगा कि इसमें एक Dictatorship के लिए जगह बन जाती है फिर इसी Dictatorship की वजह से 'वन पार्टी रूल ' स्थापित हो जाता है, 
  • लोगों की आजादी छीन ली जाती है, लोगों के अधिकार छीन लिए जाते हैं और यदि कोई पार्टी के खिलाफ बोलता है तो उसे जान से मार दिया जाता है जब एक आदमी या एक पार्टी इन सब चीजों को कंट्रोल करेगा तो Corruption जैसी समस्याएं पनपने लगेगी।

साम्यवाद का इतिहास :- मार्क्सवाद का उदय 19वीं शताब्दी के बीच में हुआ, जब क्लासिकल Liberalism अपने पूरे चरम पर था और पूंजीवाद पूरी तरह स्थापित हो चुका था, 

औद्योगिक उन्नति के कारण समाज में जो नई संपत्ति पैदा हुई थी, वह कुछ पूंजीपतियों के पास थी और कामगार वर्ग, वर्किंग क्लास का शोषण हो रहा था,

अतः उदारवाद में मानव कल्याण और मानव स्वतंत्रता की जो आशा बनाई थी उसे पूंजीवाद में धूल में मिला दिया था, 

कार्ल मार्क्स ने पूरे मानव इतिहास का विश्लेषण करके इस समस्या को समझने और समझाने का प्रयत्न किया और इसी से मार्क्सवाद का आरंभ हुआ।

मार्क्सवाद का नाम इसके मुख्य प्रवर्तक कार्ल मार्क्स के नाम के साथ जुड़ा है, लेकिन मार्क्स के सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स, वी.आई. लेनिन, माओ- त्से -तुंग तथा बहुत सारे विचारको ने भी इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

मार्क्सवाद क्या है :- मार्क्सवाद के अंतर्गत मानव समाज की समस्याओं को इतिहास के माध्यम से समझने की कोशिश की जाती है और इतिहास को परस्पर विरोधी शक्तियों और वर्गों के संघर्ष की प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है|  

यह संघर्ष उत्पादन प्रणाली की कमियों के कारण पैदा होता है जिसमें कुछ लोग उत्पादन के साधनों पर अपना मालिकाना हक जमा लेते हैं और बाकी अपनी शर्तों पर श्रम करने के लिए मजबूर होते हैं।

मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार राज्य ने तो प्राकृतिक संस्था है ना ही नैतिक संस्था, जैसा कि राज्य का आदर्शवादी सिद्धांत मानता है यह एक कृत्रिम उपकरण है, 

इसके अनुसार राज्य उस समय बनता जब निजी संपत्ति के आधार पर समाज दो परस्पर विरोधी वर्गो धनवान और निर्धन वर्गों में बंट जाता है।

इन दोनों वर्गों के हितों में सामंजस्य की कोई संभावना नहीं है, पूंजीवाद के अंतर्गत इनका संघर्ष चरम सीमा पर पहुंच गया है,

अतः मार्क्स ने विश्व भर के कामगार वर्ग को संगठित होने और पूंजीपतियों के खिलाफ क्रांति करने को कहा, 

क्रांति के बाद उत्पादन के प्रमुख साधनों पर स्थापित करके समाजवाद की नीव रखी जाएगी।

इस अवस्था में पूंजीवाद की अंतिम अवशेषों को हटाना होगा, सारे स्वस्थ व्यक्तियों के लिए श्रम को अनिवार्य बना कर टेक्नोलॉजी तथा उत्पादन की शक्तियों का पूर्ण विकास करना होगा, 

ताकि उन्हें सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में लगाया जा सके, समाजवाद की विकसित अवस्था में सामाजिक भेदभाव मिट जाएगा और वर्ग हीन समाज में मनुष्य सच्चे अर्थ में स्वतंत्र होकर अपने इतिहास का निर्माता बन सकेगा।




साम्यवाद(Communism) क्या है : साम्यवाद की सफलता व असफलता : साम्यवाद का इतिहास, कार्ल मार्क्स कौन है


कार्ल मार्क्स कौन है :- कॉल मार्क्स जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक थे जिन्हें आधुनिक युग के सबसे प्रभावशाली विचारको में गिना जाता है, मार्क्स का जन्म पश्चिमी प्रशा मैं 1818 मैं यहूदी माता पिता से हुआ, 

उनको बचपन से ही उनके माता-पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था उनकी शिक्षा बॉन और बर्लिन विश्वविद्यालयों में हुई जहां वह जी डब्ल्यू एफ हेगेल के चिंतन से बहुत प्रभावित हुए।

चिरसम्मत मार्क्सवाद (Classical Marxism) :- मार्क्स के वैज्ञानिक चिंतन की देन है इसकी मुख्य मान्यताओं का विवरण इस तरह दे सकते हैं जैसे-

  • द्वंदात्मक भौतिकवाद 
  • ऐतिहासिक भौतिकवाद, 
  • वर्ग संघर्ष का सिद्धांत, 
  • अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत, 


वर्ग संघर्ष के सन्दर्भ में वर्ग चेतना की अवधारणा क्रांति के सिद्धांत और विचारधारा के स्वरूप की चर्चा भी उपयुक्त होगी।

द्वंदात्मक भौतिकवाद :- द्वंदात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत मार्क्सवाद का दार्शनिक आधार प्रस्तुत करता है, यह सिद्धांत भौतिकवाद की मान्यताओं को द्वंदात्मक पद्धति  के साथ मिलाकर सोशल चेंज की व्याख्या देने की कोशिश करता है।

द्वंदात्मकता (Dialectic) का मूल अर्थ था 'बातचीत वार्तालाप' या वाद-विवाद जिस का सर्वोत्तम प्रयोग सुकरात के संवादों में देखने को मिलता है।

ऐतिहासिक भौतिकवाद :- मार्क्सवाद के अंतर्गत ऐतिहासिक भौतिकवाद को द्वंदात्मक भौतिकवाद के पूरक सिद्धांत के रूप में मान्यता दी जाती है, 

इसे इतिहास की आर्थिक व्याख्या या इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या भी कहा जाता है जहां द्वंदात्मक भौतिकवाद मार्क्सवाद का दार्शनिक आधार प्रस्तुत करता है, 

वही ऐतिहासिक भौतिकवाद उसका अनुभवमूलक आधार प्रस्तुत करता है क्योंकि यह जिस तरह से द्वंदात्मक भौतिकवाद दार्शनिक चिंतन का विषय है उसी तरह ऐतिहासिक भौतिकवाद अनुभव मूल विज्ञान की तरह सामाजिक और ऐतिहासिक इंक्वायरी का विषय है।

यानी ऐतिहासिक भौतिकवाद इस सिद्धांत के साथ शुरू होता है कि किसी राष्ट्र या  समाज के विकास की प्रक्रिया में वस्तु के उत्पादन विनिमय और वितरण प्रणाली की भूमिका सबसे प्रधान होती है।

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत :- मार्क्सवाद के अंतर्गत वर्ग संघर्ष का सिद्धांत ऐतिहासिक भौतिकवाद का पूरक सिद्धांत है,

मार्क्स ने ऐतिहासिक परिवर्तन की प्रक्रिया में वर्ग संघर्ष की भूमिका पर विशेष बल दिया, 

मार्क्स और एंगेल्स का विश्वास था कि धनवान और निर्धन वर्गों के बीच का यह संघर्ष समाज के इतिहास में तभी से मौलिक महत्व की वस्तु रहा है, 

जब से आदिम जनजाति समुदाय लुफ्त हुआ है, क्योंकि उस समुदाय में उत्पादन के साधन सब की साझा संपत्ति होते थे| 

इतिहास इस बात का गवाह है कि जो उत्पादन प्रणाली में जब जब परिवर्तन हुए तब तब सामाजिक वर्गों के परस्पर संबंधों में भी परिवर्तन आए , समाज का अब तक का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास मात्र है, 

जैसे स्वतंत्रजन और दास, कुलीन और सामान्य, जमीदार और किसान, ठेकेदार और मिस्त्री।

वर्ग चेतना की अवधारणा :- मार्क्सवाद के अंतर्गत वर्ग चेतना की संकल्पना वर्ग संघर्ष के सिद्धांत के साथ निकट से जुड़ी है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि समाज में इन दोनों वर्गों के अलावा कभी कोई अन्य वर्ग विद्वान नहीं होता, बल्कि स्वयं मार्क्स और एंगेल्स के अनुसार पूंजीवादी युग में इन दोनों के अलावा एक मध्यवर्ग भी होता है लेकिन वह समाज की संरचना का स्थाई हिस्सा नहीं है।

क्रांति का सिद्धांत :- 

क्रांति का सिद्धांत मार्क्स और एंगेल्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद की संकल्पना के साथ निकट से जुड़ा है, 

सिद्धांत के अनुसार उत्पादन की शक्तियों का विकास तो धीरे-धीरे होता है लेकिन एक अवस्था में पहुंचकर पुराने सामाजिक संबंधों पर उनका दबाव असहाय हो जाता है|  

ऐसी हालत में जो सामाजिक वर्ग पुरानी व्यवस्था की बेड़ियों से जकड़ा हुआ था उसमें वर्ग चेतना का उदय होता है और वह संगठित होकर पुराने प्रभुत्वशाली वर्ग dominant Class को एक ही झटके में सत्ता से हटा देता है और उसके साथ जुड़ी हुई सारी संस्थाओं को उलट-पुलट कर देता है | 

इस तरह वर्ग संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुंचकर क्रांति को जन्म देता है इस प्रक्रिया के अंतर्गत पुराना पराधीन वर्ग सत्ता प्राप्त कर लेता है और वह सारी राजनीतिक प्रणाली कानून सामाजिक संस्थाओं एवं नैतिक आदर्शों का पुनर्निर्माण करता है, इस तरह क्रांति सामाजिक परिवर्तन का अनिवार्य माध्यम है।

इस सिद्धांत के अनुसार सामंतवाद से समाजवाद के युग में प्रवेश के लिए दो क्रांतियां जरूरी थी :

1. बुर्जुआ क्रांति :- जिसमें पूंजीपति वर्ग सामंती अभिजात वर्ग को धाराशायी करके कृषि के समाज से जुड़े जो उनके अधिकार थे उनका अंत कर देता है फिर पूंजीवाद की स्थापना होती है, 

2. सर्वहारा क्रांति(Proletarian Revolution): - जिसमें कामगार वर्ग पूंजीपति वर्ग को धाराशायी करके और पूंजीवाद के जो विशेषाधिकार थे उनको अंत कर देता है और फिर समाजवाद की स्थापना होती है।

समाजवाद और साम्यवाद में अंतर : -

साम्यवाद में तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करेगा और अपनी जरूरत के अनुसार प्राप्त करेगा, लेकिन समाजवाद के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार काम करेगा और अपने काम के अनुसार प्राप्त करेगा।


निष्कर्ष: मार्क्स के अनुसार विचारधारा 'मिथ्या (false) चेतना' की अभिव्यक्ति है यानी सामाजिक उत्पादन की प्रक्रिया में मनुष्य ऐसे संबंधों में बंध जाते हैं जो उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर नहीं होते,
 
यह संबंध समाज की आर्थिक संरचना या आधार का निर्माण करते हैं इन आधारों पर समाज की कानूनी और राजनीतिक  अधिरचनाएं खड़ी हो जाती हैं।

यानी मनुष्य की चेतना उनके अस्तित्व को निर्धारित नहीं करती बल्कि उनका सामाजिक स्थिति उनकी चेतना को निर्धारित करता है।

नव मार्क्सवाद: :- इस सिद्धांत में मार्क्सवाद की बुनियादी मान्यताओं के आधार पर समकालीन विश्व की जटिल परिस्थितियों की समीक्षा की जाती है,

इसके अंतर्गत समकालीन समाज में प्रभुत्व और पराधीनता के तरीकों का विश्लेषण किया जाता है और मानव मुक्ति के उपायों पर विचार किया जाता है।

साम्यवाद के बारे में जानकारी(FAQs) : 

Q. साम्यवाद का पिता कौन है ?
A. साम्यवाद के पिता कार्ल मार्क्स को माना जाता हैं | 

Q. साम्यवाद को अंग्रेजी में क्या कहते है ?
A. साम्यवाद को अंग्रेजी में communism कहा जाता हैं | 




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