सामान्यता भारतीय कानून में दो तरह के क्यों जाते हैं -
1. सिविल मामले(Civil Case)
2. दाण्डिक मामले(Criminal Case) ।
सिविल केस को हिंदी में व्यवहार विधि व उर्दू में दीवानी मामले कहते हैं, जहां- अधिकारों की बात व उसकी मांग हो, क्षतिपूर्ति आदि मामले सिविल मामले होते हैं।
क्रिमिनल केस को हिंदी में दाण्डिक मामला व उर्दू में फौजदार मामला कहते हैं जहां पर किसी अपराध के लिए सजा की मांग की जाए तो यह क्रिमिनल मामले होते हैं।
और साथ ही किराएदार से मकान का किराया भी वसूला जाए तो यह एक सिविल मामला हुआ और उसके बाद यदि आपने किराएदार की सजा की भी मांग की तो यहां यह मामला सिविल और दाण्डिक दोनों मामला हो जाएगा।
जैसे आपने किसी को अपना मकान किराए पर दिया था और उसने उस पर कब्जा कर लिया तो ऐसे में आप कोर्ट जा सकते हैं और मांग कर सकते हैं कि आपको, आपका मकान वापस चाहिए
आसान भाषा में अंतर:- जो सिविल मामलों की सुनवाई करते हैं उन्हें जज कहते हैं और जो क्रिमिनल मामलों की सुनवाई करते हैं व सजा देने का काम करते हैं, उन्हें मजिस्ट्रेट कहते हैं|
जज और मजिस्ट्रेट दोनों ही निचली अदालत में होते हैं और जैसे ही दोनों उच्च अदालत में जाते हैं तो दोनों ही जज कहलाते हैं यानी हाईकोर्ट में दोनों ही जज हो जाते हैं

जज कौन होता है :-
जज एक न्यायिक अधिकारी होता है जो न्याय प्रदान करता है और न्यायिक निर्णय देता है।
वह न्यायिक शाखा के माध्यम से कानून के अनुसार मामले की सुनवाई करता है और उन पर न्यायिक निर्णय प्रस्तुत करता है।
जब जज निचली अदालत में होता है तो वह सिविल मामलों की सुनवाई करता है जिसे जिला स्तर पर डिस्ट्रिक्ट जज कहते हैं।
जज अपील, मीटिंग्स और सुनवाई में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और मामलों के संबंध में न्यायिक विचारधारा रखते हैं।
जज न्याय के निर्णय को मजबूती से लेने का काम करते हैं ताकि सामान्य जनता के अदालती प्रक्रिया के माध्यम से न्याय मिल सके।
जज उच्चतम न्यायालय, न्यायिक अकादमी और अन्य न्यायिक संस्थानो में प्रमोशन प्राप्त कर सकते हैं।
मजिस्ट्रेट कौन होता है :-
जब मजिस्ट्रेट निचली अदालत में काम करता है तो वह क्रिमिनल मामलों की सुनवाई करते हैं और सजा देने का काम भी करते हैं,
जिन्हें जिला स्तर पर सेशन जज कहा जाता है लेकिन बाद में यह उच्च अदालत में जाकर जज कहलाते हैं।
वैसे जब तक मजिस्ट्रेट निचली अदालत में कार्य करते हैं तो मजिस्ट्रेट कहलाते हैं जोकि उच्चतम न्यायालय के न्यायिक अधिकारियों से अलग होते हैं।
यानी मजिस्ट्रेट स्थानीय न्यायिक अधिकारी होते हैं और यह उच्चतम न्यायालय और हाईकोर्ट के न्यायिक अधिकारियों से अलग होते हैं।
मजिस्ट्रेट स्थानीय स्तर पर न्यायिक अधिकारियों की प्रशासनिक न्यायिक और न्यायिक शक्ति रखते हैं।
मजिस्ट्रेट का प्रमुख कार्य होता है अपराधियों की जांच करना और उनके खिलाफ याचिकाएं दायर करना।
यह अपराधियों के खिलाफ न्यायिक निर्णय देते हैं और साथ ही सजा देने का अधिकार भी रखते हैं।
इसके अलावा मजिस्ट्रेट को कानून और अदालतों की प्रशासनिक कार्यवाही करनी होती है वे न्यायिक संस्थानों, कोर्ट और थानों में काम करते हैं और स्थानीय लोगों के अदालती मामलों का निर्णय देते हैं।
जज के कार्य :-
जज हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कार्य करते हैं इनका प्रमुख कारण सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में मामलों की सुनवाई और न्यायिक निर्णय देना होता है। वैसे तो जज निचली अदालतों में भी काम करते हैं।
जजों का प्रमुख कार्य न्यायिक निर्णय देना होता है, वे मामलों के संबंध में न्यायिक विचारधारा प्रस्तुत करते हैं और न्यायिक निर्णय को मजबूती से लेते हैं और न्याय प्रदान करते हैं।
न्यायिक विचारधारा जजों को मामले की सुनवाई के वक्त न्यायिक विचारधारा प्रस्तुत करनी होती है,
कानूनी तरीकों, प्रेसिडेंट्स और पूर्व न्यायिक निर्णयों का उपयोग करके अदालत में निर्णय देते हैं।
मजिस्ट्रेट के कार्य :-
मजिस्ट्रेट का प्रमुख कार्य अपराधियों की जांच करना होता है और उन अपराधियों के खिलाफ जो जांच होती है उनके खिलाफ याचिकाएं चलाते हैं।
न्यायिक निर्णय मजिस्ट्रेट को अपराधियों के खिलाफ न्यायिक निर्णय देने का अधिकार होता है| वे सजा या मामलों का निर्णय देते हैं और कई मामलों में सजा का प्रस्तुत करते हैं।
प्रशासनिक कार्यवाही मजिस्ट्रेट को कानून और अदालत अदालत की प्रशासनिक कार्यवाही करनी होती है न्यायिक संस्थानो, कोर्ट, थानों में काम करते हैं और स्थानीय लोगों के अदालती मामलों का निर्णय देते हैं।
जज के अधिकार :-
जज का प्रमुख अधिकार होता है न्यायिक निर्णय देना, वह मामलों के संबंध में कानूनी विधियों, सबूतों, तर्कों और पूर्व न्यायिक निर्णयों का उपयोग करते हुए न्यायिक निर्णय देता है।
इसके द्वारा वह मुकदमे में सजा, दंड, मुआवजा, जमानत, अपील आदि का निर्णय देता है।
जज मामलों जाँच करने का अधिकार भी रखता है वह वकीलों, सबूतों की मौजूदगी के साथ मुकदमे की सुनवाई करता है।
जज सबूतों को जांच करने का अधिकार रखता है, वह सबूतों की प्रमाणिकता, विश्वसनीयता और मूल्यांकन करके मुकदमे का निर्धारण करता है।
जज मुकदमे के वक्त न्यायिक बातचीत करने व संचालन करने का अधिकार रखता है, वह मामले के पक्ष और वकील के बीच वाद विवाद को भी सुनता है और प्रश्न पूछता है, तर्क वितर्क करता है।
जज का न्यायिक प्रशासन के क्षेत्र में भी अधिकार रखता है वह न्यायिक संस्थानों के संचालन, अदालती कार्य प्रणाली, उप न्यायिक कर्मचारियों का प्रशिक्षण और अनुसरण करता है।
मजिस्ट्रेट के अधिकार :-
मजिस्ट्रेट का प्रमुख कार्य अपराधियों की जांच करना, उन अपराधियों के खिलाफ आरोपों की जांच करता है, गवाहों की संख्या व सबूतों का मूल्यांकन करता है और अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही निर्धारित करता है।
मजिस्ट्रेट को अपराधियों के खिलाफ न्यायिक निर्णय देने का अधिकार होता है वह सजा के मामले में निर्णय देता है और कई मामलों में सजा का प्रावधान करता है।
मजिस्ट्रेट को कानून और अदालत की प्रशासनिक कार्यवाही भी करनी होती है, वह अपराधियों की गिरफ्तारी, जमानत और अन्य प्रशासनिक कार्यों में निर्णय लेते हैं,
इसके अलावा मजिस्ट्रेट को स्थानीय लोगों के मामलों का निर्णय देने का भी अधिकार होता है।
मजिस्ट्रेट अनेकों सामाजिक कार्यों, सभाओं और आदान-प्रदान कार्यक्रमों का प्रबंधन करते हैं और क्षेत्र में शांति और कानून व्यवस्था का संचालन भी करते हैं, साथ ही मजिस्ट्रेट को उप न्यासी अदालत के संचालन का अधिकार भी होता है।
मजिस्ट्रेट कितने प्रकार के होते हैं :-
मजिस्ट्रेट को भारतीय दंड संहिता, 1973 के तहत सामान्यता दो भागों में बांटा गया है यानी मजिस्ट्रेट दो प्रकार के होते हैं।
1. न्यायिक मजिस्ट्रेट
2. कार्यपालक मजिस्ट्रेट
तथा इनके सहायक मजिस्ट्रेट भी होते हैं।
न्यायिक मजिस्ट्रेट में -
- मुख्य मजिस्ट्रेट,
- अपर मजिस्ट्रेट
- सहायक मजिस्ट्रेट
- प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट
- द्वतीय श्रेणी मजिस्ट्रेट
- मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट,
- महानगर मजिस्ट्रेट आते हैं
- कलेक्टर /डीएम,
- अपर कलेक्टर
- एसडीएम
- तहसीलदार आते हैं
जज कैसे बने :-
हमारे संविधान में भारतीय न्याय प्रणाली को तीन कैटेगरी में बांटा गया है -
- सुप्रीम कोर्ट
- हाईकोर्ट
- लोअर कोर्ट।
जिले में जज बनने के लिए आपके पास स्नातक की डिग्री (कानून) होनी चाहिए । जिला जज बनने के लिए आपके पास स्नातक (कानून) की डिग्री होनी चाहिए और
साथ ही आपको 7 साल का कानून की प्रैक्टिस करने का अनुभव होना चाहिए, जिसके बाद आप परीक्षा में बैठ सकते हैं।
ये न्यायिक परीक्षा, जिला व अधीनस्थ न्यायालय की परीक्षा भारत के प्रत्येक राज्य में राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है, यह परीक्षा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर कोई भी विद्यार्थी कानून की डिग्री लेने के बाद सीधे PCS-J (प्रांतीय सिविल सेवा (न्यायिक)) परीक्षा पास करके मजिस्ट्रेट बन सकता है |
जो लोग परीक्षा देकर मजिस्ट्रेट बनते हैं उन्हें कुछ सालों के लिए द्वितीय श्रेणी, प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के पद पर रखते हैं फिर उन्हें पदोन्नत किया जाता है।
जज की योग्यता :-
न्यायिक सेवा में प्रवेश के लिए उम्मीदवारों को मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से किसी भी डिग्री (कानून की डिग्री) से संबंधित होनी चाहिए ।
जज का वेतन :-
जज का वेतन संघ और राज्य सरकार के न्यायिक सेवा संबंधी नियमों के अनुसार निर्धारित होता है ।
संक्षेप में जज और मजिस्ट्रेट में अंतर -
- मजिस्ट्रेट छोटे शहर को देखता है, जबकि जज का दायरा बहुत बड़ा होता है, जो एक राज्य को देखता है।
- मजिस्ट्रेट चौरी, उल्लंघन जैसे मामलों को देखता है, जबकि जज बड़े व जटिल मामलों को भी देखता है।
- मजिस्ट्रेट उम्र केद या मौत की सजा नहीं सुना सकता, जबकि जज उम्र कैद या मौत की सजा सुना सकता है।
- मजिस्ट्रेट के पास शक्ति कम होती है, जबकि जज के पास शक्ति ज्यादा होती है।
- मजिस्ट्रेट - Executive Magistrate - Metropolitan Magistrate - Judicial Magistrate - Chief Judicial Magistrate जबकि जज - District Court Judge - High Court Judge - Supreme Court judge
- जज पूरी दुनिया में कोर्ट से संबंधित मामलों को देखते हैं जबकि मजिस्ट्रेट अलग अलग देश में अलग अलग कार्य हो सकते हैं।
जज और मजिस्ट्रेट के बारे में जानकारी(FAQs)(People also Ask ) :
Q.सिविल जज का क्या काम होता है ?
A. जो सिविल मामलों की सुनवाई करते हैं उन्हें सिविल जज कहते हैं | जैसे अधिकारों की बात व उसकी मांग हो, क्षतिपूर्ति आदि मामले सिविल मामले होते हैं।
Q. मजिस्ट्रेट को हिंदी में क्या कहते हैं ?
A. मजिस्ट्रेट को हिंदी में दंडाधिकारी कहते हैं |
Q. सेशन जज को हिंदी में क्या कहते है ?
A. सेशन जज को हिंदी में सत्र न्यायाधीश कहते है |
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