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राष्ट्रीय हरित अधिकरण के कार्य एवं शक्तियां

यह एक अधिकरण है अधिकरण का मतलब होता है जो अलग-अलग विषय होते हैं( जैसे पर्यावरण, अखिल भारतीय सेवा आदि) इन विषयों से संबंधित जो विवाद होते हैं 

इनके लिए अलग से एक न्यायिक संस्था बनाई जाती है लेकिन इनके पास पूरी न्यायिक शक्तियां नहीं होती है बल्कि यह अर्ध न्यायिक के रूप में इन विवादों का निपटारा करती है।

दरअसल हमारे यहां जो न्यायालय हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, सेशन कोर्ट आते हैं इनके ऊपर पहले से ही बहुत ज्यादा बोझ है, बहुत ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं और ऐसे विषयों के मामले इनके पास और आ आने लगे तो इनके ऊपर बोझ और बढ़ जाएगा। 

ऐसे में सरकार द्वारा अधिकरण को बनाया जाता है जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण।

NGT(राष्ट्रीय हरित अधिकरण) क्या है :-  इसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत बनाया गया है यह एक सांविधिक निकाय है क्योंकि इसे संसदीय अधिनियम द्वारा बनाया गया।

एनजीटी भारत में जो पर्यावरणी विवाद होते हैं उनको सुलझाने का काम करता है, इसने नेशनल एनवायरमेंट एलेट अथॉरिटी का स्थान लिया है और यह भारतीय संवधिन के अनुच्छेद 21 से प्रेरणा लेता है, क्योंकि अनुच्छेद 21 भारतीय नागरिकों को एक स्वस्थ वातारण का आश्वासन देता है।

भारत एनजीटी या विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण बनाने वाला तीसरा देश बन गया है, इससे पहले केवल दो देश (ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) द्वारा ही ऐसे किसी निकाय की स्थापना की गई है।

NGT का मुख्य उद्देश्य :एनजीटी का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों का तेजी से निपटारा करना है ताकि न्यायालय के बोझ को कम किया जा सके।

एनजीटी का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके चार अन्य क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल पुणे कोलकाता व चेन्नई में है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के अनुसार यह अनिवार्य है कि अधिकरण के पास आने वाले पर्यावरण से संबंधित मुद्दों का निपटारा 6 माह के अंदर हो जाए।


राष्ट्रीय हरित अधिकरण(National Green Tribunal) : कार्य एवं शक्तियां : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(NGT) क्या है  : NGT in Hindi

पृष्ठभूमि :- 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 यह कहता है कि मानव को गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना,

लेकिन भारत में हो यह रहा है कि लगातार प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है तो इसके नकारात्मक प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ रहे हैं ।

यह नकारात्मक प्रभाव संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन कर रहा है इसलिए हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण का आधार अनुच्छेद 21 से निकल कर आया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323(b) में कहा गया है कि संसद श्रम, पर्यावरण आदि विषयों को लेकर अधिकरण बनाएगी।

1976 को 42वां संविधान संशोधन द्वारा राज्य के नीति निदेशक तत्व में अनुच्छेद 48(A) जोड़ा गया जो पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है।

जून 1972 को स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र का मानव पर्यावरण सम्मेलन आयोजित हुआ।
1992 में रियो डी जेनेरियो में संयुक्त राष्ट्र का पृथ्वी सम्मेलन हुआ।

अक्टूबर 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 द्वारा एनजीटी का गठन किया गया।

NGT की स्थापना कब हुई :- 

एनजीटी की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 द्वारा 18 अक्टूबर, 2010 को हुई एनजीटी एक संविधिक व स्वतंत्र निकाय है।

एनजीटी का मुख्य उद्देश्य क्या है :- इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण मामलों का त्वरित निपटारा (6 माह के अंदर निपटरण करना)।

एनजीटी का मुख्यालय कहाँ है :- एनजीटी का मुख्यालय नई दिल्ली में है|  

एनजीटी के क्षेत्रीय कार्यालय कहाँ स्थित है :-  एनजीटी के 4 कार्यालय है -

  1. भोपाल, 
  2. पुणे, 
  3. चेन्नई, 
  4. कोलकाता

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रथम अध्यक्ष कौन हैं :-  एनजीटी के प्रथम अध्यक्ष लोकेश्वर सिंह पंटा।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के वर्तमान अध्यक्ष कौन है :-  एनजीटी के वर्तमान अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल है।

एनजीटी को उच्च न्यायालय के समान दर्जा प्राप्त है।

NGT  के अध्यक्ष की लिस्ट:-
  1. लोकेश्वर सिंह पंटा, 
  2. स्वतंत्र कुमार, 
  3. आदर्श कुमार गोयल।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण की संरचना और अवधि :- 

एनजीटी एक्ट, 2010 की धारा 3 में इसके गठन का प्रावधान है और इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा।

धारा 4 के तहत एनजीटी में एक अध्यक्ष (चेयरमैन) व कम से कम 10 सदस्य और अधिकतम 20 सदस्य हो सकते हैं (जो न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्य होंगे) 

यानी एनजीटी में अध्यक्ष न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ के सदस्य शामिल होते हैं।

एनजीटी के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है ? :-

अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है व सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति द्वारा की जाती है।

न्यायिक सदस्य सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट से आएंगे जबकि विशेषज्ञ सदस्य शैक्षणिक प्रशासनिक क्षेत्र से आएंगे।

अध्यक्ष एवं सदस्यों के लिए अर्हता एवं सेवा शर्तें :- 

अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का जज या किसी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश (वर्तमान में सेवानिवृत्त) होगा।

न्यायिक सदस्य सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का कोई भी वर्तमान  या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे।

अन्य सदस्य :-

पर्यावरण विशेषज्ञ 15 वर्ष का अनुभव सरकार में 5 वर्ष का पर्यावरण अनुभव वाले व्यक्ति एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्य बन सकते है।

पदावधि :- 

अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष है इनकी पुनर्नियुक्ति नहीं होगी।

अधिकतम आयु : यदि अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट से हैं तो उनकी अधिकतम आयु 70 वर्ष और यदि हाईकोर्ट से है तो 67 वर्ष होगी 

ऐसे ही सदस्य सुप्रीम कोर्ट से है तो अधिकतम आयु 70 वर्ष होगी और सदस्य हाईकोर्ट से हैं तो 67 वर्षों होगी।

विशेषज्ञ सदस्यों की अधिकतम आयु 65 वर्ष होगी।

पदत्याग :-  एनजीटी के अध्यक्ष व सदस्य अपना त्यागपत्र केंद्र सरकार को देंगे।

वेतन व सेवा शर्तें :-  केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है।

हटाना :-  इनको केंद्र सरकार द्वारा हटाया जा सकता है यानी अध्यक्ष व न्यायिक सदस्य को सुप्रीम कोर्ट की जांच के बाद केंद्र सरकार द्वारा हटाया जा सकता है।

हटाना का आधार : - 

  • जिसे दिवालिया या न्याय निर्मित किया गया हो, 
  • जिसे ऐसे अपराध के लिए दोष सिद्ध किया गया है जो केंद्र सरकार की राय में नैतिक अक्षमता सम्मिलित हो, 
  • शारीरिक व मानसिक रूप से असमर्थ हो गया हो। 
  • लेकिन एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्यों को केंद्र सरकार अलग आधारों पर भी हटा सकती है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण के कार्य :- 

  • आयोग का सबसे बड़ा काम पर्यावरण से जुड़े मुद्दे का प्रभावी और जल्दी निराकरण करना को इन मुद्दों को 6 माह के अंदर हल करना।
  • जंगलों की सुरक्षा व उनका संरक्षण करना।
  • प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना ।
  • पर्यावरण से जुड़े कानूनों की रक्षा करना।
  • किसी नागरिक के अधिकारों के उल्लंघन पर उन्हें आर्थिक मुहैया कराना।
  • पर्यावरण सुरक्षा के प्रति आम लोगों में जागरूकता का प्रसार करना।
  • देश के आम नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराने की कोशिश करना।
  • यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम में लिखे कानूनों में शामिल विषयों से संबंधित पर्यावरणीय क्षति के लिए राहत और मुआवजे की मांग के लिए एनजीटी से संपर्क कर सकता है,
  • क्योंकि एनजीटी के पास प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजे के रूप में राहत देने की शक्ति भी है।
  • एनजीटी पर्यावरण मामलों के त्वरित निपटान की अनुमति देता है और न्यायालय में लंबित मामलों के संग्रह को कम करने में सहायता करता है।
  • एनजीटी को शिकायत दर्ज करने पर 6 माह के अंदर पर्यावरणीय मुद्दों को हल करना होता है।
  • पर्यावरण से संबंधित विभिन्न आदेश को जारी करना।

एनजीटी की शक्तियां :-

  • प्रत्येक ऐसे मामलों को सुनना जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से पर्यावरण शामिल हो।
  • एनजीटी के पास अपीलीय क्षेत्राधिकार होता है जिसके तहत यह सुनवाई कर सकता है।
  • एनजीटी के पास सिविल न्यायालय की शक्ति होती है।
  • नागरिक प्रक्रिया संहिता 1908 में उल्लेखित न्यायिक प्रक्रिया का पालन करने के लिए एनजीटी बाध्य नहीं है।
  • एनजीटी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर काम करता है।
  • यदि किसी व्यक्ति को पर्यावरण प्रदूषण या अन्य पर्यावरणीय क्षति के कारण नुकसान हुआ है तो एनजीटी उस पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति प्रदान करवा सकता है।
  • एनजीटी अधिनियम में नियमों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है।
  • एनजीटी सामान्यता आर्थिक दंड ही देता है लेकिन यह सजा भी दे सकता है ।
  • कारावास को एक निश्चित समय के लिए अधिकतम 3 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।
  • यह 10 करोड़ तक आर्थिक दंड दे सकता है।
  • एनसीटी द्वारा दिए गए आदेश/ निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकती है।


राष्ट्रीय हरित अधिकरण(National Green Tribunal) : कार्य एवं शक्तियां : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(NGT) क्या है  : NGT in Hindi


एनजीटी किस अधिनियम के द्वारा सुनवाई कर सकता है :- 

  • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974, 
  • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण )उपकर 1974, 
  • वन (संरक्षण) अधिनियम 1980,
  • वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981,
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986,
  • जैव विविधता अधिनियम 2002।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण के उद्देश्य : -

  • पर्यावरणीय मामलों का त्वरित निपटान करना ताकि न्यायालय के बोझ को कम किया जा सके।
  • एनजीटी एक विशिष्ट निकाय है जिसमें ऐसे सभी तंत्र शामिल हैं जो पर्यावरण संबंधी विवादों व बहु -अनुशासनिक मामलों को सही संचालित कर सके।
  • एनजीटी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर चलता है।
  • यह सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है।
  • एनजीटी जो आवेदन या अपील आते हैं उनसे 6 माह के अंदर उनका निपटान का प्रयास करता है।

एनजीटी बनाने की जरूरत क्यों पड़ी :- 

जिस तरह से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और न्यायालय में पहले से ही मामले बहुत लंबित हैं, 

तो पर्यावरण से हुए नुकसान के निवारण व पीड़ित पक्षों को जल्दी राहत और मुआवजा देने के मकसद से एनजीटी की स्थापना की गई।

एनजीटी को पर्यावरण से संबंधित मुद्दों के लिए ऐसे अधिकार दिए गए हैं जिन्हें जल्दी से निपटाया जा सके।

न्यायालय में बढ़ते हुए बोझ को कम करने के लिए एनजीटी मदद करता है,

क्योंकि एनजीटी द्वारा पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को 6 माह के भीतर निपटाने का प्रयास किया जाता है।

उसके पास वनों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करना, प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण, पर्यावरण से जुड़े कानूनी अधिकारों की रक्षा, पर्यावरण से पीड़ित व्यक्तियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना आदि ऐसे मुद्दे आते हैं।

भारत एनजीटी की स्थापना कर न्यूजीलैंड पर ऑस्ट्रेलिया के बाद उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया।
जहां पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए अलग से विशेष अधिकरण की स्थापना की गई है।

एनजीटी में कौन जा सकता है :- 

निम्न आधारों पर कोई व्यक्ति एनजीटी जा सकता है :-

  • क्या आप अपने घर या ऑफिस या अन्य जगह पर पर्यावरण संबंधी समस्या से परेशान हैं?| 
  • क्या आप पर्यावरण से संबंधित सरकारी आदेश या न्यायालय के फैसले का उल्लंघन देख पा रहे और आप उनके विरुद्ध शिकायत करना चाहते हैं ? जैसे :वनों का गैरकानूनी तरीके से काटना।
  • क्या आपको प्रदूषण और पर्यावरण क्षति से आपको शारीरिक या मानसिक क्षति हुई है?
  • यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि एनजीटी के फैसले से असंतुष्ट होने की स्थिति में 90 दिनों के अंदर इसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

एनजीटी के नियम /अधिकार :-

वैसे तो एनजीटी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है लेकिन एनजीटी को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत सिविल कोर्ट का दर्जा प्राप्त है।

जिसके तहत इसे निम्न अधिकार प्राप्त हैं :-

  • किसी व्यक्ति को समझदारी करना और उसकी उपस्थिति को बाध्यकारी बनाना।
  • दस्तावेजों की खोज या उन्हें उत्पन्न करना।
  • अपने निर्णयों की समीक्षा करना।
  • गवाहों व दस्तावेजों का परीक्षण करना।
  • हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करना।
  • एनजीटी के आदेश लागू कराने या बाध्यकारी हैं क्योंकि इसमें निहित शक्तियां सिविल प्रक्रिया संहिता 1960 के तहत एक सिविल कोर्ट के समान है।
  • एनजीटी अधिनियम की धारा 14 में यह प्रावधान है कि अधिकरण के पास उन सभी सिविल मामलों पर सुनवाई का अधिकार होगा जहां किसी कानून में पर्यावरण से संबंधित कोई महत्वपूर्ण प्रश्न है।

NGT द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले :-

2012 में POSCO (यह की स्टील की कंपनी है) व उड़ीसा सरकार के मध्य हुए समझौते को समाप्त किया।

2012 में खुले में कचरा जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया।

2013 में अलकनंदा हाइड्रो पावर लिमिटेड को याचिकाकर्ताओं को मुआवजा देने का आदेश दिया गया।

2015 में दिल्ली NCR मैं 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों पर रोक लगाई।

2017 में दिल्ली में आयोजित आर्ट ऑफ लिविंग फेस्टिवल के दौरान पर्यावरण अनदेखी के कारण 5 करोड़ का जुर्माना लगाया।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से सम्बंधित चुनौतियां :- 

  • एनजीटी पर कई बार यह आरोप लगाए जाते हैं कि यह आर्थिक विकास को रोक देता है।
  • कुल 4 क्षेत्रीय शाखाएं हैं जो कि भारत के हिसाब से बहुत कम है जिससे त्वरित कार्यवाही नहीं हो पाती है।
  • एनजीटी को 6 माह के अंदर मामलों का निपटारा करना होता है लेकिन इसका निपटारा समय से नहीं हो पाता है।
  • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1973 इसके अंतर्गत नहीं आता है।
  • Forest Dwelling Act, 2006 भी इसके अंतर्गत नहीं आता है।
  • यह एक Statutory निकाय हैं जिससे बहुत से मामले ऐसे होते हैं की एनजीटी में जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं जिसके कारण निर्णय में देरी होती है।

एनजीटी में केस कैसे फाइल करें :-

यदि आपक पर्यावरण से संबंधित समस्या से व्यक्तिगत संपत्ति का नुकसान हुआ है तो इस कंडीशन में आप एनजीटी से मुआवजा लेने के बारे में बात कर सकते हैं।

यदि किसी प्राकृतिक चीज का नुकसान हुआ है और उसको संरक्षण की जरूरत है तो आप एनजीटी में शिकायत कर सकते हो जैसे पेड़ों का काटना।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत कैसे करें? :- 

जैसे यदि कोई जंगलों का अतिक्रमण कर रहा है तो आप आरटीआई के द्वारा यह पता लगा सकते हैं कि इसने अनुमति ली है या नहीं ।

या कोई उद्योग लगाना चाहता है तो यह देखना पड़ेगा कि उसने लाइसेंस लिया है या नहीं।

तो आपको सबसे पहले इस व्यक्ति की शिकायत फॉरेस्ट डिपार्टमेंट मैं करें और आपको लगे कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट इस पर कार्यवाही नहीं कर रहा है तो फिर आप एनजीटी में शिकायत कर सकते हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(NGT) के बारे में जानकारी(FAQs)(People also ask) :- 

Q. एनजीटी का पूरा नाम क्या है 

A. एनजीटी का पूरा नाम राष्ट्रीय हरित अधिकरण(National Green Tribunal) है | 

Q. एनजीटी की स्थापना भारत के किस अनुच्छेद के तहत की गई | 

A. एनजीटी की स्थापना  का आधार भारत के अनुच्छेद 21 को माना जाता है |  

Q. एनजीटी के प्रथम अध्यक्ष कौन हैं

A. प्रथम अध्यक्ष जस्टिस लोकेश्वर सिंह पंटा।

Q. एनजीटी का मुख्यालय कहां स्थित है| 

A. एनजीटी का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है | 

Q. एनजीटी के क्षेत्रीय कार्यालय कहां स्थित है| 

A. एनजीटी के क्षेत्रीय कार्यालय - (पुणे, कोलकाता, चेन्नई, भोपाल,) में स्थित हैं।

Q. एनजीटी का गठन किस अधिनियम के अंतर्गत किया गया | 

A. एनजीटी का गठन राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत किया गया | 

Q. एनजीटी की स्थापना कब हुई |  

A. एनजीटी की स्थापना कब हुई 18 अक्टूबर 2010 को हुई। | 

Q. एनजीटी के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है| 

A. एनजीटी के अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

Q. एनजीटी के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति कितने वर्ष के लिए की जाती है| 

A. एनजीटी के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए की जाती है| 

Q. एनजीटी का मतलब क्या होता है ?

A. NGT full form -National Green Tribunal  है, इसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत बनाया गया है यह एक सांविधिक निकाय है क्योंकि इसे संसदीय अधिनियम द्वारा बनाया गया।

Q. अधिकरण के फैसलों की अवमानना करने पर दंड | 

A. एनजीटी अधिनियम में नियमों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है।एनजीटी सामान्यता आर्थिक दंड ही देता है लेकिन यह सजा भी दे सकता है ।

कारावास को एक निश्चित समय के लिए अधिकतम 3 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।

यह 10 करोड़ तक आर्थिक दंड दे सकता है।

एनसीटी द्वारा दिए गए आदेश/ निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकती है।

Q. भारत में कितने राष्ट्रीय हरित अधिकरण?

A. भारत में राष्ट्रीय हरित अधिकरण का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है तथा इसके 4 क्षेत्रीय कार्यालय - (पुणे, कोलकाता, चेन्नई, भोपाल) में स्थित हैं | 

Q. एनजीटी में कितने सदस्य होते हैं ?

A. एनजीटी की धारा 4 के तहत एनजीटी में एक अध्यक्ष (चेयरमैन) व कम से कम 10 सदस्य और अधिकतम 20 सदस्य हो सकते हैं (जो न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्य होंगे) | 

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