चन्द्रयान 3 चन्द्रमा पर कब उतरा-
भारत में चंद्रयान 3 लॉन्च होने की तिथि :- भारत ने 14.07.2023 को श्री हरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया।
चन्द्रयान-3 मिशन, चन्द्रयान-2(जूलाई, 2019 के) अनुवर्ती(अगला) मिशन है।
इसरो की भूमिका देश के विकास में बहुत अहम हो जाती है तथा इसरो ने अपने low बजट में बड़े-बड़े अंतरिक्ष मिशन में कामयाबी हासिल की है,
लेकिन इसरो को सफलता के साथ निराशा भी का भी सामना करना पड़ा है जैसे:- (चंद्रयान 2 को क्यों भेजा है ?: )
chandrayaan-2 इसका मुख्य मकसद चंद्रमा के South Pole पर प्रज्ञान रोवर भेजना था लेकिन Lander में खराबी के चलते यह क्रैश हो गया।
इसका प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराना था तथा भारत ने Lander के क्रैश होने से भारी नुकसान तो झेली, साथ ही इसरो की लैंडिंग क्षमता पर भी अनेकों सवाल खड़े हुए।
इसके बावजूद कई Experts ने chandrayaan-2 को partial सफल माना।
चंद्रयान 3 की मदद किस देश ने की : - इसरो, जापान की अंतरिक्ष एजेंसी jaxa के साथ लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन पर काम करने वाला है।
इसरो chandrayaan-2 के partial failure के बावजूद अपने अगले मिशन चंद्रयान 3 को land करने के लिए तैयार है।
चंद्रयान 3 इसरो chandrayaan-2 के सुधार करते हुए लैंडर और रोवर दोनों को ही मून की surface पर पहुंचाएगा लेकिन इसमें और भीतर मौजूद नहीं होगा क्योंकि और Orbiter चंद्रमा के चारों तरफ पहले से ही घूम रहा है।
चन्द्रयान-2 मिशन क्या है? :-
- चन्द्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे जिसका मकसद था चन्द्र के दक्षिण ध्रुव पर एक रोवर को उतारना।
- इसमें ऑर्बिटर को वैज्ञानिक उपकरण से भरा गया है।
- Chandrayaan 2 मिशन कब लांच हुआ:- 22 जूलाई, 2019 को आंध्रप्रदेश के श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से चन्द्रयान-2 GSLV MK-3 से सफलतापूर्वक लांच किया लेकिन सितम्बर में इस अंतरिक्ष यान का अपने लैंडर से सम्पर्क टूटने के कारण इसरो का यह मिशन असफल हो गया।
- यह भारत का चन्द्रमा के लिये दूसरा मिशन था जो पूरी तरह से स्वेदेशी और इसमें ऑर्बिटर, लैंडर(विक्रम) और रोवर(प्रज्ञान) का इस्तेमाल किया गया था।
- इसे दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में उतरना था, जहां पर अभी तक कोई देश नहीं पहूंच सका है।
- यदि अंतरिक्षयान का लैंडर विक्रम से सम्पर्क नहीं टूटता तो भारत दूनिया का पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्ष यान चन्द्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के करीब उतरता, क्योंकि अमेरिका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर Soft लैंडिंग करवाई थी, लेकिन दक्षिण ध्रुव पर नहीं।
GSLV MK-3 :- यह इसरो द्वारा विकसित एक उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है। जो एक 3 चरणीय वाहन है, जिसे संचार उपग्रह को भूस्थिर कक्षा में लांच करने हेतु डिजाइन किया है। इसका द्रव्यमान 640 टन है जो 8000 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ आर्बिटर(LEO) और 4000 किलोग्राम पेलोड को GTO में स्थापित कर सकता है।
चन्द्रयान 3 का मिशन क्या है ?:-
- यह चन्द्रयान-2 का अगला मिशन है इसमें एक ऑर्बिटर और एक लैंडिंग मॉड्यूल होगा।
- इसका कार्य केवल लैंडर को चन्द्रमा तक ले जाने, उसकी कक्षा से लैंडिंग की निगरानी करने और लैंडर व पृथ्वी स्टेशन के मध्य संचार करने तक ही सीमित रहेगा। यानी चांद के चारों तरफ घूम रहे चन्द्रयान-2 के ऑर्बिटर के साथ लैंडर-रोवर का सम्पर्क बनाया जायेगा।
- इस मिशन के तहत इसरो लैंडर और रोवर को चन्द्रमा की सतह पर भेजने वाला है यह मिशन चन्द्रयान-2 की तरह ही होगा, लेकिन इसमें ऑर्बिटर को शामिल नहीं किया गया है(चन्द्रयान-3 के तहत केवल लैंडर और रोवर ही चांद पर भेजना)
- चन्द्रयान-3 में ज्यादातर प्रोग्राम पहले से ही ऑटोमेटेड होंगे, सेंसर्स लगे होंगे, जो इसकी लैंडिंग और अन्य कार्यां में मदद करेगा।
- चन्द्रयान-2 के विक्रम लैंडर में 5 थ्रेटल इंजन थे जबकि चन्द्रयान-3 में 4 थ्रेटल इंजन होंगे।
ऑर्बिट के प्रकार :-
ध्रुवीय कक्षा(ऑर्बिट):-
- एक ध्रुवीय कक्षा(Polar Orbit) वह कक्षा है जिसमें कोई Satellite ध्रुवों के ऊपर से North से South की ओर गुज़रता है और एक Complete चक्कर लगाने में लगभग 90 minutes का time लेता है।
- इन कक्षाओं का झुकाव 90 डिग्री के करीब होता है। यहाँ से Satellite द्वारा earth के लगभग हर हिस्से को देखा जा सकता है क्योंकि पृथ्वी इसके नीचे घूमती है।
- इन Satellites के कई use हैं जैसे- फसलों की निगरानी, Global Security, वातावरण में तापमान को मापना।
- Polar Orbit में स्थित लगभग सभी Satellites की ऊँचाई कम होती है।
- एक कक्षा(Orbit) को सूर्य-तुल्यकालिक कहा जाता है क्योकि earth के केंद्र और Satellite तथा sun को मिलाने वाली रेखा के बीच का कोण संपूर्ण कक्षा में स्थिर रहता है।
- इन कक्षाओं को "Low Earth Orbit (LEO)" के रूप में भी जाना जाता है
भू-तुल्यकालिक कक्षा (Geosynchronous Orbit):
- भू-तुल्यकालिक Satellites को उसी direction में कक्षा में Projected किया जाता है जिस direction में पृथ्वी घूम रही है।
- जब Satellite एक विशिष्ट ऊँचाई पर कक्षा में स्थित रहता है, तो वह उसी speed से परिक्रमा करता है जिस पर पृथ्वी Rotate कर रही होती है।
- भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO): भू-तुल्यकालिक कक्षा या भूस्थैतिक कक्षा को प्राप्त करने के लिये एक अंतरिक्षयान को पहले भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में लॉन्च किया जाता है।
- GTO से अंतरिक्षयान अपने इंजन का use geostatic और भू-तुल्यकालिक कक्षा में transferred होने के लिये करता है।
चन्द्रयान 3 के उद्देश्य:
लंदन में इस बार पहले से ज्यादा इंधन है और बाधा आने पर खुद को संभाल सकने में सक्षम है।
चन्द्रयान 2 और चन्द्रयान 3 में अंतर :-
चन्द्रयान 3 भारत के लिये क्यों महत्वपूर्ण है-
Questions and answers:-
Q. इसरो के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं?:- केंद्र सरकार द्वारा इसरो के नए चेयरमैन डॉ एस. सोमनाथ को नियुक्त किया गया है।
Q. चंद्रयान प्रथम के समय इसरो के अध्यक्ष कौन थे?:- चंद्रयान प्रथम को चांद पर भेजने के समय इसरो के अध्यक्ष G. माधवन नायर थे।
Q. दुनिया में सबसे पहले चांद पर कौन गया था?:- दुनिया में चांद पर सबसे पहले अमेरिका के खगोल यात्री नील एल्डन आर्मस्ट्रांग है।
Q. चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति कौन हैं?:- चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति नील एल्डन आर्मस्ट्रांग हैं।
Q. चांद पर जाने वाले पहले भारतीय कौन थे?:- 13 जनवरी, 2016 को राकेश कर्म शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले भारत के पहले व्यक्ति बने।
Q. Chandrayan three launch date in Hindi?:- अंतरिक्ष विभाग द्वारा इस बात की जानकारी दी गयी कि भारत की योजना अगस्त, 2022 में चन्द्रयान-3(Chandrayaan-3) मिशन को लांच करना है।
चन्द्रयान-3 मिशन, चन्द्रयान-2(जूलाई, 2019 के) अनुवर्ती(अगला) मिशन है।
Q. चांद कितना दूर है?:- पृथ्वी से लगभग 3,84,400 KM ।
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