अनुच्छेद-15 :- कोई भी(सरकार और पब्लिक) किसी नागरिक के प्रति ‘केवल‘ धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान को लेकर ‘विभेद‘(Differentiation) नहीं करेगा। इसमें दो शब्दों का प्रयोग किया गया है केवल और विभेद। केवल का मतलब है कि धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के अलावा अन्य आधारों पर मतभेद किया जा सकता है, विभेद का मतलब है कि किसी के पक्ष में ना रहना। इनके अलावा मतभेद किया जा सकता है।
अनुच्छेद-15 की दूसरी व्यवस्था में कहा गया है कि किसी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति,लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, राज्य नीधि से पोषित आम जनता के प्रयोग के लिए कुओं, तालाबों, स्नान घाटों, दायित्वों में विभेद को रोकता है। यह प्रावधान राज्य और व्यक्ति दोनों के विरूद्व विभेद को रोकता है, जबकि पहले प्रावधान में केवल राज्य के विरूद्व रोकने के लिये था।
लेकिन देखा जाता है कि समाज में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार भी भेदभाव किया जाता है जोकि गलत है संविधान इसको मना करता है। सबूत मिलने पर सजा का प्रावधान है।
लेकिन कुछ अपवाद भी हैं यानी राज्य Positive मतभेद कर सकता है
- जैसे राज्य चाहे तो बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था कर सकता है(स्थानीय निकायों में महिलाओं को आरक्षण, बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है) राज्य चाहे तो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गां या SC/ST के विकास के लिए कोई विशेष उपबंध कर सकता है। इसी में आरक्षण की बात की गयी है।
- राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विकास के लिये कोई विशेष उपबंध कर सकता है। जैसे विधानमण्डल में सीटों का आरक्षण या सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थाओं में शुल्क से छूट की व्यवस्था।
- राज्य को यह अधिकार है कि वह सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों या अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों के उत्थान के लिये शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिये छूट संबंधी कोई नियम बना सकता है।
93 वां संविधान संशोधन, 2005 में केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थान(प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 पारित किया जिसमें पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए सभी सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण की बात की गयी है, लेकिन न्यायालय ने केन्द्र सरकार का आदेश दिया कि वह इसमें ‘क्रीमीलेयर के सिद्वांत‘ का पालन करें।
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