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भारत की विदेश नीति 2024 : भारत की विदेश निति के उद्देश्य और सिद्धांत

जिस तरह से वर्तमान में भारत की विदेश नीति पड़ोसी देशों को लेकर सही नहीं चल रही है, मालदीव से लेकर नेपाल तक सभी देशों पर चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि भारत के लिये सही नहीं है, इसलिये भारत को अपने पड़ोसियों के साथ इस तरह पकड़ बनानी है ताकि चीन की साम्राज्यवादी नीति को रोका जा सके।

एक देश द्वारा दूसरे देशों के साथ द्विपक्षीय(Bilateral) या बहुपक्षीय(Multilateral) संबंधों को तय करने वाली नीति।

एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र/संगठनों से संबंध बनाने में अपनाई गई नीति को विदेश नीति कहा जाता है।

 यानी विदेश नीति में एक देश अपने राष्टीय हित व विकास के लिये अन्य देशों के साथ किस तरह संबंध रखता है, किस प्रकार का व्यवहार करता है या किस प्रकार की नीतियों का निर्माण करता है तो यह उस देश की विदेश नीति हुई।

नार्मन हिल के अनुसार- विदेश नीति अन्य देशों के साथ अपने हितों को बढ़ाने के लिये किये जाने वाले किसी राष्ट्र के प्रयासों का समुच्चय है।


Basic understanding of India's foreign policy in hindi : भारत की विदेश नीति 2023 : भारत की विदेश निति के उद्देश्य और सिद्धांत

भारत की विदेश नीति : 

किसी भी विदेश नीति(Foreign Policy) में देश की बाहरी परिस्थतियां(External Circumstances) तो महत्वपूर्ण है ही, 

साथ ही विदेश नीति(Foreign Policy) को तय करने में घरेलू(domestic) परिस्थितियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जैसे वर्तमान में कच्चा तेल(Raw Materials), ऊर्जा(Energy), तकनीक, सैन्य संसाधन(Military Resources) आदि का भारत(India) की विदेश नीति में प्रमुख भूमिका है। 

विदेश नीति(Foreign Policy) को तय करने के लिए विकसित(Developed) और विकासशील(Developing) देशों के अलग-अलग लक्ष्य होते हैं- विकासशील देश में रोजगार, गरीबी उन्मूलन(Poverty alleviation), शिक्षा, खाद्य सुरक्षा(Food Security), विकास आदि प्रमुख लक्ष्य विकासशील देशों के केन्द्र(Core) में होते हैं, 

जबकि विकसित देश में बाजार, भू-राजनीति(Geopolitical), कच्चे माल की प्राप्ति, प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति आदि प्रमुख लक्ष्य विकसित देशों की विदेश नीति के केन्द्र में होते है।

नेहरूवादी आदर्शवाद(Nehruvian Idealism) विदेश निति - इसमें हम Moral, Ethics, Peace आदि द्वारा विकास को बढाना, दूसर देशों से अच्छे संबंध बनाना, दूसरे देशों की rationality के साथ अच्छाई देखना और इसमें War, Conflict आदि को Support नहीं किया जाता है। 

यह दौर आजादी के बाद से लगभग 1960 तक रहा इसी बीच भारत(India) ने Communist Party of China को बिना देर किये Recognized कर लिया, 

कश्मीर विवाद में UNO जाना, चीन के साथ पंचशील समझौता करना, गुट-निरपेक्ष आंदोलन(Non-Aligned Movement) पर ज्यादा Focus करना आदि भारत द्वारा लिये गये कदम दर्शाते है कि भारत का Idealism की तरफ झूकाव बहुत ज्यादा थाI

वैसे उस वक्त भारत की स्थिति- भारत नया-नया आजाद हुआ था, भारत(India) को विकास करना था, दूसरे देशों से संबंध बनाये रखना, संसाधनों का सीमित(Limited) होना, उस वक्त दो महाशक्तियों के बीच Cold War चरम सीमा पर होना, 

ऐसी स्थिति में भारत को गुट-निरपेक्ष(Non-Aligned Movement) को अपनाकर Balance बनाना, भारत द्वारा साम्राज्यवाद(Imperialism) व उपनिवेशवाद(Colonialism) का विरोध किया जाना आदि स्थितियां भारत को Idealism की तरफ ले गयी। 

गुट-निरपेक्ष(Non-Aligned Movement):- इसका मकसद  है संघर्ष को कम करना, शांति बनाये रखना क्योंकि उस वक्त अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देश गुलामी से आजाद हुए थे उनको एक साथ लाना।

सामरिक यथार्थवाद(Strategic Realism):- Idealism से भारत धीरे-धीरे Realism की ओर बढ़ने लगा इसका मतलब है कि भारत अब दूसरे देशों के संबंध में अपने राष्ट्रीय हित(National Interest) को देखने लगा। 

जिससे भारत Morality, International Law, International Pressure, Principle आदि को कम Value देने लगा। यानी कोई देश भारत के लिये Permanent Friend है ना ही Permanent दुश्मन है केवल राष्ट्रीय हित(National Interest)  को ही Permanent मानने लगा। 

जैसे - दलाईलामा को शरण देना जबकि हमारा चीन के साथ पंचशील को समझौता था, पूर्तगाल से गोवा को वापस लेना 1961 में, वियतनाम के मुद्दे पर भारत का Stand Clear होना, 1971 में रूस के साथ समझौता करना; 

जबकि भारत गुट निरपेक्ष का सदस्य है, उस वक्त ऐसी स्थिति बन गयी थी कि भारत को यह कदम उठाना पड़ा जोकि उपयोगी रहा क्योंकि उस वक्त अमेरिका पाकिस्तान का Support कर रहा था जो दर्शाता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हित(National Interest)  को बहुत ज्यादा महत्व देने लगा।

1991 से भारत की विदेश नीति में आर्थिक विकास का महत्व बढ़ गया और भारत Practical कुटनीति(diplomacy) को अपनाने लगा,

इसी दौर में Liberalization, Privatization, Globalization में सुधार नियम बनाने शुरू हुए यानी भारत की राष्ट्रीय हित(National Interest)  में Economic की भूमिका बहुत ज्यादा बढ़ गयी। 


Basic understanding of India's foreign policy in hindi : भारत की विदेश नीति 2023 : भारत की विदेश निति के उद्देश्य और सिद्धांत

राष्ट्रीय हित(National Interest) - आर्थिक हित, राजनीतिक हित, सैनिक हित, सांस्कृतिक हित आदि 

राष्ट्रीय हित(National Interest) :- वैसे सभी देशों के लिए राष्ट्रीय हित(National Interest)  का दायरा अलग-अलग होता है भारत के संदर्भ में राष्ट्रीय हित(National Interest)  में सीमापार आतंकवाद का मुकाबला, क्षे़त्रीय अखण्डता(territorial Integrity) की रक्षा के लिए हमारी सीमाओं को सुरक्षित करना, ऊर्जा सुरक्षा, साइबर सुरक्षा आदि शामिल है। 

राष्ट्रीय हित(National Interest) ::::--- सहभागित(Participation), अलगाव(Neutral), अन्तर्विरोध(Contradiction) जैसे मुददों से तय किया जाता है। 

  • सहभागिता(Participation)हित :- इसमें एक देश दूसरे से देश आपस में एक दूसरे को मदद करते हैं जैसे- भारत-Asian 

  • अलगाव (Neutral) हित :- एक देश का दूसरे देश से कोई संबंध ना होना जैसे- भारत- कुछ यूरोप के देश, कुछ अफ्रीका के देश 

  • अन्तर्विरोध (Contradiction)हित :- एक देश का दूसरे देश के साथ कुछ मुददों में सहमति होना और कुछ मुददों पर विरोध होना जैसे- भारत- अमेरिका आर्थिक मुददों पर तो संबंध अच्छे है, लेकिन पर्यावरण के मुददे पर असहमति है। 

भारत-चीन (1954 में) के बीच हुए पंचशील सिद्वांत समझौते को भारत ने बाद में अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में इस सिद्वांत को संचालित(Operate) करने लगा-

  • एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता(territorial Integrity) और संप्रभुता(Sovereignty) का पारस्परिक(Mutual) सम्मान 
  •  पारस्परिक आक्रमण(Mutual Attack) न करना 
  •  परस्पर हस्तक्षेप(Mutual Interference) न करना 
  • समता(Equality) और आपसी लाभ
  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व(Peaceful Coexistence)

भारत की विदेश नीति का बदलता स्वरूपः- 

भारत अपनी सुरक्षात्मक नीति(Protective Policy) को बदलते हुए आक्रमक नीति(Aggressive Policy) की ओर अग्रसर हो रहा है जैसे डोकलाम Issue, सर्जिकल स्ट्राइक 

 इस बदलती विदेश नीति में विचारों और कार्रवाई में सफाई दिखाई दे रही है। भारत ने अन्तराष्ट्र्रीय स्तर पर आर्थिक और राजनीतिक हितों के लिए Formal Group पर निर्भरता को कम किया है।

 भारत ने अपनी विदेश नीति(Foreign Policy) को Balance रूप प्रदान किया है। 

भारत अमेरिका जैसे विकसित देश पर निर्भर ज्यादा हो गया है जिससे भारत में रणनीतिक स्वायत्ता(Strategic autonomy) में कमी आ सकती है। भारत में घरेलू राजनीतिकरण(Domestic Politicization) विदेश नीति को प्रभावित करता है इन पर भी भारत को ध्यान देना चाहिए।

भारत की विदेश नीति से सम्बंधित जानकारी (FAQs) :

Qभारत की विदेश नीति का निर्माता कौन है?
A. भारत की विदेश नीति का निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू हैं | 

Q. भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व कौन से है?

A. भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में वृद्वि करना है।
राष्ट्रीय हित - किसी भी देश के लिये राष्ट्रहित बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं, लेकिन यह हमेशा एक जैसे नहीं रहते हैं, बल्कि समय के अनुसार बदलते रहते हैं।

भारत की विदेश नीति का निर्धारक तत्व आदर्श राष्ट्र के मध्य न्यायपूर्ण और सम्मानजनक संबंध बनाये रखना है।

भारत एक बहुत बड़ा देश है, जिसके पास लगभग 3500 मील लंबी समुद्र सीमा और 8200 मील लंबी थल सीमा है और भारत का ज्यादा तर व्यापार हिन्द महासागर के द्वारा होता है। 

भारत शुरू से ही सहिष्णु और शांतिप्रिय देश रहा है भारत ने किसी के प्रति राजनीतिक प्रभाव नहीं बनाया है। 

आजादी के बाद से भारत तकनीक  के मामलों में ज्यादा सक्षम नहीं था, जिससे भारत तकनीक सामानों के लिये अन्य देशों पर निर्भर था, लेकिन वर्तमान में भारत ने तकनीक  के मामलों में बहुत तरक्की की है।

भारत अपनी विदेश नीति में पंचशील के 5 सिद्वांतों को अपनाता है।