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Fundamental Rights (Part-1) in Hindi (मूल अधिकार(भाग- 1) )

मूल अधिकारों(Fundamental Rights) का मकसद है राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों(Ideals) को विकसित करना एवं ये देश में व्यवस्था बनाये रखने और राज्य के तानाशाही रवैये के खिलाफ नागरिकों की आजादी की सुरक्षा करते हैं,  

यानी इन अधिकारों का उद्देश्य है कानून की सरकार बनाना ना कि व्यक्तियों की। मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व(Personality) के पूर्ण विकास(Complete development) में बहुत महत्वपूर्ण भुमिका अदा करते हैं, ये व्यक्ति के लिए हैं, ये नैसर्गिक(Natural) हैं, इनके बिना जीवन जीना कठिन हो जायेगा इनको ना सरकार द्वारा, ना पब्लिक द्वारा, ना किसी संस्था द्वारा इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। 

मौलिक अधिकारों(Fundamental Rights) को संविधान द्वारा गारंटी/सुरक्षा प्रदान की गयी है। संविधान द्वारा सरकार को शक्ति तो दी गयी है, लेकिन सरकार को मनमानी व तानाशाही रवैये को रोकने के लिए संविधान में भाग-3 मौलिक अधिकारों के रूप में रखा गया है जो कि प्राकृतिक(Natural) होते हैं और व्यक्तियों को मिले होते हैं। 

यह न्याय योग्य हैं यानी इनके उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति न्यायालय में जा सकता है, लेकिन राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान(अनुच्छेद-20 और अनुच्छेद-21 को छोड़कर) इन्हें निलंबित(Suspended) किया जा सकता है। अनुच्छेद-19 उस स्थिति में ही निलंबित किया जा सकता है जब युद्व या विदेशी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल को लागू किया जाये। जबकि इन्हें सशस्त्र विद्रोह(आंतरिक आपातकाल) के आधार पर निलंबित नहीं किया जा सकता है। 

मौलिक अधिकारों में संसद द्वारा कटौती या कमी की जा सकती है, संविधान संशोधन द्वारा ना कि साधारण विधेयक द्वारा, लेकिन संसद कटौती या कमी करते समय यह संविधान के मूल ढांचे(न्यायालय द्वारा तय होना) को प्रभावित नहीं कर सकती है।(राज्य इन पर उचित कारण के लिए युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है हालांकि ये कारण उचित है या नहीं यह अदालत तय करती है।)

मौलिक अधिकारों को संविधान का मेग्नाकार्टा कहा जाता है। 

मेग्नाकार्टा- सबसे पहले ब्रिटेन में अधिकारों का, घोषणापत्र(Manifesto) जारी हुआ तो इसे मेग्नाकार्टा नाम दिया गया था। मेग्नाकार्टा वहां प्रयोग किया जाने लगा जहां बड़े पैमाने पर अधिकार दिये गये हैं।

जब संविधान बना तो 7 मूल अधिकार प्रदान किये गये थे :- 

  1. समता का अधिकार (अनुच्छेद-14 से 18 तक) 
  2. स्वतंत्रता का अधिकार(अनुच्छेद- 19 से 22 तक) 
  3. शोषण के विरूद्व अधिकार(अनुच्छेद-23 से 24 तक) 
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार( अनुच्छेद-25 से 28 तक) 
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार(अनुच्छेद-29 से 30 तक) 
  6. सम्पत्ति का अधिकार( अनुच्छेद-31) 
  7. सांविधानिक उपचारों का अधिकार(अनुच्छेद-32) 

वर्तमान में 6 मूल अधिकार हैं क्योंकि सम्पत्ति के अधिकार को 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा मूल अधिकार से हटा दिया गया है और इसे संविधान के भाग-12 में अनुच्छेद-300क में कानूनी अधिकार बना दिया गया है। 

कानूनी अधिकार वे अधिकार हैं जो सरकार हमसे छीन सकती है जैसे सम्पत्ति का अधिकार, लेकिन मौलिक अधिकार को नहीं छीन सकती है। 

Fundamental Rights (Part-1) in Hindi (मूल अधिकार(भाग- 1) )

अनुच्छेद-12 :- राज्य की परिभाषा। 

इसमें राज्य का वही मतलब है जो भाग-4(अनुच्छेद-36) में बताया गया है। राज्य से मतलब- भारत की संसद, केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, राज्य विधानमण्डल एवं सभी स्थानीय एवं प्रशासनिक अधिकारी/कर्मचारी ये सभी राज्य के अन्तर्गत आते हैं। 

अनुच्छेद- 13 : - कोई कानून जो संविधान बनने के पहले बना हो तो लागू रहेगा यदि यह कानून मूल अधिकारों का उल्लंघन(Violation) ना करता हो यदि उल्लंघन करता है तो ये कानून समाप्त हो सकता है। 

अल्पीकरण(Derogation) - जब हमारा मौलिक अधिकार असंगत(inconsistent) हो जाये यानी हमारे मौलिक अधिकार से दूसरे के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो मौलिक अधिकार में कटौती की जा सकती है। 

अनुच्छेद -14 :- 

1. कानून के समक्ष समानता(Equality before law) 
2. कानून का समान संरक्षण(Equality protection law) 

कानून के समक्ष समानता(Equality before law) :- इसे ब्रिटिश से लिया गया है इसमें सभी व्यक्तियों के लिए समान व्यवहार करना यानी कोई भी व्यक्ति चाहे वह अमीर हो, गरीब हो, अधिकारी हो, गैर-अधिकारी हो सभी पर समान कानून लागू करना। यह नकारात्मक संदर्भ को दर्शाता है। 

कानून का समान संरक्षण(Equality protection law) :- इसे अमेरिका से लिया गया है इसमें Classification/differentiation के साथ सभी व्यक्तियों के लिए समान नियम होना, लेकिन यह Classification, विवकेपूर्ण(Prudent), सशक्त होना चाहिए ना कि बनावटी। 

आसान भाषा में जैसे देश में जितने भी MP(Member of parliament) है, जितने भी IAS, जितनी भी आम जनता है आदि इनका Classification कर सभी के लिए समान नियम बनाना यानी सभी MP की अलग Classification है, IAS की अलग, आम जनता की अलग तो सभी MP पर समान कानून लगेगा ऐसा नहीं होगा कि एक MP पर अलग कानून दूसरे पर अलग कानून इसी तरह IAS, आम जनता का Example ले सकते हैं।(राष्ट्रपति और राज्यपालों को अनुच्छेद 361 के तहत शक्तियां दी गयी हैं MP को भी अलग शक्तियां, IAS को भी अलग शक्तियां और आम जनता को भी अलग शक्तियां) 

Classification का मतलब है जो कानून MP पर लागू है वह कानून आम जनता पर भी लागू हो यह जरूरी नहीं। इसलिए कानून के समान संरक्षण सकारात्मक संदर्भ को दर्शाता है। 

ब्रिटिश न्यायवादी ए.वी. डायसी का मानना है कि विधि(कानून) के समक्ष समानता का विचार ‘विधि का शासन(Rule of Law)‘ के सिद्वांत का मूल तत्व है, उनके अनुसार कानून के समक्ष समानता बहुत आवश्यक है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति(अमीर-गरीब, ऊंचा-नीचा, अधिकारी-गैर अधिकारी) कानून के ऊपर नहीं हैं। 

सर्वाच्च न्यायालय का मानना है कि Article-14 में जो Mention है विधि का शासन(Rule of Law) वह संविधान का मूलभूत तत्व है इसलिए इसे संशोधन के द्वारा भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। यह अधिकार नागरिक और विदेशी दोनों को प्राप्त है। 

अनुच्छेद-15 :- कोई भी(सरकार और पब्लिक) किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म, मूल वंश(original lineage), जाति, लिंग एवं जन्म स्थान को लेकर विभेद(differentiation) नहीं करेगा। इनके अलावा मतभेद किया जा सकता है, 

लेकिन देखा जाता है कि समाज में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार भी भेदभाव किया जाता है जोकि गलत है संविधान इसको मना करता है। सबूत मिलने पर सजा का प्रावधान है। 

लेकिन कुछ अपवाद(Exception) भी हैं यानी राज्य Positive मतभेद कर सकता है जैसे राज्य चाहे तो बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था कर सकता है(जैसे - स्थानीय निकायों में महिलाओं को आरक्षण, बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है) राज्य चाहे तो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गां या Sc/St के विकास के लिए कोई विशेष उपबंध कर सकता है। इसी में आरक्षण(Reservation) की बात की गयी है। 

93 वां संविधान संशोधन, 2005 में केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थान(प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 पारित किया जिसमें पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए सभी सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण की बात की गयी है, लेकिन न्यायालय ने केन्द्र सरकार का आदेश दिया कि वह इसमें ‘क्रीमीलेयर के सिद्वांत‘ का पालन करें। इसलिए अब पिछड़े वर्ग के जो छात्र क्रीमीलेयर में आते हैं उन्हें इस आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। 

क्रीमीलेयर(creamy layer)- पिछड़े वर्ग के वे लोग और परिवार जो उच्च आय वर्ग में आते हैं, वर्तमान में जिनकी आय 8 लाख रूपये सालाना से अधिक है, Group A और B सेवा क्लास के अधिकारी या इनके समान अन्य संस्थाओं(निजी कम्पनियों पर भी) में पदस्थ अधिकारी..........आदि।

अनुच्छेद-16 लोक नियोजन में अवसर की समता(Equality of opportunity in public planning) इसमें राज्य लोक नियोजन(Public planning)(जैसे सरकारी नौकरियां) के संबंध में किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या निवास के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। 

अनुच्छेद-16 के अवपाद :- राज्य द्वारा निवास की शर्त लगाना यानी कोई भी राज्य अपने यहां नौकरी के लिए निवास की शर्त लगा सकता है जैसे- राजस्थान सरकार चाहे तो नौकरी के लिये राजस्थान का निवासी होना अनिवार्य कर सकती है। राज्य सरकार नौकरियों में पिछड़े वर्गां के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है जैसे OBC, Sc/St आरक्षण) 

राज्य सरकार Promotion में Sc/St के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है ऐसा करना अनिवार्य नहीं है यह राज्य की विवेकशीलता पर निर्भर करता है। राज्य धार्मिक संस्था में नियुक्ति के लिए धार्मिक आधार पर नियुक्ति की व्यवस्था कर सकता है। जैसे गुरूद्वारे में सुधार हेतु बनाई गई समिति में सभी सदस्यों का सिख होना अनिवार्य है। इसे अनुच्छेद 15 तथा अनुच्छेद-16 का उल्लंघन नहीं माना जायेगा। 

103 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2019- सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण उद्देश्य- इस अधिनियम में सामान्य वर्ग के जो आर्थिक रूप से पिछड़े हुए है उनको सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण दिया गया है। 

अनुच्छेद-17:- अस्पृश्यत(Untouchability) का अंत 

इसमें धर्म, जाति, जन्म आदि के आधार पर छुआछूत(Untouchability) को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। इसके लिए संसद ने अस्पृश्यता(अपराध) अधिनियम, 1955 पारित किया गया तथा 1976 में इसका नाम ‘नागरिक अधिकारों की रक्षा अधिनियम, 1955 कर दिया गया। इस कानून में अस्पृश्यता को गैर-कानूनी घोषित किया गया है तथा इसके लिए कड़े दंड की व्यवस्था की गयी है। यदि कोई बीमारी है तो छुआछूत किया जा सकता है- कोरोना। 

अनुच्छेद-18उपाधियों का अंत(End of Titles)

कोई उपाधि नहीं रख सकता है जैसे महाराज, नाइटहुड, विदेशी, सर .... आदि। राज्य सेना या शिक्षा संबंधी सम्मान के अलावा कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। भारत को काई नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा। राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति दूसरे देश से उपाधि भारत के राष्ट्रपति के बिना स्वीकार नहीं करेगा। यदि आपको कोई Award मिलता है जैसे National award, पदम भूषण...) तो आप इसको Sirname के रूप में Use नहीं कर सकते। 

Fundamental Rights (Part-1) in Hindi (मूल अधिकार(भाग- 1) )

अनुच्छेद-19 यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को 6 अधिकारों की गारंटी देता है- 

  1. वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता(Freedom of speech and expression)      
  2.  शांतिपूर्वक सम्मेलन का अधिकार। 
  3.  सहकारी समितियां(Co-operative Societies) बनाने का अधिकार। 
  4.  भारत के राज्यक्षेत्र(Territory) में संचरण(Transmission) का अधिकार। 
  5. भारत के राज्यक्षेत्र में निवास(Residence) करने का अधिकार। 
  6. कोई भी व्यवसाय करने का अधिकार।

जब संविधान बना उस वक्त इसमें 7 अधिकार थे, लेकिन सम्पत्ति के अधिकार को 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा समाप्त कर दिया गया है। इन अधिकारों की रक्षा केवल राज्य के खिलाफ मामले में है ना कि निजी मामलों में। ये केवल नागरिकों को प्राप्त हैः- 

1.वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता :-ह प्रत्येक नागरिक को बोलने , मोन रहने की, media, पुतला, RTI आदि की आजादी है। 

राज्य द्वारा इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। आधार- भारत की एकता और संप्रभुता राज्य की सुरक्षा, लोक-हित, न्यायालय की अवमानना, विदेशी राज्यों की साथ मित्रवत संबंध।

2.शांतिपूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता : - किसी भी नागरिक को बिना हथियार के शांतिपूर्वक संगठित होने का अधिकार है। इस अधिकार में हड़ताल(Strike) का अधिकार शामिल नहीं है। 

प्रतिबंध- भारत की एकता अखण्डता और लोक व्यवस्था। 

3.संगठन या सहकारी समितियां बनाने का अधिकार- सभी नागरिको को संगठन या सहकारी समितियों को बनाने का अधिकार है जैसे राजीनतिक दल बनाना, कम्पनी, क्लब, संगठन, व्यापार संगठन आदि बनाना। 

प्रतिबंध- भारत की एकता एवं सम्प्रभुता, लोक व्यवस्था एवं नैतिकता सहकारी समिति शब्द 97 वें संविधान संशोधन, 2011 में जोड़ा गया हैं 

4.भारत के राज्य क्षेत्र में संचरण करने का अधिकार- यह प्रत्येक नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में घूमने का अधिकार देता है इससे पता लगता है कि भारत नागरिकों के लिए है। 

प्रतिबंध- आम लोगों का हित, किसी भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में बाहर के लोगों के आने को रोका जा सकता है, उनकी विशेष संस्कृति, भाषा, रिवाज और जनजातिय प्रावधानों के संरक्षण के लिए।

5.निवास का अधिकार :- प्रत्येक नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में निवास करने का अधिकार है। 

प्रतिबंध- आम लोगों का हित, किसी भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में बाहर के लोगों के आने को रोका जा सकता है, उनकी विशेष संस्कृति, भाषा, रिवाज और जनजातिय प्रावधानों के संरक्षण के लिए।

6.कोई भी व्यवसाय करने का अधिकार :- सभी नागरिकों को किसी भी व्यवसाय को करने, Profession को अपनाने एवं व्यापार  शुरू करने का अधिकार देता है। 

प्रतिबंध- तकनीकी योग्यता के आधार पर (जैसे अपना जीवन यापन करने के लिए हर व्यक्ति डॉक्टर नहीं बन सकता है) राज्य ऐसे अनैतिक कार्यों जैसे महिलाओं या बच्चों का दुरूपयोग या खतरनाक जैसे हानिकारक दवाइयां या विस्फोटक आदि व्यवसायों को प्रतिबंध लगा सकता है। 

अनुच्छेद-20:- अपराध के लिए दोषसिद्व के संबंध में संरक्षण इसमें 3 व्यवस्थाएं दी गयी हैं 

1.  किसी भी व्यक्ति को केवल कानून का उल्लंघन किये जाने पर ही दण्डित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं। और अपराध के समय जो वर्तमान में कानून है उसके अनुसार सजा दी जायेगी, ना कि अपराध के पहले और बाद के कानून के हिसाब से। 

2. किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार ही सजा मिलेगी ऐसा नहीं होगा कि एक बार अपराध किया है उसकी सजा बार-बार दी जा रही है। 

3. खुद के विरूद्व गबाही नहीं मानी जायेगी जैसे पुलिस द्वारा रिमांड पर रखकर अपराध कबूल कराना जो कि कोर्ट के सामने सबूत नहीं माना जाता है। अनुच्छेद-20 किसी भी Conditions में छीना नहीं जा सकता ।

अनुच्छेद-21- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता (Life and personal Liberty) 

किसी व्यक्ति को उसकी Life या शारीरिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं। जैसे किसी व्यक्ति को फांसी या जेल में कानून के अनुसार ही रखा जा सकता है। विधि द्वारा स्थापित- विधायिका(Legislative) द्वारा बनाये गये कानून। उसे न्यायालय द्वारा लागू करना। 

विधि की सम्यक प्रक्रिया- विधायिका द्वारा जो कानून बना है उसे न्यायालय द्वारा सही या गलत को Check कर लागू करेगा। 

जीवन जीने के अधिकार जो कि कोई नहीं छीन सकता है। जीवन जीने में स्वच्छ पर्यावरण, शोर प्रदूषण आत्महत्या पर रोक, स्वास्थ्य आदि शामिल किया गया है। 

मेनका मामले में अनुच्छेद-21 निम्न अधिकारों की बात की गई हैं- दैहिक स्वतंत्रता, एकांतता अधिकार, विदेश यात्रा करने का अधिकार, निजता का अधिकार, Adultery में IPCकी धारा 497 को समाप्त कर दिया गया है, मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार। 

अनुच्छेद-21क- शिक्षा का अधिकार 86 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 इसमें राज्य 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करायेगा। यह व्यवस्था केवल आवश्यक शिक्षा के लिए है ना कि उच्च या व्यावसायिक शिक्षा के लिए। 

अनुच्छेद-22:- निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण हिरासत के 2 तरीकें -

1. दंड विषयक हिरासत- जब किसी ने अपराध किया हो तो पुलिस द्वारा उसे Arrest किया जाता है एवं उसे अदालत द्वारा दोषी ठहराया जा चुका हो। 

2. निवारक हिरासत- ऐसा व्यक्ति जिसने अपराध नहीं किया हो लेकिन शक के आधार पर, या उसके पिछले अपराध के आधार पर भविष्य में अपराध ना करें तो उसे Arrest किया जाता है। 

आसान भाषा में किसी व्यक्ति को अपराध करने के बाद गिरफ्तार किया जाये तो दंड विषयक हिरासत एवं अपराध से पहले यानी शक के आधार पर गिरफ्तार किया जाये तो निवारक हिरासत। 

दंड विषयक हिरासत में अपराधी को संरक्षण के लिए निम्न अधिकार प्राप्त होते हैं- 

  1. गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार 
  2. अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार 
  3. 24 घण्टे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेटके समक्ष प्रस्तुत किया जाने का अधिकार(इस 24 घण्टे में यात्रा का समय शामिल नहीं होता है।)
  4.  यह सुरक्षा कवच विदेशी व्यक्ति या निवारक हिरासत के द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति के लिए नहीं है। व्यक्ति को अधिकतम 3 माह के लिए निरूद्व(detain)किया जा सकता है यदि इससे ज्यादा रखना है तो सलाहकार बोर्ड द्वारा उचित कारण बताये जायें। इस बोर्ड में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश होंगे। 
  5. संबंधित व्यक्ति को निरोध(detain)के कारण बताना, लेकिन सार्वजनिक हितों के विरूद्व हो तो बताना आवश्यक नहीं। निरोध किये गये व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह निरोध(detain) के विरूद्व अपना प्रतिवेदन(Appeal) कर सकता है।


मूल अधिकार भाग- 2 पढ़ने के लिए click Fundamental Rights (Part-2 ) करें 


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