अनुच्छेद-23- मानव दुर्व्यापार(Trafficking) एवं बलात श्रम का निषेध।(Prohibition of human trafficking and forced labor)
इसमें मानव का दुर्व्यापार(जैसे-व्यक्ति की खरीद-बिक्री, दास), बेगार(बिना पैसे के काम कराना) तथा अन्य बलात् श्रम(किसी से जबरदस्ती काम कराना) को रोका गया है। यदि कोई इसका उल्लंघन करता है तो कानून के अनुसार दण्डनीय होगा। यह उपबंध नागरिक व गैर-नागरिक दोनों को प्राप्त है।
‘मानव दुर्व्यापार(पुरूष, महिला एवं बच्चों की खरीद-बिक्री या अनैतिक दुर्व्यापार, दास) के कृत्यों पर दण्डित के लिए संसद ने ‘अनैतिक दुर्व्यापार(निवारण) अधिनियम, 1956 बनाया है।
बेगार, बलात् श्रम के लिए- बंधुआ मजदूरी व्यवस्था(निरसन) अधिनियम, 1976, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976।
अपवाद- राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा(जैसे- सैन्य सेवा एवं सामाजिक सेवा) आरोपित कर सकता है, जिसके लिए वह धन देने को बाध्य नहीं है, लेकिन राज्य को सेवा धर्म, जाति या वर्ग के आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं।
अनुच्छेद-24- कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन का निषेध।
14 वर्ष से कम आयु बच्चों को किसी कारखानें, खान या किसी परिसंकटमय नियोजन(जहां इन बालकों का जान का खतरा हो) जैसे कामों में नहीं लगाया जायेगा, लेकिन कोई ऐसा काम जहां बच्चों को नुकसान न हो, निर्दोष कार्यां में लगाया जा सकता है।
बल एवं किशोर श्रम(प्रतिषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 इसे 2016 में संशोधन कर बाल श्रम(निषेध और विनियम) संशोधन अधिनियम, 2016 लागू किया गया है। इसके तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी व्यवसायों और प्रक्रियाओं में लगाने से मना करता है। इस संशोधन का उल्लंघन करने वाले के लिए दण्ड का प्रावधान है-इसके तहत 6 माह से 2 वर्ष तक की कैद अथवा रू. 20000/- से रू. 50000/- तक जुर्माना है।
अनुच्छेद-25- अंत करण(Conscience) की और धर्म को मानने, आचरण व प्रचार करने की स्वतंत्रता।
किसी भी व्यक्ति को कोई धर्म को मानने, धर्म को किसी भी रूप में बनाने या मानने की आंतरिक स्वतंत्रता है, धार्मिक विश्वास और आस्था की बिना डर के घोषणा कर सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने रिवाज/धार्मिक प्रचार कर सकता है।
अनुच्छेद-25 व्यक्गित स्वतंत्रता/व्यक्तिगत कानून(Personal Law) की बात करता है जैसे सिखों को कृपाल की स्वतंत्रता है ऐसे ही हिन्दु, मुस्लिम, जैन आदि को भी स्वतंत्रता,
लेकिन जबरदस्ती या झूठ के सहारे धर्म का प्रचार, धर्मान्तरण का अधिकार नहीं है।
अपवाद- सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यवस्थाओं, नैतिकता, स्वास्थ्य के आधार पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर रोक लगा सकती है जैसे कोरोना में धार्मिक संस्थानों पर रोक लगाना।
सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिये सती प्रथा, मानव बलि आदि प्रथाओं के खिलाफ सरकार द्वारा कदम उठाये गये।
सार्वजनिक व्यस्थाओं, नैतिकता, स्वास्थ्य के द्वारा सरकार पर रोक को अनुच्छेद-25 का उल्लंघन नहीं माना जायेगा।
अनुच्छेद-26- धार्मिक कार्यां के प्रबंध की स्वतंत्रता।
यह सामूहिक स्वतंत्रता की बात करता है इसमें धार्मिक सम्प्रदाय(religious denomination) द्वारा संस्थाओं की स्थापना करना, प्रबंध करना, सम्पत्ति को रखना, वैधानिक खर्च करना आदि का कार्य कर सकता है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा धार्मिक सम्प्रदाय के लिए निम्न 3 शर्तें पूरी होनी चाहिए :-
- यह व्यक्तियों का समूह होना चाहिए
- इनका एक सामान्य संगठन होना चाहिए
- इसका एक विशिष्ट नाम होना चाहिए
अनुच्छेद-27- धार्मिक कार्य का धन टैक्स free ।
राज्य द्वारा जो कर के रूप में जो धन इकट्ठा हुआ है, उस धन को राज्य किसी विशिष्ट धार्मिक एवं रख-रखाव के लिए खर्च नहीं कर सकता।
राज्य करों के धन का प्रयोग समान रूप से सभी धर्मों के रख-रखाव व उन्नति के लिए कर सकता है।
राज्य धार्मिक कार्यों के लिए tax नहीं लेती है, लेकिन सुविधा के लिए fee ले सकती है।
अनुच्छेद-28- धार्मिक शिक्षा में उपस्थित होने से स्वतंत्रता।
सरकारी खर्च से चलने वाले संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।
संस्थान में किसी को भी धार्मिक कार्य के लिए force नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद-28 में 4 प्रकार के शैक्षणिक संस्थान।
- ऐसे संस्थान, जिनका पूरी तरह रख-रखाव राज्य द्वारा किया जाता है।(इसमें धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती)
- ऐसे संस्थान, जिनकी स्थापना विन्यास(Configuration) या न्याय द्वारा हो, लेकिन प्रशासन राज्य करता हो।(इसमें धार्मिक शिक्षा की अनुमति है)
- राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान
- ऐसे संस्थान, जिनमें वित सहायता राज्य द्वारा दी जा रही हो( No. 3 और No.4 में स्वैच्छिक आधार पर धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है या कोई संस्थान में भाग लेता है तो उसकी सहमति के बिना धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।)
अनुच्छेद-29- अल्पसंख्यक-वर्गों का संरक्षण।
भारत में जो नागरिक अल्पसंख्यक(धर्म और भाषा के आधार पर) है उनको अपनी संस्कृति, भाषा, लिपि, बोली को सुरक्षित रखने का अधिकार है एवं किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त/सहायता प्राप्त संस्थान में धर्म, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।
उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यवस्था दी गयी है कि भाषा की रक्षा में भाषा के संरक्षण हेतु आंदोलन का अधिकार भी शामिल है।
अनुच्छेद-30- शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार।
भारत में नागरिकों को धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग को अपने अनुसार शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार है और राज्य इन संस्थाओं में सहायता देने में विभेद नहीं करेगा जैसे-मदरसा, संस्कृत स्कूल।
अनुच्छेद-31- संविधान में ‘सम्पत्ति का अधिकार‘ भाग-3 में मूल अधिकार था जिसका जिक्र अनुच्छेद- 31 व अनुच्छेद-19(1)(च) में था।
अनुच्छेद-19(1)(च) में सम्पत्ति का अधिकार केवल नागरिकों के लिए था जबकि अनुच्छेद- 31 में सम्पत्ति का अधिकार नागरिक और गैर-नागरिक दोनों को प्राप्त था,
लेकिन 44 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 में सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारी(अनुच्छेद-31 और अनुच्छेद-19(1)(च)) से समाप्त कर दिया गया और सम्पत्ति के अधिकार को भाग-12 में नये अनुच्छेद-300क में कानूनी अधिकार बना दिया गया। जिसके तहत व्यवस्था दी गयी कि कोई भी व्यक्ति कानून के बिना सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जायेगा।
अनुच्छेद-32- यह मूल अधिकार को मूल अधिकार बनाने वाला मूल अधिकार है, क्योंकि यह मूल अधिकारों की गांरटी लेता है कि राज्य मूल अधिकार को नहीं छीन सकता है यदि हस्तक्षेप होता है तो अनुच्छेद-32 के तहत कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। इसे संविधान का रक्षक कहा जाता है।
डा. बी. आर.अम्बेडकर ने अनुच्छे-32 को संविधान की आत्मा कहा है।
रिट(Writ)- (Order of Court) उच्चतम न्यायालय(अनुच्छेद-32 के तहत) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद-226 के तहत) रिट जारी कर सकते है- जो 5 प्रकार के होते हैंः-बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण व अधिकार पृच्छा।
बंदी प्रत्यक्षीकरण(Habeas Corpus)- यह उस व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश है जो हिरासत में है यानी हिरासत किये गये व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना।
यह जबरदस्ती किया गया हिरासत के विरूद्व है यह रिट Public या व्यक्तिगत दोनों के खिलाफ जारी किया जा सकता है। यह कुछ Conditions में जारी नहीं किया जा सकता है जैसे निवारस अधिनियम, न्यायालय के द्वारा हिरासत आदि।
परमादेश(Mandamus)- 'हम आदेश देते हैं'- जब कोई सरकारी आदमी अपने काम को ठीक ढंग से नहीं करता है तो न्यायालय उसके खिलाफ आदेश जारी कर सकता है।
परामादेश- राष्ट्रपति, राज्यपाल, निजी व्यक्ति, ऐसे विभाग जो गैर- संवैधानिक है, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जो न्यायिक क्षमता में कार्यरत है, पर लागू नहीं होता है।
अधिकार पृच्छा(Qua-Warranto)- किसी कर्मचारी की संवैधानिकता की जांच के लिए अधिकार पृच्छा लागू किया जाता है यानी यदि कोई कर्मचारी जहां काम कर रहा है उसकी जांच करता है कहीं यह फर्जी तरीकें से तो नहीं है। इसे मंत्रित्व कार्यालय व निजी कार्याल के लिए जारी नहीं किया जा सकता है।
प्रतिषेध(Prohibition)- इसमें High Court, अधीनस्थ न्यायालय(Lower Court) के काम को रोकने के लिए आदेश दिया जाता है।
(Stay Order) जैसे- अधिनस्थ कोर्ट द्वारा कोई निर्णय देने में उल्लंघन किया जा रहा है तो High Court द्वारा उसको रोकना।
यह रिट केवल न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों के विरूद्व ही जारी की जा सकती है। यह प्रशासनिक, विधायी एवं निजी व्यक्ति या निकाय के खिलाफ नहीं।
उत्प्रेषण(Certiorari)- इसमें जब Lower Court (सुप्रीम कोर्ट के सामने High Court Lower है और High Court के सामने अधीनस्थ कोर्ट Lower है) द्वारा अनुचित फैसला, अप्रकृतिक फैसला या अपने क्षेत्राधिकार के बाहर फैसला दे चुका है तो Higher Court द्वारा उस फैसले पर उत्प्रेषण जारी जाता है।
अनुच्छेद-33 :- इसमें संसद द्वारा सेना, गुप्तचर, राजदूत, मीडिया में युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया जा सकता है ताकि अनुशासन बना रहे। यह अधिकार केवल संसद को है ना राज्य विधानमण्डल को।
अनुच्छेद- 34 :- मार्शल लॉ/सैन्य कानून लागू होने पर संसद द्वारा मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। (मार्शल लॉ- युद्व, अशांति, दंगे या कानून का उल्लंघन आदि असाधारण परिस्थितियां होने पर लागू किया जा सकता है) ताकि समाज में व्यवस्था बनाई रखी जा सके।
मार्शल लॉ को लागू करमे समय सैन्य प्रशासन के पास जरूरी कदम उठाने के लिए असाधारण अधिकार होते है।
अनुच्छेद-35 :- इसमें संसद कुछ विशेष मूल अधिकार को अधिक प्रभावी/शक्तिशाली बनाने के लिए कानून बना सकती है। यानी संसद मूल अधिकारों में Positive/युक्तियुक्त संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे को संशोधन किये बिना।
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