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समान नागरिक संहिता क्या है और इसके लागू होने पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जानें सब कुछ

भारत में अलग-अलग जाति, धर्म, समुदाय आदि के मानने वाले लोग रहते हैं जिसमें उनकी अपनी प्रथाएं, अपने कानून हैं जैसे- हिन्दुओं के लिये शादी के संबंध में Hindu Marriage Act, 1955, का प्रावधान है, Special Case के लिये अलग कानून है, 

मुस्लिमों के लिये मुस्लिम पर्सनल लॉ है जो कि 1937 से चला आ रहा है। ऐसे ही ईसाइयों के लिये अलग कानून है, पारसी समुदाय के लिये अलग कानून है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा धार्मिक प्रावधान से ऊपर उठकर मानवाधिकार की बात की गयी।

समान नागरिक संहिता क्या है :- 

समान नागरिक संहिता का सामान्यता मतलब होता है - भारत में रहने वाले हर नागरिकए चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों ना हो, के लिये एक कानून का होना।

यह अनिवार्य रूप से भारत के सभी नागरिकों के पर्सनल मामलों जैसे - विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार से संबंधित मामलों के लिये एक जैसा कानून है।

क्योंकि भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद - 44 में लिख गया है कि राज्य(मतलब देश) भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

कानून दो तरह के होते हैं- 

  1. सिविल कानून,
  2. अपराधिक कानून

सिविल कानून - इन कानूनों के माध्यम से  दो संगठनों या दो व्यक्तियों के बीच विवाद(सम्पत्ति, धन, आवास, तलाक, बच्चों की कस्टडी आदि) को सुलझानें की कोशिश की जाती है।

अपराधिक कानून-  इस तरह के कानूनों में समाज के खिलाफ हुए अपराधों से निपटने की कोशिश की जाती है इसमें हत्या, रेप, आगजनी, डकैती हमला आदि शामिल हैं।

भारत में वर्तमान में अपराधिक कानून एक समान लागू होते हैं चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म से क्यों ना हो।

जबकि सिविल कानून एक समान लागू नहीं होते हैं और 

ये धर्म और आस्था के आधार पर बदलते रहते हैं।

सिविल कानून धर्म के आधार पर तय किये जाते है, जैसे यदि आप हिन्दु हैं तो अलग तरह के कानून लागू होंगे, यदि आप मुस्लिम हैं तो अलग तरह के कानून लागू होंगे।

लेकिन कुछ सिविल कानून ऐसे हैं जो एक समान लागू होते हैं जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, भारतीय साझेदारी अधिनियम।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ज्यादतर सिविल कानून ऐसे हैं जो धर्म या आस्था के आधार पर तय होते हैं और मात्र कुछ ही कानून ऐसे हैं जो एक समान लागू होते हैं।

हिन्दु व मुस्लिमों के लिये विवाह, तलाक और बच्चा गोद लेने जैसे आदि मामलों में अलग-अलग कानून हैं। इसलिये हम कह सकते हैं कि ज्यादातर सिविल मामलों में धर्म बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों हैं ?:- समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून लागू करने, साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों को एक जैसा रूप बनाने का प्रावधान करती है। यानी सभी नागरिकों पर एक जैसा कानून लागू होना। 

दूसरे शब्दों में समान नागरिक संहिता सभी वर्गों एवं धर्मों के लिये अलग-अलग कानून न होकर पूरे देश में एक ही प्रकार का कानून लागू होना।

भारत के संविधान का कौन सा अनुच्छेद समान नागरिक संहिता से सम्बंधित है ? :- समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-4 में राज्य के नीति निदेशक तत्व के अनुच्छेद-44 में किया गया है 

जिसका मतलब है कि राज्य पूर भारत में नागरिकों के लिये एक  समान कानून लागू करने का प्रयास करेगा।

राज्य के नीति निदेशक तत्वों में उल्लेख प्रावधान राज्य पर बाध्यकारी नहीं है यानी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं हैं, 

लेकिन इसमें निहित सिद्वांत मौलिक प्रकृति के हैं यानी सरकार का कर्तव्य है कि इन सिद्वांतों पर महत्व दे।


समान नागरिक संहिता क्या है : Uniform Civil Code in Hindi : समान नागरिक संहिता के फायदे और नुकसान : कॉमन सिविल कोड

समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष :- 

समान नागरिक संहिता क्यों जरुरी है  :   शाहबानो केस(1985) में  सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नागरिक संहिता(Uniform Civil Code) की ओर ध्यान आकृषित किया, 

क्योंकि इस Case में शाहबानों के पति द्वारा तलाक दिया गया तो गुजारा भत्ते को लेकर यह बात सुप्रीम कोर्ट पहूंच गई तथा पति द्वारा तर्क दिया गया था 

कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में गुजारे भत्ते की बात नहीं गयी है एवं सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया की वह अपनी पत्नी जिससे उसे तलाक हुआ है उसे गुजारा भत्ता दे, 

लेकिन इस फैसले से कुछ मुस्लिम धर्मगुरू नराज हुए और सरकार ने इस दबाव के चलते एक कानून पास किया जिसका नाम "मुस्लिम महिला तलाक पर संरक्षण अधिकार अधिनियम, 1986" इसमें कहा गया कि तलाक देने पर गुजारे भत्ते की जरूरत नहीं होगी। 

फिर 2011 में इसे रद्द करते हुए कहा कि तलाक के बाद महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए।

समान नागरिक सहिंता के खिलाफ तर्क :  भारत में अनेकों धर्म, जाति के लोग रहते हैं जिसमें कुछ अल्पसंख्यक में आते हैं तो कुछ अपनी सांस्कृतिक के कारण बहुत संवेदनशील हैं जैसे पूर्वेत्तर भारत में जनजातियां।

भारत का संविधान का अनुच्छेद-14 Classification की बात करता है यानी एक वर्ग के लिये एक प्रकार का कानून होना चाहिए, हम सबको एक ही रूप में नहीं आंका जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार भारत में अलग-अलग संस्कृति, परम्पराएं एवं धार्मिक मान्यताएं हैं ऐसे में एक ही कानून को इन अलग-अलग वर्गों पर लागू नहीं किया जा सकता है। 

(भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के बीच धार्मिक संरक्षण की बात की गयी है यानी धर्म की सुरक्षा की बात की गयी है जो कि मौलिक अधिकार का हिस्सा है) 

वर्ष 2018 में Law Commission द्वारा कहा गया है कि भारत में अभी समान नागरिक संहिता लागू करने का उचित समय नहीं है एवं इसे लागू करना गैर-जरूरी बताया है जो कि समस्या का हल नहीं है 

बल्कि समान नागरिक संहिता के Systematic तरीके को अपनाना जैसे अलग-अलग धर्म के कानूनों को Codified करना ताकि उनमें मौजूद रूढ़िवादी नियम सामने आ सके। जिससे मतभेद, झगड़ा आदि को रोका जा सके।                 

क्या भारत में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए ? - समान नागरिक संहिता उद्देशिका में उल्लेखित सामाजिक, न्याय तथा एकता और अखंडता, साथ ही अनुच्छेद-14, 15, 25, 29 और अनुच्छेद 30 से जुड़ी हुई है।

समान नागरिक संहिता को भारतीय संविधान के निर्माताओं द्वारा इस उद्देश्य से नीति-निदेशक तत्व(अनुच्छेद-44) में शामिल किया गया कि निकट भविष्य में सरकारों द्वारा जागरूकता और जनमत के साथ इस दिशा में कदम उठाया जाये। 

नीति निदेशक तत्व बाध्यकारी नहीं हैं संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता को नीति निदेशक तत्व में इसलिये शामिल किया कि जब हमें लगेगा कि नागरिक अब इसके लिये तैयार है। यानी वर्तमान में समान नागरिक संहिता लागू की जाये या नहीं यदि नही तो हमें इंतजार करना चाहिए।

21वीं सदी में धार्मिक मान्यताओं में बदलाव आया है और समान नागरिक संहिता लागू करने का background बना है, लेकिन भारतीय समाज में अभी भी परंपराओं और मान्यताओं को धार्मिक आधार प्राप्त है 

इसलिये सरकार को चाहिए कि बाध्यकारी कानून लाने के बजाये आपस में समर्थन की दिशा में समर्थन बढ़ाये, क्योंकि बिना जनमत की इच्छा को जाने बिना समान नागरिक संहिता लागू करना उचित कदम नहीं होगा। 

(बिना जनता के समर्थन के समान नागरिक संहिता को लागू कर जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते है वह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पायेगा जिससे नागरिकों के वर्ग विशेष में सरकार के प्रति संदेह और अविश्वास प्राप्त हो सकता है।)

अनुभव बताते हैं कि देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के विचार और प्रयास वोट बैंक की राजनीति के लिये किये गये हैं। 

इसलिये समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग समाज के सभी वर्गों की ओर से आने पर ही इसे लागू करना अधिक उचित एवं Practical होगा और अलग-अलग कानून में जो प्रावधान संविधान के विपरीत है, 

उनमें संशोधन कर संविधान की मूल भावना के अनुसार किया जा सकता है, ऐसा करते समय सरकार को समाज के सभी वर्गों के मूल्यों तथा परम्पराओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। 

इसमें कोई जल्दी नहीं की जानी चाहिए, बल्कि इस तरह की सोच होनी चाहिए कि हमें सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना है।

समान नागरिक संहिता के संबंध में न्यायालय के निर्णय-

सरला मुद्वल बनाम भारत संघ(1995) : इस मामले में न्यायालय ने कहा कि हिन्दु कानून के हिन्दु विवाह केवल हिन्दु विवाह अधिनियम, 1955 के तहत निर्दिष्ट किसी भी आधार पर भंग किया जा सकता है।

जॉन वल्लामथन बनाम भारत संघ(2013) : इसमें कहा गया कि पूरे भारत में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में कहा कि वह संसद को समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश नहीं दे सकता क्योंकि इस मामले में फैसला लेने का काम संसद का है।

शाहबानो केस 2017 - इस मामले में सुप्रीम ने ट्रिपल तलाक(तलाक-ए-बिददत) की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया और इसे एक अपराधिक अपराध बना दिया।

विधि आयोग की सिफारिश(2018) - इसमें विधि आयोग ने कहा कि समान नागरिक सिंहता अब न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है यानी आसान भाषा में विधि आयोग ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लाना ना तो जरूरी है और ना ही इसकी आवश्यकता है।

Uniform Civil Code(समान नागरिक संहिता) के संबंध में ऐतिहासिक जानकारी :-

Act - किसी एक विषय पर Law लागू करना।

Code- इसमें कई कानून होते हैं जैसे IPC

Criminal- यह Crime मामलों के संबंध में व्यक्ति बनाम सरकार इसमें punishment की demand की जाती है। इसके दो हिस्से होते हैं- 

1. Substantive(इसमें Family, Property, Contract आदि के मामले आते हैं) 
2. Procedure (इसमें मामले कोर्ट जाने पर कोर्ट का क्या Procedure रहेगा)।

Substantive- इसमें बताया जाता है कि क्या सही है क्या गलत है। इसमें सामान्यतः IPC का प्रयोग होता है।

Procedure- इसमें process को बताया जाता है कि सुनवाई कैसे होगी, किस जज के पास होगी, demand क्या होगी। इसके लिये  Crpc का प्रयोग किया जाता है।

Civil- Legal मामले के संबंध में व्यक्ति बनाम व्यक्ति इसमें जो demand होती है Damages (Compensation की)। इसके दो हिस्से होते हैं 

1 Substantive 
2 Procedure

Uniform - इसका अर्थ होता है असमानता को खत्म कर समानता लाना।

Law - दो तरह के होते हैं 

1. Personal Law(व्यक्तिगत कानून) 

2. Lex Loci (समानता के लिये कानून यानी एक जैसा कानून)

प्राचीन भारत में कानून के स्त्रोत वेद और स्मृति है जैसे मनुस्मृति, याज्ञवल्वय स्मृति। 

मध्य भारत में कानून शरीयत का Law Apply किया जाने लगा जो Divine Law के रूप में है

आधुनिक भारत में 1965 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दीवाने अधिकार खरीदे तो इसका मतलब हुआ इस कम्पनी द्वारा जमीन राजस्व खरीदना तो इससे संबंधित विवाद भी इस कम्पनी द्वारा हल किया जाना।

1773 में रेगुलेटिंग Act लागू करना और इसी Act के द्वारा सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी।

1781 में Civil Law में हिन्दुओं के लिये अलग, मुस्लिम के लिये अलग कानून की व्यवस्था की गई और दूसरे धर्म के लिये अंग्रेजी कानून के हिसाब से लागू करने की व्यवस्था की गयी।

1829 में लार्ड बिलियम बेंटिंग ने राजा राम मोहन राय की सहायता से सती प्रथा पर कानून लाया गया। सती प्रथा में यदि किसी का पति मर जाये तो उस पत्नि को भी जला दिया जाता था।

1829 में ही नवजात लड़कियों के खिलाफ कानून बनाया।

1833 Act के चार्टर के बाद अंग्रेजों के द्वारा समान नागरिक संहिता की ओर कदम बढ़ाया गया और 1834 में Law Commission(विधि आयोग) बनाया गया।

Law Commission क्या है - इसके अध्यक्ष थे लार्ड मैकाले। इसी के द्वारा IPC का draft लिखा गया, Lex Loci का सुझाव दिया यानी एक जैसा कानून बनाया जाये।

1853 Act के चार्टर में दूसरे Law Commission आया पहले Law Commission के सुधार के लिये। इसमें CPC, Crpc, IPC के सुझाव दिये गये।

1857 की घटना के बाद अंग्रेजों का Control भारत में बढ़ गया इसी में 1859 में CPC, 1860 IPC, 1861 में CrPC कानून लागू किये गये।


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लार्ड डलहौजी के समय 1856 में हिन्दु महिला पुनर्विवाह अधिनियम बनाया गया।

1850 में Caste Disability Revaluation Act पारित किया इसमें जाति के आधार पर आयोग्ता को रोकना।

1861 में तीसरा Law Commission आया।

1872 में Indian Evidence Act लागू किया गया इसमें तय किया गया कि गवाही का process क्या होगा एवं 1972 में ही Indian Contract Act लागू किया गया।

1873 में Special Marriage Act लागू किया गया इसका मकसद था कि Inter Caste और Inter Religious Marriage किया जाना यानी कोई एक धर्म का व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने का प्रावधान या उसी धर्म के अन्दर दूसरी जाति से शादी करना। फिर यह Act खारिज कर दिया जया।

फिर 1954 में Special Marriage Act लागू किया गया। इस Act के द्वारा शादी करने के लिये ना जाति पूछी जायेगी, ना धर्म पूछा जायेगा ना ये कि आप कहां के रहने वाले हो, हां भारत के नागरिक होने चाहिए।

1891 में Age of Consent Act में लड़कियों की उम्र 12 साल रखी गयी एवं 1929-30 में शारदा Act के तहत 18 साल लड़के की उम्र और 14 साल लड़कियों की उम्र तय की गयी। तथा शारदा Act में 1978 में संशोधन कर लड़कों की उम्र 21 साल लड़कियो की उम्र 18 साल तय की गयी।

Women Rights(Property) हिन्दुओ के लिये

1874 Marriage woman property Rights Act(स्त्रीधन) इसमें स्त्री के मां बाप की तरफ से जो शादी के समय जो धन मिलता है यानी दहेज देना।

1928 में Hindu inheritance(Removal of Disability) Act इसमें तहत हिन्दुओं में जो उत्तराधिकार में जो अयोग्यता है उनको हटाने का प्रावधान किया गया है यानी महिलाओं को भी सम्पत्ति में अधिकार मिलना चाहिए।

1937 में Deshmukh Act के तहत स्त्रीधन पर स्त्रियों को Absolute Rights है यह इस धन को महिला द्वारा बेचा भी जा सकता है और सम्पत्ति में महिला का Limited estates का दर्जा प्राप्त है यानी इसके तहत महिला अपनी इच्छा से इस सम्पत्ति को बेच नहीं सकती है हां यदि सम्पत्ति बिकती है तो उसको हिस्सा मिल जायेगा।

1937 में Deshmukh Act के तहत हिन्दु विधवा को सम्पत्ति का अधिकार मिला।

इसी समय मुस्लिमों के लिये 1937 में Muslim Personal Law(शरीया) Act लागू हुआ इसके तहत प्रावधान है कि मुस्लिमों के जो मामले हैं वह मुस्लिम पर्सनल लॉ(शरीया) के द्वारा हल किये जायेंगे।

1939 में Dissolution Muslim marriage Act पारित किया गया इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि मुस्लिम महिलाओं को यह अधिकार है कि वे तलाक लेना चाहे तो कोर्ट के द्वारा ले सकती हैं।

समान नागरिक संहिता के बारे में जानकारी(FAQs) :

Questions and answers :-

Q.  भारतीय संविधान की धारा 44 क्या है? :- 

A.  भारतीय संविधान के भाग-4 में राज्य के नीति निदेशक तत्व के अनुच्छेद-44 में किया गया है जिसका मतलब है कि राज्य पूर भारत में नागरिकों के लिये एक  समान कानून लागू करने का प्रयास करेगा।

Q. समान नागरिक संहिता के गठन में क्या बाधाएं हैं? :- 

A. 21वीं सदी में धार्मिक मान्यताओं में बदलाव आया है और समान नागरिक संहिता लागू करने का background बना है, लेकिन भारतीय समाज में अभी भी परंपराओं और मान्यताओं को धार्मिक आधार प्राप्त है ।

Q. यूनिफॉर्म सिविल कोड के नुकसान? :- 

A.  सुप्रीम कोर्ट के अनुसार भारत में अलग-अलग संस्कृति, परम्पराएं एवं धार्मिक मान्यताएं हैं ऐसे में एक ही कानून को इन अलग-अलग वर्गों पर लागू नहीं किया जा सकता है। 

(भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के बीच धार्मिक संरक्षण की बात की गयी है यानी धर्म की सुरक्षा की बात की गयी है जो कि मौलिक अधिकार का हिस्सा है) 

Q. यूनिफॉर्म सिविल कोड के फायदे? :- 

A.  समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून लागू करने, साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों को एक जैसा रूप बनाने का प्रावधान करती है। यानी सभी नागरिकों पर एक जैसा कानून लागू होना। 

दूसरे शब्दों में समान नागरिक संहिता वर्गों एवं धर्मों के लिये अलग-अलग कानून न होकर पूरे देश में एक ही प्रकार का कानून लागू होना।

Q. क्या हमें भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है? :- 

A. बिना जनता के समर्थन के समान नागरिक संहिता को लागू कर जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते है वह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पायेगा जिससे नागरिकों के वर्ग विशेष में सरकार के प्रति संदेह और अविश्वास प्राप्त हो सकता है।)

अनुभव बताते हैं कि देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के विचार और प्रयास वोट बैंक की राजनीति के लिये किये गये हैं। 

इसलिये समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग समाज के सभी वर्गों की ओर से आने पर ही इसे लागू करना अधिक उचित एवं Practical होगा और अलग-अलग कानून में जो प्रावधान संविधान के विपरीत है।

Q. समान नागरिक संहिता किस राज्य में लागू है? :- 

A.  समान नागरिक संहिता अभी गोवा राज्य में लागू है।

Q. समान नागरिक संहिता कितने देशों में लागू है? :- 

A. विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। समान नागरिक संहिता से संचालित पन्थनिरपेक्ष देशों की संख्या बहुत अधिकहै:-जैसे कि अमेरिकाआयरलैंडपाकिस्तानबांग्लादेशमलेशियातुर्की , इंडोनेशियासूडान, मिस्र, जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है।

Q. समान नागरिक बिल क्या है? :- 

A. केंद्र सरकार ने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बिल संसद में पेश करने की पूरी तैयारी कर ली है । यह बिल संसद में कभी भी पेश किया जा सकता है इस बिल का मकसद देश में सभी नागरिकों को समान कानून उपलब्ध कराना है।

Q. यू सी सी क्या है? :- 

A.  समान नागरिक संहिता (यूसीसी) सभी वर्गों एवं धर्मों के लिये अलग-अलग कानून न होकर पूरे देश में एक ही प्रकार का कानून लागू होना।

समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून लागू करने, साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों को एक जैसा रूप बनाने का प्रावधान करती है।

Q. भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला राज्य कौन सा है? :- 

A.  भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला राज्य गोवा और उत्तराखंड है | 

Q. समान नागरिक संहिता को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ? :- 

A.  समान नागरिक संहिता को अंग्रेजी में Uniform Civil  Code  कहते  है 

Q. समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य कौन सा है? :- 

A.  भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य गोवा है और फिर उत्तराखंड है | 


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