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भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी और एक्ट ईस्ट पॉलिसी क्या है

भारत ने 1992 में लोक लिस्ट पॉलिसी(Look East Policy) को 2 उद्देश्यों के रूप में प्रस्तावित किया। 

1991 की  वैश्वीकरण संबंधी आंधी ने भारत में नई आर्थिक नीति को लागू किया जिससे भारत बंद से खुली अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया| 

इसके कारण नए क्षेत्रों और बाजारों तक अपनी पहुंच स्थापित करने के लिए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक और सभ्यता संबंधों के आधारों पर इस नीति को प्रस्तावित किया।  

उत्तर पूर्व के राज्यों में प्रथकतावाद एक बड़ी समस्या बनती जा रही थी जिसका मूल कारण इन राज्यों का शेष भारत की तुलना में कमजोर आर्थिक विकास देखा जा सकता है 

इस पृथकतावाद  को समाप्त करने के लिए इन राज्यों ने तेजी के साथ आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए "लुक ईस्ट पॉलिसी" की नीति एक तर्कपूर्ण व्यवहारिक विकास था लुक ईस्ट पॉलिसी केंद्रित प्रक्रिया थी जिसका संचालन विदेश मंत्रालय से होता था।

लुक ईस्ट पॉलिसी 2.0 क्या है :- यह एक विकेंद्रित प्रक्रिया है जिसमें एक अलग मंत्रालय उत्तर पूर्व के विकास के लिए गठित है और उत्तर पूर्व के सभी राज्य इस नीति में सहभागिता रखते हैं -

पहली लुक ईस्ट पॉलिसी नीति क्षेतिज विकल्प था जो उत्तर-पूर्व के राज्यों को म्यांमार के रास्ते आसियान रास्तों से जोड़ता था

कालांतर में इसका उर्ध्वा स्वरूप निर्मित किया जिसमें बांग्लादेश और चीन को शामिल किया गया जिसके द्वारा BCIM-Bangladesh, China, India, Mayamar जैसा एक  समूह निर्मित किया गया ।

भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी और एक्ट ईस्ट पॉलिसी क्या है


आसियान देशों से पहले दौर में भारत का सीमित जुड़ा था जिसमें पहले सेक्टोलर पार्टनरशिप बाद में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा  भारत को प्राप्त हुआ।

लुक ईस्ट पॉलिसी 2.0 में भारत, आसियान शिखर वार्ता का सर्वोच्च दर्जा में रखता है

म्यांमार में सैन्य शासन के चलते भारत के राजनीतिक संबंध पहले दौर में बहुत सीमित थे जिसे लुक ईस्ट पॉलिसी 2.0 में अत्यंत घनिष्ठ संबंधों में परिवर्तित कर दिया गया|  

अमेरिका जैसी एक ध्रुवीय ताकत ने  म्यांमार में लोकतंत्र के बहाली के लिए भारत को बड़ा श्रेय दिया।

लुक ईस्ट पॉलिसी Vs  एक्ट ईस्ट पॉलिसी 

लुक ईस्ट पॉलिसी इसका आरंभ 1991 में प्रधानमंत्री श्री नरसिंह राव द्वारा किया गया।

इसका मुख्य लक्ष्य क्या है:- भारत के व्यापार की दिशा और भारत के पड़ोसी देशों से हटकर दक्षिण पूर्वी एशिया के राष्ट्रों की ओर करना(राजनीतिक आर्थिक और सुरक्षा संबंध के संबंध में।)

उत्तरदायी कारक:- 

शीत युद्ध के बाद वैश्विक परिवर्तन,

वैश्वीकरण,

आर्थिक पहलुओं पर जोर,

दक्षिण एशिया में आर्थिक एकीकरण की धीमी गति,

एशिया-प्रशांत में चीन का प्रभाव,

भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वृहत भूमिका की चाह।

भारत द्वारा उठाए गए कदम :-  1992 में क्षेत्रीय वार्ताकार दर्जे से 2002 में शिखर सम्मेलन के वार्ताकार का दर्जा मिला | 

2003 में दूसरा चरण के अंतर्गत नीति को ऑस्ट्रेलिया और उसके पूर्वी देशों तक विस्तार किया।

एक्ट ईस्ट पॉलिसी :- इसकी शुरुआत नवंबर 2014 मैं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से हुई।

उद्देश्य:- देखने में निहित ठहराव से आगे बढ़ना और इस क्षेत्र में पहले से अधिक सक्रिय भूमिका का निर्वहन करना| 

इसका संकेंद्रण दक्षिण पूर्व एशिया के साथ-साथ पूर्वी एशिया(जापान, कोरिया आदि) में भी बढ़ाया गया है।

नीति के 3C (CCC) से का क्या मतलब है:-

  • कॉमर्स(Commerce)
  • कल्चर (Culture)
  • कनेक्टिविटी(Connectivity)

नीति के महत्वपूर्ण बिंदु मेक इन इंडिया,

डिजिटल इंडिया,

स्मार्ट सिटी, 

स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों में सहयोग प्राप्त करना जापान और अमेरिका के साथ मिलकर क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने की योजना बनाना।

चुनौतियां क्या हैं :- 

क्षेत्रीय सुरक्षा, 

चीन की सक्रियता तथा अमेरिका और जापान का प्रभाव, 

जुड़ाव का मुद्दा,

आर्थिक-व्यापारिक संबंधों को वास्तविक क्षमता तक पहुंचाना, 

दक्षिण चीन सागर का विवाद।

लुक ईस्ट पॉलिसी केवल आर्थिक एकीकरण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक सीमित है जबकि एक्ट ईस्ट पॉलिसी में आर्थिक के साथ-साथ सुरक्षा एकीकरण भी शामिल है तथा इसमें दक्षिण पूर्व एशिया के अलावा पूर्वी एशिया जिसे जापान आदि भी शामिल है

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