गुट निरपेक्ष आंदोलन का 2019 में 18वां सम्मेलन अजरबेजान की राजधानी बाकु में हुआ जिसमें भारतकी ओर से तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकेया नायडु ने भाग लिया।
भारत के प्रधानमंत्री का इस सम्मेलन में भाग ना लेने के कारण यह प्रश्न चिन्ह लगने लगा कि क्या गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता कम होने लगी है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन (Gutnirpeksh aandolan) :- आसान भाषा में गुटनिरपेक्षता का अर्थ है कि कोई भी देश किसी गुट में शामिल ना होकर अपनी स्वतंत्र नीति बनाना, यहां गुट से मतलब है पूंजीवाद का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और साम्यवाद का नेतृत्व रूस कर रहा था।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है, सबसे पहले गुट निरपेक्षता शब्द का प्रयोग जार्ज लिस्का दिया गया, फिर बाद में इसे अन्य विद्मानों द्वारा इसे अलग अलग तरीकों से परिभाषित किया गया।
जब द्वितीय विश्व युद्व समाप्त हो गया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा इसे सिस्टेमटिक रूप दिया गया, जिसको मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर व युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो ने इसे अपनाया।
गुट निरपेक्ष आंदोलन का उद्देश्य दोनों गुटों(अमेरिका गुट व सोवियत संघ गुट) की राजनीति से दूर रहना एवं दोनों गुटों के साथ मैत्री रखना, किसी के साथ सैनिक संधियां ना करना और एक स्वतंत्र विदेश नीति का विकास करना।
इसका बिल्कुल भी मतलब यह नहीं है कि केवल आंखें बंद करके विश्व में हो रही घटनाओं को देखते रहना, बल्कि इसका मतलब होता है सही और गलत में अन्तर करते हुए सही का पक्ष लेने की नीति ही गुटनिरपेक्षता है, लेकिन गुटनिरपेक्ष देश वही हो सकता है, जो गुटों से दूर रहकर, अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये।
जार्ज लिस्का के अनुसार गुटनिरपेक्षता- "गुटनिरपेक्षता तटस्थता नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है, उचित और अनुचित का अन्तर जानकर उचित का साथ देना"।
गुटनिरपेक्षता अलगाववाद या पृथकतावाद की नीति नहीं है, पृथकतावाद मतलब, खुद को दूसरे देशों की समस्याओं की दूर रखना।
गुट निरपे़क्ष आंदोलन की पृष्ठभूमि :-
1945 के बाद जब विश्व 2 गुटों में बंट गया-
1. संयुक्त राज्य अमेरिका
2. सोवियत संघ
संयुक्त राज्य अमेरिका पूंजीवाद की ओर झूका हुआ था और सोवियत संघ साम्यवाद की ओर झूका हुआ था जिसे द्विधु्रवीय विश्व कहा जाता है।
जिसके कारण अमेरिका पूंजीवाद का विस्तार करने के लिये दूसरे देशों को अपनी ओर आकृषित कर रहा था और सोवियत संघ अपनी ओर।
1945 से पहले फ्रांस और इंग्लैंड 2 महाशक्तियां थी और बहुत से देश इनके गुलाम थे लेकिन 1945 के बाद इनकी शक्तिकमजोर होने के कारण ये देश आजाद होने लगे। जिसमें अफ्रीका और एशिया महाद्वीप के देशों की संख्या बहुत ज्यादा थी।
नये स्वतंत्र देशों के सामने आर्थिक, सैन्य, सामाजिक समस्या थी, यदि ये देश किसी गुट से सहायता लेते तो ये गुट तभी सहायता करते जब ये देश इनके गुट में शामिल होता।
इसलिये यहां से नये स्वतंत्र देशों में यह विचार आया होगा, कि हमें आर्थिक, सैनिक सहायता मिले या नहीं मिले लेकिन हमें किसी गुट में शामिल नहीं होना है और एक अलग गुट बनाने का विचार आया जिसे गुट निरपेक्ष आंदोलन कहा जाता है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन किसने शुरू किया था - गुट निरपेक्ष आंदोलन बनाने में भारत के पंडित जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो, डां सुकर्णो इंडोनेशिया के राष्ट्रपति, अब्दुल नासिर मिस्र के राष्ट्रपति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी।
1961 में नेहरू, टिटो(युगोस्लाविया के राष्ट्रपति) और नासिर(मिस्त्र के राष्ट्रपति) इन तीनों ने मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन की शुरूआत की जिसके पहले सम्मेलन में 25 देशों ने भाग लिया।
गुट निरपेक्षता का अर्थ क्या है-
- गुटों की राजनीतिक से दूर रहना यानी हमें ना पूंजीवाद की तरफ जाना है ना ही साम्यवाद की तरफ जाना है।
- किसी भी गुट के साथ सैनिक संधिया ना करना।
- दोनों गुटोंके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करते हुए स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करना।
इसका पहला सम्मेलन बेल्ग्रेड(युगोस्लाविया) में हुआ जिसमें 5 मानदण्ड निर्धारित किये गये जो इस प्रकार हैं: -
- संबंध देश गुटनिरपेक्षता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की विदेश नीति पर स्वतंत्र आचरण करना।
- संबंध देश उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना।
- संबंध देश शीत युद्व से संबंधित ना हो।
- संबंध देश ने किसी महाशक्ति के साथ कोई द्विपक्षीय संधि न की हो।
- उस देश की भूमि पर कोई भी विदेशी सैनिक अड्डा स्थापित ना किया गया हो।
गुटनिरपेक्षता के नकारात्मक पक्ष :-
नकारात्मक दृष्टि से गुटनिरपेक्षता का अर्थ है शक्तिहीनता के कारण नये राज्यों का बड़ी शक्ति की समस्याओं से दूर रहना व उनका आदेश ना मानना।
भारतीय की गुट निरपेक्ष नीति -
गुटनिरपेक्षता के संबंध में भारत के दृष्टिकोण की बात करें तो भारत ने गुटनिरपेक्षता को शांति की नीति के रूप में अपनाया भारत की गुटनिरपेक्षता का संबंध अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में स्थिति को अपरिवर्तनीय रखने से नहीं था,
भारत ने गुटनिरपेक्षता को क्यों चुना गया-
भारत पश्चिमी गुटों(पूंजीवाद गुट) में इसलिये शामिल नहीं हो सकता था क्योंकि इस गुट के अनेक देश उपनिवेशवादी शाक्ति रह चुके थे कुछ देश अब भी जातीय भेदभाव का व्यावहार कर रहे थे।
गुटनिरपेक्षता की विशेषताएं-
यह हर तरह के सैनिक, राजनीतिक, सुरक्षा-संधियों व गठबंधनों का विरोध करने की नीति है, गुटनिरपेक्षता शीतयृद्ध के दौरान उत्पन्न सैन्य गठबंधनों जैसे नाटो, सीटो व वारसा पैक्ट का विरोध करती हैं।
गुटनिरपेक्षता का मानना है कि सैनिक गठबंधन साम्राज्यवाद, युद्ध आदि विश्व शांति को भंग करते हैं।
यह आदोलन शीतयुद्व से दूर रहने की नीति का पालन करती है, क्योंकि इनके अनुसार शीतयुद्व से शांति भंग होती है।
गुटनिरपेक्षता स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करने में विश्वास करती है, क्योंकि इसका मानना है कि गुटबनिदयां राष्ट्रीय हितों के लिये हानिकार है।
गुटनिरपेक्षता अलगाववाद व पृथकतावाद की नीति नहीं है, बल्कि यह समस्याओं के समाधान के लिये सहयोग करती है।
यह शांतिपूर्ण सहअस्तित्व तथा आपसी सहयोग की नीति है।
यह युद्व से हुए लाभ को लेने के किसी भी अवसर का विरोध करती है।
निष्कर्ष :-
जहां तक गुट निरपेक्षता की प्रासंगिकता की बात है तो यह कहीं से भी कम प्रतीत नहीं होता है क्योंकि जब उद्देश्य ज्यों के त्यों अस्तित्वमान है तो उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह लगाया ही नहीं जा सकता है।
- पहला सम्मेलन- यह 1961 में बेल्ग्रेड(यूगोस्लाविया) में हुआ।
- दूसरा सम्मेलन - यह 1964 में काहिरा(मिस्र) में हुआ।
- 7वां सम्मेलन- 1983 में दिल्ली(भारत) में हुआ।
- 16वां सम्मेलन - 2012 में तेहरान(ईरान) में हुआ।
- 17 वां सम्मेलन - 2016 में वेनेज्वेला में हुआ इसमें भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भाग लिया।
- 18 वां सम्मेलन - 2019 में बाकु(अजरबेजान) में हुआ।
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