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Lokpal kya hai : लोकपाल के काम व शक्तियां क्या है

"भ्रष्टाचार एक ऐसा दीमक होता है जो किसी भी देश के ढांचे को खाता रहता है इसलिए इसको लगाम लगाना बहुत जरूरी हो जाता है"  इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त का विचार आया।


लोकपाल शब्द का सबसे पहले उल्लेख 1963 में लक्ष्मीमल सिंघवी के द्वारा किया गया, जो उस वक्त लोकसभा के सदस्य थे और उसी वक्त लोकपाल की नियुक्ति की जानी चाहिए या नहीं की जानी चाहिए इसके लिये 1966 में पहला प्रशासनिक आयोग किया गया।

इस आयोग का मुख्य उददेश्य था कि लोकपाल का गठन कैसे किया जाना चाहिए, इस आयोग के अध्यक्ष मोरार जी देसाई थे। फिर लोकपाल बिल 17 दिसम्बर 2013 को राज्यसभा द्वारा व 18 दिसम्बर 2013 को लोकसभा द्वारा पारित किया गया और 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति द्वारा इस पर हस्ताक्षर किये गये।

लोकपाल  और लोकायुक्त अधिनियम 2013 द्वारा केंद्र के लिए लोकपाल संस्था का गठन किया गया तथा राज्यों के लिए लोकायुक्त संस्था का गठन किया गया।

ये संस्थाएं वैधानिक निकाय हैं क्योंकि इनका निर्माण विधि (अधिनियम) द्वारा किया गया है तथा इसे संवैधनिक दर्जा प्राप्त नहीं है क्योंकि हमारे संविधान में इसका जिक्र नहीं किया गया है।

लोकपाल और लोकायुक्त में क्या अंतर है  :- 

  • लोकपाल केन्द्र के स्तर पर काम करने वाला निकाय है, तो लोकायुक्त राज्य स्तर पर काम करने वाला निकाय है। 
  • लोकपाल और लोकायुक्त दोनों निकाय को भ्रष्टाचार की जांच के लिये गठित किया गया है।
  • लोकपाल के क्षेत्राधिकार में संसद के सभी सदस्य व केन्द्र सरकार के कर्मचारी शामिल हैं, जबकि लोकायुक्त के क्षत्राधिकार में विधानसभा के सभी सदस्य और राज्य सरकार के कर्मचारी शामिल हैं।
  • लोकपाल की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है जबकि लोकायुक्त की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा की जाती है।
  • लोकपाल में अधिकतम 8 सदस्य शामिल हो सकते है, जबकि लोकायुक्त 3 सदस्यीय निकाय है।

ओम्बड्समैन क्या है ? :- यह संस्थाएं Ombudsman का कार्य करते हैं भारत में ओंबड्समैन को लोकपाल कहां जा कहा जाता है एवं कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करते हैं, 

हमें लोकपाल या लोकायुक्त जैसी संस्थाओं की आवश्यकता क्यों पड़ी:-  भारत जैसा देश जहां भ्रष्टाचार बहुत बड़े स्तर पर है एवं यहां अधिकतर भ्रष्टाचार को रोकने वाली संस्थाएं पूर्णत: स्वतंत्र नहीं है यहां तक की सुप्रीम कोर्ट ने CBI को "पिंजरे का तोता" और "अपने मालिक की आवाज बताया" है।

भारत में भ्रष्टाचार निरोधी कई एजेंसियों के पास नाममात्र शक्तियां हैं वह केवल परामर्शी निकाय हैं जिससे उनकी सलाह का कोई ठोस अनुसरण नहीं किया जाता है, 

इसके अलावा इनके पास जवाबदेही व पारदर्शिता की भी समस्या है क्योंकि इन पर नजर रखने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है।

अक्सर हम सुनते रहते हैं कि इस क्षेत्र में उतना भ्रष्टाचार हुआ, उस क्षेत्र में उतना भ्रष्टाचार हुआ| 
 
अधिकतर योजनाओं में भ्रष्टाचार का स्तर बहुत ज्यादा है इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि एक स्वतंत्र लोकपाल संस्था भारतीय राजनीति के इतिहास में एक मील का पत्थर कहा जा सकता है, जिसने कभी समाप्त ना होने वाले भ्रष्टाचार के खतरे का एक समाधान प्रस्तुत किया है।

लोकपाल(Ombudsman) की आधिकारिक शुरुआत साल 1809 में स्वीडन में हुई लेकिन इसका  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुत तेजी के साथ इसका विकास होने लगा।

1962 में न्यूजीलैंड और नार्वे में इसे अपनाया गया, 

1967 में ग्रेट ब्रिटेन द्वारा Ombudsman को अपनाया गया एवं जो लोकतांत्रिक विश्व में इसे अपनाने वाला यह पहला देश बना|  

1966 में गोयाना पहला विकासशील देश बना जिसने इसे अपनाया, 

इसके बाद मॉरीशस, सिंगापुर, मलेशिया व भारत में भी इसे अपनाया।

Lokpal kya hai, लोकपाल कौन है: लोकपाल के काम व शक्तियां क्या है

भारत में लोकपाल की स्थिति क्या है : - भारत में संवैधानिक लोकपाल का विचार सर्वप्रथम साल 1960 के दशक की शुरुआत में कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने संसद में प्रस्तुत किया था|  

लोकपाल शब्द सर्वप्रथम किसने दिया है :- लोकपाल और लोकायुक्त शब्द विधिवेत्ता डॉक्टर एल. एम. सिंघवी द्वारा दिया गया | 

साल 1966 में "प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग" द्वारा सरकारी अधिकारियों (जिसमें संसद के सदस्य भी शामिल हैं) के विरुद्ध शिकायतों को देखने के लिए केंद्र व राज्यों के स्तर पर दो स्वतंत्र प्राधिकारियों की स्थापना की सिफारिश की गई 

तथा 1968 में लोकपाल विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन लोकसभा के विघटन के साथ ही यह समाप्त हो गया | 

इसके बाद यह लोकसभा में कई बार प्रस्तुत हुआ एवं कई बार समाप्त हो गया यानी 2011 तक लोकपाल को पास करने के लिए 8 प्रयास किए गए लेकिन सभी प्रयास असफल हो गए।

वर्ष 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में "द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग" ने लोकपाल का पद जल्द से जल्द स्थापित करने की सिफारिश की।

लोकपाल बिल क्या है ? :- भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत आंदोलन जिसका नेतृत्व अन्ना हजारे ने किया इसमें तत्कालीन केंद्र सरकार(UPA सरकार) पर दबाव बनाया और इसके बावजूद संसद के दोनों सदनों में "लोकपाल व लोकायुक्त विधेयक 2013 पारित हो गया 

तथा 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने सहमति दी और यह 16 जनवरी, 2014 से लागू हो गया|

भारत का पहला लोकपाल कौन है ? :- भारत के पहले लोकपाल 2019 में पी.सी. घोष बने।

लोकपाल की संरचना :-  लोकपाल एक बहु सदस्यीय संस्था है जिसमें  एक चेयर पर्सन व इसमें अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं।

लोकपाल की नियुक्ति कैसे होती है? -  

लोकपाल संस्था का चेयर पर्सन या तो 

भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश, 

या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश,

या  असंदिग्ध ईमानदार (ऐसा व्यक्ति जिसकी इमानदारी पर शक ना किया जा सके)  व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिए जिसके पास 

  • भ्रष्टाचार विरोधी नीति, 
  • सार्वजनिक प्रशासन, 
  • सतर्कता, 
  • वित्त बीमा और बैंकिंग कानून व प्रबंधन में  न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान व अनुभव हो।

अधिकतम 8 सदस्यों में से 4 न्यायिक बैकग्राउंड से होंगे  यानी  50% सदस्य (जैसे कुल 6 सदस्य हैं तो तीन न्यायिक क्षेत्र से होंगे)

4 सदस्य अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला क्षेत्र से होने चाहिए।

लोकपाल संस्था में न्यायिक बैकग्राउंड से -

या तो सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश,

या किसी उच्च न्यायालय का पूर्व मुख्य न्यायाधीश होने चाहिए|  

गैर न्यायिक सदस्य  असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति भ्रष्टाचार विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त बीमा और बैंकिंग कानून व  प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्ष का अनुभव होना चाहिए | 

लोकपाल का कार्यकाल कितना होता है :- 

लोकपाल संस्था के चेयर पर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की उम्र तक है | 

लोकपाल की नियुक्ति कौन करता है ?:- सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, इस समिति के चेयर पर्सन प्रधानमंत्री होंगे व 

अन्य सदस्य लोकसभा के अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित कोई अन्य न्यायाधीश और एक प्रख्यात न्याय विद, से मिलकर बनती है 

लोकपाल चेयर पर्सन तथा उसके सदस्यों के चुनाव के लिए चयन समिति कम से कम 8 व्यक्तियों का एक सर्च पैनल स्थापित करती है।

लोकपाल का क्षेत्राधिकार व शक्तियां क्या है ? 

  • इसके क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, ग्रुप - ए, बी, सी व  डी  अधिकारी/कर्मचारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी को शामिल किया गया है,
  • लेकिन प्रधानमंत्री के क्षेत्राधिकार में केवल भ्रष्टाचार के उन आरोपों तक सीमित रहेगा जोकि अंतरराष्ट्रीय संबंधों, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंध ना हो 
  • यानी लोकपाल प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के मामले में जांच नहीं करेगा जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा व अंतरिक्ष से संबंधित हो।
  • संसद में कहीं गई किसी बात या दिए गए वोट के मामले में मंत्रियों या सांसदों पर लोकपाल का क्षेत्राधिकार नहीं होगा यानी अनुच्छेद 105 जो सांसदों को विशेषाधिकार देता है उनको भी कहीं ना कहीं इसके क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया है,
  • किसी निकाय समिति के प्रभारी (जैसे निदेशक/सचिव)भी इसके क्षेत्राधिकार में आएंगे जो केंद्रीय कानून द्वारा स्थापित हो या कोई अन्य व्यक्ति जिसने घूस देने या लेने में सहयोग दिया हो।
  • लोकपाल अधिनियम द्वारा यह आदेश दिया जाता है कि सभी लोक सेवक अपनी तथा अपने आश्रितों की परिसंपत्तियों वह देयता को प्रस्तुत करें, यानी यह बताएं की कितनी संपत्ति है कहां से लाए हैं, कहां कहां पर है।
  • लोकपाल के पास सीबीआई की जांच करने व उसे निर्देश देने का अधिकार है जब लोकपाल किसी मामले को सीबीआई को सौंपता है तो जो अधिकारी जांच कर रहा है उसका ट्रांसफर बिना लोकपाल की अनुमति के नहीं होगा | 
  • लोकपाल द्वारा जांच करने की जो इकाई है उसे सिविल न्यायालय के समान शक्तियां प्राप्त हैं यानी लोकपाल समन  भेज सकता है, रिकॉर्ड मांग सकता है, रिपोर्ट मांग सकता है| 

  • जब कोई संपत्ति भ्रष्टाचार के साधनों से बनाई गई हो तो ऐसी परिस्थितियों में लोकपाल को उन परिसंपत्तियों में लोकपाल को उन परिसंत्तियों, आमदनी, प्राप्तियों  और लाभों को जब्त करने का अधिकार है| 
  • जब कोई लोक सेवक भ्रष्टाचार के  आरोपों से जुड़ा हो तो लोकपाल को उसके ट्रांसफर या निलंबन की सिफारिश करने का अधिकार है एवं प्राथमिक जांच के दौरान रिकॉर्ड को नष्ट करने से रोकने के लिए लोकपाल को निर्देश देने का अधिकार है।

Lokpal kya hai, लोकपाल कौन है: लोकपाल के काम व शक्तियां क्या है : लोकपाल और लोकायुक्त में क्या अंतर है

लोकपाल में क्या कमियां है :- भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए लोकपाल संस्था जरूरी परिवर्तन ला सकती है लेकिन इसके बावजूद इसमें कुछ कमियां भी हैं जिन्हें दूर किया जाना भी जरूरी है:- 

  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 पारित होने के बाद भी लोकपाल चेयर पर्सन की नियुक्ति 5 साल बाद की गई जोकि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी दर्शाता है,
  •  इस अधिनियम में कहा गया है कि राज्य भी अपने यहां लोकायुक्त 1 साल के भीतर लागू करें लेकिन मात्र 16 राज्यों नही लोकायुक्त को स्थापित किया है।
  • लोकपाल की जो नियुक्ति समिति है उसमें राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होते हैं इसलिए लोकपाल की नियुक्ति में राजनीतिक प्रभाव रहने की संभावना रहती है।
  • कौन प्रख्यात न्यायविद व सत्यनिष्ठा का व्यक्ति होगा यह निर्धारित करने का कोई मानदंड नहीं है इसलिए लोकपाल की नियुक्ति में चालाकी दिखाई जा सकती है।
  • इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि यदि कोई व्यक्ति की शिकायत करता है और वह आरोपी यदि निर्दोष पाया जाता है तो फिर जिस ने शिकायत की थी, उसको पकड़ा जाएगा, उसकी जांच की जाएगी, जिसके कारण यह लोगों को शिकायत करने में हतोत्साहित करेगा| 
  • न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है जबकि अक्सर देखा गया है कि न्यायपालिका को भी संदेह की निगाह से देखा जाता है, 
  • लोकपाल को कोई संवैधानिक आधार नहीं दिया गया है और लोकपाल के खिलाफ अपील करने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
  • लोकायुक्त की नियुक्ति से संबंधित विशिष्ट विवरण पूरी तरह से राज्यों पर छोड़ दिया गया है,
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत उस तारीख से 7 साल के बाद पंजीकृत नहीं की जा सकती यानी किसी घटना को घटे हुए 7 साल हो गई है तो उस घटना को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है,
  • किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध लोकपाल स्वयं संज्ञान (suo moto) के आधार पर कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता है बल्कि शिकायत के प्रारूप के आधार पर जांच करेगा,
  • इसमें अनाम शिकायत की अनुमति नहीं है बल्कि नाम के साथ शिकायत करनी होती है यानी सादे कागज पर शिकायत नहीं कर सकते चाहे उसके साथ सहयोगी दस्तावेज क्यों ना हो।

सुझाव :- लोकपाल को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कार्यात्मक स्वायत्तता व पर्याप्त मात्रा में स्टॉफ दिया जाए ताकि इस संस्था को मजबूती प्रदान की जाए,

सार्वजनिक जांच का जो विषय है वह निष्पक्ष होना चाहिए, 

लोकपाल की नियुक्ति कर देना पर्याप्त नहीं है बल्कि सरकार को उन मुद्दों को भी हल करना चाहिए जिनके आधार पर लोगों द्वारा लोकपाल की मांग की गई, 

केवल जांच एजेंसियों को बढ़ाने से भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगेगा बल्कि यह जरूरी है कि इससे प्रशासनिक कार्यों में भी सुधार किया जाए, 

लोकपाल जिन लोगों या संस्था की जांच कर रहा है तो लोकपाल इन पर निर्भर या  इनसे जुड़ा नहीं होना चाहिए,

लोकपाल या लोकायुक्त की नियुक्ति पारदर्शिता से होनी चाहिए ताकि गलत लोगों को इसमें ना चुना जाए।

लोकपाल व लोकायुक्त(संशोधन) विधेयक 2016 :-  

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 में संशोधित कर इसे संसद द्वारा जुलाई, 2016 में पारित किया गया 

इसमें मुख्य बात यह है कि इसके द्वारा तय किया गया कि यदि विपक्ष में कोई मान्यता प्राप्त नेता नहीं है तो लोकसभा में सबसे बड़े एकल विरोधी दल का नेता लोकपाल की नियुक्ति की चयन समिति का सदस्य होगा।

लोकपाल के बारे में जानकारी(FAQs) :-

Q. लोकपाल में सदस्यों की संख्या कितनी होती है ?:- 
 
A.  लोकपाल एक बहु सदस्यीय संस्था है जिसमें  एक चेयर पर्सन व इसमें अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं।

Q. भारत में पहली बार लोकपाल कब नियुक्त किया गया :- 
 
A.  भारत के पहले लोकपाल 2019 में पी.सी. घोष बने।

Q. भारत का वर्तमान लोकपाल कौन है  :- 
 
A.  भारत में 2022 से न्यायमूर्ति श्री प्रदीप कुमार मोहंती को लोकपाल का अध्यक्ष के रूप में चुना गया है 

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