BBC Documentary क्या है:- BBC की PM मोदी पर बनी Documentary को लेकर चल रहे विवाद के बीच अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है |
सरकार द्वारा इस documentary पर लगाई गयी रोक को हटाने के लिए याचिका दायर की गयी है |
इस याचिका में documentary पर सुचना मत्रालय द्वारा लगाई गयी रोक को मनमाना, असंवैधानिक, गैर कानूनी करार दिया है और साथ ही सुप्रीम कोर्ट से केंद्र के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की है |
और इसमें बताया गया है कि क्या केंद्र सरकार बोलने की आज़ादी पर अंकुश लगा सकती है जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत यह एक मौलिक अधिकार है |
सुप्रीम कोर्ट क्या है in hindi : - भारत में एकीकृत न्याय व्यवस्था है, जिसमें सबसे ऊपर सुप्रीम कोर्ट(उच्चतम न्यायालय) तथा उसके अधीन हाई कोर्ट है एवं हाईकोर्ट के अधीन अधीनस्थ न्यायालय की व्यवस्था की गई है।
जैसे - जिला न्यायालय व अन्य अधीनस्थ न्यायालय।
न्याय व्यवस्था का क्रम : सुप्रीम कोर्ट - हाई कोर्ट - जिला न्यायालय - ग्राम न्यायालय - family कोर्ट आदि।
यानी एकीकृत न्याय व्यवस्था का मतलब है कि एक जैसा कानून लागू होना जैसे मान लेते हैं कि आप U.P. के रहने वाले हो आप ने कोई अपराध किया है तो इस अपराध के लिए सजा U.P., राजस्थान, बिहार यानी पूरे देश में एक समान होगी।
यह एकल व्यवस्था हमने भारत सरकार अधिनियम, 1935 से ली है ।
सुप्रीम कोर्ट की संरचना :-
उच्चतम न्यायालय में कुल 34 न्यायधीश( एक मुख्य न्यायधीश व 33 अन्य न्यायाधीश) हैं।
वर्ष 2019 से पहले सुप्रीम कोर्ट में कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 थी, लेकिन वर्ष 2019 में केंद्र सरकार द्वारा संशोधन कर न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34(मुख्य न्यायाधीश सहित) कर दी है।
जब हमारा संविधान लागू हुआ उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में आठ न्यायधीश(एक मुख्य न्यायाधीश व सात अन्य न्यायाधीश) हुआ करते थे ।
नोट : संसद न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार में वृद्धि कर सकती हैं, लेकिन कम नहीं कर सकती।
- वर्ष 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के प्रवर्तन से कलकत्ता में पूर्ण शक्ति एवं अधिकार के साथ कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
- बंगाल, बिहार और उड़ीसा में यह सभी अपराधों की शिकायतों को सुनने तथा निपटान करने के लिये एवं किसी भी कार्यों की सुनवाई एवं निपटान हेतु स्थापित किया गया था।
- मद्रास एवं बंबई में सर्वोच्च न्यायालय जॉर्ज तृतीय द्वारा क्रमशः वर्ष 1800 एवं वर्ष 1823 में स्थापित किये गए थे।
- भारत उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के तहत विभिन्न प्रांतों में उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई एवं कलकत्ता, मद्रास और बंबई में सर्वोच्च न्यायालयों को तथा प्रेसीडेंसी शहरों में सदर अदालतों को समाप्त कर दिया गया।
- इन उच्च न्यायालयों को भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत के संघीय न्यायालय की स्थापना तक सभी मामलों के लिये सर्वोच्च न्यायालय होने का गौरव प्राप्त था।
- संघीय न्यायालय के पास प्रांतों और संघीय राज्यों के बीच विवादों को हल करने और उच्च न्यायालयों के निर्णय के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार क्षेत्र था।
- वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया एवं इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के सभी न्यायालयों के लिये बाध्यकारी है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे होती है ? : -
कॉलेजियम system क्या है : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम की सिफारिश पर करता है ।
कॉलेजियम में एक मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं राष्ट्रपति बिना कॉलेजियम की सलाह पर नियुक्ति नहीं करते हैं।
प्रथम न्यायाधीश मामले (1982) में न्यायालय ने कहा कि परामर्श का मतलब सहमति नहीं बल्कि विचारों का आदान-प्रदान है
यानी कार्यपालिका को मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेना जरूरी है।
कॉलेजियम सिस्टम कब शुरू हुआ : द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993) में न्यायालय ने अपने पूर्व के फैसले को परिवर्तित किया और कहा कि "परामर्श का मतलब सहमति प्रकट करना" है यानी मुख्य न्यायाधीश की सलाह लेना अनिवार्य है,
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को यह सलाह अपने दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के सहयोग से लेनी होगी तथा हम कह सकते हैं कि यहां से कॉलेजियम सिस्टम शुरू हो गया ।
वैसे यह कॉलेजियम शब्द संविधान में नहीं लिखा गया है बल्कि यह न्याय व्यवस्था के तहत use किया जाता है।
इसी तरह तीसरे न्यायधीश मामले (1998) में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से सलाह करनी चाहिए।
यदि इसमें से दो न्यायधीश पक्ष में नहीं है तो न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सिफारिश नहीं भेजी जा सकती लेकिन एक पक्ष में नहीं है तो सिफारिश भेजी जा सकती है।
99 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 तथा न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बने कॉलेजियम प्रणाली को एक नए निकाय 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग ('National judicial appointments commission - NJAC) से प्रतिस्थापित कर दिया
यानी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति NJAC से की जाएगी, NJAC में एक मंत्री को भी शामिल करने की बात की गई,
जो सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता व न्यायिक समीक्षा संविधान के मूल ढांचे में शामिल है तथा संसद मूल ढांचे में संशोधन नहीं कर सकती।
अतः साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने 99 संविधान संशोधन तथा NJAC अधिनियम को अघोषित कर दिया अब सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पुरानी कॉलेजियम प्रणाली कार्यरत हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय "fourth judges Case" 2015 में आया।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कैसे होती है ? :- 1950 से 1973 तक यह व्यवस्था थी कि उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठता के आधार पर न्यायधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता था लेकिन 1973 में ए.एम. राय वरिष्ठता के आधार पर चौथे नंबर पर आते थे,
लेकिन उनको तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों से ऊपर मुख्य न्यायाधीश बनाया गया इसका नतीजा यह हुआ कि 1975 में लगा राष्ट्रीय आपातकाल में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका निष्पक्ष नहीं थी।
इसी तरह 1977 में एम.यू. बैग को भी वरिष्ठतम न्यायधीश के ऊपर मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया।
इस निर्णय की स्वतंत्रता को उच्चतम न्यायालय ने दूसरे मुख्य न्यायाधीश मामले (1993) में कम किया और उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था की कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश को ही भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए
यानी अब वरिष्ठता के आधार पर ही मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होगी।
न्यायाधीशों की योग्यता : - सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने के लिए निम्न योग्यता होनी चाहिए: -
- वह भारत का नागरिक हो,
- उसे हाईकोर्ट में कम से कम 5 साल के लिए न्यायधीश होना चाहिए या
- उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालयों में मिलकर मिलाकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए या
- राष्ट्रपति के मत में उसे सम्मानित न्याय वादी होना चाहिए ।
लेकिन संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है।
शपथ :- सुप्रीम कोर्ट में किसी न्यायाधीश को नियुक्त होने से पहले राष्ट्रपति या राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त व्यक्ति इसके सामने शपथ लेनी होती है कि मैं :-
भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा,
भारत की प्रभुता व अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा,
अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों को बिना किसी भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के पालन करूंगा,
संविधान एवं विधि की मर्यादा बनाए रखूंगा।
शपथ और प्रतिज्ञान दोनों एक ही हैं लेकिन शपथ शब्द उसके द्वारा use किया जाता है जो ईश्वर में विश्वास रखता हो और प्रतिज्ञान उसके द्वारा यूज़ किया जाता है जो ईश्वर में विश्वास ना रखता हूं।
न्यायाधीशों का कार्यकाल कितना होता है: - संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल तय नहीं है जिसके लिए निम्न प्रावधान है :-
वह 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकता है, वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर पद त्याग सकता है,
संसद की दो - तिहाई बहुमत के पारित होने के बाद सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।
वेतन और भत्ते :- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश और पेंशन संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं,
व इनके वेतन भत्ते संचित निधि पर भारित होते हैं।
वित्तीय आपातकाल की स्थिति के में ही उनके वेतन भत्ते में कटौती की जा सकती है उसके अलावा नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की वेतन, सेवा की शर्तों में संशोधन हेतु वर्ष 2021 में पेश किया गया था।
न्यायाधीशों को कैसे हटाया जाता है :- राष्ट्रपति के आदेश द्वारा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उसके पद से हटाया जा सकता है,
लेकिन राष्ट्रपति ऐसा तभी कर सकता है जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा इसी सत्र में ऐसा प्रस्ताव आया हो।
इस आदेश को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत (यानी सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा सदन में उपस्थित मत देने वाले सदस्यों का दो तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिए
जैसे : जब लोकसभा में प्रस्ताव 100 सदस्यों की सहमति से आता है फिर यह प्रस्ताव स्पीकर को भेजा जाता है ऐसे ही राज्यसभा में प्रस्ताव 50 सदस्यों की सहमति से आता है फिर यह प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति को भेजा जाता है।
स्पीकर या सभापति इस प्रस्ताव को पास भी कर सकते हैं और रिजेक्ट भी।
यदि स्पीकर और सभापति इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं तो यह प्रस्ताव एक जांच कमेटी को भेजा जाता है इस समिति में 3 सदस्य (सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट का कोई जज, किसी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश, कोई प्रतिष्ठित न्यायविद) होते हैं ।
यदि यह समिति इन आरोपों को गलत बताती है तो मामला यहीं समाप्त हो जाएगा यदि यह समिति आरोप सही बताती है तो यह मामला संसद में जाता है,
न्यायधीश को हटाने का आधार उसका दुर्व्यवहार या सिद्ध कदाचार होना चाहिए।
न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश को हटाने के संबंध में उपबंद है।
हमारे देश का सुप्रीम कोर्ट कहां है ?: संविधान में सुप्रीम कोर्ट का स्थान दिल्ली घोषित किया गया है,
लेकिन मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार है कि वह उच्चतम न्यायालय का स्थान कहीं और निर्धारित कर सकता है लेकिन इसके लिए उसे राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेनी होती है।
उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता : - भारतीय लोकतांत्रिक पद्धति में उच्चतम न्यायालय को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मूल अधिकारों का गारंटर और संविधान का अभिभावक है।
इसलिए इस तरह के कार्य के लिए सुप्रीम कोर्ट के लिए प्रभावी स्वतंत्रता और अधिकार काफी अहम है तथा इसे अतिक्रमण, दबाव और हस्तक्षेप से स्वतंत्र होना चाहिए।
इसलिए हमारे संविधान में सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता और निष्पक्ष कार्य के लिए निम्न Provisions है:
नियुक्ति का तरीका : - सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के आधार पर होती है,
जिसमें संसद की भूमिका ज्यादा नहीं होती है क्योंकि इसमें न्याय व्यवस्था से संबंधित व्यक्ति होते है।
कार्यकाल की सुरक्षा :- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया बहुत कठोर होती है,
जिसके कारण उन को पद से हटाने का डर नहीं रहता और वह अपने पूरे कार्यकाल तक अपने पद पर रहते हैं ।
निश्चित सेवा शर्त:- इनके वेतन, भत्ते fixed होते हैं और इनमें कटौती करना बहुत मुश्किल है।
संचित निधि से व्यय :- इनके वेतन, भत्ते संचित निधि से आते हैं जिसमें सरकार की शक्ति कम होती है
न्यायाधीशों के आचरण पर बहस पर रोक:- न्यायाधीशों के आचरण पर बहस नहीं की जा सकती यानी उनके ऊपर गलत टिप्पणी नहीं की जा सकती।
सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर रोक : - न्यायधीश रिटायर होने के बाद भारत में कहीं भी वकालत नहीं कर सकते अपनी अपमानना पर दंड देने की शक्ति(कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट) यदि कोई उसके आचरण पर गलत टिप्पणी करता है तो सुप्रीम कोर्ट के पास इस अपमानन पर दंड देने की शक्ति होती है।
अपने स्टाफ की नियुक्ति करने की स्वतंत्रता :- इस क्षेत्र में कटौती नहीं की जा सकती, संसद इसकी न्याय क्षेत्र को बढ़ा सकती है लेकिन इसके न्याय क्षेत्र में कटौती नहीं कर सकती।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश कौन होता है : राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश को भारत के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कर सकता है, जब:
- मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो,
- अस्थाई रूप से मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हो,
- मुख्य न्यायाधीश अपने दायित्वों को निर्वहन करने में असमर्थ हो।
तदर्थ न्यायाधीश कौन होते हैं : सब सुप्रीम कोर्ट में किसी सत्र को जारी रखने के लिए स्थाई न्यायाधीश के कोरम गणपूर्ति की कमी होती है,
तो ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है,
लेकिन वह ऐसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद व राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बाद कर सकता है।
तदर्थ न्यायाधीश वही चुना जा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य हो, तदर्थ न्यायाधीश का यह दायित्व है कि वह अन्य दायित्वों की तुलना में सुप्रीम कोर्ट की बैठक में भाग लेने को अधिक प्राथमिकता दें।
जब वह तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य करता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश के सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियां और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश :- सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से अल्पकाल के लिए सुप्रीम कोर्ट में काम करने के लिए अनुरोध कर सकता है लेकिन नियुक्ति संबंधित व्यक्ति व राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से हो।
तदर्थ न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित भत्ते प्राप्त करने के योग्य होता है तथा वह सर्वोच्च न्यायालय की अन्य न्यायाधीशों की तरह न्याय निर्णय, शक्तियां, विशेषाधिकार प्राप्त करता है लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की शक्ति व क्षेत्राधिकार :-
उच्चतम न्यायालय भारत के संघीय ढांचे की विभिन्न इकाइयों के बीच किसी विवाद पर संघीय न्यायालय की तरह निर्णय देता है,
यानी कोई भी मामला हो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट जाए।
मूल अधिकारों को दो तरह से प्रयोग किया गया है :
- अनन्य मूल क्षेत्राधिकार
- मूल क्षेत्राधिकार ।
अनन्य मूल क्षेत्राधिकार : केंद्र व एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद हो या
राज्य बनाम राज्य विवाद,
राष्ट्रपति - उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद
यानी ऐसे मामले जो केवल सुप्रीम कोर्ट में ही हल किए जाते हैं।
मूल क्षेत्राधिकार : ऐसे अधिकार जो सुप्रीम कोर्ट के अलावा अन्य कोर्ट में भी जा सकते जैसे मूल अधिकार से संबंधित मामलों में आप सुप्रीम कोर्ट के अलावा हाई कोर्ट में भी जा सकते हो।
सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्राधिकार के संबंध में दो बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए:
पहला - विवाद ऐसा हो जिस पर विधिक अधिकार निहित हो, इस तरह राजनीतिक प्राकृति का प्रश्न इसमें समाहित नहीं है ।
दूसरा - किसी नागरिक द्वारा केंद्र या राज्य के विरुद्ध लाए गए मामले को इसके अंतर्गत स्वीकार नहीं किया जाता है।
इस तरह सुप्रीम कोर्ट के इस न्याय क्षेत्र में निम्नलिखित समाहित नहीं है :
- कोई विवाद जो किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौता, सनद व अन्य समान संस्थाओं को लेकर उत्पन्न हुआ हो।
- कोई विवाद जो संधि, समझौते आदि के बाहर पैदा हुआ हो जिसमें विशेष तौर पर यह व्यवस्था हो कि संबंधित न्याय क्षेत्र उस विवाद से संबंधित नहीं है।
- अंतरराष्ट्रीय जल विवाद।
- वित्त आयोग के संदर्भ वाले मामले।
- केंद्र एवं राज्यों के बीच कुछ खर्चों व पेंशन का समझौता।
- केंद्र व राज्यों के बीच वाणिज्यिक प्राकृतिक वाला साधारण विवाद। केंद्र के खिलाफ राज्य के किसी नुकसान की भरपाई।
न्यायादेश क्षेत्राधिकार : - संविधान द्वारा उच्चतम न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों के रक्षक एवं गारंटर के रूप में स्थापित किया गया है एवं पांच प्रकार की रिट ( बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिशेध एवं अधिकार पृच्छा) के द्वारा सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करें।
सुप्रीम कोर्ट मूल अधिकारों के लिए रिट को मना नहीं कर सकता जबकि हाईकोर्ट रिट के लिए मना कर सकता ।
सुप्रीम कोर्ट केवल मूल अधिकारों के लिए रिट जारी कर सकता है जबकि हाईकोर्ट मूल अधिकारों के अलावा अन्य अधिकारों के लिए भी रिट जारी कर सकता है।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को मूल न्याय अधिकार प्राप्त है और नागरिकों के अधिकार है कि वह बिना अपील याचिका के सीधे उच्चतम न्यायालय में जा सकते हैं,
लेकिन न्यायायदेश न्यायक्षेत्र के मामले में सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और इस तरह का अधिकार उच्च न्यायालय को भी प्राप्त है।
अपीलीय क्षेत्राधिकार :- आसान भाषा में ऐसे मामले जो हाईकर्ट या अधीनस्थ न्यायालयों में हैं उनके खिलाफ ऊपरी अदालत(सुप्रीम कोर्ट) में अपील करना।
सुप्रीम कोर्ट संघीय न्यायालय के उत्तराधिकारी की तरह है यानी सुप्रीम कोर्ट अपीलीय न्यायालय है ।
मतलब सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों के फैसले के खिलाफ सुनवाई करता है ।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है या क्यूरेटिव याचिका दाखिल की जा सकती है,
इसके अलावा भी राष्ट्रपति के पास जाया जा सकता है और वहां क्षमा याचना दायर की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय न्याय क्षेत्र को चार भागों में बांटा जा सकता है :-
- संवैधानिक मामलों में अपील,
- दीवानी मामलों में अपील,
- आपराधिक मामलों में अपील,
- विशेष अनुमति द्वारा।
संवैधानिक मामलों में अपील : संवैधानिक मामलों में उच्चतम न्यायालय में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है।
दीवानी मामलों में अपील : दीवानी मामलों के तहत उच्चतम न्यायालय में किसी भी मामले को लाया जा सकता है यदि उच्चतम न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि :
मामला सामान्य महत्व के पूरक प्रश्न पर आधारित है,
ऐसा प्रश्न है जिसका निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है।
आपराधिक मामलों में अपील : सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आपराधिक मामलों के फैसले के खिलाफ सुनवाई करता है यदि हाई कोर्ट ने :
आरोपी व्यक्ति के दोष मोचन के आदेश को पलट दिया हो और उसे सजा-ए-मौत दी हो।
यह प्रमाणित करें कि संबंधित मामला उच्चतम न्यायालय में ले जाने योग्य है।
विशेष अनुमति द्वारा अपील : उच्चतम न्यायालय को इस बात का अधिकार है कि वह अपना मत विशेष अनुमति प्राप्त अपील को दें जो कि किसी भी फैसले से संबंधित मामले में जुड़ी हो।
Department of Justice (न्याय विभाग ) के बारे में : - कार्य आवंटन (नियम), 1961 के अनुसार, न्याय विभाग, भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय का एक हिस्सा है । यह भारत सरकार के सबसे पुराने मंत्रालयों में से एक है । 31.12.2009 तक, न्याय विभाग गृह मंत्रालय का हिस्सा था और केंद्रीय गृह सचिव, न्याय विभाग के सचिव थे ।
बढ़ते कार्यभार को ध्यान में रखते हुए और देश में न्यायिक सुधारों पर कई नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने के लिए, एक अलग विभाग अर्थात् न्याय विभाग को गृह मंत्रालय से अलग किया गया और भारत सरकार के सचिव के प्रभार में रखा गया और इसने 01 जनवरी, 2010 से विधि और न्याय मंत्रालय के तहत काम करना शुरू कर दिया ।
न्याय विभाग, जैसलमेर हाउस, 26 मानसिंह रोड नई दिल्ली में स्थित है। विभाग के संगठनात्मक ढांचे में 01 अपर सचिव, 03 संयुक्त सचिव, 07 निदेशक/उप सचिव और 08 अवर सचिव शामिल हैं । न्याय विभाग के कार्यों में भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की नियुक्ति, इस्तीफा और निष्कासन और उनके सेवा मामले शामिल हैं।
इसके अलावा, विभाग न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास, संवेदनशील प्रकृति के मामलों के त्वरित विचारण और निपटान के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना (बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट),
देश भर के विभिन्न न्यायालयों का कम्प्यूटरीकरण पर ई-कोर्ट परियोजना गरीबों को कानूनी सहायता और न्याय तक पहुंच, देश के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी को वित्तीय सहायता के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू करता है। न्याय विभाग के कार्य आवंटन (नियम), 1961 में दिए गए हैं । Department of Justice website Click
सुप्रीम कोर्ट जज लिस्ट 2022 :
नाम | पद धारण की तारीख | कब तक |
1. श्री न्यायमूर्ति हरीलाल जेकिसुनदास कनिया | 26/01/1950 | 06/11/1951* |
2. श्री न्यायमूर्ति एम. पतंजलि शास्त्री | 07/11/1951 | 03/01/1954 |
3. श्री जस्टिस मेहर चंद महाजन | 04/01/1954 | 22/12/1954 |
4. श्री न्यायमूर्ति बिजन कुमार मुखर्जी | 23/12/1954 | 31/01/1956** |
5. श्री न्यायमूर्ति सुधी रंजन दास | 01/02/1956 | 30/09/1959 |
6. श्री जस्टिस भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा | 01/10/1959 | 31/01/1964 |
7. श्री न्यायमूर्ति पी.बी. गजेन्द्रगडकर | 01/02/1964 | 15/03/1966 |
8. श्री न्यायमूर्ति ए.के. सरकार | 16/03/1966 | 29/06/1966 |
9. श्री जस्टिस के. सुब्बा राव | 30/06/1966 | 11/04/1967** |
10. श्री न्यायमूर्ति के.एन. वांचू | 12/04/1967 | 24/02/1968 |
11. श्री न्यायमूर्ति एम. हिदायतुल्ला | 25/02/1968 | 16/12/1970 |
12. श्री न्यायमूर्ति जे.सी. शाह | 17/12/1970 | 21/01/1971 |
13. श्री न्यायमूर्ति एस.एम. सीकरी | 22/01/1971 | 25/04/1973 |
14. श्री न्यायमूर्ति ए.एन. रे | 26/04/1973 | 28/01/1977 |
15. श्री जस्टिस एम. हमीदुल्ला बेग | 29/01/1977 | 21/02/1978 |
16. श्री न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ | 22/02/1978 | 11/07/1985 |
17. श्री न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती | 12/07/1985 | 20/12/1986 |
18. श्री न्यायमूर्ति आर.एस. पाठक | 21/12/1986 | 18/06/1989** |
19. श्री न्यायमूर्ति ई.एस. वेंकट रमैया | 19/06/1989 | 17/12/1989 |
20. श्री जस्टिस सब्यसाची मुखर्जी | 18/12/1989 | 25/09/1990* |
21. श्री न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा | 25/09/1990 | 24/11/1991 |
22. श्री जस्टिस के.एन. सिंह | 25/11/1991 | 12/12/1991 |
23. श्री न्यायमूर्ति एम.एच. कानिया | 13/12/1991 | 17/11/1992 |
24. श्री न्यायमूर्ति एल.एम.शर्मा | 18/11/1992 | 11/02/1993 |
25. श्री न्यायमूर्ति श्री एम एन वेंकटचलैया | 12/02/1993 | 24/10/1994 |
26. श्री न्यायमूर्ति ए.एम. अहमदी | 25/10/1994 | 24/03/1997 |
27. श्री न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा | 25/03/1997 | 17/01/1998 |
28. श्री न्यायमूर्ति एम.एम. पुंछी | 18/01/1998 | 09/10/1998 |
29. डॉ। न्यायमूर्ति ए.एस. आनंद | 10/10/1998 | 31/10/2001 |
30. श्री न्यायमूर्ति एस.पी.भारुचा | 01/11/2001 | 05/05/2002 |
31. श्री न्यायमूर्ति बी.एन. किरपाल | 06/05/2002 | 07/11/2002 |
32. श्री न्यायमूर्ति जी.बी. पटनायक | 08/11/2002 | 18/12/2002 |
33. श्री न्यायमूर्ति वी. एन. खरे | 19/12/2002 | 01/05/2004 |
34. श्री न्यायमूर्ति एस. राजेंद्र बाबू | 02/05/2004 | 31/05/2004 |
35. श्री न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी | 01/06/2004 | 31/10/2005 |
36. श्री न्यायमूर्ति वाई.के. सभरवाल | 01/11/2005 | 13/01/2007 |
37. श्री न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन | 14/01/2007 | 11/05/2010 |
38. श्री न्यायमूर्ति एस.एच. कपाड़िया | 12/05/2010 | 28/09/2012 |
39. श्री जस्टिस अल्तमस कबीर | 29/09/2012 | 18/07/2013 |
40. श्री न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम | 19/07/2013 | 26/04/2014 |
41. श्री न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा | 27/04/2014 | 27/09/2014 |
42. श्री न्यायमूर्ति एच एल दत्तू | 28/09/2014 | 02/12/2015 |
43. श्री न्यायमूर्ति हरीलाल जेकुंदास कानिया | 03/12/2015 | 03/01/2017 |
44. श्री जगदीश सिंह खेहर | 04/01/2017 | 27/08/2017 |
45. श्री जस्टिस दीपक मिश्रा | 28/08/2017 | 02 /10/2018 |
46. श्री रंजन गोगोई | 03/10/2018 | 17/11/ 2019 |
47. श्री शरद अरविंद बोबड़े | 18/11/ 2019 | 23/04/ 2021 |
Supreme Court के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश -Sh. Uday Umesh Lalit हैं।
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