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पंचायती राज क्या है, इसके कार्य, महत्व, इतिहास : संवैधानिक प्रावधान

  Panchayati Raj Vyavastha : पंचायती राज ग्रामीण स्थानीय स्वशासन(Self-government) का एक System है, जिसके द्वारा जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को पहूंचाया जाता है। 

पंचायती राज को 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में शामिल किया गया।

स्थानीय स्वशासन क्या होता है :- स्थानीय स्वशासन का मतलब होता है कि स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों(Elected Bodies) द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन(Management) करना ताकि विकेन्दीकरण(decentralization) को बढ़ावा दिया जा सके। 

क्योंकि केन्द्र स्तर पर प्रधानमंत्री व उसकी मंत्रीपरिषद और राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री व उसकी मंत्रीपरिषद तथा ग्रमाण व शहरी स्थानीय स्तर पर वहां के निर्वाचित निकायों को प्रबंध करने की व्यवस्था की गयी है।     

पंचायती राज व्यवस्था का संवैधानिक प्रावधान :- 

  • 73वें संविधान संशोधन द्वारा भाग-9(पंचायत) अनुच्छेद -243 संविधान में शामिल किया गया।   
  • उन राज्यों को छोड़कर जिनकी जनसंख्या 20 लाख से कम है 
  • ग्राम, मध्यवर्ती, जिला स्तरों की त्रि-स्तरीय System लागू किया गया है।    
  • सभी स्तरों पर निर्वाचन प्रत्यक्ष द्वारा होता है।   
  • अनुसूचित जातियों(SC) और अनुसिचत जनजातियों(ST) के लिये सीटों का आरक्षण किया गया है एवं सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पद पर भी जनसंख्या में अनुसिचत जाति और जनजाति के अनुपात के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।
  • सीटों की कुल संख्या में से 1/3 (एक तिहाई) सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • अनुसिचत जाति और जनजाति के लिये आरक्षित स्थानों में से एक तिहाई सीटें इन वर्गां की महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • चुनाव के लिये 5 साल के कार्यकाल निर्धारित किया गया है और कार्यकाल की समाप्ति से पहले नये निकायों के गठन के लिये निर्वाचान की प्रक्रिया पूरी करना आवश्यक है।
  • किसी भी निकायों के विघटन हो जाने पर 6 माह के अन्दर निर्वाचन कराना अनिवार्य है।
  • मतदाता सूची के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र चुनाव आयोग होंगे।(अनुच्छेद-243ज्ञ)

पंचायती राज का इतिहासः - 

वैदिक काल में ग्राम के प्रमुख को - ग्रामीणी कहा जाता था। 

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में पंचायती राज की संरचना- ग्राम शासक को ग्रामीक कहा जाता था और 10 गांवों के मध्य एक संस्था होगी उस संस्था का नाम संग्रहण होगा व 200 गांवों के मध्य एक ओर संस्था होगा,  जिसका नाम स्थानीक होगा।

सल्तनत काल में पंचायती राज- सल्तनत काल में भी गांवों का प्रबंधन किया जाता है, गांवों के प्रबंधन के लिये 3 प्रकार के अधिकारी हुआ करते थेः  
गांव को प्रबंधन- 

  1. नंबरदार  
  2. पटवारी  
  3. चौकीदार ।

 मुगल काल में पंचायती राज- इसमें भी गांवों के प्रबंधन के लिये 3 अधिकारी होते थे- 

  • 1. मुकददम 
  • 2. पटवारी 
  • 3. चौधरी ।

ब्रिटिश काल में पंचायती राज - वैसे स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था चोल वंश में एवं अंग्रेजों के शासन के समय लार्ड रिपन द्वारा इसे लागू किया गया। 

इसलिये लार्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है। ग्रामीण विकास का दायित्व राज्य विधानसभाओं को दिया गया है।

गांधी जी के अनुसार पंचायती राज-  महात्मा गांधी जी की संकल्पना रामराज्य बनाने की है जिसमें शक्तियों का केन्द्र गांवों को बनाया। 

न्याय करना, योजना बनाना, उसको लागू करना हो, प्रशासन करना हो आदि शाक्तियां गांव के पास होनी चाहिए, यह काम गांवों के लोग ही करेंगे।

महात्मा गांधी जी के प्रभाव के कारण ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद-40 में पंचायती राज की व्यवस्था की गयी।

आजादी के बाद पंचायती राज- आजादी के बाद एहसास हुआ कि गांवों के विकास से ही देश का विकास होगा, इसी को ध्यान में रखते हुए 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम चालू किये गये, 

लेकिन नौकरशाही के प्रभाव के चलते इनका प्रभाव इतना नहीं पड़ा जितना इसको लागू करने के लिये सोचा गया था। भारत में ‘पंचायतीराज‘ शब्द का अभिप्राय ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पद्वति से है।


पंचायती राज व्यवस्था : पंचायती राज के कार्य, इतिहास : संवैधानिक प्रावधान : Panchayati Raj System in Hindi

आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिये योजनाएं तैयार करने और इन योजनाओं(इसमें 11 वीं अनुसूची में सूचीबद्व विषयों के संबंध में योजनाएं शामिल हैं) को अमल करने के लिये पंचायतों को शक्ति व प्राधिकार प्रदान करने के लिये राज्य विधान मण्डल कानून बना सकेगा।

राज्य सरकारों के बजटीय आवंटन, कुछ करों के राजस्व की साझेदारी, करों का संग्रहण और इससे प्राप्त राजस्व का अवधारण, केन्द्र सरकार के Programme और अनुदान, केन्द्रीय वित आयोग के अनुदान आदि के संबंध में Provisions किये गये हैं।

प्रत्येक राज्य में एक वित आयोग का गठन किया जाना ताकि उन सिद्वांतों का निर्धारण किया जा सके, जिनके आधार पर पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी।

संविधान की 11वी अनुसूची पंचायती राज निकायों के अन्तर्गत 29 विषयों को शामिल करती है।

1952 में भारत सरकार द्वारा सामुदायिक विकास कार्यक्रम ग्रामीण स्तर पर शुरू किया गया है एवं 1953 में इसी का विस्तार रूप ‘राष्ट्रीय विस्तार सेवा‘ की शुरूआत की गयी। 

एवं इसके कार्यों की जांच तथा इनके बेहतर कार्य करने के लिये उपाये सुझाने के लिये एक समिति का गठन किया गया जिसका नाम बलवंत राय मेहता समिति रखा गया।

बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें :-  

 बलवंत राय मेहता समिति का गठन जनवरी, 1957 में भारत सरकार द्वारा सामुदायिक विकास   कार्यक्रम(1952) तथा राष्ट्रीय विस्तार सेवा(1953) द्वारा किये गये कार्यां की जांच करने और 

 उनके बेहतर ढंग से कार्य करने के लिये उपाय सूझाने के लिये एक समिति का गठन किया   जिसकी अध्यक्षता बलवंत राय मेहता समिति द्वारा की गयी। 

इ   इस समिति ने नवंबर, 1957 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस रिपोर्ट में जो खामियां थी उनका  जिक्र किया और उसको दूर करने के उपाय बताये जैसे लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की योजना की  सिफारिश की, जो कि अंतिम रूप से पंचायती राज के रूप में जाना गया। 

     त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था क्या है :-

  इस समिति की सिफारिशें निम्न है :-

  • 3 स्तरीय पंचायती राज पंद्वति की बात की गई - 
         1. गांव स्तर पर ग्राम पंचायत 
         2. ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति 
         3. जिला स्तर पर जिला परिषद।

  • इनके द्वारा कहा गया कि ग्राम पंचायत में प्रत्यक्ष रूप से चुनाव की व्यवस्था एवं ब्लॉक और  जिला स्तर पर अपत्यक्ष रूप से चुनाव की व्यवस्था होनी चाहिए। 
  •  सभी योजना और विकास के कार्य इन निकायों को सौंप दिये जाने चाहिए।
  • जिला परिषद का अध्यक्ष, जिलाधिकारी होना चाहिए।
  • इन लोकतांत्रिक निकायों में शक्ति तथा उत्तरदायित्व का वास्तविक स्थानांतरण होना चाहिए।
  • पंचायत राज का गठन होने के बाद अधिकांश राज्यों ने इस योजना को अपनाना शुरू कर दिया।

  • इन सिफारिशों को राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा जनवरी, 1958 में स्वीकार किया गया, लेकिन केन्द्र द्वारा किसी विशिष्ट प्रणाली पर जोर ना देकर, 
  • बल्कि राज्यों पर छोड़ दिया गया कि वे अपने अनुसार इन प्रणाणियों को विकसित कर सकते हैं।किन्तु आधारभूत विशेषताएं पूरे देश में एक जैसी होनी चाहिए। 

  • लेकिन राज्यों की इन संस्थाओं में स्तरों की संख्या, उनका कार्यकाल, संगठन, राजस्व आदि में अंतर था। 

राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज योजना को 2 अक्टूबर, 1959 को सबसे पहले लागू की गई। फिर इसके बाद आंध्र प्रदेश में लागू की गई। 

पंचायती राज के 29 विषय कौन कौन से हैं ? :-

    1.      कृषि। 
    2.       भूमि सुधार, मृदा संरक्षण।
    3.      लघु सिंचाई, जल प्रबंधन व वाटरशेड विकास।
    4.      पशुपालन, डेयरी और मूर्गी पालन।
    5.       मछली पालन।
    6.       सामाजिक वानिकी।
    7.       लघु वनोपज।
    8.       लघु उधोग।
    9.       खादी व कूटीर उधोग।
    10.        ग्रामीण आवास।
    11.        पेय जल।
    12.        ईंधन और चारा।
    13.        सड़कें, पुलिया, पुल, घाट, जलमार्ग और संचार के अन्य साधन।
    14.        बिजली के वितरण सहित ग्रामीण विधुतीकरण।
    15.        गैर-पारंपरिक उर्जा स्रोत।
    16.        गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।
    17.        प्राथमिक और माध्यमिक विधालयों सहित शिक्षा।
    18.        तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।
    19.        वयस्क और गैर-औपचारिक शिक्षा।
    20.       पुस्ताकालय।
    21.        सांस्कृति गतिविधियां।
    22.       बाजार और मेले।
    23.        स्वास्थ्य और स्वच्छता।
    24.        परिवार कल्याण।
    25.       महिला बाल विकास।
    26.        विकलांगों और मानसिक रूप से मंद लोगों के कल्याण सहित सामाजिक कल्याण।
    27.        कमजोर वर्गां का कल्याण।
    28.       सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
    29.      सामुदायिक सम्पत्ति का रख रखाव।

अशोक मेहता समिति की सिफारिशें :-

ब   बलवंत राय मेहता समिति लागू होने के बाद यह देखा गया कि गांवों के स्तर पर लोकतांत्रिक   तरीके से कार्य नहीं हो रहा तो दिसबंर, 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता समिति  का गठन किया।

     इसने अगस्त, 1978 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और देश में पतनोन्मूख पंचायती राज पद्वति को पुनर्जीवित और मजबूत करने हेतु 132 सिफारिशें कीः-

        इस समिति ने 132 सिफारिशें की- 

  • इसमें तीन स्तरीय पंचायती राज पद्वति को द्विस्तरीय पद्वति में बदलने की सिफारिश की। 
  • पंचायती चुनावों में सभी स्तरों पर राजनीतिक पार्टियों की आधिकारिक भागीदारी हो।
  • जिला स्तर पर जिला परिषद और गांव स्तर पर मंडल पंचायत(यानी 15000 से 20000 जनसंख्या वाले गांवों के समूह) होना चाहिए।

  इस समिति का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही जनता पार्टी सरकार भंग हो गई जिसके कारण   अशोक मेहता समिति पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी।

जी.वी.के. राव समिति (1985)  की सिफारिशें  : - 

  • ग्रामीण विकास व गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षा करने के लिये मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिये योजना आयोग द्वारा 1985 में जी.वी.के. राव की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया।
  • विकास प्रशासन में नौकरशाहीकरण प्रभाव के कारण पंचायती राज संस्थाएं कमजोर हो गई और इसके परिणामस्वरूप इसे ‘बिना जड़ की घास‘ कहा गया।
  •  पंचायती राज संस्थाओं में नियमित निर्वाचन होने चाहिए।

 एल.एम.सिंघवी समिति(1986) :- 1986 में राजीव गांधी सरकार ने लोकतंत्र व विकास के लिये पंचायती राज संस्थाओं का पुनरूद्वार पर एक अवधारणा पत्र तैयार करने के लिये एक समिति का गठन एल.एम. सिंहवी की अध्यक्षता में किया।

     इस समिति की निम्न सिफारिशें हैं-

  •   इसने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक रूप से मान्यता देने और उनके संरक्षण की आवश्यकता है
  •     इस कार्य के लिये भारत के संविधान में एक नया अध्याय जाड़ा जाये।
  •    पंचायती राज में नियमति स्वतंत्र  एवं निष्पक्ष चुनाव कराना के लिये संवैधानिक उपबंध की सलाह भी दी।

 थुंगन समिति(1988) की सिफारिशें :  - 

1988 में संसद की सलाहकार समिति की एक उप-समिति पी.के. थुगन की अध्यक्षता में राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे की जांच करने के उददेश्य से गठित की गयी।

      इस समिति की सिफारिशें :- 

  •     पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी जाये।
  •     गांव, प्रखंड तथा जिला स्तरों पर त्रि-स्तरीय पंचायती राज की व्यवस्था दी जाये।
  •     पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल निश्चित 5 साल का होना चाहिए।
  •      संविधान के अन्दर पंचायत से संबंधित एक सूची तैयार की जानी चाहिए।
  •      पंचायती राज के तीनों स्तरों पर जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण होना चाहिए, महिलाओं के लिये भी आरक्षण होना चाहिए।
  •       प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का गठन होना चाहिए। 

     गाडगिल समिति(1988) की सिफारिशें :- 

     1988 में वी.एन. गाडगिल की अध्यक्षता में एक नीति एवं कार्यक्रम समिति का गठन कांग्रेस      पार्टी ने किया था।

          इस समिति की सिफारिशें-

  •  पंचायत के सभी तीनों स्तरों के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए।
  •  अनुसूचित जातियों/जनजातियों तथा महिलाओं के लिये आरक्षण होना चाहिए।
  •  पंचायती राज व्यवस्थाओं को कर तथा ड्यूटी लगाने, वसूलने तथा जमा करने का अधिकार  होगा।
  • एक राज्य चुनाव आयोग की स्थापना हो जो पंचायतों के चुनाव संपन्न करवाए।

 इसके अलावा पंचायती राज को पुरूद्वार और मजबूती प्रदान करने के लिये केन्द्र सरकार  द्वारा केन्द्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग(1988) समिति  का गठन किया गया है |  


पंचायती राज व्यवस्था : पंचायती राज के कार्य, इतिहास : संवैधानिक प्रावधान : Panchayati Raj System in Hindi


73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 :- 

पंचायती राज प्रणाली को संवैधानीकरण के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 के रूप में पारित हुआ और 24 अप्रैल, 1993 करे प्रभाव में आया।

73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 में संविधान के नये भाग-9 (पंचायत नाम) व नई अनुसूची 11 के रूप में उल्लेख किया गया और अनुच्छेद 243 से 243 ण (29 विषय) तक प्रावधान शामिल किया गया।

इस अधिनियम ने संविधान के अनुच्छेद-40(ग्राम पंचायतों का गठन) को एक व्यवहारिक रूप दिया।

इस अधिनियम ने पंचायती राज प्रणाली को एक संवैधानिक दर्जा दिया है यानी राज्य सरकार संवैधानिकरण से बाध्य है और पंचायत का गठन और नियमित अंतराल पर चुनाव राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर नहीं है।

     इस अधिनियम में 2 तरह के उपबंध है :-

1.      1.अनिवार्य 

2.      2 .स्वैच्छिक

     अनिवार्य - अनिवार्य उपबंध में पंचायती राज व्यवस्था के गठन के लिये राज्य के कानून में      शामिल किया जाना आवश्यक है।

      स्वैच्छिक - स्वैच्छिक उपबंध में राज्यों के स्व-विवेकानुसार सम्मिलित किया जा सकता है।

   लेकिन स्वैच्छिक प्रावधान राज्य को नई पंचायतीराज पद्वति को अपनाते समय भौगोलिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक तथ्यों को ध्यान में रखकर अपनाने का अधिकार सुनिश्चित करता है।

ग्राम सभा क्या है :- यह अधिनियम पंचायती राज के ग्राम सभा का प्रावधान करता है। पंचायत क्षेत्र के निर्वाचक सूची में पंजीकृत व्यक्ति होते हैं यानी इसमें पंचायत क्षेत्र के सभी पंजीकृत मतदाता शामिल होते हैं।

 यह उन शक्तियों व कार्य का प्रयोग करेगी जो राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित किये गये हैं।

इस अधिनियम में सभी राज्यों के लिये त्रिस्तरीय प्रणाली का प्रावधान किया गया यानी ग्राम, माध्यमिक और जिला स्तर पर पंचायत।

ग्राम पंचायत क्या है :-  ग्राम पंचायत का निर्माण गाव स्तर पर किया जाता है। ग्राम पंचायत का चुनाव ग्राम सभा द्वारा किया जाता है। ग्राम पंचायत का एक सरपंच(कहीं कहीं पर प्रधान तो कहीं पर कुछ और नाम से जाना जाता है) होता है, जिसे ग्राम पंचायत का मुख्या भी कहा जाता है। ग्राम पंचायत के लिये एक सरकारी कर्मचारी भी होता है जिसे ग्राम सेवक कहा जाता है। इसका चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है।

पंचायत समिति क्या है :-   इसका कार्यक्षेत्र तहसील व ब्लॉक स्तर पर होता है। इसका चुनाव ब्लॉक प्रमुख के रूप में होता है। ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति का सदस्या होता है। सरकारी कर्मचारी VDO होता है।

जिला परिषद क्या है :- सरकारी अधिकारी जिला पंचायत अधिकारी होता है। इसका चुनाव जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में होता है। जिला परिषद द्वारा ग्रामीण स्तर पर प्रशासन की देख रेख का कार्य करता है। इसका चुनाव प्रत्येक 5 साल में होता है।

    ग्राम पंचायत के मुखिया या सरपंच को 2/3 बहुमत से जिला पंचायत अधिकारी द्वारा हटा दिया जाता है।

    पंचायत के  सदस्यों एवं अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है :-  गांव, माध्यमिक तथा जिला स्तर पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्वारा सीधे चुने जायेंगे।

    इसके अलावा माध्यमिक एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्हीं में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा, 

     जबकि गांव स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जायेगा।


    पंचायत में सीटों का आरक्षण कैसे होता है :- 

     यह अधिनियम प्रत्येक पंचायत में(सभी तीनों स्तरों पर) अनुसूचित जाति एवं जनजाति को उनकी संख्या के अनुपात में सीटों पर आरक्षण उपलब्ध कराता है व महिलाओं के लिये आरक्षण पंचायत के सभी स्तरों पर एक-तिहाई से कम नहीं होगा।

     यह अधिनियम विधानमंडल को इसके लिये भी अधिकृत करता है कि वह पंचायत अध्यक्ष के कार्यालय में पिछड़े वर्गों के लिये किसी भी स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था करे।

    यह प्रावधान अरूणाचल प्रदेश पर लागू नहीं होगा क्योंकि राज्य में पूरी तरह से मूल निवासी जनजातियों से आबाद है और यहां कोई अनुसूचित जाति नहीं है। यह प्रावधान बाद में 83वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा जोडा गया था।

   ग्राम पंचायत का कार्यकाल कितना होता है : यह अधिनियम सभी स्तरों पर पंचायतों का कार्यकाल 5 साल के लिये निश्चित करता है, लेकिन समय पूरा होने से पहले ही उसे विघटित किया जा सकता है। इसके बाद पंचायत गठन के लिये नये चुनाव होंगे।

      

     लेकिन जहाँ शेष अवधि(जिसमे भंग पंचायत काम करती रहती है ) 6 माह से कम है, वहां इस अवधि के लिए नई पंचायत का चुनाव आवश्यक नहीं होगा |  

     

    पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जानकारी(FAQs):-

    Q. पंचायती राज व्यवस्था कब लागू हुई | 

   A. पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर में की गयी | 

      Q. पंचायती राज व्यवस्था किस भाग में है  | 

    A. 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 में संविधान के नये भाग-9 जोड़ा गया जिसका      नाम पंचायत है | 

      Q. पंचायती राज के कितने स्तर है | 

    A. पंचायती राज में  ग्राम, मध्यवर्ती, जिला स्तरों की त्रि-स्तरीय System लागू किया गया है।

   Q. पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर कौन कौन से हैं | 

    A. पंचायती राज व्यवस्था के  तीन स्तर निम्न हैं :- 

             1. गांव स्तर पर ग्राम पंचायत 

          2. ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति 
         3. जिला स्तर पर जिला परिषद।

 

     Q. पंचायती राज का मुख्य कार्य क्या है | 

    A. पंचायती राज का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र में विकास करना व शक्तियों का विकेन्द्रीकरण करना | 

      Q. पंचायती राज को अपनाने वाला पहला राज्य कौन सा है | 

    A. पंचायती राज की शुरुआत 2, अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में हुई थी | 

    Q. 73वां संविधान संशोधन कब लागू हुआ | 

    A. पंचायती राज प्रणाली को संवैधानीकरण के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 के रूप में पारित हुआ और 24 अप्रैल, 1993 करे प्रभाव में आया | 

     Q. सरपंच का दूसरा नाम क्या है  | 

    A.  सरपंच को प्रधान/मुखिया/अध्यक्ष के नाम से भी जाना जाता है | 

     Q. सरपंच का कार्यकाल कितना होता है  | 

    A.  सरपंच का कार्यकाल सामान्यता 5 साल का होता है | 

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