कॉलेजियम सिस्टम आज सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की एक स्थापित प्रक्रिया है लेकिन कॉलेजियम सिस्टम का जिक्र भारतीय संविधान में नहीं है।
इस देश में हमेशा न्यायपालिका में नियुक्तियां कॉलेजियम सिस्टम के आधार पर ही नहीं होती है बल्कि यह समय विशेष पर निर्भर करता है |
कॉलेजियम सिस्टम को जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में संविधान में क्या लिखा है:-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और गठन का प्रावधान है |
अनुच्छेद 124(1) क्या है - भारत का एक सुप्रीम कोर्ट होगा, जिसमें एक मुख्य न्यायधीश + अन्य न्यायाधीश(मूल संविधान में 7 न्यायाधीश बताए गए हैं ) से मिलकर बना होगा |
अन्य न्यायाधीशों की संख्या संसद द्वारा बदली जा सकती है जैसे : - वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संख्या 34(1+33 ) है।
अनुच्छेद 124(2) क्या है - न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे, इसमें मुख्य न्यायधीश की परामर्श अनिवार्य है लेकिन मानना अनिवार्यता नहीं है
व मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कुछ जजों से परामर्श करने के बाद करेंगे, लेकिन राष्ट्रपति परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है।
कॉलेजियम सिस्टम का इतिहास :-
जब 26 जनवरी, 1950 को इस देश का संविधान लागू हुआ और नेहरू जी प्रधानमंत्री बने, श्री राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने, सारी संस्थाएं कार्य करने लगी।
जजों की नियुक्ति भी संविधान के प्रावधानों के अनुसार होने लगी यानी नेहरू जी के कार्यकाल में जजों की नियुक्ति मंत्रीपरिषद के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा की गई।
उस वक्त नेहरू जी की मानसिकता बहुत ही लोकतांत्रिक थी, तो इसलिए राष्ट्रपति (यानी मंत्रीपरिषद) व्यवहार में सुप्रीम कोर्ट के जजों से अच्छा परामर्श करते थे, पर्याप्त परामर्श किया जाता था फिर जजों की नियुक्ति होती थी।
उस वक्त मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में लोकतांत्रिक परंपरा की नींव डाली वह थी कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में "वरिष्ठता का नियम" लागू हुआ
यानी जब मुख्य न्यायाधीश की सीट खाली होती थी तो जो वरिष्ठ न्यायाधीश थे उनकी परामर्श से नियुक्ति की जाती थी।
लेकिन 1964 में जफर इमाम जो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे उनको मुख्य न्यायधीश ना चुनकर उनसे जूनियर को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
नेहरू जी के बाद एक छोटा कार्यकाल लाल बहादुर शास्त्री जी का आता है जिसमें कोई विशेष बदलाव कॉलेजियम सिस्टम को लेकर नहीं हुआ,
लेकिन कॉलेजियम सिस्टम विवादों में तब घिरा जब इंदिरा गांधी जी का शासन आता है हम कह सकते हैं कि यहीं से कॉलेजियम सिस्टम की शुरूआत हुई।
क्योंकि इंदिरा गांधी जी ने जजों की नियुक्ति में जो "वरिष्ठता का नियम" था उसका दो एक बार बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया और दोनों बार इसका उद्देश्य राजनीति था।
पहली बार इसका उल्लंघन 1973 में किया गया, 25 अप्रैल 1973 को "वरिष्ठता के नियम" पर एक घटना घटी |
वरिष्ठता का नियम था -
- जस्टिस जयशंकर मणिलाल शेलात,
- जस्टिस ए एन ग्रोवर,
- जस्टिस केएस हेगड़े,
- जस्टिस A. N. रे ।
25 अप्रैल, 1973 को राष्ट्रपति ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें शेलात, ग्रोवर, हेगड़े की वरिष्ठता का उल्लंघन करके A. N. रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
क्योंकि 24 अप्रैल, 1973 को केशवानंद भारती केस 1973 का फैसला आया|
केशवानंद भारती केस में भारतीय न्यायपालिका ने भारतीय संविधान की संशोधनीयता के प्रश्न पर विचार किया और संविधान के दार्शनिक पक्ष(मौलिक अधिकार, कर्तव्य, नीति निदेशक तत्व) पर ज्यादा विचार किया गया।
यानी संसद संविधान को किस सीमा तक संशोधन कर सकती है केशवानंद भारती केस के मामले में संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूल ढांचे को संशोधन नहीं कर सकती है।
भारत में संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया है इसी संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका आपस में जुड़े हुए हैं यानी कार्यपालिका, विधायिका का हिस्सा है|
मंत्रीपरिषद को कार्यपालिका व संसद को विधायिका का जाता है व्यवहारिक रूप से संसद का प्रयोग कार्यपालिका ही करती है।
ADM जबलपुर केस - 1976 - जिसे Habeas Corpus के नाम से जाना जाता है|
Habeas Corpus एक रिट है जिसे सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद - 32 या हाई कोर्ट - 226 के तहत (जब किसी व्यक्ति को असंवैधानिक तरीके से बंदी बनाया जाता है) जारी करता है।
जून, 1975 में देश में आपातकाल लगा था तथा 1976 में एडीएम जबलपुर केस मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया, इस केस में इस बात पर विचार किया गया कि जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो तो क्या इस अवस्था में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी की जाएगी? |
इस केस में 5 जज थे इन पांच जजों में से 4 जज ऐसे थे जिन्होंने कहा बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान जारी नहीं की जाएगी, लेकिन एक जज H.R. खन्ना ने कहा कि राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी की जा सकती है।
और जब 1977 में मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हुआ सबसे वरिष्ठतम न्यायाधीश H.R. खन्ना थे और उनसे नीचे थे वेग |
लेकिन मुख्य न्यायधीश वेग को बनाया गया जिसके चलते H.R. खन्ना ने इस्तीफा दे दिया भारत के इसी दौर में न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप शुरू हो गया।
एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ 1981 - इसे First Judges Case कहते हैं इसमें अनुच्छेद 124 के तहत मुख्य न्यायधीश के न्यायाधीशों की नियुक्ति में जो परामर्श का प्रयोग किया गया है "क्या उस परामर्श को सहमति माना जाए या नहीं" ? |
इस केस में इसको लेकर बहस छिड़ी, क्योंकि यदि परामर्श का अर्थ सहमति है तो नियुक्ति की शक्ति न्यायपालिका के हाथ में होगी और परामर्श का अर्थ सहमति नहीं है तो नियुक्ति की शक्ति कार्यपालिका के हाथ में होगी।
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परामर्श का अर्थ सहमति नहीं है यानी जजों की नियुक्ति की शक्ति कार्यपालिका में निहित है।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ-1993 :- इसे Second Judges Case कहते हैं।
इस केस में जजों की नियुक्ति को लेकर फिर चर्चा की गई कि "परामर्श का अर्थ सहमति है या नहीं"|
इस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परामर्श का अर्थ सहमति है, यानी जब राष्ट्रपति जजों से परामर्श प्राप्त कर लेते हैं तो वह परामर्श बाध्यकारी है,
यानी इस केस में कहा गया कि राष्ट्रपति जजों की नियुक्ति मुख्य न्यायधीश व 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों की परामर्श पर करेंगे और यह परामर्श राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है|
इस तरह के निर्णय Primacy Principle के आधार पर किया जाएंगे।
यानी इस प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश की प्राथमिकता होगी, मुख्य न्यायाधीश की राय ही न्यायपालिका की राय मानी जाएगी |
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी कहा गया कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति "वरिष्ठता के नियम" के आधार पर की जाएगी।
इसी केस से कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत होती है।
Second Judges Case की मुख्य बातें :-
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति मैं वरिष्ठता के नियम का पालन किया जाएगा |
अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह के अनुसार कार्य करेंगे|
मुख्य न्यायाधीश किसी व्यक्ति का नाम न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जजों से परामर्श करेंगे |
Primacy Principle के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की राय कार्यपालिका की राय मानी जाएगी|
इस प्रकार और व्यवहार में जजों की नियुक्ति में भारत का मुख्य न्यायाधीश की भूमिका केंद्रीय होगी।
1998 में Presidential Reference under Article 143 इसे Third Judges Case कहते है ;-
अनुच्छेद -143 भारत का राष्ट्रपति किसी विषय पर सुप्रीम कोर्ट से परामर्श मांग सकता है लेकिन राष्ट्रपति परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
इस केस में राष्ट्रपति ने परामर्श मांगी की Second Judges Case के द्वारा जो जजों की नियुक्ति हो रही है उसमें Primacy Principle है,
उसने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में असंतुलन पैदा कर दिया है, क्योंकि न्यायपालिका के जजों की नियुक्ति व्यवहार में एक व्यक्ति के हाथों में चली गई है, वह व्यक्ति है - भारत का मुख्य न्यायाधीश।
दूसरा मुद्दा, क्या संविधान इसकी इजाजत देता है? क्या संविधान के अनुसार यह सही व्याख्या है?।
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परामर्श का अर्थ सहमति है,
हां राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति सहमति से ही करेगा, लेकिन यह भी कहा कि राष्ट्रपति कॉलेजियम के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करेगा।
कॉलेजियम में 5 सदस्य होंगे इसमें अध्यक्ष भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा और इसके 4 सदस्य सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम के आधार पर न्यायाधीश होंगे और राष्ट्रपति कॉलेजियम की सलाह मानने के लिए बाध्य है।
यदि कॉलेजियम सम्यक प्रक्रिया(Due Process) का पालन करती है तो न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए,
तो राष्ट्रपति इसकी परामर्श मानने के लिए बाध्य है, लेकिन सम्यक प्रक्रिया(Due Process) का पालन नहीं करती है तो राष्ट्रपति परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है।
सम्यक प्रक्रिया(Due Process) क्या है :-
जब कॉलेजियम किसी व्यक्ति के नाम की सिफारिश करता है सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए,
तो यह सिफारिश युक्तिसंगत(कुछ नियम शर्ते) होने चाहिए जैसे : -
भारत का मुख्य न्यायाधीश की सहमति अनिवार्य है|
कॉलेजियम का निर्णय सर्वसम्मति से हो|
यदि सर्वसम्मति कायम नहीं होती है तो कोलेजियम बहुमत के आधार पर निर्णय लें|
किसी व्यक्ति की नियुक्ति में योग्यता और वरिष्ठता को भी आधार माना जाएगा लेकिन ज्यादा महत्व योग्यता को देना है।
कॉलेजियम सिस्टम की आलोचनाएं :-
कॉलेजियम सिस्टम 1993 में आता है और 1998 में स्थापित हो जाता है लेकिन यह सिस्टम संविधान से बिल्कुल अलग है।
कॉलेजियम सिस्टम संविधान की बेतुकी व्याख्या है क्योंकि बौद्धिकों के अनुसार "परामर्श का अर्थ सहमति" नहीं होता है|
कॉलेजियम के द्वारा जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया न्यायपालिका में ऐसी डाली है कि यह व्यवस्था विश्व में कहीं नहीं मिलती है,
क्योंकि नियुक्ति की शक्ति एक प्रशासनिक शक्ति मानी जाती है तो इसका प्रयोग कार्यपालिका के द्वारा किया जाना चाहिए, पूरी दुनिया के ज्यादातर देशों में यही पैटर्न चलता है।
यह भी कहा जाता है कि कॉलेजियम में भाई भतीजावाद है |
यह भी माना जाता है कि कॉलेजियम सिस्टम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50(कार्यपालिका, न्यायपालिका एक दूसरे से स्वतंत्र रूप में कार्य करेंगे) के विरुद्ध है|
व्यवहार में कॉलेजियम सिस्टम से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति क्या थी :-
1989 से 2014 तक कॉलेजियम सिस्टम एक ऐसे दौर में रहा जहां पर आमतौर पर भारत में गठबंधन की सरकारें रही हैं, सिर्फ 2014 में एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनी।
गठबंधन की सरकार आपसी झगड़े का शिकार होती है, ऐसे में जो दूसरी संस्थाएं हैं कार्यपालिका पर हावी हो जाती है |
फिर 2014 में जैसे ही पूर्ण बहुमत की सरकार आई जिसमें चर्चा हुई और इसीलिए कॉलेजियम सिस्टम को समाप्त करने के लिए 2014 में 99 वां संविधान संशोधन लाया गया और इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124A, अनुच्छेद 124B, अनुच्छेद 124C जोड़ा गया।
इसमें कॉलेजियम सिस्टम को समाप्त करके National Judicial Appointment Commission(NJAC) लाया गया और कहा गया कि
सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति कॉलेजियम सिस्टम की सलाह पर ना करके बल्कि NJAC की सलाह पर नियुक्त करेंगे।
NJAC क्या है :- यह 6 सदस्य संस्था होगी, इसमें एक अध्यक्ष व पांच सदस्य होंगे|
इसका अध्यक्ष भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा और इन 5 सदस्यों में से दो सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम सदस्य होंगे और एक सदस्य भारत का विधि मंत्री होगा और बाकी दो सदस्य ख्यातिलब्ध सदस्य(Eminent Members) होंगे।
दो ख्यातिलब्ध सदस्यों को 3 सदस्य समिति द्वारा मनोनीत किया जायेगा-
3 सदस्य समिति में :-
- भारत का मुख्य न्यायाधीश,
- प्रधानमंत्री,
- लोकसभा में विपक्ष का नेता|
शामिल होंगे। दो मनोनीत सदस्यों में से एक ST/SC, ओबीसी या महिला सदस्यों में से होगा।
NJAC जब किसी सदस्य को भारत का मुख्य न्यायाधीश के रूप के लिए प्रस्ताव देगा तो दो या अधिक सदस्य नियुक्त होने वाले व्यक्ति से सहमत ना हो,
तो ऐसा नाम नियुक्त होने के लिए राष्ट्रपति के पास प्रस्ताव के लिए नहीं भेजा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ 2015 :- इसे Fourth Judges Case कहते हैं।
हमारी संसद द्वारा तीन प्रकार के संशोधन किए जाते हैं -
- साधारण बहुमत से,
- संसद के विशेष बहुमत से,
- संसद का विशेष बहुमत + कम से कम आधे राज्यों का समर्थन|
और इसी तीसरे प्रकार के संशोधनों में ही आता है - सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की शक्ति में कमी की जाती है तो संसद का विशेष बहुमत + न्यूनतम आदि राज्यों का समर्थन वाले संशोधन की जरूरत पड़ती है।
99 वां संविधान संशोधन तीसरे वाले संशोधन में आता है और इस संशोधन को संसद के विशेष बहुमत व आदि राज्यों से सहमति मिल गई और इस पर राष्ट्रपति की भी सहमति मिल गई,
लेकिन जैसे ही है यह अस्तित्व में आता उससे पहले ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई,
फिर Fourth Judges Case 2015 आता है और इसमें कहा गया कि 99वा संविधान संशोधन संविधान के विरुद्ध है,
क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप करता है|
न्यायाधीशों ने इस पर विचार किया और सुप्रीम कोर्ट ने 99 वां संविधान संशोधन को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क:-
यह संशोधन असंवैधानिक है|
NJAC की व्यवस्था में जो दो प्रख्यातिलब्ध व्यक्ति हैं जिनके लिए शैक्षणिक योग्यता नहीं है, भारत के विधि मंत्री के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं है,
ऐसे में यह व्यक्ति कैसे जज कर पाएंगे कि कौन व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने के लिए योग्य है।
वर्तमान स्थिति क्या है :- सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही लागू है|
हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति कौन करता है :- हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 217 में प्रावधान किया गया है कि अनुच्छेद 217 के तहत हाई कोर्ट के जजो की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति तीन व्यक्तियों से सलाह लेते हैं -
- भारत का मुख्य न्यायाधीश,
- उस राज्य का राज्यपाल,
- उस राज्य के हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश।
लेकिन हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सदस्य कॉलेजियम सिस्टम बनता है
भारत का मुख्य न्यायाधीश
सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश।।
कॉलेजियम सिस्टम के बारे में जानकारी(FAQs)(People also ask) :-
Q. कॉलेजियम सिस्टम कब लागू हुआ ?
A. सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ-1993 :- इसे Second Judges Case कहते हैं।
इस केस में जजों की नियुक्ति को लेकर फिर चर्चा की गई कि "परामर्श का अर्थ सहमति है या नहीं"|
इस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परामर्श का अर्थ सहमति है, यानी जब राष्ट्रपति जजों से परामर्श प्राप्त कर लेते हैं तो वह परामर्श बाध्यकारी है,
यानी इस केस में कहा गया कि राष्ट्रपति जजों की नियुक्ति मुख्य न्यायधीश व 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों की परामर्श पर करेंगे और यह परामर्श राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है|
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी कहा गया कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति "वरिष्ठता के नियम" के आधार पर की जाएगी।
इसी केस से कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत होती है।
Q. कॉलेजियम में कितने सदस्य होते हैं |
A. कॉलेजियम में 5 सदस्य होंगे इसमें अध्यक्ष भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा और इसके 4 सदस्य सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम के आधार पर न्यायाधीश होंगे और राष्ट्रपति कॉलेजियम की सलाह मानने के लिए बाध्य है।
Q. सुप्रीम कोर्ट में कितने जज हैं ?
A. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या 34(1+33 ) है।
Q. Collegium को हिंदी में क्या कहते हैं व कॉलेजियम का मतलब क्या होता है ?
A. कॉलेजियम 1 भारत का मुख्य न्यायाधीश और 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों का समूह होता है|
Q. न्यायपालिका की नियुक्ति कौन करता हैं ?
A. न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे, इसमें मुख्य न्यायधीश की परामर्श अनिवार्य है लेकिन मानना अनिवार्यता नहीं है
व मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कुछ जजों से परामर्श करने के बाद करेंगे, लेकिन राष्ट्रपति परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है।
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