हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुलिस हिरासत को लेकर एक निर्णय दिया गया है -
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 के अपने निर्णय को पूरी तरह से पलट दिया है,
जिसके बाद हाल ही में पुलिस हिरासत को लेकर आया निर्णय बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
इसलिए आज हम इस निर्णय को विस्तार से समझेंगे और साथ ही पुलिस हिरासत व न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है इसको भी समझेंगे।
पुलिस हिरासत को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या है? :-
हाल ही में सीबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में इसी याचिका को लेकर अपना निर्णय दिया गया था।
इस याचिका में सीबीआई ने यह मांग की थी कि तृणमूल कांग्रेस के पूर्व नेता विनय मिश्रा के भाई विकास मिश्रा को दोबारा पुलिस हिरासत में किया जाए।
क्योंकि विकास मिश्रा पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भ्रष्टाचार का आरोप लगा था और षड्यंत् का आरोप भी लगा था।
इन्हीं आरोप के चलते सीबीआई ने इसी व्यक्ति को 16 अप्रैल, 2021 को गिरफ्तार किया था और गिरफ्तारी के बाद वहां की अदालत ने इसे 7 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया था।
7 दिनों की हिरासत में शुरू के ढाई दिन बाद ही यह व्यक्ति बीमार पड़ गया और उसको अस्पताल में भर्ती कर दिया गया व इसी आधार पर इस व्यक्ति को जमानत भी दे दी गई।
जैसे ही इस व्यक्ति की हिरासत समाप्त हुई फिर इसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया वहां फिर से एक बार जमानत मिल गई।
फिर हाल ही में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है और इसमें सीबीआई ने मांग की है कि इस व्यक्ति को हिरासत के दौरान अस्पताल में भर्ती कर दिया गया था,
इसलिए इसकी जांच पूरी नहीं हुई थी तथा सीबीआई द्वारा इस व्यक्ति की उन्हें पुलिस हिरासत की मांग की गई है।
विकास मिश्रा का पक्ष :-
विकास मिश्रा के वकील ने कहा - वकील द्वारा 30 वर्ष पुराना एक नजीर का उदाहरण दिया गया है ,
जो सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों की अवधि के बाद पुलिस हिरासत में नहीं भेजा जा सकता है।
इसी का जिक्र करते हुए विकास मिश्रा के वकीलों ने विकास मिश्रा की पुनः पुलिस हिरासत का खंडन किया है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हालिया निर्णय लेते हुए विकास मिश्रा को 4 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया है,
सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय से पुराने निर्णय ( 2 जजों की बेंच द्वारा) और हालिया निर्णय (2 जजों की बेंच द्वारा) के बीच contradiction(आपस में विवाद) पैदा हो गया है।
कई जानकार इस बात की मांग कर रहे हैं कि इस निर्णय में 2 से ज्यादा जजों की बेंच द्वारा इस निर्णय में स्पष्टता लाई जाए।
भारत में हिरासत से सम्बंधित कानून :-
पुलिस हिरासत के बारे में कानून क्या है :- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 यह बताती है कि जब पुलिस 24 घंटों के भीतर जांच पूरी नहीं कर सकती है तो आगे की कार्यवाही क्या होगी?
सामान्यता कानूनों के मुताबिक जब पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो पुलिस उसे 24 घंटे तक अपने पास रख सकती है,
फिर यह अनिवार्य हो जाता है कि 24 घंटे के भीतर उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास पेश करना होता है ताकि अतिरिक्त जांच की जा सके।
सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत अतिरिक्त जांच (24 घंटे से ज्यादा) की आवश्यकता पड़ती है तो उस व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजा जा सकता है।
उस व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजने का अधिकार केवल उस जिले के मजिस्ट्रेट के पास होता है और यह उस मजिस्ट्रेट के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है ।
लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि जब मजिस्ट्रेट यह निर्णय लेता है कि उस व्यक्ति को हिरासत में भेजना है तो उसे यह कारण लिखित तौर पर पेश करना होता है।
जब तक यह कारण लिखित तौर पर पेश नहीं किया जाएगा तब तक उसे पुलिस हिरासत में नहीं भेजा जाएगा
और किसी व्यक्ति को 15 दिन से ज्यादा पुलिस जांच में नहीं भेजा जा सकता है यह पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1992 में अनुपम कुलकर्णी केस में की गई थी।
इसी को आधार बनाकर विकास मिश्रा के वकीलों ने अपना तर्क बनाया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का तर्क यह था कि आरोपी को भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों से बचाना ताकि पुलिस फेक सबूत पेश करने से बचें।
Arrest और Custody में अंतर-
Arrest पहला Stage होता है, Custody उसके आगे का स्टेज, जैसे जब कोई अपराध करता है तो सबसे पहले पुलिस उसको Arrest करती है, फिर पुलिस इसको Authority को सौंपती हैं, ये Authority पुलिस कस्टडी या जुडियशल कस्टडी होती है, तो इसलिये हम कह सकते हैं कि प्रत्येक अरेस्ट में कस्टडी होती है, जबकि प्रत्येक कस्टडी में अरेस्ट नहीं होता है।
जैसे किसी ने कोई अपराध किया और उसने कोर्ट के सामने खुद ही सरेंडर कर दिया तो यह कस्टडी हुई, Arrest नहीं।
Custody 2 तरह की होती है 1. Policy Custody 2. Judicial Custody, तो अब हम जानते हैं क पुलिस कस्टडी और जुडिशल कस्टडी में क्या अन्तर है-
पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर :-
- CrPC की धारा 167 के तहत पुलिस हिरासत की अवधि में जांच पूरी नहीं हो पाती है तो पुलिस के पास एक विकल्प और बचता है वह है न्यायिक हिरासत।
- न्यायिक हिरासत में ऐसे गंभीर अपराध जिनक अवधि10 वर्षों की सजा या उससे ज्यादा है तो ऐसे में न्यायिक हिरासत 90 दिनों तक हो सकती है व
- दूसरे अपराध जो बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होते हैं तो ऐसे में न्यायिक हिरासत 60 दिनों तक हो सकती है।
- पुलिस हिरासत पुलिस के अधीन होती है, जबकि न्यायिक हिरासत न्यायालय के अधीन होती है ।
- न्यायालय को Represent मजिस्ट्रेट करता है इसलिए हम यह कह सकते हैं कि जुडिशल कस्टडी मजिस्ट्रेट के अधीन होती है।
- पुलिस कस्टडी की प्रक्रिया मुख्यतः पुलिस स्टेशन में की जाती है यानी जो व्यक्ति से सवाल पूछे जाते हैं वह पुलिस स्टेशन में किए जाते हैं,
- जबकि न्यायिक हिरासत में व्यक्ति को केंद्रीय कारागार में बंद किया जाता है।
- यदि जब किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायिक हिरासत दी जाती है तो इस दौरान पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति से तब तक जांच नहीं कर सकते हैं, जब तक वे उस जिले के मजिस्ट्रेट से अनुमति प्राप्त ना कर ले।
- पुनः हिरासत के लिए 15 दिन के नियम का अपवाद भी है।
- यदि अलग-अलग मामलों में किसी व्यक्ति के साथ अलग-अलग FIR दर्ज की गई हो, तो पुलिस उन सब FIR को आधार बनाती हुई,
- उस व्यक्ति को लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रख सकती है(बीते दिनों Alt न्यूज़ के संस्थापक जुबेर के साथ हमें इसी तरह का मामला देखने को मिला था)
आसान भाषा में पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर : -
जब कोई व्यक्ति अपराध करता है तो पुलिस उसे गिरफ्तार करके पुलिस स्टेशन में रखती है तो उस समय हम कह सकते हैं कि जो व्यक्ति पुलिस स्टेशन में है वह व्यक्ति पुलिस हिरासत में माना जाएगा,
फिर पुलिस उस व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है यदि मजिस्ट्रेट द्वारा उसे जेल भेज दिया जाता है,
तो वह अपराधी जो जेल में होता है तो उस समय हम कह सकते हैं कि यह व्यक्ति न्यायिक हिरासत या जुडिशल कस्टडी में है
जब कोई अपराधी पुलिस कस्टडी में होता है तो पुलिस उसे पूछताछ कर सकती है और पूछताछ करने के लिए वह मारपीट और टॉर्चर कर सकती है
तथा जब कोई अपराधी पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के जरिए जेल चला जाता है यानी न्यायिक हिरासत में आ जाता है तो वह पुलिस की मारपीट से बच सकता है न्यायिक हिरासत में मारपीट नहीं होती है।
नोट : - अगर कोई अपराधी न्यायिक हिरासत में है तो पुलिस पूछताछ करने के लिए न्यायालय से उस अपराधी को 15 दिनों तक रिमांड की मांग कर सकती है, ताकि पुलिस अपराधी से पूछताछ कर सके,
लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब तक पुलिस ने उस अपराधी की चार्जशीट कोर्ट में पेश ना की हो।
CrPC की धारा 167 (2) के तहत अगर किसी अपराधी की चार्जशीट पुलिस 90 दिनों तक कोर्ट में पेश नहीं कर पाती है तो ऐसे अपराधी को टेक्निकल ग्राउंड के आधार पर जमानत दी जा सकेगी और अपराधी को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
Interrogation क्या होता है :- इसमें पुलिस किसी व्यक्ति को पूछताछ के लिए बुलाती है इसमें सामान्य पूछताछ होती है।
कस्टडी क्या होती है :- इसका हिंदी में मतलब होता है हिरासत जब पुलिस सामान्य मामले में किसी व्यक्ति को पुलिस स्टेशन ले जाती है।
गिरफ्तारी क्या होती है :- गंभीर मामलों मैं पुलिस जब किसी अपराधी को गिरफ्तार करती है और उसे पुलिस स्टेशन ले जाती है और उसे 24 घंटे तक अपने पास रख सकती है,
क्योंकि 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है जब तक वह पुलिस स्टेशन में रहता है उसे पुलिस कस्टडी कहते हैं।
ज्यूडिशल कस्टडी क्या होती है :- जब मजिस्ट्रेट द्वारा अपराधी को जेल भेज दिया जाता है तो वह ज्यूडिशल कस्टडी में होता है।
पुलिस रिमांड क्या होती है :- जब पुलिस मजिस्ट्रेट की अनुमति से अपराधी को पुनः पुलिस कस्टडी में ले लेती है लेकिन यह कस्टडी 15 दिनों से ज्यादा नहीं हो सकती है।
हिरासत की अवधि समाप्त होने पर क्या होगा? :- कानून के मुताबिक यदि निश्चित अवधि में जांच पूरी नहीं हो पाती है तो उसे डिफॉल्ट जमानत या वैधानिक जमानत का अधिकार प्राप्त होता है
यानी यह अवधि पूरी होने के बाद वह स्वत: ही जमानत प्राप्त कर सकता है, उसे डिफॉल्ट तरीके से जमानत प्राप्त हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने माताबार परिदा बनाम उड़ीसा राज्य 1975 में इस बात की पुष्टि की थी कि यदि पुलिस 60 और 90 दिनों की अवधि के बीच जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाती है,
तो ऐसी स्थिति में गंभीर अपराध करने वाले व्यक्ति को भी जमानत प्राप्त करने का अधिकार हो सकता है।
पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत से सम्बंधित जानकारी(FAQs)(People also ask ) :-
Q. पुलिस रिमांड कितने दिन का होता है ?
A. कानूनों के मुताबिक जब पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो पुलिस उसे 24 घंटे तक अपने पास रख सकती है,
फिर यह अनिवार्य हो जाता है कि 24 घंटे के भीतर उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास पेश करना होता है ताकि अतिरिक्त जांच की जा सके।
सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत अतिरिक्त जांच (24 घंटे से ज्यादा) की आवश्यकता पड़ती है तो उस व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजा जा सकता है।
Q. क्या पुलिस रिमांड में आपको मार सकती है ? / क्या पुलिस रिमांड में किसी व्यक्ति को पीट सकती है ?
A. जब कोई अपराधी पुलिस कस्टडी में होता है तो पुलिस उसे पूछताछ कर सकती है और पूछताछ करने के लिए वह मारपीट और टॉर्चर कर सकती है|
Q. 90 दिनों में चार्जशीट दाखिल नहीं होने पर क्या होता है ?
A. जब तक पुलिस ने उस अपराधी की चार्जशीट कोर्ट में पेश ना की हो।
CrPC की धारा 167 (2) के तहत अगर किसी अपराधी की चार्जशीट पुलिस 90 दिनों तक कोर्ट में पेश नहीं कर पाती है तो ऐसे अपराधी को टेक्निकल ग्राउंड के आधार पर जमानत दी जा सकेगी और अपराधी को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
Q. पुलिस रिमांड में क्या करती है ?
A. जब कोई अपराधी पुलिस रिमांड में होता है तो पुलिस उसे पूछताछ कर सकती है और पूछताछ करने के लिए वह मारपीट और टॉर्चर कर सकती है|
लेकिन पुलिस रिमांड का मकसद होता है साक्ष्य एकत्र करना |
Q. गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत कौन देता है ?
A. उस व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजने का अधिकार केवल उस जिले के मजिस्ट्रेट के पास होता है और यह उस मजिस्ट्रेट के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है ।
Q. हिरासत और गिरफ्तारी में अंतर |
A. गंभीर मामलों मैं पुलिस जब किसी अपराधी को गिरफ्तार करती है और उसे पुलिस स्टेशन ले जाती है और उसे 24 घंटे तक अपने पास रख सकती है,
क्योंकि 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है जब तक वह पुलिस स्टेशन में रहता है उसे पुलिस हिरासत कहते हैं।
Q. रिमांड का मतलब क्या है |
A. जब कोई व्यक्ति हिरासत में है और उसे फिर से हिरासत में भेजना यानी Remand का मतलब होता है वापस आदेश देना |
Q. पुलिस रिमांड क्या है |
A. जब पुलिस मजिस्ट्रेट की अनुमति से अपराधी को पुनः पुलिस कस्टडी में ले लेती है तो यह पुलिस रिमांड कहलाती है , लेकिन यह कस्टडी 15 दिनों से ज्यादा नहीं हो सकती है।
Q. पुलिस रिमांड कितने प्रकार का होता है |
A. रिमांड 2 प्रकार का होता है -
1 पुलिस कस्टडी
2 जुडिशल कस्टडी
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