प्रस्तावना का शाब्दिक अर्थ होता है - भूमिका या प्रारंभिक परिचय( यानी संविधान का सार है प्रस्तावना) सबसे पहले अमेरिका ने अपने संविधान में प्रस्तावना को शामिल किया,
प्रस्तावना संविधान के उद्देश्य, लक्ष्य, आदर्श तथा आधारभूत सिद्धांतों का आधार है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
प्रस्तावना कब लागू हुई :- संविधान की प्रस्तावना 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में प्रस्तुत की गई, जिसे आमुख भी कहते हैं यह संकल्प प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 के उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है।
के. एम. मुंशी ने प्रस्तावना को राजनीतिक कुंडली नाम दिया है |
42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष व अखंडता शब्द जोड़े गए|
यह संविधान का परिचय पत्र है।
भारतीय प्रस्तावना के मूल तत्व :-
संविधान में शक्ति स्रोत :- संविधान भारत के लोगों से शक्ति अधिग्रहित करता है यानी भारत में शक्ति का स्रोत कोई सत्ता वगैरा ना होकर, बल्कि भारत की जनता है|
भारत की प्रकृति :- भारत एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक राज्य व्यवस्था वाला देश है |
संविधान के उद्देश्य :- न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता |
संविधान लागू होने की तिथि 26 नवंबर, 1949 |
प्रस्तावना के प्रमुख शब्दों के अर्थ :-
हम भारत के लोग :- इसका मतलब हुआ कि भारत एक सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है, जहां भारत की जनता ही संप्रभु है,
भारत के लोगों को जो अधिकार मिले हैं वही संविधान का आधार है यानी भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है।
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न :- भारत अपने आंतरिक और बाह्य मामलों को तय करने के लिए स्वतंत्र है, जैसे - यदि भारत कोई कानून बना रहा है, तो ऐसे में किसी दूसरे देश का भारत पर दबाव नहीं होगा,
ऐसे ही बाह्य मामलों में यदि भारत किसी संगठन में शामिल होगा या नहीं यह भारत खुद तय करेगा।
समाजवादी :- भारत एक ऐसा समाजवाद है जो आर्थिक क्षमता में विश्वास रखता है, जैसे- लोकतांत्रिक समाजवाद, मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है, जहां सार्वजनिक और निजी क्षेत्र साथ-सथ रहते हैं।
मूल प्रस्तावना में समाजवाद का उल्लेख नहीं था, बल्कि इसे 42 वें संशोधन, 1976 के तहत जोड़ा गया।
पंथनिरपेक्ष :- इसका अर्थ है कि भारत किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा और सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखेगा |
भारत किसी एक धर्म या धार्मिक विचारधारा को बढ़ावा नहीं देता है, बल्कि यह सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखते हुए अपने सभी नागरिकों को धर्म को मानने, आचरण करने, प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है, इसे भी संविधान 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में अंतर :-
भारत में राज्य धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा, लेकिन राज्य सभी धर्मों के उत्थान में काम कर सकता है यानी धर्म और राज्य को अलग अलग नहीं किया गया, जैसे - किसी त्योहार पर उसमें शामिल होना,
जबकि पश्चिमी धर्मनिरपेक्ष में निरपेक्षता में धर्म और राज्य अलग अलग हैं यानी राज्य धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, राज्य अपना काम करेगा, धर्म अपना काम करेगा।
लोकतांत्रिक :- इसमें सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है, लोकतंत्र "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन" है|
लोकतंत्र के 2 प्रकार हैं-
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र,
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र :- प्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोग अपनी राजनीतिक व प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग सीधे तौर पर करते हैं, जैसे -प्रत्यक्ष लोकतंत्र स्विटज़रलैंड में है |
प्रत्यक्ष लोकतंत्र के 4 आधार है,
- Referendum,
- Initiative,
- Recall,
- Plebiscite(जनमत संग्रह)।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र :- इसमें लोगों के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि(MP, MLA) जनता की ओर से सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग करते हैं|
गणराज्य :- इसमें राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है, वंशानुगत नहीं होता, जैसे - यूएसए और भारत |
इस सिस्टम में राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति के स्थान पर जनता में निहित होती है, इसमें कोई विशेषाधिकार वर्ग नहीं होता।
न्याय :- न्याय ऐसी व्यवस्था है जहां सबको अपने उचित अधिकार प्राप्त होते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता है,
भारतीय प्रस्तावना में 3 प्रकार के न्याय का जिक्र है -
सामाजिक न्याय :- किसी जाति, मूल वंश, जन्म स्थान, लिंग, धर्म, भाषा आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव ना होना।
आर्थिक न्याय :- संपत्ति, आय की असमानता को दूर करना, आर्थिक आधार पर किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जाए|
राजनितिक न्याय :- इसमें सभी व्यक्ति को सामान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे - समान रूप से मतदान का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार। जैसे - अडानी जी और एक सड़क पर रहने वाले व्यक्ति के वोट की वैल्यू समान है।
स्वतंत्रता :- भारतीय प्रस्तावना में 5 प्रकार की स्वतंत्रता है ,- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की बात की गई है|
भारतीय संविधान में अनुच्छेद -19 से अनुच्छेद - 22 तक में कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए गए हैं,
ताकि स्वतंत्रता के नाम पर उसका गलत इस्तेमाल ना हो सके जैसे - हमें बोलने की स्वतंत्रता है, लेकिन हम ऐसा नहीं बोल सकते, जिससे देश को नुकसान हो।
समता :- समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार का ना होना|
प्रस्तावना प्रत्येक नागरिक को स्थिति और अवसर की समानता प्रदान करती है, इस Provisions में आयाम के 3 प्रकार होते हैं,
नागरिक, आर्थिक और राजनीतिक तथा मौलिक अधिकारों में समता की स्वतंत्रता(अनुच्छेद - 14 से अनुच्छेद - 18 तक) का जिक्र किया गया है:-
- अनुच्छेद - 14 :- कानून के समक्ष समानता,
- अनुच्छेद - 15 :- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध |
- अनुच्छेद - 16 :- सार्वजानिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता।
- अनुच्छेद - 17 :- अस्पृश्यता का उन्मूलन,
- अनुच्छेद - 18 :- उपाधियों का अंत |
अनुच्छेद - 325 के तहत राजनीतिक क्षमता की बात की गई है जैसे - धर्म, जाति, लिंग या वर्ग के आधार पर किसी व्यक्ति को मतदान सूची में शामिल होने के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद - 326 लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव के लिए व्यस्क मतदान का प्रावधान।
अनुच्छेद - 39 पुरुष और महिलाओं के लिए समान काम के लिए समान वेतन।
बंधुत्व :- इसका अर्थ होता है - "भाईचारे की भावना" यानी हम सब एक हैं, प्रस्तावना में बंधुत्व, व्यक्ति की गरिमा तथा देश की एकता, अखंडता को सुनिश्चित करता है।
क्या प्रस्तावना संविधान का अंग है :- प्रस्तावना भारतीय संविधान का हिस्सा है या नहीं यह एक विवाद का विषय रहा है,
बेरुबाड़ी वाद(1960) में प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना गया
गोलकनाथ बाद(1967) - इसमें कहा गया कि जहां संविधान की भाषा स्पष्ट ना हो, तो वहां उसके अर्थ को स्पष्ट करने के लिए प्रस्तावना का सहारा लिया जा सकता है।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद, 1973 में प्रस्तावना को संविधान का अभिन्न अंग माना गया।
प्रस्तावना संविधान का अति महत्वपूर्ण भाग है और संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित महान विचारों को ध्यान में रखकर संविधान का अध्ययन किया जाना चाहिए।
संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रस्तावना में भी संशोधन किया जा सकता है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता।
SR बम्बई वाद(1994) - प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है इस वाद में मूल ढांचे का विस्तार किया गया व कई तत्वों को मूल ढांचा घोषित किया गया,
जिससे सरकार का प्रजातांत्रिक स्वरूप, संघीय संरचना, राष्ट्रीय एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता, न्यायिक पुनरावलोकन आदि तथा वर्तमान में प्रस्तावना संविधान का अंग है।
प्रस्तावना के बारे में Facts :-
प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है, न ही उसकी शक्ति पर प्रतिबंध लगाने वाला,
यह गैर न्यायिक है यानी इस की व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
Q. क्या प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है? -
A. प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता|
Q. 42वां संविधान संशोधन, 1976 द्वारा कौन से शब्द जोड़े गए :-
A. 42वां संविधान संशोधन, 1976 द्वारा समाजवादी, धर्मनिरपेक्षता, अखंडता शब्द जोड़े गए।
Q. भारतीय संविधान की प्रस्तावना किसने लिखी :-
A. संविधान की प्रस्तावना 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में प्रस्तुत की गई, जिसे आमुख भी कहते हैं यह संकल्प प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 के उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है।
Q. भारत की प्रस्तावना कहाँ से लिया गया है ?:-
A. भारत की प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है तथा प्रस्तावना की परिभाषा को ऑस्ट्रलिया से लिया गया है |
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