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जीरो बजट(Zero Budget) खेती क्या है ? जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कैसे करे

वाराणसी सद्गुरु सदाफलदेव विहंगम योग संस्थान की 98 वीं वर्षगांठ के अवसर पर व दूसरे सम्मेलन गुजरात के आनद में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग(ZBNF) की चर्चा की गई।  

प्रधानमंत्री ने इसके फायदे पर गौर करते हुए किसानों से इसको जनांदोलन बनाने की अपील की है इसलिए जीरो बजट फार्मिंग चर्चा का विषय बन गया। 

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग(ZBNF) क्या है :- 

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग खेती करने का एक प्राकृतिक तरीका है जिसमें फसलों के पोषण के लिए कीटनाशक व रासायनिक इनपुट्स के बिना खेती की जाती है।

इसके बदले में प्राकृतिक खाद (जैसे गाय का गोबर, पौधों के अवशेषों, गोमूत्र आदि) का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण इससे खेती की लागत न के बराबर होती है यानी हम कह सकते हैं कि यह प्राकृतिक खेती है।

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को 1990 के दशक के मध्य में हरित क्रांति के विकल्प के तौर पर सुभाष पालेकर द्वारा लाया गया था।

इसको लाने का मकसद एक तरफ किसानों की लागत को लगभग शून्य काल कब किसानों को कर्ज के बोझ से मुक्त कराना तो दूसरी तरफ जल और मिट्टी प्रदूषण को खत्म करना, सत्त व पर्यावरण अनुकूल खेती करना।

जीरो बजट खेती के 4 स्तंभ :-

गौरतलब है कि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के चार pillar हैं जो निम्न है:- 

  • 1. जीवामृत (Jeevamarit)
  • 2. बीजामृत (Beejamarit)
  • 3. अच्छादन(Acchadana)
  •  4. व्हापासा (Whapasa)


1. जीवामृत (Jeevamarit) :- यह एक प्रकार का उत्प्रेरक एजेंट है, यह मिट्टी के पोषक तत्व के साथ उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवों और केंचुओ की गतिविधियों को भी बढ़ाती है | 

इसे गाय के ताजा गोबर, पुराने गोमूत्र, दाल का आटा पानी और मिट्टी से मिलाकर तैयार किया जाता है ।

जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ जाता है साथ ही जीवामृत की मदद से पेड़ पौधों को कवक और अन्य प्रकार के रोगों से बचाय जा सकता है।

जीवामृत को कैसे बनाया जाता है : -

इसके लिए किसी बड़े बर्तन में 200 - 300 लीटर पानी भर लें, फिर उसमें गाय का ताजा गोबर और मूत्र तथा उसमें पल्स का आटा, उसमे ब्राउन शुगर और मिट्टी को मिला दे। और इन सभी का मिश्रण कर लें | 

2. बीजामृत :-   जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का दूसरा स्तंभ है इसे हरी मिर्ची, नीम के पत्तों के गूदे के मिश्रण से बनाया जाता है, 

जिसका प्रयोग कीड़ों और कीटों को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है और बीज रोगों से बचे रहते हैं।

इसका यूज बीजों के उपचार के लिए किया जाता है और यह बीजों को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है।

बीजामृत का उपयोग कैसे करें :- 

खेतों में फसलों के बीज को डालने से पहले सभी बीजों में बीजामृत को अच्छी तरह से लगा दें और उन्हें सूखने के लिए छोड़ दें|  

जब बीजों पर लगा बीजामृत का मिक्सर पूरी तरह से सूख जाए, उसके बाद इन बीजों को खेतों में बो सकते हैं।

3. अच्छादन(मल्चिंग) :- यह जीरो बजट फार्मिंग का तीसरा स्तम्भ है, इसका मतलब मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए मिश्रित फसल उगाई जाने से हैं, 

इससे मिट्टी की परत में खरपतवार में बढ़ोतरी नहीं होती है तथा इसके द्वारा खेती के आवरण की सुरक्षा में मदद मिलती है।

मल्चिंग को तीन तरह से दर्शाया गया है :- 

1. मृदा मल्च - इसका प्रयोग मिट्टी की ऊपरी सतह को हानि से बचाने के लिए किया जाता है तथा मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता को बेहतर बनाने के लिए मिट्टी को एकत्र व आसपास करके रखा जाता है।

2. स्ट्रा मल्च -  स्ट्रा का मतलब होता है भूसा, भूसा मल्च का प्रयोग सब्जियों के पौधों को उगाने में अधिक किया जाता है, 

इसलिए गेहूं के भूसे का प्रयोग कर सब्जी की खेती से सब्जियों की अच्छी फसल उगा सकते हैं।

3. लाइव मल्चिंग -  इसके द्वारा आप एक खेत में अनेकों प्रकार के पौधों को उगा सकते हैं, इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि यह सब पौधे एक दूसरे के पौधों की वृद्धि के लिए सहायक होते हैं| 

जैसे - कॉफी के पौधों में कम सनलाइट की जरूरत होती है, जबकि गेहूं, गन्ने के पौधों के लिए ज्यादा सनलाइट की जरूरत होती है| 

इसमें होता यह है कि दोनों पौधों को ऐसे एक स्थान पर लगाया जाता है कि ज्यादा सनलाइट वाले पौधों,  कम सनलाइट वाले पौधों को छाया प्रदान करते है।

4. व्हापासा(Whapasa) -  इसकी स्थिति में मिट्टी में जरूरी हवा और जलवाष्प की मात्रा बनी रहती है, जिसके कारण सिंचाई की जरूरत कम होती है जो ना केवल पानी की बचत करता है बल्कि मिट्टी को भी कम लाभ पहुंचाता है।


जीरो बजट(Zero Budget) खेती क्या है ? जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कैसे करे  : Zero Budget Natural Farming(ZBNF) in Hindi


जीरो बजट खेती के फायदे :- 

जीरो बजट का सबसे बड़ा फायदा आर्थिक है, क्योंकि यह खेती की लागत को कम करके जीरो बजट की ओर ले जाता है| 

इससे किसानों को खेती के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ता है, तो दूसरी तरफ मुनाफा भी बढ़ जाता है और जिस तरह से छोटे किसान कर्ज के बोझ के चक्कर में फंसते जा रहे हैं, 

उस चक्कर को तोड़ा जा सकता है यानी किसानों को कर्ज से के जाल से छुटकारा मिल सकता है।

मौजूदा दौर में देखा जा रहा है कि खेती में लगातार लागत बढ़ती जा रही है, नए तकनीक के इस्तेमाल से महंगी मशीनें, महंगे खाद, महंगे बीज के उपयोग को बढ़ावा दिया है।

ऐसे दौर में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग किसानों के लिए वरदान की तरह है, जिनके पास खेती की के लिए पूंजी का अभाव है, 

क्योंकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग करने से किसानों की उत्पादन लागत कम होगी और इससे कम लागत में अधिक पैदावार मिलेगी तथा साथ ही उपज की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण उसके दाम भी अच्छे मिलेंगे।

जीरो बजट प्राकृतिक होने के कारण इससे पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता है यह पर्यावरण अनुकूल होने के कारण इसमें पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।

यह ना सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखकर मरुस्थलीकरण को रोकेगा, बल्कि खेती के कारण होने वाले जल और मृदा प्रदूषण को कम करेगा।

दरअसल अधिक पैदावार पाने की चाह में खेती की नई तकनीक के तहत किसान अपने खेत में रसायनिक खाद व कीटनाशकों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, 

जिससे होता यह है कि इससे पर्यावरण पर खराब प्रभाव पड़ने के साथ-साथ किसानों के खेत की उर्वरता भी कम हो रही है और मिट्टी बंजर होती जा रही है, 

तो दूसरी तरफ पानी के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी  में जल प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है।

श्रम का कम लगना:- इसके उत्पादन में कम से कम की आवश्यकता होती है, एक अनुमान के अनुसार एक सामान्य खेती के मुकाबले जीरो बजट फार्मिंग में लगभग 10% ही श्रम बल का इस्तेमाल होता है, 

जिस तरह से वर्तमान स्थिति में मजदूरों का पलायन शहर की ओर बढ़ रहा है, जिससे खेती करने वाले मजदूर घट  गए हैं और जब फसल की कटाई में बुआई होती है उस वक्त अचानक मजदूरों की मांग में बढ़ोतरी हो जाती है, 

इसलिए इस आपूर्ति को न भर पाने की वजह(यानी मजदूरों की मांग के हिसाब से मजदूर ना होना) किसानों को आर्थिक नुकसान हो जाता है, 

इसके अलावा फसलों का भी नुकसान हो जाता है जिसके कारण खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग समाज को स्वच्छ और स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराता है, क्योंकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में प्राकृतिक तरीके से खेती की जाती है, 

जिससे भोजन में हानिकारक खाद्य पदार्थों की मात्रा ना के बराबर होती है जो लोगों के स्वास्थ्य को कम नुकसान पहुंचाती है।

जीरो बजट फार्मिंग से उर्वरक सब्सिडी के भार में कमी लाकर राजकोषीय कोष पर दबाव कम होता है, क्योंकि कृषि सब्सिडी का एक बहुत बड़ा हिस्सा उर्वरक सब्सिडी का है|  

अधिक उत्पादन के लालच में किसान उर्वरक का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं इससे एक और राजकोष पर दबाव बढ़ रहा है तो दूसरी ओर किसानों की लागत उत्पादन में भी वृद्धि हो रही है।

लेकिन किसानों को उनकी उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है और किसान कर्ज के बोझ में फंसता जा रहा है|  

जो अंततः उसे आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर करता है सरकार इस से निजात दिलाने के लिए नेचुरल फार्मिंग का ज्यादा प्रयोग पर बल दे रही है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती के नुकसान क्या है :-

इसमें कई तरह के नुकसान है जो निम्न है :-

वित्तीय नुकसान किसानों को किसी भी सरकारी सहायता नहीं मिलती है, जिसके कारण किसान कृषि उपकरण वगैरा नही खरीद पाते।

टेक्नोलॉजी की कमी : क्योंकि जीरो बजट खेती वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित नहीं है जिसके कारण इसका डाटा पर्याप्त नहीं है।

यह खेती उन्नाव से के हिसाब से ज्यादा सही साबित नहीं हो पाई है जिसके कारण किसानों में विश्वास की कमी देकी जा रहा है ।

जीरो बजट खेती में किसानों को तकनीक संबंधी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है जैसे : कुछ कौशल उत्पादन बढ़ाने के तरीके आदि।

इसके उत्पादकता में कमी देखी जा रही हैं क्योंकि जिस तरह से प्रचलित खेती में उत्पादकता हो रही है, वैसे इसकी उत्पादकता के  लिए सरकार कई प्रयास कर रही है।

किसानों में ट्रेनिंग की कमी - भारत में ज्यादातर किसान शिक्षा की कमी से जूझ रहे हैं अच्छी कीमत के लिए मंडी बहुत दूर है या है ही नहीं| 

भारत में जीरो बजट फार्मिंग की शुरुआत किसने की :-

इसका शुरुआत में सुभाष पालेकर द्वारा प्रचार किया गया था, उन्होंने 1990 के मध्य के दशक में हरित क्रांति (जो रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और  गहन सिंचाई द्वारा संचालित थी) के तरीकों के  विकल्प में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को विकसित किया।

इसे सुभाष पालेकर और राज्य किसान संघ कर्नाटक राज्य रायता संघ (KRRS) के सहयोग के द्वारा ही एक कृषि आंदोलन के रूप में विकसित हुआ|  

इसे कर्नाटक में काफी सफलता मिली जिसके बाद अन्य राज्यों ने विशेषकर दक्षिण के राज्यों में इसे दोहराया गया।

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की भारत में क्या स्थिति है :- 

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग भारत के लिए कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है, बल्कि यह केंद्र सरकार के एजेंडे में पहले से मौजूद है, 

इसको लेकर केंद्र सरकार द्वारा 2015-16 में परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) लांच की गई। इस योजना का मकसद जैविक खेती को बढ़ावा देना है | 

इस योजना के द्वारा यदि कोई राज्य जैविक खेती और जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर कार्य करता है तो उसे इसके लिए धन मुहैया कराया जाएगा| 

लेकिन जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को जैविक खेती के मुकाबले कम महत्व दिया गया तथा 2019 में बजट भाषण में किसानों की आय दोगुना करने के लिए जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का जिक्र किया गया, जिसके बाद इसको महत्व मिला

तब से नीति आयोग राज्यों को जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग अपनाने के लिए प्रयास कर रहा है, फिर 2020-21 में PKVY  के उप योजना के रूप में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति(BPKP) लांच की गई | 

इसका मकसद जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देना है, ताकि खेती में रासायनिक इनपुट  बाहर किया जाए, खेत के अवशेष को रासायनिक खाद में बदलना।

आंध्र प्रदेश द्वारा 2024 तक 100% प्राकृतिक खेती करने का लक्ष्य रखा गया है जो ऐसा करने वाला पहला राज्य होगा।

जीरो बजट(Zero Budget) खेती क्या है ? जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कैसे करे  : Zero Budget Natural Farming(ZBNF) in Hindi


जैविक खेती और जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग(ZBNF) में अंतर :-

जैविक खेती में खाद जैसे - खाद, वर्मी कंपोस्ट, गोबर आदि का उपयोग किया जाता है व बाहरी स्रोतों को खेत में जोड़ा जाता है, 

जबकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग, मिट्टी में ना तो रासायनिक और ना ही जैविक खाद  को डाला जाता है यानी मिट्टी में कोई बाहरी स्रोत को नहीं डाला जाता है।


जैविक खेती में जुताई करना,खाद का मिश्रण, निराई की जरूरत होती है, जबकि प्राकृतिक में ना तो जुदाई होती है और ना ही कोई उर्वरक का प्रयोग किया जाता है।

जैविक खेती जुताई, खाद आदि के कारण महंगी होती है जबकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग एक कम लागत वाली कृषि है, जो पूरी तरह से स्थानीय जैवविविधता होती है उसके साथ की जाती है।

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की चुनौतियां :- 

सबसे पहले चुनौती तो यह है कि यह वैज्ञानिक तौर पर अप्रमाणिक तकनीक है तथा इससे जुड़े डाटा पर्याप्त नहीं है|  

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मुनाफे के हिसाब से ज्यादा कारगर नहीं है, इसकी खेती में विश्वास की कमी देखी गई है, जिससे किसानों की हताशा देखी जा रही है।

किसानों में ट्रेनिंग की कमी - भारत में ज्यादातर किसान शिक्षा की कमी से जूझ रहे हैं अच्छी कीमत के लिए मंडी बहुत दूर है या है ही नहीं| 

उत्पादकता में कमी -  वर्तमान में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में वर्तमान में प्रचलित खेती के मुकाबले उत्पादकता कम है, लेकिन सरकार इस को सफल बनाने के लिए कई प्रयास कर रही है।

आगे की राह :-  ICAR द्वारा जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर रिसर्च शुरू किया गया है, इस रिसर्च में डाटा मिलेगा उस पर काम करना | 

किसानों को  जागरूक करना साथ ही इसकी प्रक्रिया के संबंध में किसानों को ट्रेनिंग मुहैया कराना|  

उर्वरक और अन्य कृषि सब्सिडी को जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की ओर धीरे-धीरे शिफ्ट करना चाहिए|  

छोटे किसानों को जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से पैदा हुए अनाज के लिए मंडी उपलब्ध कराना और MSP से भी इसे जोड़ना चाहिए| 

जीरो बजट (Zero Budget) खेती से सम्बंधित जानकारी :-

Q. Zero Budget Natural Farming के मुख्य स्तंभ क्या हैं ?

A. जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के 4 मुख्य स्तंभ हैं जो निम्न है:- 

  • 1. जीवामृत (Jeevamarit)
  • 2. बीजामृत (Beejamarit)
  • 3. अच्छादन(Acchadana)
  •  4. व्हापासा (Whapasa)

Q. शून्य बजट प्राकृतिक खेती में कौन सा राज्य अग्रणी है ?

A. आंध्र प्रदेश द्वारा 2024 तक 100% प्राकृतिक खेती करने का लक्ष्य रखा गया है जो ऐसा करने वाला पहला राज्य होगा।

Q. जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कब शुरू हुई ?

A. 2019 में बजट भाषण में किसानों की आय दोगुना करने के लिए जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का जिक्र किया गया, जिसके बाद इसको महत्व मिला

तब से नीति आयोग राज्यों को जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग अपनाने के लिए प्रयास कर रहा है, फिर 2020-21 में PKVY  के उप योजना के रूप में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति(BPKP) लांच की गई | 

इसका मकसद जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देना है

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