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भारत में बैंकिंग का इतिहास, स्थापना एवं कार्य


वैसे भारत की बैंकिंग प्रणाली का इतिहास बहुत पुराना है यानी इसकी शुरूआत प्राचीन  काल में हुई है लेकिन यहां पर हम बैंकिंग सिस्टम के महत्वपूर्ण बिन्दुओं की बात करने जा रहे हैं।


Indian Banking | भारत में बैंकिंग का इतिहास, स्थापना एवं कार्य

भारत में बैंकिंग प्रणाली(indian banking system)


भारत में बैंकिंग का इतिहास 19वीं शताब्दी से है, भारत में पहला सफलतापूर्वक बैंक 1806 में बैंक ऑफ बंगाल था वैसे इससे पहले भी बैंक स्थापित हो चुके थे, लेकिन वे बैंक सफल नहीं थे, 


जैसे- 


  • बैंक ऑफ हिन्दुस्तान 1779 में स्थापित हुआ।

  • इलाहाबाद बैंक 1865 में बना,

  • एलाइंस ऑफ शिमला 1881,

  • अवध वाणिज्यिक बैंक 1881,

  • पंजाब नेशनल बैंक 1894,

  • प्रेसीडेंसी बैंक ऑफ बंगाल 1806,

  • प्रेसीडेंसी बैंक ऑफ बॉम्बे 1840, 

  • प्रेसीडेंसी बैंक ऑफ मद्रास 1843 


उक्त बैंक स्थापित हुए।


भारत का पहला वाणिज्यिक बैंक अवध वाणिज्यिक बैंक था, जिसकी स्थापना 1881 में हुई थी, फिर 1892 में इंपीरियल बैंक, ब्रिटिश सरकार के समय स्थापित हुआ।


स्वतंत्रता के बाद बैंकिंग क्षेत्र में दो कदम उठाये गये


पहला - भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीकरण और बैंकिंग विनियम अध्नियम जिसने आरबीआई को बैंकिंग को विनियमित करने का अधिकार दिया।


दूसरा - पंजाब नेशनल बैंक 1895 में लाहौर में स्थापित हुई थी।

बैंकों का इतिहास(bank in india history): 

बैंकों के इतिहास को हम 4 वर्गों में बांटते हैं:


1. 1786-1935


2. 1935-1969 (इसमें 1969 में बैंकों का राष्ट्रीकरण हुआ।)


3. 1969-1990 (इस चरण में 1990 में वित्तीय संकट आता है जिसके बाद हमने फिर से बैंकिंग सेक्टर में सुधार करने की कोशिश की।)


4. 1990- वर्तमान तक।(यह वर्तमान चरण है।)

1.  1786-1935


1784  में पिट्स इंडिया एक्ट के बाद बंगाल और मद्रास के दीवानी अधिकार ब्रिटिश सरकार के हाथ में चले गये थे यानी जो कर संग्रह, पैसा ब्रिटिश सरकार ही करेगी।


हम कह सकते है कि यहां से ब्रिटिश सरकार पॉवर में आ जाती है इसमें रॉबर्ट क्लाइव नाम के व्यक्ति को यह करने का श्रय जाता है कि इसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभायी है। 


1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट आया इसने आने से आरबीआई की शुरूआत होने लग गयी।


स्वतंत्रता से पहले के बैंक


  • बैंक ऑफ इंडिया 1906 में स्थापित हुआ।

  • बैंक ऑफ बड़ोदरा 1908 में,

  • सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 1911,

  • बैंक ऑफ मैसूर 1913,

  • इम्पेरियल बैंक ऑफ इंडिया 1921 में,

  • आरबीआई 1934 में,

  • उक्त बैंकों की स्थापना हुई।


2.  1935-1969


1939 से 1946 में बैंकिंग सेक्टर में विस्तार होता है। 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) का राष्ट्रीयकरण होता है सबसे पहले आरबीआई का ही राष्ट्रीयकरण हुआ,


क्योंकि पहले क्या होता था कि जो प्रेसिडेंसियां हुआ करती थी और उनका अलग-अलग ही प्रशासन हुआ करता था, कोई राष्ट्रीय स्तर पर प्रशासन नहीं था यानी पूरे देश का बैंकिंग सिस्टम एकीकृत नहीं था जैसा कि आज है।


बैंकिंग प्रणाली एकीकृत ना होने के कारण, इसका प्रभाव नहीं पड़ता था, और उस वक्त एकीकृत बैंकिंग प्रणाली की जरूरत थी, इसलिये बैंकिंग प्रणाली का एकीकृत करना शुरू किया।


तथा उस वक्त लोगों में बैंकिंग को लेकर विश्वास भी नहीं था इसलिये भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया। राष्ट्रीयकरण का मतलब है कि बैंक का मुख्यालय दिल्ली में होगा और उसकी कई ब्रांचे अलग-अलग जगहों पर खोली गयी जिससे यह पता लगे कि भारत का यह केन्द्रीय बैंक है।


उस वक्त सबसे बड़ा बैंक था इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया जो कि ब्रिटिश के अन्दर स्थापित किया गया इसमें होता क्या था कि जो भी वायसराय आते थे, गवर्नर जनरल आते थे या और कोई वे इसमें अकाउंट खुलवाते थे और इसमें पैसा डालते थे,


फिर इकट्ठा करके ले ब्रिटिश ले जाते थे तथा इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का भी राष्ट्रीयकरण किया गया व 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(एसबीआई) कर दिया गया।


वर्तमान में एसबीआई में कुछ बैंकों का विलय होने के बाद यह एशिय का सबसे बड़ा बैंक बन गया है। 

बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 लागू हुआ जिसमें भारत के सभी बैंकों को विनियमन इस अधिनियम के द्वारा किया है।


इस वक्त मुख्यतः व्यापारी और उधोग ही बैंकिंग सिस्टम का प्रयोग किया करते थे, ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग क्षेत्र का प्रभाव बहुत ज्यादा कम था, फिर इसमें शाखाओं में वृद्वि की गयी।


बैंक व औधोगिक घराने की मिलीभगत थी, इस वक्त पंचवर्षीय योजनाओं की लक्ष्य की प्राप्ति नहीं थी।


3. 1969 से 1990


1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया और इसमें शर्त रखी गयी कि जिन बैंकों का 50 करोड़ जमा(जिसको वर्तमान में एनडीटीएल) होगा उसी बैंक को राष्ट्रीयकरण किया जायेगा।


14 बैंक जिनका राष्ट्रीयकरण हुआ:


  • इलाहाबाद बैंक,

  • बैंक ऑफ बड़ोदा,

  • बैंक ऑफ इंडिया,

  • बैंक ऑफ महाराष्ट्र,

  • केनरा बैंक,

  • सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया,

  • देना बैंक,

  • इंडियन बैंक,

  • इंडियन ओवरसीज बैंक,

  • पंजाब नेशनल बैंक,

  • सिंडीकेट बैंक,

  • यूको बैंक,

  • यूनियन बैंक,

  • पंजाब एंड सिंध बैंक


फिर 1980 में 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ इसमें उन बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया जिनके पास 200 करोड़ रूपये जमा थे ये बैंक निम्न थे-


  • पंजाब एंड सिंध बैंक,

  • विजया बैंक,

  • बैंक ऑफ कॉमर्स,

  • कॉरपोरेशन बैंक,

  • आंध्रा बैंक।


इन बैंकों का राष्ट्रीयकरण नरसिम्हन समिति की सिफारिशों पर किया गया।

4. 1990 - वर्तमान तक


आज भारत में 2 तरह की बैंक हैं 


1. अनुसूचित बैंक,

2. गैर अनुसूचित बैंक


अनुसूचित बैंक कौन से हैं- बैंकिंग अधिनियम, 1934 की धारा 2 के तहत जो बैंक रजिस्टर होती हैं उनको अनुसूचित बैंक कहा जाता है यानी इस अधिनियम की धारा के अन्तर्गत जो नियम लिखे होंगे उनको सभी अनुसूचित बैंक मानेंगे।


अनुसूचित बैंक भी 2 तरह के होते है एक वे होते हैं जिनका मकसद होता है लाभ कमाना, जिन्हें वाणिज्यिक बैंक कहा जाता है, दूसरे वे होते है जिनका मकसद होता है सहयोग करना, विकास करना, जिन्हें सहकारी बैंक कहा जाता है। 


वाणिज्यिक बैंक के अन्दर भी 2 तरह के बैंक आते है- एक होते हैं सार्वजनिक बैंक(जिसमें SBI, IDBI आते हैं), दूसरे होते है प्राइवेट बैंक(जिसमें HDFC, ICICI आदि आते हैं)।


इसके अलावा वाणिज्यिक बैंकों में विदेशी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक व अन्य वाणिज्यिक बैंक भी इसके अन्तर्गत आते हैं।


सहकारी बैंक भी दो तरह के होते हैं-


1. ग्रामीण सहकारी बैंक- जिसका मकसद होता है ग्रामीण क्षेत्र में विकास के कार्य को बढ़ाना है, इसके अन्तर्गत कुछ शॉर्ट टर्म में लोन देने वाले होते है जैसे राज्य, जिला, प्राथमिक स्तर पर सहकारी बैंक व कुछ लॉन्ग टर्म में लोन देने वाले होते हैं जैसे-एससीएआरडीबी।


2. शहरी सहकारी बैंक- ये दो तरह के होते है एक वे होते हैं जो केवल एक ही राज्य में कार्य करते हैं, दूसरे वे होते हैं जो एक से अधिक राज्यों में कार्य करते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) -


यह भारत का केन्द्रीय बैंक है आरबीआई की स्थापना 1935 में हुई और स्थापना के वक्त इसके पास 5 करोड़ पूंजी थी। इसके शुरूआत में सभी शेयर गैर-सरकारी शेयरधारकों के पास थे

 

यानी सरकार के पास इसके शेयर नहीं थे। कुछ लोगों के हाथों में शेयर के केन्द्रीकरण को रोकने के लिये 1 जनवरी, 1949 को सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था।


आरबीआई भारत का मुख्य बैंक है, जो भारत सरकार के अन्तर्गत एक स्वतंत्र बैंक है। आरबीआई का मुख्यालय मुबंई में हैं ।


RBI  का मुख्य कार्य होता है, मौद्रिक नीति को तैयार करना(मौद्रिक नीति क्या होती है इसे पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें), नकदी सप्लाई को कंट्रोल करना होता है, इसके अलावा भी आरबीआई के कुछ महत्वपूर्ण कार्य होते हैं-


  1. बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिये नियम बनाना, पंजीकरण व संचालन का आयोजन करना।

  2. मुद्रा बाजार में मैनेज करना।

  3. वित्तीय स्थिरता और बैंकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।

  4. भुगतान सिस्टम में सुधार करना।

  5. आरबीआई के द्वारा उद्योग, व्यापार व अर्थिक विकास के क्षेत्र में कई नीतियां और कार्यवाही की जाती है साथ ही यह देश की मुद्रा, राजस्व व वित्तीय संरचना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 


हमें बैंकों की जरूरत क्यों पड़-

उत्पादन लागत - हमें किसी भी चीज को बनाने के लिये जिन चीजों की आवश्यकता पड़ती है उसे उत्पादन लागत कहते हैं जैसे- आप एक कंपनी खोलना चाहते हो 


तो आपको इसके लिये भूमि, श्रम, पूंजी, उद्यम(यानी आपको इसके लिये जमीन होनी चाहिए, इसमें काम करने वाले आदमी और पैसे की जरूरत पड़ेगी व इसको चलाने का तरीका पता होना चाहिए।) की जरूरत पड़ती है।


आय लागत - किसी भी आदमी को पैसा कमाने के लिये 4 चीजें(भूमि, श्रम, पूंजी, उद्यम) बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है यदि आपके पास पैसा है तो आप किराये के द्वारा पैसा कमा सकते हो, 


यदि आप कहीं श्रम करते हो तो इससे मजदूरी मिलती है, यदि आपके पास पैसा है, तो आप इससे ब्याज वगैरा ले सकते हो, यदि आपके पास उद्यम है तो आप अपना दिमाग के द्वारा पैसा कमा सकते हो।


जब बैंक नहीं थे तो हमारे पास जो पैसा आता था उसको अपने पास रखते थे, फिर बाद में हमने मध्यस्थता के लिये एक व्यक्ति को बैठाया जिसे हम जमीदार कहते हैं, जो हमारे लिये बैंक का काम करता था, 


लेकिन जैसे ब्रिटिश राज आता गया, तो बैंकिंग सिस्टम आता गया जैसे मान लेते हैं कि मेरे पास किराये से पैसा आया और मैंने इस पैसे को बैंक में जमा कर दिया, बैंक ने इस पैसे को ए नाम के व्यक्ति को लोन पर दे दिया, फिर ए व्यक्ति ने  जमीन खरीदी और किराये से जो पैसे कमाये उसे बैंक में जमा कर दिये, 


बैंक ने फिर इस पैसे को बी नाम के व्यक्ति को दे दिये, बी व्यक्ति भी यही किया, बैंक ने फिर इस पैसे को सी नाम के व्यक्ति को दे दिया। यदि ए व्यक्ति इस पैसे को बैंक में जमा नहीं करता तो यह पैसा उसके पास ही पड़ा रहता। इसलिये बैंक इस पैसे को घूमाता रहता है जिससे बैंक अर्थव्यस्था की साइकिल का पूरा करती है। इसलिये बैंक बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। 

भारत में बैंकिंग का विकास


बैंकिंग सिस्टम एक महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र है जो कि आर्थिक विकास को बढ़ाने में मदद करता है। भारतीय बैंकिंग सिस्टम की शुरूआत अत्यंत प्राचीन काल से मानी जाती है, लेकिन यहां हम बैंकिंग सिस्टम के विकास के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा कर रहे है-


प्राचीन काल- भारतीय बैंकिंग प्रणाली प्राचीन काल से चली आ रही है जैसे वेदों में व्यापार की महत्वपूर्ण चर्चाए होती थी और उनमें ऋण के संबंध में जिक्र किया गया है।


मध्य काल- मध्य काल में मुगलों के काल में बैंकिंग प्रथाएं तेजी के साथ विकसित हुई और लोगों द्वारा खुद की बैंको और व्यापारिक संघ की स्थापना की, जिसमें जमा, उधार की सेवाएं प्रदान की जाती थी।


ब्रिटिश काल - इस काल में बैंकिंग सेक्टर में बहुत ज्यादा बदलाव आया जैसै- 1840 में बैंक ऑफ बंगाल स्थापना, उसके बाद 1840 में ही बैंक ऑफ बम्बें, 1843 में बैंक ऑफ मद्रास की स्थापना की गयी। 


शुरूआत में 3 प्रेसीडेंसी(बंगाल, मूबंई, मद्रास) में अलग-अलग बैंकों की स्थापना की गयी थी, 1921 में इन तीनों बैंकों को विलय करके इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गयी, फिर 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(एसबीआई) कर दिया गया।


स्वतंत्रता काल- आजादी के बाद 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना जो कि भारत का केन्द्रीय बैंक है, फिर 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, फिर 1980 में भी राष्ट्रीयकरण किया गया। जिसके बाद बैंकिंग सेक्टर में गतिविधियां बढ़ी।


वर्तमान में- आज की बैंकिंग प्रणाली नयी तकनीक व डिजिटल रूप का प्रयोग करके बैंकें अपने ग्राहकों को सुविधाएं दे रही है जैसे- इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, डिजिटल पेमेंट आदि।


भारतीय बैंकिंग सिस्टम ने भारतीय अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, व इसने भारत ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहूंच बढ़ाई है। बैंकिंग सिस्टम का विकास द्वारा ना केवल आर्थिक विकास हुआ है बल्कि इसने सामाजिक और आर्थिक दोनों रूप से समाज को सुविधाएं प्रदान की हैं।



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