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अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है? कार्य, उद्देश्य एवं स्थापना

ILO: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है? कार्य, उद्देश्य एवं स्थापना

ILO Full form in hindi : ILO का फुल फॉर्म होता है - International Labour Organization, जिसको हिन्दी में "अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन" कहते हैं और इसका मुख्यालय जिनेवा(स्विट्जरलैंड) में हैं, इसकी स्थापना प्रथम विश्वयुद्व की समाप्ति के बाद वर्साय की संधि के तहत 1919 में की गयी है, तथा सामाजिक न्याय के सिद्वांत के आधार पर आईएलओ की स्थापना की गयी थी,

इसका मुख्य कार्य होता है अन्तर्राष्ट्रीय आधार पर जो श्रमिक है उनके हितों को ध्यान में रखते हुए, नियम कानून बनाना, जो देश में श्रम करते हैं उनको राष्ट्रीय श्रमिक बोला जाता है, और जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यानी एक देश से दूसरे देश में जो काम करते है उनको अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक बोला जाता है।

साथ ही मानवाधिकारों जैसे काम करने का अधिकार, संघ की स्वतंत्रता, बलात श्रम से सुरक्षा, भेदभाव से सुरक्षा आदि काम भी आईएलओ द्वारा किये जाते हैं, जहां तक भारत की बात की जाये तो भारत 1922 से ही अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का संचालन निकाय का स्थाई सदस्य रहा है, व साल 1928 में आईएलओ का पहला कार्यालय(नई दिल्ली) में गठित किया गया।

ILO का मिशन- सभी महिलाओं व पुरूषों के लिये सम्मानीय कार्यों को बढ़ावा देना और इसके लिये श्रम मानकों की स्थापना करना, व नीतियों का विकास तथा कार्यक्रमों को तैयार करना है। आईएलओ का वर्क एजेंडा SDG-8 से जुड़ा है, जिसका उद्देश्य है निरंतर, समावेशी और टिकाउ आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार तथा सभी के लिये रोजगार है।

ILO: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का इतिहास एवं स्थापना :- 


 वैसे तो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक की स्थापना 1919 में हुई लेकिन इसका इतिहास औधोगिक क्रांति की शुरूआत से माना जाता है क्योंकि उस वक्त नये-नये कारखाने स्थापित होने शुरू हुए,


जब ये कारखाने आये तो एक नियोजित(मालिकाना) वर्ग उत्पन्न हुआ जो श्रमिकों से काम कराता था दूसरा वर्ग जो आया वह श्रमिकों का था जो उन कारखानों में काम करता था।


उस वक्त नियोजित वर्ग शक्तिशाली था और मजदूर वर्ग जो काम करते थे उनके सेवा, शर्त कारखानों के मालिक तय करते थे। ये शर्तें श्रमिकों के लिये सही नहीं होती थी,


मजदूरों का शोषण हुआ करता था क्योंकि कारखानों के मालिक शर्तों को अपने मुनाफे के लिये बनाया करते थे। ऐसी स्थिति में श्रमिकों में अंसतोष उत्पन्न हुआ।


ऐसे हुआ यह कि श्रमिकों और कारखानों के मालिकों में टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके बाद सरकारों ने इसमें दखल देना शुरू किया।


इसके बाद श्रमिकों, कारखानों के मालिकों सरकारों के बीच समझौता होना शुरू हुआ, फिर श्रम संगठन श्रमिकों के हितों के लिये आवाज उठाने लगे, उन्हीं में से एक है अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जिसकी स्थापना होती है 1919 में।


1989 में जर्मनी के सम्राट ने बर्लिन-श्रम-सम्मेलन का आयोजन किया, फिर 1990 में पेरिस में श्रम के विधान के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संघ की स्थापना हुई।


इसके द्वारा 1905 व 1906 में जो सम्मेलन हुआ उसमें श्रम संबंधी प्रथम नियम बनाये गये। ये नियम थे- स्त्रियों के रात में काम करने व दियासलाई के उधोग में सफेद फॉस्फोरस के प्रयोग के विरोध में बनाये गये थे,


लेकिन उसके बाद प्रथम विश्व युद्व शुरू हो गया जिसके कारण ये जो नियम बनाये गये थे वे ज्यादा प्रभावित नहीं हुए।


इस युद्व में श्रमिकों की समस्याएं और भी ज्यादा उत्पन्न होने लगी, हड़ताले होने लगी, कई क्रांतियां उत्पन्न हुई फिर 1919 में शांति सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय श्रम के लिये जांच कमीशन बैठाया,


इस कमीशन के सूझाव कुछ परिवर्तनों के साथ मान लिये गये। फिर अक्टूबर, 1919 में वाशिंगटन में प्रथम श्रम सम्मेलन की बैठक हुई।


अमेरिका में अमेरिका फेडरेशन ऑफ लेबर(एएफएल) के प्रमुख सैमुअल गोम्पर्स की अध्यक्षता में श्रम आयोग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के संविधान का मसौदा तैया किया गया था।


इस मसौदे में 9 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। जब आईएलओ की स्थापना हुई उसके 2 साल के भीतर ही इस संगठन ने 9 अभिसमय और 10 सिफारिशों को अपना लिया था।


भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य रहा है यानी भारत इसका शुरूआत से सदस्य रहा है। फिर द्वितीय विश्व युद्व के बाद अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ(1946) की एक विशिष्ट संस्था बन गई।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट - 2023

ILO: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है? कार्य, उद्देश्य एवं स्थापना



ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2022-2023:


वेतन और क्रय शक्ति पर मुद्रास्फीति और कोविड-19 का प्रभाव : जो लोगों को वेतन मिल रहे हैं उस पर मुद्रास्फीति और कोविड-19 का क्या प्रभाव पड़ रहा है मतलब किन लोगों को रोजगार मिला और किन लोगों का रोजगार गया।


ट्विन क्राइसिसः


मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी मतलब कई ऐसी कंपनियां थी व कई ऐसे संस्थान थे जो बंद हो गये, कई ऐसे लोग थे जो वेरोजगार हो गये इससे हुआ ये कि जो वैश्विक स्तर पर स्थितियां थी वे धीमी हो गयी।

मंहगाई लगातार बढ़ती गयी।


दुनिया भर में वास्तविक मासिक वेतन में बहुत तेजी के साथ गिरावट देखी गयी इस स्थिति के लिये रूस-यूक्रेन युद्व व वैश्विक उर्जा संकट को जिम्मेदार माना गया है। 


इसका उद्देश्य - कई देशों और क्षेत्रों लगभग 190 देशों से वेतन इकटठा करना है।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक अन्य रिपोर्ट PDF


‘‘एशिया-पैसिफिक एम्प्लॉमेंट एंड सेशल आउटलुक 2022 : इस रिपोर्ट के अनुसार एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में खास कर इसके उपक्षेत्र में 2022 में लगभग 22 मिलियन नौकरियों का नुकसान हुआ है।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ.होंगबो ने कहा है कि यदि सबसे कम वेतन पाने वालों की क्रय शक्ति को बनाये नहीं रखा जाता है तो आय असमानता और गरीबी बढ़ेगी।


Asia-Pecific report PDF Click here


इस रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु


कर्मचारियों का वास्तविक और नॉमिनल वेतन पर काफी अन्तर देखा गया है।


नॉमिनल वेतन क्या है- एक कर्मचारी को संगठन द्वारा या मालिक द्वारा जो मासिक या वार्षिक वेतन दिया जाता है जब इसमें वृद्वि होती या वेतन की प्राप्ति होती है तो इसमें मुद्रास्फीति को शामिल नहीं किया जाता है


जैसे मान लेते है किसी व्यक्ति का एक साल का वेतन 50 हजार रूपये है लेकिन अगले साल मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत बढ़ने के बावजूद भी इसका वेतन इतना ही रहता है तो यह इन पैसों से 10 प्रतिशत कम वस्तुएं खरीद पायेगा।


वास्तविक वेतन क्या है- सभी कर्मचारियों के वास्तविक औसत वेतन में सालाना बदलाव यानी वृद्वि होती है। 


भारत की स्थिति


सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार भारत में नॉमिनल वेतन वृद्वि 4,398 रूपये से बढ़कर 2021 मे 17,017 रूपये प्रतिमाह हो गया। 


मुद्रास्फीति- वास्तविक वेतन वृद्वि 2006 में 9.3 प्रतिशत से गिरकर 2021 में -0.2 प्रतिशत हो गयी।

चीन में 2019 में विकास दर 5.6प्रतिशत से घटकर 2022 में 2 प्रतिशत हो गया, वहीं पाकिस्तान में 3.8 प्रतिशत। कोविड महामारी के बाद भारत में नकारात्मक वृद्वि देखी गयी।


रिपोर्ट में बताया गया है बढ़ती हुई ‘कॉस्ट ऑफ लिविंग‘ यानी जो हम खर्च करते हैं उसकी बात की गयी है। कम आय वाले लोगों और परिवारों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है


क्योंकि अधिकांश आय जरूरी वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। तथा अधिकांश जो वृद्वि होती है वह आवश्यक वस्तुओं में ही होती है।


असमानताः


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बताया है कि बढ़ती हुई असमानता चिंताजनक है। उच्च कौशल वाले कामों में ही कोविड-19 की रिकवरी देखने को मिली है।


2019 से 2021 में उच्च कौशल श्रमिकों के बीच 1.6प्रतिशत की रोजगार की वृद्वि देखी गयी है लेकिन निम्न और मध्यम कौशल श्रमिकों के बीच यह वृद्वि नहीं देखी गयी है यानी जो निम्न कौशल से जुड़े थे और उनकी नौकरियां चली गयी तो उनको वापस आना मुश्किल हो गया।


जो G-20 देश है उनके बीच वास्तविक मजदूरी के औसत स्तर में काफी अंतर देखने को मिला है। जैसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 4 हजार डॉलर प्रति माह है वहीं उभरती अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 1800 डॉलर प्रति माह है।


समाधान


भविष्य के विवेकपूर्ण नॉमिनल वेतन को समायोजित करना चाहिए यानी उस तरह की नीतियां बनानी होंगी कि लोग उतना तो वेतन प्राप्त कर सके जिससे वे असमानता वाली स्थिति से बच सके।


कम आय वाले परिवारों के जीवन स्तर की सुरक्षा करना। श्रम बाजार संस्थानों और वेतन नीतियों की मजबूती प्रदान करना। वेतन और आय के अधिक समान वितरण के लिये बेहतर औपचारिक वेतन रोजगार निर्माण करना होगा। लैंगिक वेतन में जो अंतर है उस पर ध्यान देना होगा।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है? ILO in Hindi


सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संगठन है जो लोगों के श्रम और अधिकारों के आंकड़े इकट्ठा करता है और ऐसे समाधान सुझाता है कि देश अपनी नीतियों को उस तरह से सुधार करके लागू करें। 


यह एक त्रिदलीय अंतर्राष्ट्रीय संस्था है क्योंकि इसमें सरकारें, नियोक्ता एवं श्रमिक के प्रतिनिधि एक साथ रहते हैं। इस प्रमुख उददेश्य वैश्विक एवं स्थायी शांति के लिये सामाजिक न्याय जरूरी है।


आईएलओ की स्थापना 1919 के तहत वर्साय की संधि के तहत की गयी थी फिर इसे 1946 में संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषज्ञ एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया।


वर्तमान में इसके 187 सदस्य देश हैं जिसमें भारत भी इसका सदस्य है। और इसे 1969 में विश्व शांति के लिये नोबेल पुरस्कार भी मिला


यह विश्व का पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन था जिसका प्रमुख मकसद श्रमिकों की सुरक्षा, उनके अधिकारों की रक्षा, श्रम में सुधार व रोजगार को बढ़ावा देना था।


ILO को श्रमिकों के अधिकारों, मजदूरी के मानकों और कानूनी रूपरेखा के लिये जागरूक करने में परेशानियों का सामना करना पड़ा।


आईएलओ अपने सदस्य देशों के लिये मानकों बनाता है और राष्ट्रीय स्तर पर कानून व नीतियों का समर्थन भी करता है। इसके साथ ही आईएलओ अन्तर्राष्ट्र समझौतों के माध्यम से सहयोग, समर्थन और तकनीक प्रदान करता है। 


यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर श्रम और रोजगार के मामलों पर नीतियां बनाकर, मानकों का प्रशासन करके महत्वपूर्ण योगदान करता है।


इसके कार्यक्षेत्रों में श्रम से संबंधित अधिकार, मजदूरी के मानकों का विकास, कामकाजी संबंधों के विवादों का निपटान करना, बाल मजदूरी को रोकना आदि शामिल हैं।  


ILO की संरचना:


ILO में तीन समूहों (सरकारें, नियोक्ताओं और श्रमिक प्रतिनिधियों) के माध्यम से अपना कार्य करता है-

अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन- यह श्रम मानकों और आईएलओ की नीतियों का निर्धारण करता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद कहा जाता है। यह सम्मेलन हर वर्ष जेनेवा में होता है। यह सम्मेलन श्रम से संबंधित सवालों के चर्चा के लिये भी महत्वपूर्ण हो जाता है।


शाषी निकाय - यह आईएलओ की कार्यकारी परिषद है इसकी बैठक जेनेवा में 1 साल में 3 बार आयोजित होती है। इसका मुख्य कार्य होता है बजट तैयार करना जिसके बाद यह बजट स्वीकृति सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाता है।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय


यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का स्थायी सचिवालय होता है। यह कार्यालय आईएलओ की सभी गतिविधियों के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिसे संचालन निकाय की संवीक्षा एवं महानिदेशक के नेतृत्व में तैयार किया जाता है। 


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के उद्देश्य


इसका मुख्य उद्देश्य है दुनिया के श्रमिक समूह की श्रम और आवास संबंधी स्थिति में सुधार करना साथ ही सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के प्रभाव को बढ़ाना।


श्रमिकों की सुरक्षा का संरक्षण करना जिसके लिये आईएलओ ने मानव संसाधन विकास, व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा, कामकाजी शर्तों की निगरानी सुरक्षा के मानकों का विकास किया है।


ILO सामाजिक व श्रम समस्याओं को सुलझाने में सदस्य देशों की मदद करना। यह मजदूरी के जो मानक है उनके प्रशासन के लिये काम करता है और यह इन मानकों के लिये मार्गदर्शन भी करता है।


आईएलओ विवादों के समाधान के लिये काम करता है और यह इन समाधानों को सुलझाने के लिये मदद करना, मध्यस्थता करना, कानूनी प्रणाली में सुधार करता है।


ILO कामकाजी संबंधों, श्रमिक संगठनों और उद्योगपतियों के बीच स्थिति को मजबूत करने का काम करता है ताकि श्रमिकों के हितों की रक्षा की जा सके और उनकी स्थिति को सुधारा जा सके।


ILO रोजगार के लिये नीतियों और कार्यक्रमों को बनाता है।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कार्य (functions of ilo)


  • सामाजिक व श्रम मुददों का समाधान करना तथा उनके लिये नीतियां व कार्यक्रम बनाना। 

  • सदस्य देशों की सामाजिक व श्रम समस्याओं के समाधाने के लिये उनकी मदद करना। 

  • मानवाधिकारों जैसे काम करने का अधिकार, बाल श्रम को रोकना, भेदभाव से सुरक्षा करना आदि का संरक्षण करना।

  • सामाजिक व श्रम संबंधित कार्यो का मूल्यांकन, रिसर्च व प्रकाशन करन।

  • आईएलओ मानवाधिकारों के विकास की बढ़ोत्तरी के लिये कार्य करता है यह मजदूरों की सुरक्षा, स्वास्थ्य व उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कई श्रम मानकों को निर्धारित करता है जैसे मजदूरों के अधिकारों का संरक्षण, काम की अवधि, मजदूरों के खिलाफ कानूनी संरक्षण आदि।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन मजदूरों के संगठनों के गठन, उनकी संरचना, व उनके अधिकारों का संरक्षण करता है इसके द्वारा यह मजदूरों का उत्थान करना चाहता है।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कई श्रम संबंधी मुददों पर रिचर्स व राष्ट्रों को इसके लिये दिशा निर्देश देता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ये सभी कार्य नियमों, समझौतों और द्विपक्षीय मंचों द्वारा किये जाते हैं।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक (objectives of ilo)


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा कई श्रम संबंधी मानकों को निर्धारित किया गया है जो श्रमिक अधिकारों व उनके कार्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बाल श्रम का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए श्रमिकों के लिए न्यूनतम कार्य आयु की स्थापना की है। ये नियम न केवल उस उम्र को संबोधित करते हैं जिस पर व्यक्ति काम करना शुरू कर सकते हैं,


बल्कि न्यूनतम काम के घंटे, छुट्टियों और अन्य संबंधित पहलुओं से संबंधित दिशा-निर्देश भी शामिल करते हैं। इसके अतिरिक्त, ILO मानकों में न्यायिक माध्यमों से श्रम विवादों को हल करने और वेतन विवादों को संबोधित करने के प्रावधान शामिल हैं।


ILO इन मानकों को उन सम्मेलनों और समझौतों के माध्यम से तैयार करता है, जिन्हें सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया जाता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये मानक कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।


सम्मेलनों को सरकारों, श्रमिकों के प्रतिनिधियों और नियोक्ताओं के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से विकसित किया जाता है, और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के दौरान अपनाया जाता है। एक बार आईएलओ सम्मेलन की पुष्टि हो जाने के बाद, यह सदस्य देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज बन जाता है।


नतीजतन, कई देश इन सम्मेलनों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय श्रम नियमों के ढांचे के भीतर अपने घरेलू श्रम कानूनों को आकार देने के आधार के रूप में करते हैं।


भारत और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के संबंध


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बाल श्रम का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए श्रमिकों के लिए न्यूनतम कार्य आयु की स्थापना की है। ये नियम न केवल उस उम्र को संबोधित करते हैं जिस पर व्यक्ति काम करना शुरू कर सकते हैं,


बल्कि न्यूनतम काम के घंटे, छुट्टियों और अन्य संबंधित पहलुओं से संबंधित दिशा-निर्देश भी शामिल करते हैं। इसके अतिरिक्त, ILO मानकों में न्यायिक माध्यमों से श्रम विवादों को हल करने और वेतन विवादों को संबोधित करने के प्रावधान शामिल हैं।


ILO इन मानकों को उन सम्मेलनों और समझौतों के माध्यम से तैयार करता है, जिन्हें सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया जाता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये मानक कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।


सम्मेलनों को सरकारों, श्रमिकों के प्रतिनिधियों और नियोक्ताओं के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से विकसित किया जाता है, और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के दौरान अपनाया जाता है।


एक बार ILO सम्मेलन की पुष्टि हो जाने के बाद, यह सदस्य देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज बन जाता है।


नतीजतन, कई देश इन सम्मेलनों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय श्रम नियमों के ढांचे के भीतर अपने घरेलू श्रम कानूनों को आकार देने के आधार के रूप में करते हैं।


भारत अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना से ही इसका सदस्य रहा है और साल 1928 में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का पहला कार्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया।


भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 8 प्रमुख कन्वेंशनों में से 6 पर हस्ताक्षर किये है।


अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 8 प्रमुख कन्वेंशन कौन से हैं:-


  1. बलात् श्रम पर कन्वेंशन(संख्या 29) 
  2. बलात् श्रम के उन्मूलन पर कन्वेंशन(संख्या 105) 
  3. समान पारिश्रमिक पर कन्वेंशन(संख्या 100) 
  4. भेदभाव(रोजगार और व्यवसाय) पर कन्वेंशन(संख्या 111) 
  5. न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन(संख्या 138) 
  6. बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर कन्वेंशन(संख्या 182) 
  7. संघ की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर कन्वेंशन(संख्या 87) 
  8. संगठित एवं सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार पर कन्वेंशन(संख्या 98) 

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की कितनी संस्थाएं हैं :- 

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की तीन संस्थाएं है-

1. जनरल कॉन्फ्रेंस

2. शासी निकाय(गवर्निंग बॉडी)

3. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय

जनरल कॉन्फ्रेंस - अन्तर्राष्ट्रीय श्रम मानकों व नीतियों को निर्धारित करता है तथा साथ ही ये सामाजिक और श्रम से जुड़े प्रश्नों पर चर्चा के लिये भी एक प्रमुख मंच है। 

गवर्निंग बॉडी - यह अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की कार्यकारी परिषद है जिसकी हर साल जेनेवा में 3 बैठकें आयोजित होती है। यह आईएलओ के निर्णयों का निर्धारण व कार्यक्रम तथा बजट तय करता है जिन्हें बाद में स्वीकृति हेतु सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय - यह अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का एक स्थायी सचिवालय है जो आईएलओ की सभी गतिविधियों के लिये केंद्र बिन्दु है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के बारे में जानकारी(FAQs) :

Q. ILO ka full form 

A. ILO का फुल फॉर्म है- International labor Organization 

Q. ILO में कुल कितने देश हैं ?

A.  ILO में वर्तमान में इसके 187 सदस्य देश हैं जिसमें भारत भी इसका सदस्य है। और इसे 1969 में विश्व शांति के लिये नोबेल पुरस्कार भी मिला

यह विश्व का पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन था जिसका प्रमुख मकसद श्रमिकों की सुरक्षा, उनके अधिकारों की रक्षा, श्रम में सुधार व रोजगार को बढ़ावा देना था।

Q. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना कब हुई थी | 

A.  अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक की स्थापना 1919 में हुई लेकिन इसका इतिहास औधोगिक क्रांति की शुरूआत से माना जाता है क्योंकि उस वक्त नये-नये कारखाने स्थापित होने शुरू हुए|

Q. ILO के वर्तमान अध्यक्ष कौन है ?

A.  ILO में वर्तमान अध्यक्ष गिल्बर्ट होंगबो है|

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