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राज्य क्या है व इसकी परिभाषा


जैव या आंगिक सिद्वांत राज्य का सबसे पुराना सिद्वांत है व आधुनिक युग में जैव या आंगिक की तुलना जीवित प्राणी से की जाती है।

कौटिल्य के द्वारा राज्य के 7 अंग दिये गये-

1. राजा या स्वामी - सिर
2. अमान्य या मंत्री - आंखे
3. सुहृद या मित्र - कान
4. कोष - राज्य का मुख
5. सेना - मस्तिष्क
6. दुर्ग - राज्य की बांहे
7. भूमि एवं प्रजा -  जांघे।

राज्य क्या है व इसकी परिभाषा

प्लेटो ने अपने तीन गुणों( 1. तृष्णा का स्थान कमर में है, 2. मनोवेग हृदय में, 3. ज्ञान मस्तिष्क) के आधार पर समाज को 3 वर्गों में विभाजित किया है-

1. राज्य का पूर्णसत्तावादी सिद्वांत- राजनीति वह सिद्वांत है जो समाज में राज्य की सर्वोच्च, सर्वोपरि और असीम सत्ता को उचित ठहराता है। यह मानव सभ्यता की प्रगति में राज्य की भूमिका पर बल देता है और नागरिकों से राज्य के प्रति निष्ठा और बलिदान की मांग को उचित ठहराता है। यह राज्य को कानून तथा अधिकारों का स्त्रोत एवं संरक्षक मानते हुए शक्ति के महत्व पर प्रकाश डालता है।

2. राज्य का विधिशास्त्रीय सिद्वांत- राज्य का विधिमूलक या विधिशास्त्रीय सिद्वांत मुख्यतः विधिवेत्ताओं की देन है। इसके अनुसार राज्य एक कानूनी व्यक्ति है। जिसका मुख्य कार्य कानून का निर्माण और प्रवर्तन तथा कानूनी अधिकारों की रक्षा करना है।

3. राज्य का यंत्रीय सिद्वांत- यह सिद्वांत राज्य की तुलना यंत्र या मशीन से करता है जिसे मनुष्य ने अपने लाभ या उपयोग के लिये सोच-विचार कर बनाया है या उसका आविष्कार किया है। यह एक आधुनिक सिद्वांत है जो 17वीं शताब्दी में सामने आया। यांत्रीय सिद्वात के अनुसार राज्य एक सामाजिक संस्था है समाज प्राकृतिक संस्था है। समाज सदा से विद्मान रहा है, लेकिन राज्य सदा से नहीं है।

पैतृकतावाद सिद्वांत- 

वह सिद्वांत जो राज्य को माता-पिता के तुल्य मानते हुए जन साधारण को उसकी संतान के समान मानता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार माता-पिता अपनी संतान के हित को जितनी अच्छी तरह समझते है, संतान स्वयं इसे उतनी अच्छी तरह नहीं समझती। अतः जन साधारण को निरंतर राज्य के निर्देशों का पालन करना चाहिए।

राज्य की दैवी उत्तपत्ति का सिद्वांत- 

इस सिद्वांत के अनुसार राजा को अपनी शक्ति सीधे ईश्वर से प्राप्त हुई है, अतः प्रजा को चाहिए कि वह राजा की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा मानकर उसका पालन करे। इस सिद्वांत के प्रमुख प्रवक्ता अंग्रेजी लेखक रॉबर्ट फिल्मर थे।

उदावादी सिद्वांत- 

इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य का निर्माण सब व्यक्तियों ने मिलकर सबके व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से किया है। अतः राज्य एक साधन है, व्यक्ति उसका साध्य है।

कल्याणकारी राज्य - 

राज्य का वह रूप जो मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था को इस ढंग से विनियमित करता है जिससे निर्धन और निर्बल वर्गों को अपेक्षित सहायता पहूंचाई जा सके और समुदाय के सब हिस्सों के लिये सामान्य सेवाओं का जाल बिछाया जा सके।

राज्य :  जनसंख्या + भूभाग + सरकार + सम्प्रभुता।

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