आदमी का जीवन(life) कैसा है यह उसके Thought process पर निर्भर करता है, उसके बाद उसका अमल आता कि उस पर अमल कैसा है? आदमी के जीवन(life) जीने में उसकी सोच(thoughts) की भूमिका बहुत अहम होती है,
क्योंकि जब एक बच्चा इस दुनिया में आता है तो वह कोरे, सफेद कागज की तरह होता है यानी वह अपने आप में सब कुछ होता है- वह वैज्ञानिक, विद्वान, दोर्शनिक(Philosopher) आदि सब कुछ। हम जैसा चाहे वैसा कर सकते है उस बच्चे को क्योंकि वह एक कोरा कागज है। हम उस कागज पर जैसा लिखेंगे वैसा लिख सकते है
इसलिए आदमी के जीवन जीने में उसके शुरूआत Background का Effect बहुत ज्यादा पड़ता है यदि हम शुरूआत में ही Positive या Negative Philosophy के शिकार हो गये तो उसका असर हम पर, परिवार पर, समाज पर पड़ता है।
जीने का सही तरीका(Right Way to live life):- जीवन जीने में Philosophy तय करती है कि जीवन कैसे जीना है,(Philosophy का मतलब- सोच, Psychology का अगला कदम है। ) वैसे जीवन जीने में Philosophy कई तरह से हो सकती है, लेकिन एक Generally तरीका जो हम जानने की कोशिश करते हैं-
- हम अपनी जिन्दगी एक biology के अन्दर गुजार रहे होते है, अपनी जिन्दगी अपने भौतिकता (शारीरिक, जिस्मानियत, Materialness) में गुजारना यानी जो जिस्म है उसकी जरूरतों के लिए, उसको ही मकसद मानकर जिन्दगी गुजारना- Simple भाषा में जॉब, काम, बिजनेस, कपड़े आदि की जरूतों के लिए जिन्दगी गुजारना।
- दूसरा तरीका(Philosophy) यह है कि हमारे अपने भौतिकता (शारीरिक, जिस्मानियत, Materialness) के अलावा भी एक जिन्दगी है इसकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अपनी जिन्दगी गुजारना।
दुनिया में ज्यादातर आबादी भौतिकता की जरूरतों के लिए जिन्दगी गुजार रही है, जैसे पैसा, बिजनेस, जॉब आदि की जरूरतों के लिए। हम इस Philosophy में चाहे जितना भी मुकाम हासिल कर ले, लेकिन फिर भी हम Superior नहीं हो सकते, क्योंकि हम दूसरी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने वाली Community से हम Compete नहीं कर सकते For Example हम चीता से ज्यादा तेज नहीं भाग सकते।
जब हम इस Philosophy में जिन्दगी गुजार रहे होते है तो आखिर में पता लगता है कि हमारी Life का मकसद क्या है, परेशान से होने लगते है
- लेकिन उनमें Emotionality, intellectuality, spirituality की कमी रहती है जिसके चलते वे विकास नहीं कर पाते, लेकिन आदमी की Community में कितनी तरक्की हो गयी है यह उन्हीं कुछ लोगों की वजह से हुई है जिन्होंने भौतिकता के अलावा Philosophy में जाकर काम किया है।
- हमें बच्चे को शरूआत से ही भौतिकता के अलावा भी एक जिन्दगी है इस Philosophy में भी सिखाये ताकि Growth बनी रहे Otherwise जितनी मेहनत हमने भौतिकता की जरूरतों को पुरा करने के लिए बच्चों को सिखाया है कहीं वह बेकार ना चला जाये। क्योंकि शुरूआत में जो विचार Mind में बैठ जाता है, उसको बदलना मुश्किल हो जाता है।
- अपने बच्चों की Philosophy में हमें यह बात सिखानी होगी कि भौतिकता के अलावा भी एक जिन्दगी है ताकि मानव विकास बना रहे और सिखाना होगा कि वह खुद के लिए नहीं है बल्कि पूरी मानव जात है लिए है।
- हमें वक्त पर गौर करना चाहिए क्योंकि वक्त का नाम ही जिन्दगी है।
‘‘दुनिया में मिला वक्त इतना कि एक ख्वाहिश भी पूरी ना हो पायी और दुनिया में मिला वक्त इतना कि एक जिन्दगी में ना मिट पाया‘‘
इसका मतलब जिन्दगी में ऐसा काम करना जिससे एक ख्वाहिश भी पूरी ना हो या जिन्दगी में ऐसा काम करना जिससे ना मिटने वाला नाम हो।